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Success Story Of Ambikapur Women: सरगुजा में महिला सशक्तिकरण, जिंदगी में कभी साइकिल नहीं चलाया, अब स्कूटी, ई रिक्शा और ऑटो चला रही

Success Story Of Ambikapur Women अंबिकापुर की चर्चा देशभर में है. इसकी वजह है यहां की महिलाएं. शहर को साफ सुथरा और व्यवस्थित रखने में यहां के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की महिलाएं अहम रोल अदा कर रही है. इससे एक तरफ सरगुजा का विकास हो रहा है तो दूसरी तरफ महिलाएं भी अच्छे पैसे कमाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. Ambikapur News

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Sep 8, 2023, 12:05 PM IST

Updated : Sep 9, 2023, 12:11 AM IST

Success Story Of Ambikapur Women
सरगुजा में महिला सशक्तिकरण
सरगुजा में महिला सशक्तिकरण

अंबिकापुर: महिला सशक्तिकरण में सरगुजा में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया है. इस बदलाव ने आदिवासी बाहुल्य सरगुजा की रंगत ही बदल दी है. जिले की डेढ़ लाख से ज्यादा महिलाएं अब वर्किंग वुमन बन चुकी है. घर से बाहर निकलकर कमाई कर घर चलाने वाली ये महिलाएं अब खुद पर गर्व महसूस कर रही है.

शहर की गरीब महिलाएं हुई आत्मनिर्भर: जिले की कुल आबादी लगभग साढ़े पांच लाख के आसपास है. जिनमे 2 लाख 40 हजार महिला आबादी होने का अनुमान है. इसमें भी दो लाख की आबादी शहरी है, यानी करीब 90 हजार से ज्यादा महिलाएं शहरों में रहती है. शहर में करीब 40 प्रतिशत महिला आबादी अपर और अपर मिडिल क्लास की श्रेणी में हैं. ये वो श्रेणी हैं जिस घर की महिलाएं शिक्षित और कामकाजी होती हैं. अंबिकापुर में सबसे राहत वाली बात ये है कि शहर की 15000 से ज्यादा गरीब महिलाएं भी अब वर्किंग वुमन बन गई है. ये गरीब महिलाएं स्वरोजगार के तहत आत्मनिर्भर हुई हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं आदिवासी समाज से हैं.

गांव की 27 प्रतिशत महिलाएं बनी लखपति: ग्रामीण क्षेत्रों की करीब 2 लाख 40 हजार महिला आबादी में से 1 लाख 29 हजार महिलाएं सक्रिय रूप से स्वरोजगार कर अपने जीवन को बेहतर बना रही हैं. एक सर्वे के अनुसार इनमें से 27 प्रतिशत यानी करीब 34 हजार महिलाओं की सालाना आमदनी 1 लाख से ज्यादा है. यानी वो लखपति बन चुकी हैं. आदिवासी ग्रामीण महिलाएं जो कभी कपड़े पहनना और बात करना भी ढंग से नहीं जानती थी, आज वो आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. स्कूटी चलाती हैं, लैपटॉप, कम्प्यूटर और मोबाइल चलाती हैं. हर महीने अच्छी आमदनी कर घर चलाने के साथ अपने बच्चों का भविष्य बना रही हैं.

तत्कालीन सरगुजा कलेक्टर ऋतु सेन ने बदली तस्वीर: इस बदलाव की शुरुआत साल 2015 से हुई. तत्कालीन सरगुजा कलेक्टर ऋतु सेन ने महिलाओं को आगे बढ़ाने का काम शुरू किया. स्वयं सहायता समूह से गरीब महिलाओं को जोड़ा गया. कई महत्वपूर्ण कामों में समूह की महिलाओं को जिम्मेदारी दी गई. कलेक्टर के भरोसे को महिलाओं ने भी कायम रखा और आज इन्ही महिलाओं के कारण अंबिकापुर की पहचान देश विदेश में होने लगी है.

हर महिला 10200 रुपये कमा रही है. आज हमारी स्थिति काफी सुधर गई है. अंबिकापुर में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन चलाने वाली महिलाएं आज स्कूटी चला रही है.-शशि सिन्हा, अध्यक्ष, सिटी लेबल फेडरेशन

महिलाएं चला रही ऑटो, संभाल रही पार्किंग: 2014 से पहले महिला समूहों को सिलाई, कढ़ाई, अचार, पापड़ जैसे लघु उद्योग के काम सिखाए जाते थे लेकिन साल 2015 में महिलाओं को नई चीजें सिखाई जाने लगी. ऑटो चलाने, कैंटीन, पार्किंग, कचरा कलेक्शन का काम महिलाओं से कराया गया. आज यहीं काम ना सिर्फ महिलाओं का जीवन संवार रहा है बल्कि छत्तीसगढ़ का नाम भी दुनिया भर में रोशन कर रहा है. अंबिकापुर में महिलाओं के साथ मिलकर किये गए इस काम की सफलता ऐसी रही कि छत्तीसगढ़ में कक्षा 9वीं के सिलेबर में इसे शामिल किया गया.

