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विदेशी डिग्री देख यूं न हो जाएं आकर्षित, हो सकता है आपकी सेहत से खिलवाड़

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Published : Mar 6, 2019, 5:04 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

भारत के डॉक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को ब्रिटेन, अमेरिका और गल्फ कंट्री के चिकित्सा प्रणाली की रीढ़ भी कहा जाता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में भारत की चिकित्सा प्रणाली में कई तरह की खामियां सामने आई हैं.

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सरगुजा: भारत की चिकित्सा प्रणाली को दुनिया की सबसे बेहतर चिकित्सा प्रणालियों में से एक कहा जाता है. भारत के डॉक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को ब्रिटेन, अमेरिका और गल्फ कंट्री के चिकित्सा प्रणाली की रीढ़ भी कहा जाता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में भारत की चिकित्सा प्रणाली में कई तरह की खामियां सामने आई हैं.

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बताया जा रहा है कि, भारत की चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता में विदेश से डिग्री लेकर आये डॉक्टरों के कारण कमी आई है. इस मामले में जानकारों का कहना है कि यहां का पर्यावरण और खान-पान दूसरे देशों के पर्यावरण और खान-पान से काफी अलग है. दूसरे देशों में पर्यावरण और खान-पान के हिसाब से वहां की बीमारियां भी भारत से काफी अलग हैं. ऐसे में विदेश से पढ़कर आये डॉक्टरों को यहां बीमारियों को समझने में काफी वक्त लग जाता है. इस दौरान वे प्रैक्टिस भी करते रहते हैं. ऐसे में कई मरीजों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है.

सरगुजा के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ पीएस सिसोदिया बताते हैं कि, विदेश से पढ़कर आने वाले छात्रों को भारत में एक विशेष परीक्षा देनी पड़ती है., जिसमें पास होने के बाद ही उन्हें रजिस्टर्ड डॉक्टर माना जाता है. उन्होंने बताया कि, कम फीस और बिना किसी प्रवेश परीक्षा दिए युवा विदेश में सीधे एडमिशन लेकर डॉक्टरी की पढ़ाई करने लगते हैं. लेकिन जब वे भारत लौटते हैं तो उन्हें फिर से यहां एमसीआई द्वारा आयोजित परीक्षा देनी पड़ती है. जिसे पास करने में कई छात्रों को चार से पांच साल तक लग जाता है. ऐसे में बाहर से पढ़कर आये छात्रों की चिकित्सा सेवा पर सवाल उठते रहते हैं.

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सरगुजा: भारत की चिकित्सा प्रणाली को दुनिया की सबसे बेहतर चिकित्सा प्रणालियों में से एक कहा जाता है. भारत के डॉक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को ब्रिटेन, अमेरिका और गल्फ कंट्री के चिकित्सा प्रणाली की रीढ़ भी कहा जाता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में भारत की चिकित्सा प्रणाली में कई तरह की खामियां सामने आई हैं.

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बताया जा रहा है कि, भारत की चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता में विदेश से डिग्री लेकर आये डॉक्टरों के कारण कमी आई है. इस मामले में जानकारों का कहना है कि यहां का पर्यावरण और खान-पान दूसरे देशों के पर्यावरण और खान-पान से काफी अलग है. दूसरे देशों में पर्यावरण और खान-पान के हिसाब से वहां की बीमारियां भी भारत से काफी अलग हैं. ऐसे में विदेश से पढ़कर आये डॉक्टरों को यहां बीमारियों को समझने में काफी वक्त लग जाता है. इस दौरान वे प्रैक्टिस भी करते रहते हैं. ऐसे में कई मरीजों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है.

