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सरगुजा: गोंड और कंवर ही चुनते हैं यहां के 'कुंवर'

68 साल में सरगुजा लोकसभा क्षेत्र पर 47 वर्ष तक कांग्रेस का कब्जा रहा है. वहीं 21 साल तक ये सीट बीजेपी के पास रही है. 2004 के आम चुनाव में बीजेपी एक बार फिर सरगुजा को कांग्रेस से छीनने में कामयाब रही और आज तक अपराजेय बनी है.

सरगुजा लोकसभा
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Published : Mar 26, 2019, 9:33 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

अंबिकापुर: 68 साल में सरगुजा लोकसभा क्षेत्र पर 47 वर्ष तक कांग्रेस का कब्जा रहा है. वहीं 21 साल तक ये सीट बीजेपी के पास रही है. वर्तमान में यहां से बीजेपी के कमलभान सिंह सांसद हैं. 1952 से 1977 तक लगातार कांग्रेस सरगुजा सीट पर काबिज रही, लेकिन 1977 के आम चुनाव में भारतीय लोक दल के लरंग साय सिंह ने कांग्रेस का विजय रथ रोका दिया. हालांकि लरंग साय 3 साल तक ही सांसद रह सके और 1980 में एक बार फिर कांग्रेस के चकट धारी सिंह इस सीट को कांग्रेस झोली में डालने में सफल रहे. 1989 में एक बार फिर बीजेपी की टिकट से लरंग साय सिंह सांसद बने, लेकिन इस बार भी महज दो साल का ही उनका कार्यकाल रहा. 1991 में फिर से चुनाव हुए और कांग्रेस के खेल साय सिंह के सामने वे टिक नहीं सके. एक बार फिर कांग्रेस ने खेल साय सिंह को मैदान में उतारा है. 1998 में एक बार फिर लरंग साय सिंह जीते लेकिन, इस बार भी वे पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और महज 13 महीने बाद 1999 के लोक सभा चुनाव में खेल साय सिंह ने उन्हें परास्त कर दिया. 2004 के आम चुनाव में बीजेपी एक बार फिर सरगुजा को कांग्रेस से छीनने में कामयाब रही और आज तक अपराजेय बनी है.

वीडियो

14 में 14 विधानसभा सीट कांग्रेस के पास
यहां के सांसदों की किस्मत 16 लाख 44 हजार मतदाता तय करते हैं. इसमें 8 लाख 24 हजार 870 पुरुष मतदाता, 8 लाख 19 हजार 180 महिला मतदाता और 11 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं. सरगुजा संसदीय क्षेत्र में इस बार वोटिंग के लिए 2 हजार 148 मतदान केंद्र बनाये गए हैं. आदिवासी बाहुल्य सरगुजा संभाग में पांच जिले सरगुजा, जशपुर, कोरिया, बलरामपुर और सूरजपुर आते हैं. इसमें तीन सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर को मिलाकर सरगुजा लोकसभा क्षेत्र बना है. सरगुजा लोकसभा के अंर्तगत आने वाली अंबिकापुर विधानसभा सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता टीएस सिंहदेव का मजबूत गढ़ मानी जाती है. जिसका प्रभाव इस बार के विधानसभा में भी देखने को मिला है. सरगुजा संभाग की 14 में 14 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है.

