सरगुजा : छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है. इस दौरान उन्होंने कई अहम मुद्दों पर बड़े बयान दिये हैं. उन्होंने बताया कि अब प्रदेश में कोरोना जांच के लिए आरटीपीसीआर टेस्टिंग बढ़ाने के निर्देश दिये गए हैं. जबकि एंटीजन जांच कम की जाएगी. साथ-साथ छत्तीसगढ़ को टीबी मुक्त बनाने के लिए भी अभियान चलाया जाएगा. वहीं प्रदेश के जनजातीय जिलों व जनजातीय बहुल जिलों में महिलाओं की मौत के आंकड़ों पर चल रही बहस को संवास्थ्य मंत्री ने गलत बताया है.
जनजातीय क्षेत्र पिछड़े हैं तो वहां बजट का होना चाहिए अधिक आवंटन...
स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव ने बताया कि जो आंकड़े आए हैं, वो जनजातीय क्षेत्रों में कुल मौत के हैं न कि जनजातीय क्षेत्रों में जनजातीय (Tribal women death in Chhattisgarh) महिलाओं की मौत के. इसमें कोरोना से हुई मौत के आंकड़े भी शामिल हैं. बावजूद इसके तुलनात्मक अंतर बहुत ज्यादा नहीं है. उन्होंने कहा कि जनजातीय क्षेत्र अगर पिछड़े हैं तो वहां बजट का आवंटन भी अधिक होना चाहिए. जबकि बजट सभी क्षेत्रों को बराबर दिया जाता है. एसे में पिछड़े इलाकों की प्रगति बेहतर कैसे होगी. स्वास्थ्य मंत्री ने सिंहदेव ने सवाल-जवाब के क्रम में और क्या कहा आगे पढ़िये...
सवाल : कोरोना की तीसरी लहर आई तो क्या कोरोना के प्रोटोकॉल में कुछ बदलाव हुए? क्या कोई शिथिलता है?
जवाब : कोरोना की पहली लहर में न विशेषज्ञों को और न ही डाक्टरों को ही कुछ पता था कि इसका क्या इलाज करें. कोई इलाज ही नहीं था. इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए दवा का इस्तेमाल हो रहा था. कुछ हद तक आज भी हो रहा है. कोरोना की पहली लहर अंधेरे में थी. दूसरी लहर में कुछ अंधेरा छंटा, लेकिन उसके प्रभाव खतरनाक हुए. तीसरी लहर में हमने देखा कि वायरस न उतनी तेजी से बढ़ा और न ही उतनी तेजी से घटा. आज पॉजीटिविटी रेट 2 और डेढ़ प्रतिशत प्रतिदिन से कम है.
एंटीजन पॉजीटिविटी रेट कम, आरटीपीसीआर की रेट ज्यादा...
सतर्क रहने की बात ये है कि ये जो पॉजीटिविटी का आंकड़ा है, ये रैपिड एंटीजन को मिलाकर है. एंटीजन में जो पॉजिटिव आ रहे हैं, उन्में पॉजीटिविटी रेट कम है. इससे लगेगा कि उनमें कोरोना नहीं है. जबकि आरटीपीसीआर देखेंगे तो उसमें पॉजीटिविटी रेट ज्यादा है. आरटीपीसीआर ज्यादा प्रभावी जांच का माध्यम है. इसलिए हममें शिथिलता नहीं होनी चाहिए. आज ही मैंने विभाग के प्रमुख अधिकारियों को मैसेज किया है कि हमको आरटीपीसीआर टेस्टिंग बढ़ा लेनी चाहिए. दो और लैब की मान्यता मिल गई है. बाकी के लैब में टेस्ट की संख्या बढ़ाने की जरूरत है. रैपिड एंटीजन टेस्ट कम करने की जरूरत है.
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टीबी-कुष्ठ की स्थिति ठीक नहीं, इसपर काम करने की जरूरत...
यह निर्णय भी लिया गया कि टीबी की जांच तेज करनी है. क्योंकि टीबी में हमारे राज्य के आंकड़े अच्छे नहीं हैं. कुष्ठ रोग में भी हमारी स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती. इन दोनों पर काम करने की जरूरत है. प्रोटोकॉल में वैक्सीनेशन पूरा करना है, इसमें कोई बदलाव नहीं है. पहला डोज 100 प्रतिशत हो चुका है, दूसरा डोज भी 77 प्रतिशत के आसपास हो चुका है. इसे पूरा करना जरूरी है. बाकी शादी विवाह, मीटिंग और स्कूल वगैरह में शिथिलता आ गई है, फिर भी सावधान रहना है.
