ETV Bharat / state

पहले इन सीटों पर होते थे 2 सांसद, छत्तीसगढ़ की ये सीट भी थी शामिल - 86 सीटों पर चुने जाते थे 2 प्रतिनिधि

देश की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान बना. देश में पहले आम चुनाव की कवायद 25 अक्टूबर 1951 से शुरू हुई, जो 21 फरवरी 1952 तक चली. पहला आम चुनाव कराने में 4 महीने का वक्त लग गया था. लेकिन उस समय होने वाले चुनाव में बड़ा ही रोचक तथ्य सामने आया है.

सरगुजा में चुने गए थे 2 सांसद
author img

By

Published : May 30, 2019, 1:19 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

सरगुजा: देश की 17वीं लोकसभा का चुनाव हो चुका है और आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ भी लेंगे. नरेंद्र मोदी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. आम चुनाव के दौरान लगातार हमने आप तक कई नई जानकारियां पहुंचाई हैं. आज हम आपको कुछ ऐसी जानकारी देने जा रहे हैं, जो शायद आपने नहीं सुनी होंगी.

सरगुजा में चुने गए थे 2 सांसद

15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान बना. देश में पहले आम चुनाव की कवायद 25 अक्टूबर 1951 से शुरू हुई, जो 21 फरवरी 1952 तक चली. पहला आम चुनाव कराने में 4 महीने का वक्त लग गया था. लेकिन उस समय होने वाले चुनाव में बड़ा ही रोचक तथ्य सामने आया है.

86 सीटों पर चुने जाते थे 2 प्रतिनिधि
उस वक्त देश में 489 लोकसभा सीटें थीं लेकिन संसदीय क्षेत्र 401 थे. 314 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे जहां सिर्फ एक एक ही प्रतिनिधि चुने जाते थे, और 86 संसदीय क्षेत्र देश में ऐसे थे जहां एक साथ 2 सांसद चुने जाते थे. इसमें एक सांसद सामान्य वर्ग से तो दूसरा एसटीएससी/ एससी समुदाय से चुना गया था.

तब सरगुजा में चुने गए थे 2 सांसद
इन्हीं 86 संसदीय सीट में से एक थी सरगुजा लोकसभा सीट, जिसमें सरगुजा और रायगढ़ को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र हुआ करता था और सरगुजा संसदीय सीट पर 1952 में दो सांसद चुने गए थे.

ये दोनों चुने गए थे सांसद
जानकार बताते हैं कि सामान्य वर्ग से सरगुजा राज परिवार के चंडीकेश्वर सिंह देव और आरक्षित वर्ग से बाबूलाल सिंह सरगुजा लोकसभा से एक साथ सांसद थे. इस चुनाव में बाबूलाल सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी थे तो वहीं चंडीकेश्वर सिंह का चुनाव चिन्ह तीर कमान था.

क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा इस प्रक्रिया को बेहतर मानते हैं. उनका मानना है कि पहले की व्यवस्था ज्यादा बेहतर थी क्योंकि पिछड़े को आरक्षण देकर आगे बढ़ना अच्छी पहल है. गोविंद शर्मा दो सांसदों की व्यवस्था को सही मानते हैं.

अभी है एकल सांसद व्यवस्था
बहरहाल देश में आरक्षित सीटों पर एकल सांसद की व्यवस्था बन गई है. इसमें देश स्तर पर तो सामूहिक नेतृत्व में काम चल जाता है, लेकिन अगर एक संसदीय क्षेत्र के नेतृत्व की बात करें तो वाकई यह बात देखने को मिलती है कि सरगुजा जैसे क्षेत्रों में आरक्षित वर्ग के सांसदों की उपलब्धि कुछ खास नहीं होती है.
2014 में ही चुनकर आए सांसद कमलभान सिंह ने 5 वर्षों तक क्षेत्र के लिए न के बराबर काम किया, चुनाव के पहले उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी.

सरगुजा: देश की 17वीं लोकसभा का चुनाव हो चुका है और आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ भी लेंगे. नरेंद्र मोदी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. आम चुनाव के दौरान लगातार हमने आप तक कई नई जानकारियां पहुंचाई हैं. आज हम आपको कुछ ऐसी जानकारी देने जा रहे हैं, जो शायद आपने नहीं सुनी होंगी.

सरगुजा में चुने गए थे 2 सांसद

15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान बना. देश में पहले आम चुनाव की कवायद 25 अक्टूबर 1951 से शुरू हुई, जो 21 फरवरी 1952 तक चली. पहला आम चुनाव कराने में 4 महीने का वक्त लग गया था. लेकिन उस समय होने वाले चुनाव में बड़ा ही रोचक तथ्य सामने आया है.

86 सीटों पर चुने जाते थे 2 प्रतिनिधि
उस वक्त देश में 489 लोकसभा सीटें थीं लेकिन संसदीय क्षेत्र 401 थे. 314 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे जहां सिर्फ एक एक ही प्रतिनिधि चुने जाते थे, और 86 संसदीय क्षेत्र देश में ऐसे थे जहां एक साथ 2 सांसद चुने जाते थे. इसमें एक सांसद सामान्य वर्ग से तो दूसरा एसटीएससी/ एससी समुदाय से चुना गया था.