सबसे ज्यादा उरांव, लेकिन चुनाव में कोई भूमिका नहीं
सरगुजा क्षेत्र में आदिवासियों के विकास का मुद्दा हमेशा केंद्र में रहा है. इस क्षेत्र की एक और दिलचस्प बात ये है कि, क्षेत्र में सबसे ज्यादा जनसंख्या करीब पौने तीन लाख वाले उरांव समाज से आज तक कोई सांसद नहीं रहा और न ही इस समाज का चुनाव परिणाम में कोई प्रभाव रहता है. क्षेत्र में दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे गोंड और कंवर समाज ही चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं और शुरू से ही लगभग इसी समाज से सांसद चुनकर आ रहे हैं. स्थानीय लोग इसके पीछे एक बड़ी वजह उरांव समाज का सामाजिक ताना-बाना और समाज में बिखराव बताते हैं. स्थानीय जानकारों का कहना है कि गोंड और कंवर समाज एक संगठित समाज हैं. लेकिन उरांव समाज अलग-अलग सामाजिक स्वरूप की वजह से बिखर जाता है. उरांव समाज के ज्यादातर लोग धर्मांतरण के साथ मसीही धर्म को मानने लगे और बिल्कुल अलग हो गए. वहीं जो उरांव धर्मांतरित नहीं हुए उनका अपना अलग समाज है, लिहाजा उरांव की पौने तीन लाख जनसंख्या कई धड़ों में बंटी हुई है और यही वजह है कि चुनाव में उरांव समाज की भूमिका कम हो जाती है.

बढ़ा है कांग्रेस की वोटिंग प्रतिशत
2014 के आम चुनाव में सरगुजा लोकसभा सीट से भाजपा के कमलभान सिंह करीब डेढ़ लाख वोट से विजयी हुए, लेकिन पहले की तुलना में बीजेपी के वोटिंग प्रतिशत में 2.43 फीसदी की गिरावट आई. कमलभान सिंह को 5 लाख 85 हजार 336 यानी 49.29 फीसदी वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी रामदेव राम को 4 लाख 38 हजार 100 वोट यानी 36.90 फीसदी वोट मिले, जो 2009 में कांग्रेस को मिले कुल वोट से 4.98 फीसदी ज्यादा था. इसके आलवा 2014 के चुनाव में सीपीआई(एम) और बसपा को भी 21-21 हजार वोट मिले थे. वहीं एक निर्दलीय उम्मीदवार को 15 हजार लोगों ने पसंद किया था.


सरगुजा के सांसद

  • 1952 बाबूनाथ सिंह, कांग्रेस
  • 1957 सीएस सिंह देव, कांग्रेस
  • 1957 से 1977 बाबूनाथ सिंह, कांग्रेस
  • 1977 लरंग साय सिंह, भारतीय लोक दल
  • 1980 चटक धारी सिंह, कांग्रेस
  • 1984 लाल विजय प्रताप सिंह, कांग्रेस
  • 1989 लरंग साय, भाजपा
  • 1991 खेल साय सिंह, कांग्रेस
  • 1996 खेल साय सिंह, कांग्रेस
  • 1998 लरंग साय, भाजपा
  • 1999 खेल साय सिंह, कांग्रेस
  • 2004 नंद कुमार साय, भाजपा
  • 2009 मुरारी लाल सिंह, भाजपा
  • 2014 कमलभान सिंह, भाजपा

अंबिकापुर: 68 साल में सरगुजा लोकसभा क्षेत्र पर 47 वर्ष तक कांग्रेस का कब्जा रहा है. वहीं 21 साल तक ये सीट बीजेपी के पास रही है. वर्तमान में यहां से बीजेपी के कमलभान सिंह सांसद हैं. 1952 से 1977 तक लगातार कांग्रेस सरगुजा सीट पर काबिज रही, लेकिन 1977 के आम चुनाव में भारतीय लोक दल के लरंग साय सिंह ने कांग्रेस का विजय रथ रोका दिया. हालांकि लरंग साय 3 साल तक ही सांसद रह सके और 1980 में एक बार फिर कांग्रेस के चकट धारी सिंह इस सीट को कांग्रेस झोली में डालने में सफल रहे. 1989 में एक बार फिर बीजेपी की टिकट से लरंग साय सिंह सांसद बने, लेकिन इस बार भी महज दो साल का ही उनका कार्यकाल रहा. 1991 में फिर से चुनाव हुए और कांग्रेस के खेल साय सिंह के सामने वे टिक नहीं सके. एक बार फिर कांग्रेस ने खेल साय सिंह को मैदान में उतारा है. 1998 में एक बार फिर लरंग साय सिंह जीते लेकिन, इस बार भी वे पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और महज 13 महीने बाद 1999 के लोक सभा चुनाव में खेल साय सिंह ने उन्हें परास्त कर दिया. 2004 के आम चुनाव में बीजेपी एक बार फिर सरगुजा को कांग्रेस से छीनने में कामयाब रही और आज तक अपराजेय बनी है.

