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सावन स्पेशल: प्रकृति की गोद में बसा है भोला पठार, पूरी होती है हर मनोकामना

सावन का पूरा महीना ही भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है. कहते हैं अगर भगवान भोलेनाथ को पूरी श्रद्धा से याद किया जाए, तो भोलेनाथ भक्तों की हर मनोकामनां पूरी करते हैं. इस सावन में आज हम आपको छत्तीसगढ़ के कैलाश पर्वत का दर्शन करा रहे हैं, जो प्रकृति की गोद में बसे इस सुंदर पहाड़ पर स्वयं भगवान शिव का वास है.

bhola pathar
भोला पठार
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Published : Jul 13, 2020, 9:21 PM IST

Updated : Jul 22, 2020, 7:27 PM IST

बालोद: शहर से राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 930 के रेगुलर गांव से कुछ ही दूरी पर प्रकृति की गोद में एक सुंदर सा पहाड़ है, जिसे भोला पठार के नाम से जाना जाता है. पहाड़ी पर बसे इस मंदिर के प्रति लोगों में काफी आस्था है. इस मंदिर में भोलेनाथ के साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी है. भोला पठार को छत्तीसगढ़ के कैलाश के रूप में भी जाना जाता है.

प्रकृति की गोद में बसा भोला पठार

यह पठार 400 फीट की ऊंची है. मंदिर तक पहुंचने के लिए लोगों को लगभग 200 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है. कहा जाता है कि माता सीता के हरण के बाद जब भगवान राम उन्हें ढूंढने निकले थे तो वे इस पहाड़ी से होकर गुजरे थे. इस दौरान माता पार्वती ने भगवान राम की परीक्षा ली थी, जिस कारण इसे दंडकारण्य क्षेत्र भी कहा जाता है. भगवान राम से भेंट करने के लिए भगवान भोलेनाथ भी इस पहाड़ पर पहुंचे थे.

पढ़ें: SPECIAL: सावन के दूसरे सोमवार पर करिए भगवान विश्वकर्मा के बनाए शिव मंदिर के दर्शन

बताया जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने कैलाश पर्वत पर वापस जाने से पहले यहां अपना एक भक्त छोड़ा था, ताकि लोग भविष्य में इस जगह के बारे में जान सकें. लोग बताते हैं कि भगवान के उस भक्त को बुझा भगत के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि गवान शिव उन्हें नींद से उठाकर यहां ले आते थे और वे भगवान शिव की पूजा अर्चना करते थे. बुझा भगत से ही इस मंदिर की पहचान हुई है. सावन और महाशिवरात्रि में यहां हजारों की संख्या में भक्त आते हैं. लोगों का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मुरादें पूरी होती है.

कुंड जो कभी नहीं सूखता

बताया जाता है कि मंदिर में एक ऐसा कुंड है, जो कभी नहीं सूखता है. इस कुंड को शिव कमंडल के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि इस कुंड में 12 महीने पानी भरा रहता है. लोग बताते हैं कि इस कुंड के पानी से कई तरह की बीमारियों का इलाज होता है. मंदिर के सचिव बताते हैं कि इस कुंड के पानी से मानसिक तौर पर बीमार लोगों का ईलाज होता है. इसके अलावा शारीरिक समस्या जैसे चर्म रोग, खुजली आदि बीमारी भी इस कुंड के पानी से ठीक हो जाता है.

पढ़ें: डोंगरगांव: सावन का पहला सोमवार और बंद रहे मंदिर के पट

भक्त बताते हैं कि इस मंदिर में जो सुख और शांति की अनुभूति होती है वो बहुत सुकून देने वाली है. हर साल सावन सोमवार में यहां भव्य मेले का आयोजन होता है, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण की वजह से ऐसा नहीं हुआ. इस साल यहां भक्तों की संख्या हर साल से कम ही रही है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.

बालोद: शहर से राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 930 के रेगुलर गांव से कुछ ही दूरी पर प्रकृति की गोद में एक सुंदर सा पहाड़ है, जिसे भोला पठार के नाम से जाना जाता है. पहाड़ी पर बसे इस मंदिर के प्रति लोगों में काफी आस्था है. इस मंदिर में भोलेनाथ के साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी है. भोला पठार को छत्तीसगढ़ के कैलाश के रूप में भी जाना जाता है.

प्रकृति की गोद में बसा भोला पठार

यह पठार 400 फीट की ऊंची है. मंदिर तक पहुंचने के लिए लोगों को लगभग 200 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है. कहा जाता है कि माता सीता के हरण के बाद जब भगवान राम उन्हें ढूंढने निकले थे तो वे इस पहाड़ी से होकर गुजरे थे. इस दौरान माता पार्वती ने भगवान राम की परीक्षा ली थी, जिस कारण इसे दंडकारण्य क्षेत्र भी कहा जाता है. भगवान राम से भेंट करने के लिए भगवान भोलेनाथ भी इस पहाड़ पर पहुंचे थे.

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बताया जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने कैलाश पर्वत पर वापस जाने से पहले यहां अपना एक भक्त छोड़ा था, ताकि लोग भविष्य में इस जगह के बारे में जान सकें. लोग बताते हैं कि भगवान के उस भक्त को बुझा भगत के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि गवान शिव उन्हें नींद से उठाकर यहां ले आते थे और वे भगवान शिव की पूजा अर्चना करते थे. बुझा भगत से ही इस मंदिर की पहचान हुई है. सावन और महाशिवरात्रि में यहां हजारों की संख्या में भक्त आते हैं. लोगों का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मुरादें पूरी होती है.

कुंड जो कभी नहीं सूखता

बताया जाता है कि मंदिर में एक ऐसा कुंड है, जो कभी नहीं सूखता है. इस कुंड को शिव कमंडल के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि इस कुंड में 12 महीने पानी भरा रहता है. लोग बताते हैं कि इस कुंड के पानी से कई तरह की बीमारियों का इलाज होता है. मंदिर के सचिव बताते हैं कि इस कुंड के पानी से मानसिक तौर पर बीमार लोगों का ईलाज होता है. इसके अलावा शारीरिक समस्या जैसे चर्म रोग, खुजली आदि बीमारी भी इस कुंड के पानी से ठीक हो जाता है.

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भक्त बताते हैं कि इस मंदिर में जो सुख और शांति की अनुभूति होती है वो बहुत सुकून देने वाली है. हर साल सावन सोमवार में यहां भव्य मेले का आयोजन होता है, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण की वजह से ऐसा नहीं हुआ. इस साल यहां भक्तों की संख्या हर साल से कम ही रही है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.

Last Updated : Jul 22, 2020, 7:27 PM IST
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