सरगुजा: कोविड-19 की महामारी ने देश में कोहराम मचा रखा है. कोरोना वायरस के कारण हर तबका परेशान है. वहीं कोरोना काल के बीच छत्तीसगढ़ में शिक्षा व्यवस्था की ड्राइंग डिजाइन करने में सरकार और अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं. आलम यह है कि सरकार अबतक यह तय नहीं कर पा रही है कि सरकारी स्कूलों के बच्चों को कोरोना काल में कैसे पढ़ाना है ?
दरअसल, छत्तीसगढ़ में शिक्षा को लेकर सबसे पहले ऑनलाइन पढ़ाई की योजना लाई गई, जो लगभग ग्रामीण अंचलों में फेल हो गई, क्योंकि ज्यादातर गांवों में एंड्राइड मोबाइल और ऑनलाइन पढ़ाई संभव नहीं है, फिर भी अधिकारी इस दिशा में आगे बढ़े और cgschool.in वेबसाइट के माध्यम से छात्रों का पंजीयन शरू किया.
बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पढ़ाएंगे
इस पंजीयन में छात्र का मोबाइल नंबर अनिवार्य था, शिक्षक के सामने फिर समस्या खड़ी हुई, क्योंकि अधिकतर बच्चों के माता-पिता के पास मोबाइल ही नहीं है, फिर भी सरकारी फरमान के कारण किसी के भी नंबर से छात्र का पंजीयन ऑनलाइन पढ़ाई के लिए कराया गया, लेकिन जब ऑनलाइन पढ़ाई नहीं हुई, तो उच्चाधिकारियों ने सख्ती बरती और फेल होती ऑनलाइन पद्धति से उबरने के लिए 'मोहल्ला क्लास' लगाने का फरमान जारी किया. 'मोहल्ला क्लास' मतलब गुरुजी लाउडस्पीकर लेकर गांव जाएंगे और बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पढ़ाएंगे.
यूनिफॉर्म के साथ कहीं कोरोना न बांट आए शिक्षक !
इसी बीच सरकार ने नया फरमान जारी कर दिया. सरकार ने शिक्षकों को राशन, पुस्तक और यूनिफॉर्म वितरण कराने के लिए बच्चों के घर-घर भेजने का फैसला किया है. अब ऐसे में शिक्षक सैकड़ों बच्चों और उनके परिजनों से सीधे संपर्क में आएंगे, तो इससे कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा है. जबकि हाल ही में कई शिक्षक भी कोरोना पॉजिटिव पाये गए हैं. अगर कोई संक्रमित शिक्षक गांव में बच्चों को राशन, पुस्तक और यूनिफॉर्म बांटने के साथ कोरोना भी बांट आया तब स्थिति भयावह हो सकती है. शिक्षकों का आरोप है कि जिन शिक्षकों की ड्यूटी कोरोना बचाव कार्य में लगाई गई है, उन्हें भी शैक्षणिक कार्य करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. इन सब बातों को लेकर शिक्षक संघ ने सरगुजा कमिश्नर को ज्ञापन भी दिया, लेकिन मामला अबतक वहीं पर अटका हुआ है.
'ऑनलाइन पढ़ाई का सरकारी तरीका समझना मुश्किल'
ऑनलाइन पढ़ाई का सरकारी तरीका इतना जटिल है कि उसे समझना बहुत ही मुश्किल है, जबकि निजी स्कूलों ने 'गूगल मीट' जैसा तरीका अपनाया है, जो बहुत ही सरल और सुगम है, लेकिन सरकारी फरमान की वजह से शिक्षक अपनी मर्जी और संसाधन का उपयोग कर ऐसा भी नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसे में कागजी आंकड़ों में वह पिछड़ जाएगें.
'शत प्रतिशत ऑनलाइन पढ़ाई करा पाना संभव नहीं'
इधर, शिक्षा स्थाई समिति के अध्यक्ष राकेश गुप्ता का कहना है कि अब हमें कोरोना के साथ जीना सीखना पड़ेगा और अगर सरकारी ऑनलाइन पढ़ाई के तरीके में कोई खामी है, तो उसमें निरंतर बदलाव किए जाएंगे. वो ये भी मानते हैं कि गांव में एंड्राइड मोबाइल की उपलब्धता बहुत कम है. इसलिए शत प्रतिशत ऑनलाइन पढ़ाई करा पाना संभव नहीं है.
ऑनलाइन पढ़ाई का सिस्टम को न बच्चे समझे न ही शिक्षक!
बहरहाल, प्राइवेट स्कूल बड़ी ही सफलता से अपने छात्रों को घर बैठे पढ़ा रहे हैं. इनका ऑनलाइन तरीका इतना सरल है कि शिक्षक और बच्चे दोनों ही इसे आसानी से ऑपरेट कर पा रहे हैं, लेकिन सरकार की सरकारी ऑनलाइन सिस्टम अब तक शिक्षकों के भी समझ में नही आया है. तो भला बच्चे उसे कैसे चला सकेंगे.