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14 में 14 विधानसभा सीट कांग्रेस के पास
यहां के सांसदों की किस्मत 16 लाख 44 हजार मतदाता तय करते हैं. इसमें 8 लाख 24 हजार 870 पुरुष मतदाता, 8 लाख 19 हजार 180 महिला मतदाता और 11 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं. सरगुजा संसदीय क्षेत्र में इस बार वोटिंग के लिए 2 हजार 148 मतदान केंद्र बनाये गए हैं. आदिवासी बाहुल्य सरगुजा संभाग में पांच जिले सरगुजा, जशपुर, कोरिया, बलरामपुर और सूरजपुर आते हैं. इसमें तीन सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर को मिलाकर सरगुजा लोकसभा क्षेत्र बना है. सरगुजा लोकसभा के अंर्तगत आने वाली अंबिकापुर विधानसभा सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता टीएस सिंहदेव का मजबूत गढ़ मानी जाती है. जिसका प्रभाव इस बार के विधानसभा में भी देखने को मिला है. सरगुजा संभाग की 14 में 14 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है.

सबसे ज्यादा उरांव, लेकिन चुनाव में कोई भूमिका नहीं
सरगुजा क्षेत्र में आदिवासियों के विकास का मुद्दा हमेशा केंद्र में रहा है. इस क्षेत्र की एक और दिलचस्प बात ये है कि, क्षेत्र में सबसे ज्यादा जनसंख्या करीब पौने तीन लाख वाले उरांव समाज से आज तक कोई सांसद नहीं रहा और न ही इस समाज का चुनाव परिणाम में कोई प्रभाव रहता है. क्षेत्र में दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे गोंड और कंवर समाज ही चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं और शुरू से ही लगभग इसी समाज से सांसद चुनकर आ रहे हैं. स्थानीय लोग इसके पीछे एक बड़ी वजह उरांव समाज का सामाजिक ताना-बाना और समाज में बिखराव बताते हैं. स्थानीय जानकारों का कहना है कि गोंड और कंवर समाज एक संगठित समाज हैं. लेकिन उरांव समाज अलग-अलग सामाजिक स्वरूप की वजह से बिखर जाता है. उरांव समाज के ज्यादातर लोग धर्मांतरण के साथ मसीही धर्म को मानने लगे और बिल्कुल अलग हो गए. वहीं जो उरांव धर्मांतरित नहीं हुए उनका अपना अलग समाज है, लिहाजा उरांव की पौने तीन लाख जनसंख्या कई धड़ों में बंटी हुई है और यही वजह है कि चुनाव में उरांव समाज की भूमिका कम हो जाती है.

बढ़ा है कांग्रेस की वोटिंग प्रतिशत
2014 के आम चुनाव में सरगुजा लोकसभा सीट से भाजपा के कमलभान सिंह करीब डेढ़ लाख वोट से विजयी हुए, लेकिन पहले की तुलना में बीजेपी के वोटिंग प्रतिशत में 2.43 फीसदी की गिरावट आई. कमलभान सिंह को 5 लाख 85 हजार 336 यानी 49.29 फीसदी वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी रामदेव राम को 4 लाख 38 हजार 100 वोट यानी 36.90 फीसदी वोट मिले, जो 2009 में कांग्रेस को मिले कुल वोट से 4.98 फीसदी ज्यादा था. इसके आलवा 2014 के चुनाव में सीपीआई(एम) और बसपा को भी 21-21 हजार वोट मिले थे. वहीं एक निर्दलीय उम्मीदवार को 15 हजार लोगों ने पसंद किया था.


