रायपुर : दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिनके रहने का कोई एक ठिकाना नहीं है. वे एक जगह से दूसरे जगह पर भटकते रहते हैं. रिफ्यूजी या शरणार्थी उन्हें कहा जाता है जिन्हें युद्ध, प्रताड़ना, आपदा, बाढ़, संघर्ष, महामारी, पलायन, हिंसा इन सबमें से किसी भी वजह से एक जगह को छोड़कर दूसरी जगह पर जाने को मजबूर होना पड़ता है.
कब मनाया गया विश्व शरणार्थी दिवस : दिसंबर 2000 में संयुक्त राष्ट्र ने 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाने का निर्णय लिया था. तब से हर साल 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. वर्ल्ड रिफ्यूजी डे को विश्व शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) भी कहा जाता है. संयुक्त राष्ट्र में इसके लिए एक संस्था भी बनाई गई है जिसका नाम है United Nations High Commissioner for Refugees (UNHCR) है, जो विश्व भर के शरणार्थियों की मदद का काम करती है.
कौन होते हैं शरणार्थी : सयुंक्त राष्ट्र की शरणार्थी सम्मलेन 1951 के अनुसार एक शरणार्थी वह है जो अपनी जाति, धर्म, किसी विशेष सामाजिक समूह में सदस्यता या राजनितिक विचारों के लिए उत्पीड़न के भय के कारण अपने घर और देश छोड़कर भाग गया हो. इसके साथ कई शरणार्थी प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदा के प्रभाव से बचने के लिए निर्वासित होते हैं. साल में कई लोग युद्ध, उत्पीड़न या आतंक से बचने के लिए अपना घर छोड़ने को मजबूर होते हैं. शरणार्थी किसी देश या स्थान की शरण के लिए दर-दर भटकते हैं. लेकिन शरणार्थी की स्थिति के उनके दावे का अभी तक निश्चित रूप से मूल्यांकन नहीं किया गया है कि वे भगाए गए हैं.
कैसे मिलती है शरणार्थियों को मदद : शरणार्थी सम्मलेन 1951 और इसके 1967 के प्रोटोकॉल से विश्व भर के शरणार्थियों को काफी हद तक मदद मिली है. यह विश्व में केवल कानूनी उपकरण है जो शरणार्थियों के जीवन के पहलुओं को स्पष्ट रूप से कवर करता है.इस सम्मलेन में कई प्रकार के अधिकारों को शामिल किया गया है. अपने मेजबान देश के प्रति शरणार्थी के दायित्वों पर प्रकाश डाला गया है. इस सम्मेलन की आधारशिला वह सिद्धांत है जिसके तहत एक शरणार्थी को उस देश में वापस नहीं भेजना चाहिए,जहां उसके जीवन और स्वतंत्रता को खतरा है. लेकिन इसके साथ ही इस सरंक्षण का दावा वह शरणार्थी नहीं कर सकता, जिन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा समझा जाता हो, या जो विशेष रूप से किसी गंभीर अपराध के दोषी ठहराए गए हों.
भारत में शरणार्थियों की स्थिति : भारत में बिना वैध भारतीय नागरिकता वाले लोगों को अवैध प्रवासियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है. चूंकि भारत 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए सयुंक्त राष्ट्र के शरणार्थियों के लिए गैर-शोधन और निष्कासन के सिद्धांत भारत में लागू नहीं (Status of refugees in India) होते. भारतीय राष्ट्रीयता कानून, नागरिकता अधिनियम (भारत के संविधान के अनुच्छेद 5 से 11) द्वारा शासित है, जिसे 1955 में पारित किया गया, और जिसमें नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) बनाया गया था. इसमें 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 में संशोधन किया गया.
भारत में किन्हें मिली है मान्यता : जब से भारत स्वतंत्र हुआ है तब से भारत की सरकार ने केवल तिब्बत और श्रीलंका के कानूनी अप्रवासियों को मान्यता दी है. 12 दिसंबर 2019 को संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित (citizenship amendment bill) होने के बाद, 31 दिसंबर 2014 से पहले, भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये हिन्दू, जैन, पार्सिस, क्रिस्चियन, सिख और बुद्धिस्ट जैसे उत्पीड़त अल्पसंख्यक समुदायों के प्रवासी लोग भारतीय नागरिकता के पात्र होंगे. इसमें मुस्लिम समाज को जो इन देशों में बहुसंख्यक हैं इस कानून से बाहर रखा गया है.