सरगुजा: सरगुजा के एक बालक को मां के फटे आंचल ने ख्यातिलब्ध चित्रकार (famous painter) बना दिया. चिकत्रकारी (painting) के नायाब उदाहरण श्रवण कुमार शर्मा (shravan kumar) जिन्होंने अपनी पहली पेंटिंग अपनी मां की साड़ी में बनाई थी. गरीब मां की बेरंग साड़ी में श्रवण ने ऐसे रंग भरे कि, फिर उनकी कला की चर्चा देश विदेश में होने लगी. बेहद सरल और सहज स्वभाव के श्रवण शर्मा की रूचि बचपन से गणित विषय में रही और उन्होंने कॉमर्स की पढ़ाई की है. बीकॉम करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. क्योंकि श्रवण कुमार की राह तो कला क्षेत्र के लिए थी. इन्होंने कभी किसी से प्रशिक्षण नहीं लिया, लेकिन गणित विषय के प्रति इनका लगाव इनकी पेंटिंग में भी दिखता है.
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श्रवण कुमार को देश और राज्य से नहीं मिला कोई सम्मान
अंबिकापुर के सर्किट हाउस में लगी एक पेंटिंग में इन्होंने गणित का ऐसा इस्तेमाल किया है कि पेंटिंग में दिख रहे गायों के झुंड की चाल 5 दिशाओं से एक जैसी दिखती है. लेकिन अब श्रवण शर्मा जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके हैं. बावजूद इसके इन्हें देश और राज्य की सरकारों से कोई सम्मान नहीं मिल सका. अंतिम समय में अब इन्हें किसी सम्मान का इंतजार है, हालांकि श्रवण कुमार इतने सरल और सहज हैं कि उन्हें ना तो किसी सम्मान की उम्मीद है और ना ही किसी लाभ का लालच. लेकिन फिर भी इतने महान कलाकार के योगदान को अगर सरकारें भूल जाए तो ये उस कला का अपमान होगा.
सवा लाख रेखाचित्र और 600 से अधिक तैलचित्र को श्रवण ने बनाया
अब तक उन्होंने सवा लाख रेखाचित्र और 600 से अधिक तैलचित्र को उकेरा है. उनकी चित्रकारी भारत के कोने-कोने के साथ अमेरिका, इंग्लैड, फ्रांस, जर्मनी, नेपाल, बेल्जियम तक पहुंच चुकी है. श्रवण एक ऐसे कलाकार हैं, जिनके चित्रों की सजीवता, रंगों का प्रवाह, भारतीय जनजीवन और नैसर्गिक सौंदर्य को देख देश के प्रख्यात राष्ट्रकवि डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन को कविताएं लिखनी पड़ी. 33 वर्ष पूर्व सरगुजा आगमन पर राष्ट्रकवि डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन (Shivmangal Singh Suman) ने श्रवण के लिए कविताएं लिखी थीं. इनके अलावा देश के ख्यातिलब्ध शायर राहत अली (Shayar Rahat Ali) ने भी इनके लिए शेर लिखे हैं. राहत अली ने लिखा है कि 'ऐ मुसव्विर तेरे हाथों की बलाएं ले लूं, खूब तस्वीर बनाई मेरे बहलाने को'
ख्यातिलब्ध चित्रकार श्रवण को वर्ष 1972-73 में रोटी एवं अकाल पीड़ित नामक तैलचित्र पर देश के तात्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पुरस्कार प्रदान किया था. इस सम्मान के बाद वे और प्रोत्साहित हुए और लगातार नई-नई कलाकृति तैयार कर रहे थे. जिसे देख हर कोई दंग रह जाता है. श्रवण की कलाकृतियों को विदेशी कलाकारों ने विदेशों तक पहुंचाया है. लेकिन पद्म श्री जैसी उपाधि जो जाने हर वर्ष कितनों को दी जाती रही है. श्रवण शर्मा को इस उपाधि से कभी नहीं नवाजा गया, अब वो जीवन के अंतिम चरण में हैं. उनकी उम्र 70 वर्ष हो चुकी है, लेकिन सरकारें इन्हें भूल चुकी है. क्या अंतिम समय में श्रवण कुमार को कोई सम्मान मिल सकेगा या इनकी कला, 60 वर्षों की मेहनत यूं ही जाया चली जाएगी.