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सरगुजा: गौठान में महिलाएं कर रहीं जिमीकांदा की खेती - Gothan of Surguja

छत्तीसगढ़ में जिमीकांदा के नाम से मशहूर सब्जी को ओल या एलिफेंट फ्रूट भी कहा जाता है. खेती में नवाचार के तहत अब सरगुजा के गौठानों में जिमीकांदा की खेती शुरू की गई है. इसके लिए महिला समूहों को प्रशिक्षण भी दिया गया है.

cultivating yam in Gothan
महिलाएं कर रहीं जिमीकांदा की खेती
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Published : Mar 25, 2021, 8:43 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी योजना के तहत सरगुजा के गौठानों में मल्टीएक्टिविटी सेंटर बनाये जा रहे हैं. इनमें ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने के लिए नए साधन सरकार उपलब्ध करा रही है. इसी कड़ी में सरगुजा जिला प्रशासन ने एक नया प्रयोग किया है. जिले के आदर्श गौठानों में जिमीकांदा की खेती शुरू की गई है. यह काम गौठान में महिला समूह की सदस्य कर रहीं हैं.

महिलाएं कर रहीं जिमीकांदा की खेती

पहली बार शुरू हुई खेती

दरअसल सरगुजा में जिमीकांदा खाने वालों की तादाद अधिक है. स्थानीय लोग इसे खूब पसंद करते हैं. लेकिन इसकी विधिवत खेती के तरफ कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया था. पहली बार सरगुज़ा मे जिमी कांदा की खेती गौठानों में शुरू की गई है. क्योंकी सरगुजा के किसान इसकी खेती में माहिर नहीं थे, लिहाजा पहले इन्हें जिमी कांदा की खेती के लिए प्रशिक्षण दिलाया गया. प्रशिक्षण के बाद अब खेती शुरू की गई है.

cultivating yam in Gothan
जिमीकांदा की खेती

PCC चीफ मोहन मरकाम ने बनाया वर्मी कम्पोस्ट

जिमीकांदा की क्या है विशेषता

छत्तीसगढ़ में जिमीकांदा के नाम से मशहूर सब्जी को ओल या एलिफेंट फ्रूट भी कहा जाता है. सरगुजा में दीपावली के दिन इसकी सब्जी खाने का विशेष महत्व और चलन है. मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे सूरन भी कहा जाता है. दिखने में बेहद अजीब यह कंद खाने में बड़ा ही स्वादिष्ट होता है. लेकिन जिमी कांदा की सब्जी पकाना काफी पेचीदा है. जरा सी लापरवाही से बनी जिमी कांदा की सब्जी खाने वाले के गले मे तेज खुजली शुरू कर सकती है.

cultivating yam in Gothan
जिमीकांदा खेती के लिए प्रशिक्षण

गौठानों में गोबर खरीदी बंद होने से लोगों में मायूसी

गजेंद्र प्रजाति के बीज

लुंड्रा विकासखंड के ग्राम असकला में ETV भारत ने जिमीकांदा की खेती का जायजा लिया. असकला के गौठान में लगभग एक एकड़ में जिमीकांदा की खेती की गई है. साइंटिस्ट डॉ प्रशांत ने बताया की सरगुजा की जलवायु और मिट्टी की उर्वरकता को देखते हुए यहां गजेंद्र प्रजाति का जिमी कांदा लगाया जा रहा है. जिसके बेहतर परिणाम आने की उम्मीद है. फसल तैयार होने में 8 महीने का समय लगता है. फिलहाल खेती में नवाचार और प्रशासन के सहयोग से खेती कर रहीं समूह की महिलाएं खुश हैं. लेकिन इनकी खुशी के असल मायने उस दिन सामने आएंगे जब 8 महीने बाद इनके बोये गये जिमी कांदा बीज से सफल उत्पादन होगा.

नारायणपुर और दंतेवाड़ा के लोगों ने किया दुर्ग के गौठानों का भ्रमण

सरगुजा: नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी योजना के तहत सरगुजा के गौठानों में मल्टीएक्टिविटी सेंटर बनाये जा रहे हैं. इनमें ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने के लिए नए साधन सरकार उपलब्ध करा रही है. इसी कड़ी में सरगुजा जिला प्रशासन ने एक नया प्रयोग किया है. जिले के आदर्श गौठानों में जिमीकांदा की खेती शुरू की गई है. यह काम गौठान में महिला समूह की सदस्य कर रहीं हैं.

महिलाएं कर रहीं जिमीकांदा की खेती

पहली बार शुरू हुई खेती

दरअसल सरगुजा में जिमीकांदा खाने वालों की तादाद अधिक है. स्थानीय लोग इसे खूब पसंद करते हैं. लेकिन इसकी विधिवत खेती के तरफ कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया था. पहली बार सरगुज़ा मे जिमी कांदा की खेती गौठानों में शुरू की गई है. क्योंकी सरगुजा के किसान इसकी खेती में माहिर नहीं थे, लिहाजा पहले इन्हें जिमी कांदा की खेती के लिए प्रशिक्षण दिलाया गया. प्रशिक्षण के बाद अब खेती शुरू की गई है.

cultivating yam in Gothan
जिमीकांदा की खेती

PCC चीफ मोहन मरकाम ने बनाया वर्मी कम्पोस्ट

जिमीकांदा की क्या है विशेषता

छत्तीसगढ़ में जिमीकांदा के नाम से मशहूर सब्जी को ओल या एलिफेंट फ्रूट भी कहा जाता है. सरगुजा में दीपावली के दिन इसकी सब्जी खाने का विशेष महत्व और चलन है. मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे सूरन भी कहा जाता है. दिखने में बेहद अजीब यह कंद खाने में बड़ा ही स्वादिष्ट होता है. लेकिन जिमी कांदा की सब्जी पकाना काफी पेचीदा है. जरा सी लापरवाही से बनी जिमी कांदा की सब्जी खाने वाले के गले मे तेज खुजली शुरू कर सकती है.

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जिमीकांदा खेती के लिए प्रशिक्षण

गौठानों में गोबर खरीदी बंद होने से लोगों में मायूसी

गजेंद्र प्रजाति के बीज

लुंड्रा विकासखंड के ग्राम असकला में ETV भारत ने जिमीकांदा की खेती का जायजा लिया. असकला के गौठान में लगभग एक एकड़ में जिमीकांदा की खेती की गई है. साइंटिस्ट डॉ प्रशांत ने बताया की सरगुजा की जलवायु और मिट्टी की उर्वरकता को देखते हुए यहां गजेंद्र प्रजाति का जिमी कांदा लगाया जा रहा है. जिसके बेहतर परिणाम आने की उम्मीद है. फसल तैयार होने में 8 महीने का समय लगता है. फिलहाल खेती में नवाचार और प्रशासन के सहयोग से खेती कर रहीं समूह की महिलाएं खुश हैं. लेकिन इनकी खुशी के असल मायने उस दिन सामने आएंगे जब 8 महीने बाद इनके बोये गये जिमी कांदा बीज से सफल उत्पादन होगा.

नारायणपुर और दंतेवाड़ा के लोगों ने किया दुर्ग के गौठानों का भ्रमण

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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