सरगुजा: आपके घर आकर आपका हाल पूछने वाली काकी, गर्भ धारण से प्रसव तक आपकी सेहत पूछने वाली दीदी, नवजात के जन्म से बड़े होते तक उसके टीकाकरण सहित अन्य बीमारियों का ख्याल रखने वाली ताई, जिन्हें देश भर में आशा कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ में मितानिन के नाम से जाना जाता है, वे अपने हक के लिए लड़ रही हैं. ठंड हो, तपती धूप हो या फिर मूसलाधार बारिश दिन रात 24 घंटे एक कर वे सबकी सेवा के लिए तैयार रहती हैं लेकिन उन्हें इस सेवा के बदले महज मानदेय हासिल होता है.
ठंड हो, तपती धूप हो या फिर मूसलाधार बारिश दिन रात 24 घंटे मेडिकल इमरजेंसी जैसी सेवा के लिये ये आशा कार्यकर्ता आपकी सेवा में हाजिर रहती हैं. कोविड के दौर में भी फ्रंट लाइन कोरोना वारियर्स का काम किया. जी-जान लगाकर काम करने वाली इन मितानिनों को इंसेंटिव यानी मिनिमम वेज मिलता है. सरकार इन्हें जितना काम, उतना पैसा देती है. इन्हें मिलने वाला मानदेय केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त बजट से दिया जाता है. मितानिनें वेतन निर्धारण और स्वास्थ्य विभाग में संविलियन की मांग कर रही हैं. जिससे वे अपने परिवार की परवरिश ठीक से कर सकें.
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सरकार से नाराज हैं मितानिनें
ETV भारत ने इन आशा कार्यकर्ताओं से बात की तो वे सरकार से नाराज नजर आईं. मितानिनें वेतन निर्धारण और स्वास्थ्य विभाग में संविलियन की मांग कर रही हैं क्योंकि इनका काम बेहद कठिन और जिम्मेदारी वाला है. शासन की लगभग सभी योजनाओं के प्रसार में इनका उपयोग किया जाता है. लेकिन कई ऐसे काम हैं, जिनका उन्हें भुगतान नहीं किया जाता है. कोविड के दौर में भी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग जैसे काम में उन्हें अलग से भुगतान नहीं किया गया. इतना ही नहीं कोरोना काल में काम के दौरान उन्हें मास्क और सैनिटाइजर तक नहीं बांटा गया.सरगुजा में स्वास्थ्य विभाग ने इन्हें मास्क और सैनिटाइजर खुद खरीदने के लिए कहा. हालांकि इन सबके बीच कुछ संवेदनशील अधिकारियों ने मानवता दिखाते हुए जरूरी सामान के इंतजाम जरूर किए. लेकिन सरकार के हाथ तब भी इनके लिए खाली ही रहे.
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क्या करती हैं आशा कार्यकर्ता ?
- मोहल्ले व गांव में गंभीर मरीज की पहचान करना फिर उसे उचित अस्पताल में जाने की सलाह देना. जरूरत पड़ने पर खुद अस्पताल तक ले जाना.
- गर्भवती महिलाओं का पता लगाना .9 महीने तक गर्भवती महिलाओं की जांच व इलाज के लिये उसे समय समय पर अस्पताल जाने को प्रेरित करना.
- संस्थागत प्रसव के लिये प्रेरित करना और अस्पताल में लाकर प्रसव कराना.
- प्रसव के बाद नवजात शिशु के स्वास्थ्य सहित टीकाकरण की भी जिम्मेदार इन्हीं पर होती है.
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अपने खर्च से पहुंचाती हैं अस्पताल
स्वास्थ्य विभाग कहता है कि मितानिनें सिर्फ जागरूक करने के लिए हैं. जबकि आशा कार्यकर्ताओं को उस काम का मानदेय तब मिलता है, जब मरीज सरकारी अस्पताल में इलाज कराए. लिहाजा मितानिन बहनें खुद ही मरीजों को लेकर अपने खर्च से अस्पताल पहुंचती हैं, इससे उनका फायदा नुकसान में बदल जाता है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने भी की थी सराहना
सरगुजा में मगदली जैसी आशा कार्यकर्ता भी हैं जो पहाड़ चढ़कर ग्रामीणों की मदद को जाती हैं, यहां मितानिन ऐसा काम करती हैं की वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) इनके वायरल वीडियो को ट्वीट कर इनकी सराहना करता है. प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव बार-बार मंच से या ट्विटर पर मितानिन बहनों की तारीफ करते नहीं थकते हैं.
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स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव अक्सर सरगुजा में आशा कार्यकर्ताओं के साथ समय गुजारते हैं और उन्हें सम्मानित करते हैं. इधर केंद्र सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं के जरिए काम तो शुरू करा दिया लेकिन अब इनकी माली हालत और काम के बोझ के बीच समन्वय स्थापित करने वाला कोई नहीं है.