सरगुजा : बीते वर्षों में देह दान या अंग दान के प्रति लोग तेजी से जागरूक हुये हैं. देह दान के बाद मृत शरीर को मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को प्रैक्टिकल के लिये दे दिया जाता है. वहीं कई बार दान किए गए अंगों के ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया की जाती body donation after death है. लेकिन क्या आप जानते हैं. मानव शरीर के वो कौन कौन से अंग हैं. जिनका ट्रांसप्लांट सम्भव है? और मौत के कितने घंटो के अंदर इनका ट्रांसप्लांट किया जा सकता है? इन सवालों के जवाब जानने हम पहुंचे मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. आर. मूर्ति के पास. difference between organ and body donation
इन बीमारियों पर नहीं होता देहदान : डॉ. आर. मूर्ति ने बताया " देहदान की प्रक्रिया में जिनको एचआईवी, टीबी, हेपेटाइटिस हो कैंसर हो या कोई मेडिकोलेबल प्रकरण लंबित हो या जिसका पोस्टमार्टम शवविछेदन हो गया हो ऐसे मामलों में हम देहदान नहीं स्वीकारते हैं.''
कैसे करें देहदान : ''जैसा की अभी देहदान के प्रति समाज मे जागृति आई है. तो इसके लिए घोषणा पत्र तीन प्रतियों में एनाटॉमी विभाग से प्राप्त कर जमा करना होता है. जिसमें दानकर्ता का स्वयं का घोषणा पत्र, आधार कार्ड, नाम, पता संपर्क नम्बर देना होता है. मृत्य के बाद किससे संपर्क करना है. उसकी भी जानकारी देनी होती है. देहदान में सबसे आवश्यक जो दस्तावेज है. मृत्यु प्रमाण पत्र और पुलिस का नो ऑब्जेक्शन organ donation after death सर्टिफिकेट.''
अंग दान और देह दान अलग अलग प्रक्रिया : ''देहदान के बाद दो स्थितियां बनती हैं. एक तो शरीर विच्छेदन के लिये एनाटॉमी विभाग को दिया जाना या तो अंग दान भी किया है तो यह भी दो प्रकार से हो सकता है. या तो अंग हो सकता है या ऊतक हो सकते हैं. एक तो उनको निकाला जाना है और उनका संरक्षण कर उनको लगाया जाना है.'' difference between organ and body donation
किन अंगों का समय होता है कम : ''हृदय और फेफड़े को मृत देह से 4 घंटे के अंदर, लीवर को 12 से 16 घंटे में, पेनक्रियाज, अग्नयाशय को 8 से 12 घंटे में इंटेस्टाइन या जो आंत है उनको और आंखों को 8 घण्टे में हमको शीघ्र ही निकालकर मिलना चाहिए. अंगों को 4 घन्टे में प्रिजरवेटिव में डाल देना चाहिये. प्रिजरवेटिव में डालने के बाद 14 दिन तक आंखों को संरक्षित कर सकते हैं. आंख के दान में दो कंपोनेंट होते हैं कार्निया और स्क्लेरा कार्निया. देखने के काम में स्क्लेरा जो है वो रिकंस्ट्रेक्टिव सर्जरी में काम आता है.''
किन चीजों का ट्रांसप्लांट संभव : ''इसी प्रकार हम आंख को 7 से 14 दिन में हड्डियों को अगर वो प्रिजरवेटिव में रखी गई है. तो उसे हम 4 से 5 साल भी यूज कर सकते हैं, हार्ट वाल्व को तो 8 से 10 साल तक यूज किया जा सकता है. अगर वो सही तरीके से संरक्षित की है. इसी प्रकार से लिगामेंट और टंडन भी ट्रांसप्लांट कर सकते हैं. ऊतक चमड़ी को भी अगर किसी ने संरक्षित कराया है तो उसे भी लगभग 5 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है.''
हाइपोथर्मिया से अंगों की सुरक्षा : ''संरक्षण करके हम यह करते हैं कि उस अंग या ऊतक की क्रियाशीलता को बनाये रखा जा सके. ताकि वो प्राप्तकर्ता के शरीर में जाकर भी वैसे ही काम करे . ये हमारा प्राइमरी लक्ष्य होता है. इसके लिये कुछ टेक्निक हैं जैसे हाइपोथर्मिया, या ठंडे में रखते हैं या ऑक्सीजन प्रवाह करके इनकी क्रियाशीलता भी रखना है साथ ही यह ध्यान भी रखना है कि उसे थकान ना हो.''
अमेरिकन सॉल्यूशन में करते हैं प्रिजर्व : '' इसके अलावा यूनिवर्सिटी ऑफ विसकान्सेन जो अमेरिका की एक ख्याति लब्ध संस्था है. उन्होंने एक सोल्यूशन निकाला है. जिसका अब बहुतायत इस्तेमाल हो रहा है. उसमें लवण या जिसको हम इलेक्ट्रोलाइट कहते हैं वो होते हैं और न्यूट्रीयन्स होते हैं. कुछ भोज्य पदार्थ विटामिन जैसी चीजें होती हैं. जिससे ऊतकों की क्रियाशीलता बने रहने के साथ काम करने की ऊर्जा संरक्षित रहती है.''
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इन 4 केमिकल के मिश्रण से बनता है साल्वेंट : ''यू डब्लू जो सॉल्यूशन है. इसमें 4 केमिकल होते हैं. हिस्ट्रीडीन, ट्रिप्टोफेन, कीटोग्लूटारेट और सेलसियोर. इन 4 अलग-अलग सॉल्यूशन को मिलाकर एक साल्वेंट बनाया जाता है. जिससे अलग-अलग अंगों के प्रत्यारोपण के लिए निकाले जाने के बाद प्रिजर्व किया जाता है.''