सरगुजा: छतीसगढ़ के सरगुजा संभाग में एक ऐसी विधानसभा सीट है, जहां से पिछले 38 सालों से लगातार कोई एक पार्टी जीत हासिल नहीं कर पाई है. अगर एक बार बीजेपी यहां से जीत दर्ज की है तो दूसरी बार कांग्रेस को जीत मिलती है. यहां की जनता एक बार भाजपा तो एक बार कांग्रेस को मौका देती है. क्षेत्र के विकास के दृष्टिकोण से लोगों के हित में यहां मतदान होता है.यही कारण है कि जीतने वाले प्रत्याशी अगली बार दोबारा जीत के बारे में नहीं सोचते.
प्रेमसाय सिंह को मिली दो बार जीत: सूरजपुर जिले की प्रतापपुर विधानसभा का आधा हिस्सा सूरजपुर तो आधा हिस्सा बलरामपुर जिले में पड़ता है. यह उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा विधानसभा क्षेत्र है. यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. यह सीट पहले पिलखा के नाम से जानी जाती थी. परिसीमन के बाद साल 1985 में इसे प्रतापपुर विधानसभा बना दिया गया. यहां से प्रेम साय सिंह एक ऐसे नेता हैं जो दो बार जीत दर्ज कर चुके हैं. बाकी के चुनावों में उनको भी हार का सामना करना पड़ा है.
क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट: ETV भारत से पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुधीर पांडे ने बताया कि साल 1977 में ये सीट अस्तित्व में आई. पिलखा विधानभसा से पहले विधायक जनता पार्टी के नर नारायण सिंह चुने गए. साल 1980 में यहां कांग्रेस के प्रेम साय सिंह विधायक चुने गए. साल 1985 में फिर से दोबारा प्रेम साय सिंह यहां से विधायक बने. लेकिन इसके बाद यहां विधायक कभी रिपीट नहीं हो सका. एक बार हराने के बाद ही जनता ने उन्हें दोबारा मौका दिया. साल 1990 में भाजपा के मुरारी लाल सिंह ने जीत दर्ज की. साल 1998 में कांग्रेस के प्रेम साय सिंह को जीत मिली. साल 2003 में भाजपा के राम सेवक पैकरा ने जीत हासिल की. वहीं, साल 2008 में कांग्रेस के प्रेम साय सिंह ने जीत दर्ज की. साल 2013 में भाजपा के राम सेवक पैकरा को जीत मिली. फिर साल 2018 में काग्रेस के प्रेम साय सिंह ने यहां से चुनाव जीता."
आम तौर पर भाजपा हो या कांग्रेस सिटिंग विधायक को ही टिकट देती रही थी और परिणाम के रूप में विधायक हार जाते थे. लेकिन इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही यहां के समीकरण बदले हैं. दोनों ही दलों ने नए चेहरे को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने तो वर्तमान सरकार में शिक्षा और आदिवासी मंत्री रह चुके वरिष्ठ विधायक प्रेम साय सिंह का ही टिकट काट दिया है. हार जीत की परंपरा के अनुसार इस बार इस विधानसभा से कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत संभावित है. लेकिन देखना होगा कि प्रत्याशी बदलने के फार्मूले के कारण क्षेत्र का पुराना रिकॉर्ड टूटेगा या बरकारार रहेगा. -सुधीर पांडे, पॉलिटिकल एक्सपर्ट
प्रतापपुर विधानसभा सीट का ये रिकॉर्ड साल 1985 से लगातार जारी है. ऐसे में देखना होगा कि इस बार यहां की जनता किस पार्टी पर भरोसा जताती है. क्या यहां से पुराना रिकॉर्ड टूटेगा? या फिर जनता दूसरे पार्टी को मौका देगी.