सरगुजा: लॉकडाउन का सबसे ज्यादा फायदा प्रकृति को हो रहा है. लॉकडाउन में सार्वजनिक स्थानों पर इंसानों की आवाजाही प्रतिबंधित है. जिसके कारण लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. यही कारण है कि पशु-पक्षी और पेड़-पौधे लॉकडाउन में खूब फल-फूल रहे हैं. प्रदूषण मुक्त माहौल में इनके ऊपर सकारात्मक असर पड़ा है और प्रकृति भी जैसे जीवंत हो उठी है. अंबिकापुर के संजय पार्क में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है.
शहर के इस जंगल को साल 1977 में पार्क का रूप दिया गया था और यहां औषधीय पौधों के साथ-साथ खूबसूरत और खुशबूदार फूलों के पौधे भी लगाए गए हैं. इसके साथ ही बच्चों के लिए झूले भी लगा दिए गए. इतना ही नहीं वन विभाग ने इसे पशु-पक्षियों का रेस्क्यू सेंटर बना दिया है.
प्रकृति में आया बदलाव
धीरे-धीरे सारे जीव मनोरंजन का एक साधन बन चुके हैं. वन विभाग ने यहां हर दिन आने वाली भीड़ से टैक्स की वसूली और वन क्षेत्र की देखभाल का जिम्मा एक सहकारी समिति को दे दिया है. अब यह समिति ही इसे चलाती है और यहां आने वाले हर व्यक्ति से एंट्री शुल्क वसूलती है. यह जंगल देखते-देखते मिनी चिड़िया घर में तब्दील हो गया. यहां आम दिनों में इतनी भीड़ होती है कि पशु-पक्षी इंसानों के शोर से डरे-सहमे एकांत में बैठे रहते हैं. पेड़-पौधों पर भी वो रौनक नहीं दिखाई देती थी, लेकिन लॉकडाउन की वजह से अब ना सिर्फ यह जंगल लहलहा रहा है, बल्कि पशु-पक्षी भी खुद को खुला और आजाद महसूस कर रहे हैं.
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नहीं हो रहा डिस्टर्बेंस: एसएस कंवर
वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ भी मानते हैं कि लॉकडाउन की वजह से डिस्टरबेंस नहीं हो रहा है, इसलिए सारे जीव मजे में हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की जगहों पर लॉकडाउन का प्रयोग कोरोना काल के बाद भी होते रहना चाहिए.
जागरूकता की जरूरत
जिस प्रकृति से इंसान को जीवन मिलता है, इंसान उसी प्रकृति का दुश्मन बन रहता है. सब कुछ जानते हुए भी इंसान इस अनमोल उपहार को नुकसान पहुंचता है, लिहाजा लॉकडाउन से प्रकृति को हे रहे फायदे की कल्पना को देखते हुए अब जरूरत है तो जागरूक होने की, प्रकृति की रक्षा की ओर कदम बढ़ाने की.