सरगुजा: हाल ही में छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में राहुल साहू नाम का एक 10 वर्षिय बच्चा बोरवेल में गिर गया था. जिसे 106 घंटे बाद बोरवेल से निकाला गया. अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती है. बच्चों के बोरवेल में गिरने के बाद रेस्क्यू टीम को काफी मशक्कत के बाद बच्चों को बाहर निकालना पड़ता है. हालांकि कई बार बच्चे की जान भी दम घुटने की वजह से चली जाती है. हालांकि छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के बोरवेल में बच्चे नहीं गिर सकते क्योंकि इसकी बनावट ही अलग तरीके से की गई है. दरअसल, सरगुजा जैसे पथरीले इलाकों में बोरवेल में बच्चों के गिरने की संभावना बेहद कम या ना के बराबर है. क्योंकि यहां के बोरवेल की चौड़ाई काफी कम (Surguja borewells are safe) होती है.
सरगुजा के बोरवेल की चौड़ाई कम: सरगुजा या अन्य पथरीली जमीन वाले इलाकों में जिस तरह के बोरवेल खोदे जाते हैं. वो थोड़ा अलग होता है. यहां बोरवेल के गड्ढे की चौड़ाई 7 इंच के अंदर रहती है. ईटीवी भारत के संवाददाता ने जब खुद एक बंद पड़े बोरवेल की चौड़ाई स्केल से नापी तो वो 7 इंच से भी कम पाया गया. 7 इंच चौड़े गड्ढे में केसिंग पाइप डाली जाती है. औसतन 1 इंच की जगह केसिंग कवर कर लेती है. ऐसे में बची हुई 6 इंच की जगह में कोई बच्चा कैसे अंदर जा सकेगा.
नरम मिट्टी वाले इलाकों में चौड़ाई अधिक: हालांकि अलग-अलग स्थानों पर क्षेत्र की मिट्टी के आधार पर बोर खोदने का तरीका बदल जाता है. मैदानी हिस्सों में जमीन में पत्थर नहीं होते हैं. मिट्टी नरम होती है. लिहाजा ऐसे इलाकों में खोदे जाने वाले बोर की चौड़ाई अधिक होती है. जिसमें बच्चों के गिरने का खतरा बना रहता है.
अलग-अलग तकनीक के बोर: लंबे समय से बोरवेल का व्यवसाय करने वाले अमित सिंह से ईटीवी भारत ने बात कि उन्होंने बताया कि, "बोरिंग गाड़ी दो तरह की आती है. एक आती है डीटीएच, जो अधिकतम 10 इंच तक होल बनाती है.दूसरी आती है रोटरी गाड़ी जो बड़े होल बनाती है. सरगुजा में बोरवेल की चौड़ाई अधिकतम 7 इंच होती है. केसिंग डालने के लिए ऊपर में चौड़ाई बढ़ाते हैं. अलग-अलग जगहों की मिट्टी के अनुसार बोर किये जाते हैं...अपने यहां पथरीली मिट्टी है. अन्य जगहों में मिट्टी लूज होती है. वहां चौड़ा होल करते हैं और नीचे जाते हुये वो टेलीस्कोपी जैसा होता है. नीचे जाते-जाते चौड़ाई कम होती जाती है."
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कम खर्च के लिए लोग निकाल देते हैं केसिंग: अमित सिंह बताते हैं, " ड्राई बोरवेल होने के कारण उसमें से कई लोग केसिंग निकाल लेते हैं. केसिंग न होने से मिट्टी पानी के बहाव से धीरे-धीरे कट जाती है. एक समय कर बाद होल बड़ा हो जाता है. हम लोगों के साथ भी दिक्कत हो जाती है. लोग बोर फेल हो जाने के बाद पैसे बचाने के लिए केसिंग निकालने की जिद करने लगते हैं. हम नहीं भी निकालते हैं तो बाद में लोग केसिंग निकाल देते हैं. इसके अलावा ड्राई हो चुके बोरवेल के गड्ढे को खुला नहीं छोड़ना चाहिए. ऐसे बोरवेल का मुंह बंद कर देना चाहिए."
सावधानी ही उपाय: अमित सिंह ने बताया, "दो तरह की बोरवेल मशीन अलग-अलग तरह की जमीन के लिये उपयोग की जाती है. सरगुजा में उपयोग की जाने वाली कम चौड़ाई वाली मशीन का उपयोग मैदानी या नरम मिट्टी वाली जगहों पर नहीं किया जा सकता है. क्योंकि वो मशीन काम ही अलग तरीके से करती है. लिहाजा बोरवेल के हादसों से बचाव के लिये सावधानी ही एक उपाय है. लालच में आकर केसिंग नहीं निकालना चाहिये. इसके साथ ही ड्राई बोरवेल को हमेशा ढक देना चाहिये."