सरगुजा के सांसद

  • 1952 बाबूनाथ सिंह, कांग्रेस
  • 1957 सीएस सिंह देव, कांग्रेस
  • 1957 से 1977 बाबूनाथ सिंह, कांग्रेस
  • 1977 लरंग साय सिंह, भारतीय लोक दल
  • 1980 चटक धारी सिंह, कांग्रेस
  • 1984 लाल विजय प्रताप सिंह, कांग्रेस
  • 1989 लरंग साय, भाजपा
  • 1991 खेल साय सिंह, कांग्रेस
  • 1996 खेल साय सिंह, कांग्रेस
  • 1998 लरंग साय, भाजपा
  • 1999 खेल साय सिंह, कांग्रेस
  • 2004 नंद कुमार साय, भाजपा
  • 2009 मुरारी लाल सिंह, भाजपा
  • 2014 कमलभान सिंह, भाजपा
Intro:सरगुजा : इस लोकसभा क्षेत्र में अब तक के कुल 68 वर्ष के संसदीय कार्यकाल में 21 वर्ष ही कांग्रेस के सांसद कुर्सी से बेदखल रहे हैं, बाकी के बचे 47 वर्ष तक सरगुजा लोकसभा में कांग्रेस की ही सांसदों का कब्जा रहा है, सन 1951 से 1977 तक लगातार कांग्रेस सरगुजा में काबिज रही लेकिन 1977 में हुये आम चुनाव में भारतीय लोकदल के बैनर तले लरंग साय सिंह ने कांग्रेस का विजय रथ रोका लेकिन वो 3 वर्ष ही सांसद रहे और 1980 में कांग्रेस के चकट धारी सिंह सरगुजा सांसद बने, 1989 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा की टिकट से लरंग साय सिंह यहां से सांसद बने लेकिन महज दो साल बाद ही 1991 में चुनाव हो गये और कांग्रेस के खेल साय सिंह ने उन्हें चुनाव हरा दिया, ये वही खेल साय सिंह है जो वर्तमान में सरगुजा से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। खेल साय सिंह 98 तक सांसद रहे लेकिन इसके बाद 98 में लरंग साय ने एक बार फिर उन्हें चुनाव हराया लेकिन लरंग साय की किस्मत ऐसी की महज 13 महीने में मतलब 99 में फिर आम चुनाव हुये और खेल साय सिंह एक बार फिर सांसद बने और पूरे 5 साल 2004 तक सांसद रहे लेकिन 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस के गढ़ को भेदने के लिये भाजपा ने तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार साय को खेल साय सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा और खेल साय सिंह चुनाव हार गये इसके बाद आज तक यहां लगातार भाजपा के ही सांसद चुनाव जीतते आये हैं।

कब कौन था सरगुजा सांसद

1952 - बाबूनाथ सिंह - कांग्रेस

1957 - सी.एस. सिंह देव - कांग्रेस

1957 से 1977 तक - बाबूनाथ सिंह - कांग्रेस

1977 - लरंगसाय - भारतीय लोक दल

1980 - चटक धारी सिंह - कांग्रेस

1984 - लाल विजय प्रताप सिंह - कांग्रेस

1989 - लरंगसाय - भाजपा

1991 - खेल साय सिंह - कांग्रेस

1996 - खेल साय सिंह - कांग्रेस

1998 - लरंगसाय - भाजपा

1999 - खेल साय - कांग्रेस

2004 - नंद कुमार साय - भाजपा

2009 - मुरारी लाल सिंह - भाजपा

2014 - कमलभान सिंह - भाजपा

सरगुजा लोकसभा के फीजिकल ढांचे की बात करें तो यह तीन जिले सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर से मिलकर बनी है। इसमें तीन जिले और 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, सरगुजा लोकसभा के उत्तरी क्षेत्र में प्रतापपुर विधानसभा से उत्तर प्रदेश की सीमा लगी हुई है वहीं पूर्वी क्षेत्र रामानुजगंज से झारखंड की सीमा लगी है, पश्चिम में कोरबा और रायगढ़ जिले है तो मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा कोरिया जिला भी सरगुजा लोकसभा की सरहद में है। वहीं सूरजपुर जिले की भटगांव विधानसभा मध्यप्रदेश की सीमा को छूती है।