2015 से ऑटो चला रही हूं. समूह में 15-16 महिलाएं ऑटो चला रही है. काफी गर्व महसूस होता है -गीता सिंह, सिमरनजीत समूह, महिला ऑटो चालक

बहुत अच्छा लगता है. अपना घर का खर्च चला ले रहे हैं. किसी के मोहताज नहीं है. अपना खर्च उठा रहे हैं. बच्चों का खर्च उठा रहे हैं. पहला समय ऐसा ही निकल जाता था. अब समय का सदुपयोग हो रहा है. -अंजनी गुप्ता, कैंटीन संचालिका, खुशी स्व सहायता समूह

गांव में समूह से जुड़ी महिलाएं हुई लखपति: समूह की महिलाओं के प्रशिक्षण व संचालन की जिम्मेदारी एनआरएलएम की होती है. विभाग के अधिकारी नीरज नामदेव ने बताया कि गांवों में 11 हजार 808 महिला समूह हैं, जिनमे 1 लाख 29 हजार महिलाएं काम करती हैं. ये संख्या घटती बढ़ती रहती है. इसमें रीपा में 129 मेंबर काम कर रही हैं. 87 बैंक सखी हैं व अन्य महिला अलग अलग तरह की आजीविका चलाकर पैसे कमा रही है. इनमें 29 प्रतिशत यानी की करीब 34 हजार महिला लखपति की कैटेगरी में आ चुकी हैं. साल में ये करीब 1 लाख रुपये कमा लेती है.

हम 10 महिला है. अब हम कलेक्टर में पार्किंग चला रहे हैं. शुरू में कुछ दिक्कत हुई लेकिन बाद में सब ठीक हो गया. महीने में 6000 रुपये की कमाई हो जाती है -अंजुम बानो, पार्किंग संचालिका, नारी शक्ति स्व सहायता समूह

महीने में 10 हजार रुपये तक कमा रही महिलाएं: एनयूएलअम विभाग के अधिकारी रितेश सैनी बताते हैं "शहर में कुल 150 समूह एक्टिव हैं, जिनमे 1500 महिलाएं काम कर रही हैं. इनमें 480 महिलाएं डोर टू डोर कचरा कलेक्शन कर हर महीने 10 हजार रुपये की आमदनी कर रही हैं, पार्किंग में करीब 40 महिलाओं की मासिक आय 5 से 6 हजार है. शहर के 5 सरकारी ऑफिस में 50 महिलाओं के 5 समूह कैन्टीन का संचालन कर अच्छी आमदनी कर रही हैं, इसके अलावा 16 महिला ऑटो चालक हैं. 2015 से महिलाओं की आजीविका और सम्मान को बढ़ाने में काफी सफलता मिली है.


सरगुजा में महिला सशक्तिकरण

अंबिकापुर: महिला सशक्तिकरण में सरगुजा में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया है. इस बदलाव ने आदिवासी बाहुल्य सरगुजा की रंगत ही बदल दी है. जिले की डेढ़ लाख से ज्यादा महिलाएं अब वर्किंग वुमन बन चुकी है. घर से बाहर निकलकर कमाई कर घर चलाने वाली ये महिलाएं अब खुद पर गर्व महसूस कर रही है.

शहर की गरीब महिलाएं हुई आत्मनिर्भर: जिले की कुल आबादी लगभग साढ़े पांच लाख के आसपास है. जिनमे 2 लाख 40 हजार महिला आबादी होने का अनुमान है. इसमें भी दो लाख की आबादी शहरी है, यानी करीब 90 हजार से ज्यादा महिलाएं शहरों में रहती है. शहर में करीब 40 प्रतिशत महिला आबादी अपर और अपर मिडिल क्लास की श्रेणी में हैं. ये वो श्रेणी हैं जिस घर की महिलाएं शिक्षित और कामकाजी होती हैं. अंबिकापुर में सबसे राहत वाली बात ये है कि शहर की 15000 से ज्यादा गरीब महिलाएं भी अब वर्किंग वुमन बन गई है. ये गरीब महिलाएं स्वरोजगार के तहत आत्मनिर्भर हुई हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं आदिवासी समाज से हैं.

गांव की 27 प्रतिशत महिलाएं बनी लखपति: ग्रामीण क्षेत्रों की करीब 2 लाख 40 हजार महिला आबादी में से 1 लाख 29 हजार महिलाएं सक्रिय रूप से स्वरोजगार कर अपने जीवन को बेहतर बना रही हैं. एक सर्वे के अनुसार इनमें से 27 प्रतिशत यानी करीब 34 हजार महिलाओं की सालाना आमदनी 1 लाख से ज्यादा है. यानी वो लखपति बन चुकी हैं. आदिवासी ग्रामीण महिलाएं जो कभी कपड़े पहनना और बात करना भी ढंग से नहीं जानती थी, आज वो आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. स्कूटी चलाती हैं, लैपटॉप, कम्प्यूटर और मोबाइल चलाती हैं. हर महीने अच्छी आमदनी कर घर चलाने के साथ अपने बच्चों का भविष्य बना रही हैं.

