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आर्थिक तंगी से जूझ रहा दिव्यांगों का ये आशियाना

दिव्यांगों का सहारा बनी संस्था, सरकार की उपेक्षा की वजह से आर्थिक तंगी से जूझ रही है, लगभग 30 दिव्यांगों का इस आशियाने के लिए सरकार से मदद की गुहार लगाकर आश्रम संचालिका थक चुकी हैं, लेकिन इन्हें कोई सहायता नहीं अब तक नहीं मिली हैं.

place of Divyang is facing financial crisis in sarguja
दिव्यांगों का सहारा
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Published : Dec 2, 2019, 3:12 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

सरगुजा: खुद को समाज से वंचित पाने का दर्द क्या हो सकता है, वह भला इन दिव्यांगों से बेहतर कौन समझ सकता है. कोई आंख से देख नहीं सकता तो किसी के पैर काम नहीं करते, तो किसी को सुनाई नहीं देता. इन्हें भी इसी कुदरत ने बनाया है, जिसने बाकी लोगों को बनाया है.

दिव्यांगों का सहारा

दिव्यांगों को साधारण समाज में रहना इतना आसान भी नहीं होता, जितना दिव्यांग दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में मंच से होने वाली भाषणों में सुनाई देता है. वास्तविकता तो यह है कि अक्सर इन दिव्यांगों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है. कई बार तो खुद इनके परिवार के लोग भी इन्हें इस स्थिति में अपना नहीं पाते हैं. हालांकि, इन सबके बीच कई लोग इनके लिए उम्मीद की किरण भी बनकर आते हैं. इन दिव्यांगों के लिए ऐसी ही एक उम्मीद की किरण है, कलावती पुनर्वास केंद्र, जहां निशक्तों को सहारा दिया जाता है.

बच्ची को मिली दृष्टि

यहां उनके रहने-खाने से लेकर पढ़ने-लिखने की तमाम जरूरतों का ख्याल रखा जाता है. सरगुजा के कलावती पुनर्वास केंद्र में आज 30 ऐसे लोग हैं, जो यहां रहकर जीने की कला सीख रहे हैं. संस्था ने यहां रहकर पढ़ने वाली बच्चियों की शादी भी कराई है. वहीं एक बच्ची के आंखों का ऑपरेशन भी कराया है.

सरकार से नहीं मिली कोई मदद

कलावती पुनर्वास केंद्र को एक दिव्यांग महिला ही संचालित करती है, खुद दिव्यांग होने से वो इन दिव्यांगों का दर्द बखूबी महसूस कर सकती हैं. शायद यही वजह है की संस्था को चलाने में आने वाली खर्च ने कभी इनकी हिम्मत नहीं तोड़ी. रीता अग्रवाल कलावती पुनर्वास केंद्र के लिए 2016 से सरकारी मदद की गुहार लगाकर थक चुकी है, सरकार ने आज तक इसपर कोई ध्यान नहीं दिया.

यह बात और है कि दिव्यांग दिवस पर यहां आयोजित बड़े-बड़े समारोहों के अवसर पर इसी संस्था से इन दिव्यांगों को मंच पर बुलाया जाता है. उन कार्यक्रमों में भाषण के साथ बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं और फिर इन्हें इसी हाल में लाकर छोड़ दिया जाता है.

सरगुजा: खुद को समाज से वंचित पाने का दर्द क्या हो सकता है, वह भला इन दिव्यांगों से बेहतर कौन समझ सकता है. कोई आंख से देख नहीं सकता तो किसी के पैर काम नहीं करते, तो किसी को सुनाई नहीं देता. इन्हें भी इसी कुदरत ने बनाया है, जिसने बाकी लोगों को बनाया है.

दिव्यांगों का सहारा

दिव्यांगों को साधारण समाज में रहना इतना आसान भी नहीं होता, जितना दिव्यांग दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में मंच से होने वाली भाषणों में सुनाई देता है. वास्तविकता तो यह है कि अक्सर इन दिव्यांगों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है. कई बार तो खुद इनके परिवार के लोग भी इन्हें इस स्थिति में अपना नहीं पाते हैं. हालांकि, इन सबके बीच कई लोग इनके लिए उम्मीद की किरण भी बनकर आते हैं. इन दिव्यांगों के लिए ऐसी ही एक उम्मीद की किरण है, कलावती पुनर्वास केंद्र, जहां निशक्तों को सहारा दिया जाता है.

बच्ची को मिली दृष्टि

यहां उनके रहने-खाने से लेकर पढ़ने-लिखने की तमाम जरूरतों का ख्याल रखा जाता है. सरगुजा के कलावती पुनर्वास केंद्र में आज 30 ऐसे लोग हैं, जो यहां रहकर जीने की कला सीख रहे हैं. संस्था ने यहां रहकर पढ़ने वाली बच्चियों की शादी भी कराई है. वहीं एक बच्ची के आंखों का ऑपरेशन भी कराया है.