सरगुजा लोकसभा की विधानसभा

सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में सरगुजा जिले की अम्बिकापुर (अनारक्षित), सीतापुर(एसटी), लुंड्रा (एसटी) सूरजपुर जिले की प्रेमनगर(अनारक्षित), भटगांव(अनारक्षित) और प्रतापपुर (एसटी) सहित बलरामपुर जिले की सामरी(एसटी), रामानुजगंज(एसटी) विधानसभा शामिल है।

वैसे तो सरगुजा लोकसभा में कांग्रेस ने ज्यादातर राज किया है लेकिन 2004 के बाद प्रदेश में आई भाजपा सरकार और भाजपा के संगठनात्मक ढांचे की मजबूती ने कांग्रेस के इस अभेद किले को ढहा दिया और तब से अब तक कांग्रेस यहां वनवास भोग रही है, इस बीच भाजपा सरगुजा में कोई बड़ा चेहरा भी खड़ा नही कर सकी जिसके प्रभाव व लोकप्रियता से चुनाव पर असर डाला जा सकता भाजपा टीम वर्क और संगठन की ताकत से ही विषय श्री हासिल करती आई है हालाकी 2014 की बात करें तो मोदी लहर भी भाजपा की जीत की मुख्य वजह रही है, क्योंकी पीएम मोदी ने सरगुजा में अपनी चुनावी सभा की थी और यहां पीएम बनने से पहले ही भाजपाइयों ने प्रतीकात्मक लाल किले से नरेंद्र मोदी की सभा कराई थी। लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस में कभी महज कुछ वोट से बमुश्किल विधायक का चुनाव जीतने वाले सरगुजा राज परिवार के टी एस सिंह देव का कद और लोकप्रियता ऐसी बढ़ी की वो ना सिर्फ कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने बल्कि आज कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में खासे दखल रखने वालों में से एक हैं, साथ ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है, उनके प्रभाव वाले सरगुजा संभाग की 14 में 14 और रायगढ़ की 5 में से 5 मतलब 19 सीटो पर भाजपा शून्य पर है। जाहिर सी बात है की लोकसभा चुनाव के सिंह देव सरगुजा लोकसभा में अपना प्रभाव डालेंगे और ऐसे में भाजपा के पास कोई स्थानीय प्रभावी चेहरा फिलहाल तो नही दिखता।

मतदाताओ की क्या है स्थिति

सरगुजा लोकसभा में इस आम चुनाव में 16 लाख 44 हजार से अधिक लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए वैध हैं, इनमे 8 लाख 19 हजार 180 महिला, 8 लाख 24 हजार 870 पुरुष और कुल 11 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। सरगुजा संसदीय क्षेत्र में 2 हजार 148 मतदान केंद्र बनाये गये हैं।

सरगुजा में मुद्दा हमेशा आदिवासियों का हावी रहा है, फिर चाहे आदिवासी विकास की बात हो या फिर आदिवासी समाज के प्रत्याशी का इस क्षेत्र में अगर जातिगत वोटरों की संख्या की बात करें तो उरांव वोट सबसे अधिक हैं इनकी संख्या पौने तीन लाख है, वहीं गोंड़ समाज दूसरे नंबर पर और फिर कवंर समाज तीसरे नंबर पर आते हैं। लेकिन मतदाताओ की जातिगत जनसंख्या के आधार पर परिणाम लाना यहा संबव कभी नही हुआ है, यहां से गोंड़ और कंवर समाज के लोग ही सांसद रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह है दरअसल गोंड़ और कंवर समाज की जितनी संख्या दिखती है उतना ही बड़ा उनका संगठित एक मात्र समाज है, लेकिन उरांव की संख्या का फिगर उरांव के अलग अलग सामाजिक स्वरूप की वजह से बिखर जाता है, दरअसल उरांव समाज के ज्यादातर लोग धर्मांतरण के साथ मसीही धर्म को मानने लगे और इनका समाज बिल्कुल अलग हो गया वही जो उरांव धर्मान्तरित नही हुए उनका अपना अलग समाज है लिहाजा उरांव समाज की पौने तीन लाख की संख्या कई धड़ो में बंटी हुई है, और यही वजह है की इस लोकसभा में गोंड़ समाज की अहम भूमिका रहती है।