सरगुजा के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ पीएस सिसोदिया बताते हैं कि, विदेश से पढ़कर आने वाले छात्रों को भारत में एक विशेष परीक्षा देनी पड़ती है., जिसमें पास होने के बाद ही उन्हें रजिस्टर्ड डॉक्टर माना जाता है. उन्होंने बताया कि, कम फीस और बिना किसी प्रवेश परीक्षा दिए युवा विदेश में सीधे एडमिशन लेकर डॉक्टरी की पढ़ाई करने लगते हैं. लेकिन जब वे भारत लौटते हैं तो उन्हें फिर से यहां एमसीआई द्वारा आयोजित परीक्षा देनी पड़ती है. जिसे पास करने में कई छात्रों को चार से पांच साल तक लग जाता है. ऐसे में बाहर से पढ़कर आये छात्रों की चिकित्सा सेवा पर सवाल उठते रहते हैं.

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Intro:सरगुजा : समाज की सबसे अहम जरूरत चिकित्सा सेवा और इस सेवा के सबसे प्रमुख अंग डॉक्टर, इन डाक्टरों की योग्यता को लेकर आम समाज मे अलग अलग मत पाया जाता है, ज्यादातर लोग विदेश से पढ़कर आये डक्टरों को ज्यादा तवज्जो देते हैं एक आम धारणा होती है की विदेश से पढ़ने के बाद ज्यादा अनुभव और ज्यादा बेहतर इलाज वह डाक्टर कर सकता है, पर क्या आपको पता है की भारत मे एक छात्र एमबीबीएस बनने के लिये कितनी मेहनत करता है और विदेशों में इसकी क्या प्रक्रिया है, इस संबंध में हमने पड़ताल की सीनियर डॉक्टर और एजुकेशनल कंसल्टेंट से उनका मत जाना की आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है। लेकिन इन एक्सपर्ट्स की राय आम राय से बिल्कुल अलग हैं, एजुकेशनल कंसल्टेंट बताते हैं की भारत मे एमबीबीएस में एडमिशन में लिए नीट का एग्जाम निकलना होता है, जबकी अब तक तो विदेश में जाकर पढ़ने वाले लोग बिना नीट निकाले ही प्रवेश पा जाते हैं, जाहिर है की शुरुआत से ही प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, इनका मत यह भी है की विदेशो की जलवायु और बीमारियां और हमारे देश की जलवायु और बीमारियां बिलकुल भिन्न है, लिहाजा वहां से पढ़कर आने के बाद उन डाक्टरों को भारत की बीमारी के संबंध में भी अनुभव कम होता है।

बाइट01_दीपांकर दत्ता (एजुकेशनल कंसल्टेंट)

वहीं जिले के मुख्य चिकित्सा एवम स्वास्थ्य अधिकारी जो खुद एक वरिष्ठ सर्जन हैं उनका भी मत इस मामले में बिल्कुल साफ हैं उनका कहना है की भारत मे पढ़ने वाले बच्चे विदेश में पढ़ने वाले बच्चों से कहीं ज्यादा काबिल होते हैं, बल्कि विश्व मे सबसे अच्छी चिकित्सा शिक्षा हमारे देश मे दी जाती है, उन्होंने ऐसे कई नामचीन लोगो के उदाहरण भी दिये जिनके निजी चिकित्सक भारतीय रहे हैं। इतना ही नही सबसे अहम बात तो यह हैं की विदेश से एमबीबीएस करने के बाद भारत मे एमसीआई के द्वारा एक परीक्षा ली जाती है और उस परीक्षा को पास किये बिना भारत मे डाक्टर की प्रैक्टिस भी करना गैरकानूनी है, और इस परीक्षा को पास करना विदेश में पढ़े लोगो के लिए इतना आसान नही होता है ।

वन_टू_वन_डॉ पी एस सिसोदिया (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी)