तत्कालीन सरगुजा कलेक्टर ऋतु सेन ने बदली तस्वीर: इस बदलाव की शुरुआत साल 2015 से हुई. तत्कालीन सरगुजा कलेक्टर ऋतु सेन ने महिलाओं को आगे बढ़ाने का काम शुरू किया. स्वयं सहायता समूह से गरीब महिलाओं को जोड़ा गया. कई महत्वपूर्ण कामों में समूह की महिलाओं को जिम्मेदारी दी गई. कलेक्टर के भरोसे को महिलाओं ने भी कायम रखा और आज इन्ही महिलाओं के कारण अंबिकापुर की पहचान देश विदेश में होने लगी है.

हर महिला 10200 रुपये कमा रही है. आज हमारी स्थिति काफी सुधर गई है. अंबिकापुर में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन चलाने वाली महिलाएं आज स्कूटी चला रही है.-शशि सिन्हा, अध्यक्ष, सिटी लेबल फेडरेशन

महिलाएं चला रही ऑटो, संभाल रही पार्किंग: 2014 से पहले महिला समूहों को सिलाई, कढ़ाई, अचार, पापड़ जैसे लघु उद्योग के काम सिखाए जाते थे लेकिन साल 2015 में महिलाओं को नई चीजें सिखाई जाने लगी. ऑटो चलाने, कैंटीन, पार्किंग, कचरा कलेक्शन का काम महिलाओं से कराया गया. आज यहीं काम ना सिर्फ महिलाओं का जीवन संवार रहा है बल्कि छत्तीसगढ़ का नाम भी दुनिया भर में रोशन कर रहा है. अंबिकापुर में महिलाओं के साथ मिलकर किये गए इस काम की सफलता ऐसी रही कि छत्तीसगढ़ में कक्षा 9वीं के सिलेबर में इसे शामिल किया गया.

2015 से ऑटो चला रही हूं. समूह में 15-16 महिलाएं ऑटो चला रही है. काफी गर्व महसूस होता है -गीता सिंह, सिमरनजीत समूह, महिला ऑटो चालक

बहुत अच्छा लगता है. अपना घर का खर्च चला ले रहे हैं. किसी के मोहताज नहीं है. अपना खर्च उठा रहे हैं. बच्चों का खर्च उठा रहे हैं. पहला समय ऐसा ही निकल जाता था. अब समय का सदुपयोग हो रहा है. -अंजनी गुप्ता, कैंटीन संचालिका, खुशी स्व सहायता समूह

गांव में समूह से जुड़ी महिलाएं हुई लखपति: समूह की महिलाओं के प्रशिक्षण व संचालन की जिम्मेदारी एनआरएलएम की होती है. विभाग के अधिकारी नीरज नामदेव ने बताया कि गांवों में 11 हजार 808 महिला समूह हैं, जिनमे 1 लाख 29 हजार महिलाएं काम करती हैं. ये संख्या घटती बढ़ती रहती है. इसमें रीपा में 129 मेंबर काम कर रही हैं. 87 बैंक सखी हैं व अन्य महिला अलग अलग तरह की आजीविका चलाकर पैसे कमा रही है. इनमें 29 प्रतिशत यानी की करीब 34 हजार महिला लखपति की कैटेगरी में आ चुकी हैं. साल में ये करीब 1 लाख रुपये कमा लेती है.

हम 10 महिला है. अब हम कलेक्टर में पार्किंग चला रहे हैं. शुरू में कुछ दिक्कत हुई लेकिन बाद में सब ठीक हो गया. महीने में 6000 रुपये की कमाई हो जाती है -अंजुम बानो, पार्किंग संचालिका, नारी शक्ति स्व सहायता समूह

महीने में 10 हजार रुपये तक कमा रही महिलाएं: एनयूएलअम विभाग के अधिकारी रितेश सैनी बताते हैं "शहर में कुल 150 समूह एक्टिव हैं, जिनमे 1500 महिलाएं काम कर रही हैं. इनमें 480 महिलाएं डोर टू डोर कचरा कलेक्शन कर हर महीने 10 हजार रुपये की आमदनी कर रही हैं, पार्किंग में करीब 40 महिलाओं की मासिक आय 5 से 6 हजार है. शहर के 5 सरकारी ऑफिस में 50 महिलाओं के 5 समूह कैन्टीन का संचालन कर अच्छी आमदनी कर रही हैं, इसके अलावा 16 महिला ऑटो चालक हैं. 2015 से महिलाओं की आजीविका और सम्मान को बढ़ाने में काफी सफलता मिली है.


Last Updated : Sep 9, 2023, 12:11 AM IST
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