समस्याओं की बात करें तो सरगुजा में वर्तमान में हांथी एक बड़ी और विकराल समस्या हैं यहां मानव और हाथी के बीच द्वंद शुरू हो चुका है और शासन प्रशासन इस समस्या को हल करने में भी असमर्थ दिखाई पड़ता है, वहीं वर्षो बाद महज मध्यप्रदेश से जोड़ने वाली रेल लाईन मिलने के बाद सरगुजा वासियों ने ट्रेन तो देख ली लेकिन अब भी सरगुजा का वयापार मुख्य धारा से कटा हुआ है, इसका बड़ा कारण देर से ट्रेन लाइन पहुँचना है, वही सरगुजा को झारखंड से जोड़ने बरवाडीह रेल मार्ग की मांग, दिल्ली तक सीधी ट्रेन की मांग अब तक पूरी नही हो सकी है, स्थानीय उद्दोगों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार ना मिलना भी यहां की बड़ी समस्या है, साथ ही कार्पोरेटरो के द्वारा वन भूमि को अधिग्रहित करना किसानों की जमीन को अधिग्रहित करने का मामला भी यहां के वन वासियो की मुसीबत बना हुआ है। कुछ स्थानों पर नेशनल हाइवे का इतना बुरा हाल है की लोगों के काम काज बंद होने के कगार पर हैं।

2014 के आम चुनाव में सरगुजा लोकसभा सीट पर भाजपा।के कमलभान सिंह लगभग डेढ़ लाख वोट से चुनाव जीते थे। कमलभान सिंह को 5 लाख 85 हजार 336 मतलब 49.29 फीसदी वोट मिले थे जो 2009 के की तुलना में 2.43 फीसदी कम था, वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी रामदेव राम को 4 लाख 38 हजार 100 वोट मतलब 36.90 फीसदी वोट मिले थे जो 2009 में कांग्रेस को मिले कुल वोट से 4.98 फीसदी ज्यादा था। इसके आलवा इस चुनाव में सीपीआईएम और बसपा ने भी 21-21 हजार वोट प्राप्त किये थे वहीं एक निर्दलीय उम्मीदवार ने 15 हजार वोट अपने पाले में किए थे। इस तरह 2014 के लोकसभा में चुनाव में 77.96 फीसदी मतदान हुआ था, जिसमे कुल 11 लाख 33 हजार 514 मत पड़े थे। बहरहाल सरगुजा के चुनाव परिणाम पर अगर बारीकी नजर डाली जाए तो ये आंकड़े चौकाने वाले होते है, या यूं कहें की राजनीतिक विशेषज्ञों के सिर चक्कर खाने वाले आंकड़े यहां देखे जाते हैं, जीतने वाली पार्टी के वोट शेयर में गिरावट और हारने वाली पार्टी के वोट शेयर में बढ़त की गणित चुनाव संचालकों को समझनी होगी।