सवाल : आंकड़ों को देखें तो आदिवासी क्षेत्रों में तीन वर्ष में तीन हजार आदिवासी महिलाओं की मौत हो गई. ये किस तरह हुआ और इस पर किस तरह के काम हो रहे हैं?
जावाब : इस मामले पर रामविचार नेताम जी के माध्यम से एक प्रश्न उठाया गया था. राज्य सभा सचिवालय से हमारे पास प्रश्न आया. विभाग ने उसकी जानकारी भेजी. ये आंकड़े हैं, कोई छुपाने की बात नहीं है. जिन तीन सालों के आंकड़े उन्होंने पूछे, 2018-19, 2019-20 और 2020-21 की, उसकी जानकारी उन्हें भेज दी गई. इसमें अंतिम वर्ष कोरोना का था. और तीसरे वर्ष में ये बढ़ा हुआ था. बच्चों और महिलाओं की मृत्यु के आंकड़े बढ़े हुए थे, लेकिन थोड़े ही बढ़े थे.
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आंकड़े जनजातीय क्षेत्रों में कुल मौत के, न कि जनजातीय महिलाओं की मौत के...
मैंने 2021-22 के आंकड़े मंगाए जो कम हो गए हैं. इसे इस तरह से प्रस्तुत किया गया कि आदिवासी जिलों में नहीं, बल्कि आदिवासी लोगों की मौत हो गई. वो आदिवासी जिलों में हुई कुल मौत के आंकड़े थे. ऐसा नहीं था कि इतने आदिवासी महिलाओं या बच्चों की मौत हो गई. ये तो आदिवासी जिलों में कितने लोगों की मौत हुई, इसके आंकड़े हैं. उसमें अन्य लोगों की मौत और कोविड से हुई मौत भी उसमें शामिल है. अनुपात में आप देखेंगे तो अंतर नहीं दिखेगा, लेकिन मेरा भी ये मानना है कि उस हद तक रामविचार जी ने भी जो प्रश्न उठाया, वो लोगों का ध्यान उस ओर ले जाएगा.
पिछड़े इलाकों के लिए बजट में होना चाहिए थोड़ा ज्यादा प्रावधान...
हम क्या करते हैं कि आबादी के आधार पर बजट में एक रुपये दे देते हैं. इस क्रम में सबको अगर एक रुपया मिलता है तो इसमें अगड़े क्षेत्र को भी एक रुपया मिलता है और जो क्षेत्र पिछड़े होते हैं, उन्हें भी एक ही रुपया मिलता है. हम कहते हैं कि हमने सबको बराबर दिया. जब अप बजट बनाते हो तो आप कहते हो कि आदिवासियों के लिए हमने इतना पैसा दे दिया. एससी के लिए इतना पैसा दे दिया. परसेंटेज के हिसाब से हमने सबको बराबर कर दिया, लेकिन जो क्षेत्र विकास में पीछे रह गए उनको भी अगड़े इलाके के जितना ही पैसा मिलता है.
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छोटी आबादी वाले इलाके में भी नजदीक में ही स्थापित हों स्वास्थ्य इकाइयां...
इसमें जो सकारात्मक बात आनी चाहिए, मेरा मानना है बराबर-बराबर पैसे नहीं बांटने चाहिए. जो क्षेत्र विकास में पीछे रह गए, उसे ज्यादा दो. ये नहीं कि जो क्षेत्र आगे निकाल गया, उसको न दें लेकिन जो पीछे रह गया उसे थोड़ा ज्यादा देना चाहिए. दूसरा स्वास्थ्य के क्षेत्र में ट्राइबल एरिया को आप देखोगे तो ये इलाके बहुत फैले हुए हैं. दूर-दूर में बसे होते हैं. जबकि मैदानी इलाकों में नजदीक में स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध होती है. छोटी आबादी में भी स्वास्थ्य की इकाइयों को नजदीक में ही स्थापित करने की जरूरत है.
सवाल : वर्तमान में सरगुजा में आपने बहुत ज्यादा स्वास्थ्य केंद्रों की स्वीकृति दी है. क्या लगता है, इनके निर्माण के बाद स्थति क्या होगी?
जवाब : अब प्रयास ये भी है कि हर पीचसी में कम से कम एक मेडिकल ऑफिसर रहे. पिछली बार हमने समीक्षा की थी कि प्रदेश में 800 पीचसी हैं. इनमें 111 पीएचसी हैं, जिनमें मेडिकल ऑफिसर की पोस्टिंग नहीं थी. कल-परसों ही 66-68 नए बच्चों की लिस्ट निकली है. इन एमबीबीएस डॉक्टरों को मूलतः बस्तर और सरगुजा के ग्रामीण क्षेत्रों में ही ज्यादातर पदस्थ किया है, ताकि यह गैप भर जाए.