तब सरगुजा में चुने गए थे 2 सांसद
इन्हीं 86 संसदीय सीट में से एक थी सरगुजा लोकसभा सीट, जिसमें सरगुजा और रायगढ़ को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र हुआ करता था और सरगुजा संसदीय सीट पर 1952 में दो सांसद चुने गए थे.

ये दोनों चुने गए थे सांसद
जानकार बताते हैं कि सामान्य वर्ग से सरगुजा राज परिवार के चंडीकेश्वर सिंह देव और आरक्षित वर्ग से बाबूलाल सिंह सरगुजा लोकसभा से एक साथ सांसद थे. इस चुनाव में बाबूलाल सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी थे तो वहीं चंडीकेश्वर सिंह का चुनाव चिन्ह तीर कमान था.

क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा इस प्रक्रिया को बेहतर मानते हैं. उनका मानना है कि पहले की व्यवस्था ज्यादा बेहतर थी क्योंकि पिछड़े को आरक्षण देकर आगे बढ़ना अच्छी पहल है. गोविंद शर्मा दो सांसदों की व्यवस्था को सही मानते हैं.

अभी है एकल सांसद व्यवस्था
बहरहाल देश में आरक्षित सीटों पर एकल सांसद की व्यवस्था बन गई है. इसमें देश स्तर पर तो सामूहिक नेतृत्व में काम चल जाता है, लेकिन अगर एक संसदीय क्षेत्र के नेतृत्व की बात करें तो वाकई यह बात देखने को मिलती है कि सरगुजा जैसे क्षेत्रों में आरक्षित वर्ग के सांसदों की उपलब्धि कुछ खास नहीं होती है.
2014 में ही चुनकर आए सांसद कमलभान सिंह ने 5 वर्षों तक क्षेत्र के लिए न के बराबर काम किया, चुनाव के पहले उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी.

Intro:सरगुजा : देश की 17 वीं लोकसभा का चुनाव हो चुका है और इस आम चुनाव में नरेंद्र मोदी एनडीए के नेता के रूप में प्रधानमंत्री होंगे, चुनावी समर में बहोत सी जानकारियां सामने आई, लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसी जानकारी देने जा रहे हैं, जो शायद आपने नही सुनी होगी।

दरअसल 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान बना और देश मे पहले आम चुनाव की कवायद 25 अक्टूबर 1951 से शुरू हुई और 21 फरवरी 1952 तक चली, पहला आम चुनाव कराने में 4 महीने का वक्त लग गया था। लेकिन इस समय होने वाले चुनाव में बड़ा ही रोचक तथ्य सामने आया है, दरअसल इस समय देश में 489 लोकसभा सीटें थीं लेकिन संसदीय क्षेत्र 401 थे, 314 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे जहां सिर्फ एक एक ही प्रतिनिधि चुने जाते थे, और 86 संसदीय क्षेत्र देश मे ऐसे थे जहां एक साथ 2 सांसद चुने जाते थे, इसमे एक सांसद सामान्य वर्ग से तो दूसरा एसटीएससी/एससी समुदाय से चुना गया था। इन्ही 86 संसदीय सीट में से थी एक सरगुजा लोकसभा जिसमे सरगुजा और रायगढ़ को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र हुआ करता था, और सरगुजा संसदीय सीट में 1952 में दो संसद चुने गए थे।

जानकार बताते हैं की सामान्य वर्ग से सरगुजा राज परिवार के चंडीकेश्वर सिंह देव और आरक्षित वर्ग से बाबूलाल सिंह सरगुजा लोकसभा से एक साथ सांसद रहने वाले सांसद थे, इस चुनाव में बाबूलाल सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी थे तो वहीं चंडीकेश्वर सिंह का चुनाव चिन्ह तीर कमान था।





Body:इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा इस प्रक्रिया को बेहतर मानते हैं, उनका मानना है की पहले की व्यवस्था ज्यादा बेहतर थी, क्योकी पिछड़े को आरक्षण देकर आगे बढ़ना अच्छी पहल है, पर जो खुद पिछड़ा है उसे नेतृत्व सौंपा जाए ये सही नही है, जो खुद पिछड़ा है वो देश को आगे कैसे ले जाएगा, लिहाजा दो सांसदों की व्यवस्था को वो सही मानते हैं, बहरहाल देश मे आरक्षित सीटों पर एकल संसद की व्यवस्था बन गई है, इसमे देश स्तर पर तो सामूहिक नेतृत्व में काम चल जाता है, लेकिन अगर एक संसदीय क्षेत्र के नेतृत्व की बात करें तो वाकई यह बात देखने को मिलती है की सरगुजा जैसे क्षेत्रों में आरक्षित वर्ग के सांसदों की उपलब्धि कुछ खास नही होती है, 2014 में ही चुनकर आये सांसद कमलभान सिंह 5 वर्षो तक क्षेत्र के लिए कुछ ना कर सके और चुनाव के पहले उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी।


बाईट01_गोविंद शर्मा (सामाजिक चिंतक)

बाईट02_अब्दुल रसीद सिद्दीक़ी (वरिष्ठ अधिवक्ता)

देश दीपक सरगुजा


Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.