देश दीपक गुप्ता सरगुजा


Body:सरगुजा : इस लोकसभा क्षेत्र में अब तक के कुल 68 वर्ष के संसदीय कार्यकाल में 21 वर्ष ही कांग्रेस के सांसद कुर्सी से बेदखल रहे हैं, बाकी के बचे 47 वर्ष तक सरगुजा लोकसभा में कांग्रेस की ही सांसदों का कब्जा रहा है, सन 1951 से 1977 तक लगातार कांग्रेस सरगुजा में काबिज रही लेकिन 1977 में हुये आम चुनाव में भारतीय लोकदल के बैनर तले लरंग साय सिंह ने कांग्रेस का विजय रथ रोका लेकिन वो 3 वर्ष ही सांसद रहे और 1980 में कांग्रेस के चकट धारी सिंह सरगुजा सांसद बने, 1989 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा की टिकट से लरंग साय सिंह यहां से सांसद बने लेकिन महज दो साल बाद ही 1991 में चुनाव हो गये और कांग्रेस के खेल साय सिंह ने उन्हें चुनाव हरा दिया, ये वही खेल साय सिंह है जो वर्तमान में सरगुजा से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। खेल साय सिंह 98 तक सांसद रहे लेकिन इसके बाद 98 में लरंग साय ने एक बार फिर उन्हें चुनाव हराया लेकिन लरंग साय की किस्मत ऐसी की महज 13 महीने में मतलब 99 में फिर आम चुनाव हुये और खेल साय सिंह एक बार फिर सांसद बने और पूरे 5 साल 2004 तक सांसद रहे लेकिन 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस के गढ़ को भेदने के लिये भाजपा ने तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार साय को खेल साय सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा और खेल साय सिंह चुनाव हार गये इसके बाद आज तक यहां लगातार भाजपा के ही सांसद चुनाव जीतते आये हैं।

कब कौन था सरगुजा सांसद

1952 - बाबूनाथ सिंह - कांग्रेस

1957 - सी.एस. सिंह देव - कांग्रेस

1957 से 1977 तक - बाबूनाथ सिंह - कांग्रेस

1977 - लरंगसाय - भारतीय लोक दल

1980 - चटक धारी सिंह - कांग्रेस

1984 - लाल विजय प्रताप सिंह - कांग्रेस

1989 - लरंगसाय - भाजपा

1991 - खेल साय सिंह - कांग्रेस

1996 - खेल साय सिंह - कांग्रेस

1998 - लरंगसाय - भाजपा

1999 - खेल साय - कांग्रेस

2004 - नंद कुमार साय - भाजपा

2009 - मुरारी लाल सिंह - भाजपा

2014 - कमलभान सिंह - भाजपा

सरगुजा लोकसभा के फीजिकल ढांचे की बात करें तो यह तीन जिले सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर से मिलकर बनी है। इसमें तीन जिले और 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, सरगुजा लोकसभा के उत्तरी क्षेत्र में प्रतापपुर विधानसभा से उत्तर प्रदेश की सीमा लगी हुई है वहीं पूर्वी क्षेत्र रामानुजगंज से झारखंड की सीमा लगी है, पश्चिम में कोरबा और रायगढ़ जिले है तो मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा कोरिया जिला भी सरगुजा लोकसभा की सरहद में है। वहीं सूरजपुर जिले की भटगांव विधानसभा मध्यप्रदेश की सीमा को छूती है।

सरगुजा लोकसभा की विधानसभा

सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में सरगुजा जिले की अम्बिकापुर (अनारक्षित), सीतापुर(एसटी), लुंड्रा (एसटी) सूरजपुर जिले की प्रेमनगर(अनारक्षित), भटगांव(अनारक्षित) और प्रतापपुर (एसटी) सहित बलरामपुर जिले की सामरी(एसटी), रामानुजगंज(एसटी) विधानसभा शामिल है।