सरकार से नहीं मिली कोई मदद

कलावती पुनर्वास केंद्र को एक दिव्यांग महिला ही संचालित करती है, खुद दिव्यांग होने से वो इन दिव्यांगों का दर्द बखूबी महसूस कर सकती हैं. शायद यही वजह है की संस्था को चलाने में आने वाली खर्च ने कभी इनकी हिम्मत नहीं तोड़ी. रीता अग्रवाल कलावती पुनर्वास केंद्र के लिए 2016 से सरकारी मदद की गुहार लगाकर थक चुकी है, सरकार ने आज तक इसपर कोई ध्यान नहीं दिया.

यह बात और है कि दिव्यांग दिवस पर यहां आयोजित बड़े-बड़े समारोहों के अवसर पर इसी संस्था से इन दिव्यांगों को मंच पर बुलाया जाता है. उन कार्यक्रमों में भाषण के साथ बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं और फिर इन्हें इसी हाल में लाकर छोड़ दिया जाता है.

Intro:सरगुजा : खुद को समाज से वंचित पाने का दर्द क्या हो सकता है वह भला इन दिव्यांगों से बेहतर कौन समझ सकता है कोई आंख से देख नहीं सकता तो किसी के पैर काम नहीं करते तो किसी को सुनाई नहीं देता बाहर हाल उसी कुदरत ने इन्हें बनाया है जिसने हम सबको बनाया लेकिन फिर भी यह दिव्यांग कुछ अलग हैं और साधारण समाज में रहना इनके लिए इतना भी आसान नहीं होता जितना दिव्यांग दिवस के अवसर पर होने वाले समारोह के मंच से होने वाली भाषणों में सुनाई देता है वास्तविकता तो यह है कि अक्सर इन दिव्यांगों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है कई बार परिवार भी अपने बच्चे को इस स्थिति में अपना नहीं पाता ऐसी स्थिति में इनका सहारा बनती है कलावती पुनर्वास केंद्र जहां निशक्त जनों को सहारा दिया जाता है यहां उनके रहने की खाने की पढ़ने लिखने सहित जीवन जीने की अन्य कलाओं की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं निशक्त जनों के इस पुनर्वास केंद्र में आज लगभग 30 ऐसे लोग हैं जो यहां रहकर इसे ही अपना घर और यहां रहने वाले लोगों को ही अपना परिवार समझते हैं संस्था ने बीते दिनों में कई अच्छे काम की हैं जिसमें यहां रहकर पढ़ने वाली बच्चियों की शादी भी संस्था ने कराई है वहीं एक बच्ची के आंख का ऑपरेशन संस्था के द्वारा कराया गया है और वह बच्ची अब अपनी आंखों से देख पाती है


Body:दरअसल इस संस्था को एक दिव्यांग महिला ही संचालित करती है और खुद दिव्यांग होने की वजह से वहीं दिव्यांगों का दर्द बखूबी महसूस कर सकती हैं शायद यही वजह है की संस्था को चलाने में आने वाले खर्च की वजह से भी आज तक इनकी हिम्मत नहीं टूटी है वरना 2016 से आज तक सरकार से सहयोग की गुहार लगाकर थक चुकी रीता अग्रवाल शायद इस संस्था को कब का बन कर चुकी होती लेकिन वह खुद दिव्यांग है और इन बेसहारा दिव्यांगों की परेशानी को समझ सकती हैं यही कारण है कि किसी भी तरीके से वह इस संस्था को बंद नहीं होने देना चाहती प्रदेश सरकार की कई योजनाएं जिला प्रशासन के माध्यम से निशक्त जनों को लाभ देने के लिए चलाई जाती है अरुण योजनाओं का लाभ वास्तव में कितना मिलता है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इस संस्था को आज तक कोई भी सरकारी सहयोग नहीं मिल सका है यह बात और है कि दिव्यांग दिवस पर हां आयोजित बड़े-बड़े समारोहों के अवसर पर इसी संस्था से इन दिव्यांगों को मंच पर बुलाया जाता है भाषण बाजिया होती हैं बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं और फिर इन्हें इसी हालत पर छोड़ दिया जाता है दिव्यांग दिवस पर मंच की शोभा बढ़ाने की बात इन बच्चों के लिए आम हो चुकी है फिलहाल एक बार फिर इस अवसर पर इन्हें बुलाया जाएगा लेकिन इनके वास्तविक उत्थान की दिशा में कोई प्रयास अब तक तो नहीं हो सके हैं देखना यह होगा आगे क्या कोई सरकारी सहयोग इन्हें मिल सकता है.


Conclusion:बाईट01_रीता अग्रवाल (संचालिका कलावती पुनर्वास केंद्र)

बाईट02_संदीप निकुंज (दृष्टि बाधित युवक)

बाईट03_संजीता पैकरा (आंख के ऑपरेशन के बाद देख पाने वाली बच्ची)

देश दीपक सरगुज़ा
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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