बहरहाल विशेषज्ञों के मत से यह बात तो साफ है की स्वदेशी एमबीबीएस विदेशी एमबीबीएस से ज्यादा काबिल हैं, कठिन इम्तिहान और लंबी पढ़ाई के बाद एमबीबीएस बनकर आये डाक्टर विदेश में आसान शिक्षा प्राप्त चिकित्सकों से ज्यादा काबिल हैं। लेकिन सवाल यह है की इस क्या विदेश से पढ़कर आने के बाद सभी डाक्टरों ने एमसीआई की मान्यता ली है या यूँ ही चल रहे हैं अस्पताल।


Body:सरगुजा : समाज की सबसे अहम जरूरत चिकित्सा सेवा और इस सेवा के सबसे प्रमुख अंग डॉक्टर, इन डाक्टरों की योग्यता को लेकर आम समाज मे अलग अलग मत पाया जाता है, ज्यादातर लोग विदेश से पढ़कर आये डक्टरों को ज्यादा तवज्जो देते हैं एक आम धारणा होती है की विदेश से पढ़ने के बाद ज्यादा अनुभव और ज्यादा बेहतर इलाज वह डाक्टर कर सकता है, पर क्या आपको पता है की भारत मे एक छात्र एमबीबीएस बनने के लिये कितनी मेहनत करता है और विदेशों में इसकी क्या प्रक्रिया है, इस संबंध में हमने पड़ताल की सीनियर डॉक्टर और एजुकेशनल कंसल्टेंट से उनका मत जाना की आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है। लेकिन इन एक्सपर्ट्स की राय आम राय से बिल्कुल अलग हैं, एजुकेशनल कंसल्टेंट बताते हैं की भारत मे एमबीबीएस में एडमिशन में लिए नीट का एग्जाम निकलना होता है, जबकी अब तक तो विदेश में जाकर पढ़ने वाले लोग बिना नीट निकाले ही प्रवेश पा जाते हैं, जाहिर है की शुरुआत से ही प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, इनका मत यह भी है की विदेशो की जलवायु और बीमारियां और हमारे देश की जलवायु और बीमारियां बिलकुल भिन्न है, लिहाजा वहां से पढ़कर आने के बाद उन डाक्टरों को भारत की बीमारी के संबंध में भी अनुभव कम होता है।

बाइट01_दीपांकर दत्ता (एजुकेशनल कंसल्टेंट)

वहीं जिले के मुख्य चिकित्सा एवम स्वास्थ्य अधिकारी जो खुद एक वरिष्ठ सर्जन हैं उनका भी मत इस मामले में बिल्कुल साफ हैं उनका कहना है की भारत मे पढ़ने वाले बच्चे विदेश में पढ़ने वाले बच्चों से कहीं ज्यादा काबिल होते हैं, बल्कि विश्व मे सबसे अच्छी चिकित्सा शिक्षा हमारे देश मे दी जाती है, उन्होंने ऐसे कई नामचीन लोगो के उदाहरण भी दिये जिनके निजी चिकित्सक भारतीय रहे हैं। इतना ही नही सबसे अहम बात तो यह हैं की विदेश से एमबीबीएस करने के बाद भारत मे एमसीआई के द्वारा एक परीक्षा ली जाती है और उस परीक्षा को पास किये बिना भारत मे डाक्टर की प्रैक्टिस भी करना गैरकानूनी है, और इस परीक्षा को पास करना विदेश में पढ़े लोगो के लिए इतना आसान नही होता है ।

वन_टू_वन_डॉ पी एस सिसोदिया (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी)

बहरहाल विशेषज्ञों के मत से यह बात तो साफ है की स्वदेशी एमबीबीएस विदेशी एमबीबीएस से ज्यादा काबिल हैं, कठिन इम्तिहान और लंबी पढ़ाई के बाद एमबीबीएस बनकर आये डाक्टर विदेश में आसान शिक्षा प्राप्त चिकित्सकों से ज्यादा काबिल हैं। लेकिन सवाल यह है की इस क्या विदेश से पढ़कर आने के बाद सभी डाक्टरों ने एमसीआई की मान्यता ली है या यूँ ही चल रहे हैं अस्पताल।


Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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