वैसे तो सरगुजा लोकसभा में कांग्रेस ने ज्यादातर राज किया है लेकिन 2004 के बाद प्रदेश में आई भाजपा सरकार और भाजपा के संगठनात्मक ढांचे की मजबूती ने कांग्रेस के इस अभेद किले को ढहा दिया और तब से अब तक कांग्रेस यहां वनवास भोग रही है, इस बीच भाजपा सरगुजा में कोई बड़ा चेहरा भी खड़ा नही कर सकी जिसके प्रभाव व लोकप्रियता से चुनाव पर असर डाला जा सकता भाजपा टीम वर्क और संगठन की ताकत से ही विषय श्री हासिल करती आई है हालाकी 2014 की बात करें तो मोदी लहर भी भाजपा की जीत की मुख्य वजह रही है, क्योंकी पीएम मोदी ने सरगुजा में अपनी चुनावी सभा की थी और यहां पीएम बनने से पहले ही भाजपाइयों ने प्रतीकात्मक लाल किले से नरेंद्र मोदी की सभा कराई थी। लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस में कभी महज कुछ वोट से बमुश्किल विधायक का चुनाव जीतने वाले सरगुजा राज परिवार के टी एस सिंह देव का कद और लोकप्रियता ऐसी बढ़ी की वो ना सिर्फ कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने बल्कि आज कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में खासे दखल रखने वालों में से एक हैं, साथ ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है, उनके प्रभाव वाले सरगुजा संभाग की 14 में 14 और रायगढ़ की 5 में से 5 मतलब 19 सीटो पर भाजपा शून्य पर है। जाहिर सी बात है की लोकसभा चुनाव के सिंह देव सरगुजा लोकसभा में अपना प्रभाव डालेंगे और ऐसे में भाजपा के पास कोई स्थानीय प्रभावी चेहरा फिलहाल तो नही दिखता।

मतदाताओ की क्या है स्थिति

सरगुजा लोकसभा में इस आम चुनाव में 16 लाख 44 हजार से अधिक लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए वैध हैं, इनमे 8 लाख 19 हजार 180 महिला, 8 लाख 24 हजार 870 पुरुष और कुल 11 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। सरगुजा संसदीय क्षेत्र में 2 हजार 148 मतदान केंद्र बनाये गये हैं।

सरगुजा में मुद्दा हमेशा आदिवासियों का हावी रहा है, फिर चाहे आदिवासी विकास की बात हो या फिर आदिवासी समाज के प्रत्याशी का इस क्षेत्र में अगर जातिगत वोटरों की संख्या की बात करें तो उरांव वोट सबसे अधिक हैं इनकी संख्या पौने तीन लाख है, वहीं गोंड़ समाज दूसरे नंबर पर और फिर कवंर समाज तीसरे नंबर पर आते हैं। लेकिन मतदाताओ की जातिगत जनसंख्या के आधार पर परिणाम लाना यहा संबव कभी नही हुआ है, यहां से गोंड़ और कंवर समाज के लोग ही सांसद रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह है दरअसल गोंड़ और कंवर समाज की जितनी संख्या दिखती है उतना ही बड़ा उनका संगठित एक मात्र समाज है, लेकिन उरांव की संख्या का फिगर उरांव के अलग अलग सामाजिक स्वरूप की वजह से बिखर जाता है, दरअसल उरांव समाज के ज्यादातर लोग धर्मांतरण के साथ मसीही धर्म को मानने लगे और इनका समाज बिल्कुल अलग हो गया वही जो उरांव धर्मान्तरित नही हुए उनका अपना अलग समाज है लिहाजा उरांव समाज की पौने तीन लाख की संख्या कई धड़ो में बंटी हुई है, और यही वजह है की इस लोकसभा में गोंड़ समाज की अहम भूमिका रहती है।

समस्याओं की बात करें तो सरगुजा में वर्तमान में हांथी एक बड़ी और विकराल समस्या हैं यहां मानव और हाथी के बीच द्वंद शुरू हो चुका है और शासन प्रशासन इस समस्या को हल करने में भी असमर्थ दिखाई पड़ता है, वहीं वर्षो बाद महज मध्यप्रदेश से जोड़ने वाली रेल लाईन मिलने के बाद सरगुजा वासियों ने ट्रेन तो देख ली लेकिन अब भी सरगुजा का वयापार मुख्य धारा से कटा हुआ है, इसका बड़ा कारण देर से ट्रेन लाइन पहुँचना है, वही सरगुजा को झारखंड से जोड़ने बरवाडीह रेल मार्ग की मांग, दिल्ली तक सीधी ट्रेन की मां


Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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