अंबिकापुर: 68 साल में सरगुजा लोकसभा क्षेत्र पर 47 वर्ष तक कांग्रेस का कब्जा रहा है. वहीं 21 साल तक ये सीट बीजेपी के पास रही है. वर्तमान में यहां से बीजेपी के कमलभान सिंह सांसद हैं. 1952 से 1977 तक लगातार कांग्रेस सरगुजा सीट पर काबिज रही, लेकिन 1977 के आम चुनाव में भारतीय लोक दल के लरंग साय सिंह ने कांग्रेस का विजय रथ रोका दिया. हालांकि लरंग साय 3 साल तक ही सांसद रह सके और 1980 में एक बार फिर कांग्रेस के चकट धारी सिंह इस सीट को कांग्रेस झोली में डालने में सफल रहे. 1989 में एक बार फिर बीजेपी की टिकट से लरंग साय सिंह सांसद बने, लेकिन इस बार भी महज दो साल का ही उनका कार्यकाल रहा. 1991 में फिर से चुनाव हुए और कांग्रेस के खेल साय सिंह के सामने वे टिक नहीं सके. एक बार फिर कांग्रेस ने खेल साय सिंह को मैदान में उतारा है. 1998 में एक बार फिर लरंग साय सिंह जीते लेकिन, इस बार भी वे पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और महज 13 महीने बाद 1999 के लोक सभा चुनाव में खेल साय सिंह ने उन्हें परास्त कर दिया. 2004 के आम चुनाव में बीजेपी एक बार फिर सरगुजा को कांग्रेस से छीनने में कामयाब रही और आज तक अपराजेय बनी है.
14 में 14 विधानसभा सीट कांग्रेस के पास
यहां के सांसदों की किस्मत 16 लाख 44 हजार मतदाता तय करते हैं. इसमें 8 लाख 24 हजार 870 पुरुष मतदाता, 8 लाख 19 हजार 180 महिला मतदाता और 11 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं. सरगुजा संसदीय क्षेत्र में इस बार वोटिंग के लिए 2 हजार 148 मतदान केंद्र बनाये गए हैं. आदिवासी बाहुल्य सरगुजा संभाग में पांच जिले सरगुजा, जशपुर, कोरिया, बलरामपुर और सूरजपुर आते हैं. इसमें तीन सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर को मिलाकर सरगुजा लोकसभा क्षेत्र बना है. सरगुजा लोकसभा के अंर्तगत आने वाली अंबिकापुर विधानसभा सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता टीएस सिंहदेव का मजबूत गढ़ मानी जाती है. जिसका प्रभाव इस बार के विधानसभा में भी देखने को मिला है. सरगुजा संभाग की 14 में 14 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है.
सबसे ज्यादा उरांव, लेकिन चुनाव में कोई भूमिका नहीं
सरगुजा क्षेत्र में आदिवासियों के विकास का मुद्दा हमेशा केंद्र में रहा है. इस क्षेत्र की एक और दिलचस्प बात ये है कि, क्षेत्र में सबसे ज्यादा जनसंख्या करीब पौने तीन लाख वाले उरांव समाज से आज तक कोई सांसद नहीं रहा और न ही इस समाज का चुनाव परिणाम में कोई प्रभाव रहता है. क्षेत्र में दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे गोंड और कंवर समाज ही चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं और शुरू से ही लगभग इसी समाज से सांसद चुनकर आ रहे हैं. स्थानीय लोग इसके पीछे एक बड़ी वजह उरांव समाज का सामाजिक ताना-बाना और समाज में बिखराव बताते हैं. स्थानीय जानकारों का कहना है कि गोंड और कंवर समाज एक संगठित समाज हैं. लेकिन उरांव समाज अलग-अलग सामाजिक स्वरूप की वजह से बिखर जाता है. उरांव समाज के ज्यादातर लोग धर्मांतरण के साथ मसीही धर्म को मानने लगे और बिल्कुल अलग हो गए. वहीं जो उरांव धर्मांतरित नहीं हुए उनका अपना अलग समाज है, लिहाजा उरांव की पौने तीन लाख जनसंख्या कई धड़ों में बंटी हुई है और यही वजह है कि चुनाव में उरांव समाज की भूमिका कम हो जाती है.
बढ़ा है कांग्रेस की वोटिंग प्रतिशत
2014 के आम चुनाव में सरगुजा लोकसभा सीट से भाजपा के कमलभान सिंह करीब डेढ़ लाख वोट से विजयी हुए, लेकिन पहले की तुलना में बीजेपी के वोटिंग प्रतिशत में 2.43 फीसदी की गिरावट आई. कमलभान सिंह को 5 लाख 85 हजार 336 यानी 49.29 फीसदी वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी रामदेव राम को 4 लाख 38 हजार 100 वोट यानी 36.90 फीसदी वोट मिले, जो 2009 में कांग्रेस को मिले कुल वोट से 4.98 फीसदी ज्यादा था. इसके आलवा 2014 के चुनाव में सीपीआई(एम) और बसपा को भी 21-21 हजार वोट मिले थे. वहीं एक निर्दलीय उम्मीदवार को 15 हजार लोगों ने पसंद किया था.
सरगुजा के सांसद
- 1952 बाबूनाथ सिंह, कांग्रेस
- 1957 सीएस सिंह देव, कांग्रेस
- 1957 से 1977 बाबूनाथ सिंह, कांग्रेस
- 1977 लरंग साय सिंह, भारतीय लोक दल
- 1980 चटक धारी सिंह, कांग्रेस
- 1984 लाल विजय प्रताप सिंह, कांग्रेस
- 1989 लरंग साय, भाजपा
- 1991 खेल साय सिंह, कांग्रेस
- 1996 खेल साय सिंह, कांग्रेस
- 1998 लरंग साय, भाजपा
- 1999 खेल साय सिंह, कांग्रेस
- 2004 नंद कुमार साय, भाजपा
- 2009 मुरारी लाल सिंह, भाजपा
- 2014 कमलभान सिंह, भाजपा