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मातृ शक्ति को नमन: डर के बीच में कोरोना को हराने का जुनून लेकर कोविड वार्ड में उतरी फ्रंटलाइन वॉरियर अभिलाषा - Corona Warrior Abhilasha Gujarati

नवरात्र के पर्व पर ETV भारत उन दुर्गा रूपी नारियों से रूबरू करा रहा है, जिन्होंने अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत से मिसाल पेश की है. कोरोना संक्रमण में जब सभी लोग घर में रहकर खुद को इस बीमारी से सुरक्षित करने में जुटे थे, उस वक्त रायपुर के मेकाहारा अस्पताल की असिस्टेंट नर्स सुपरिटेंडेंट अभिलाषा गुजराती ने कोविड वार्ड में ड्यूटी करते हुए लोगों को ठीक करने की कोशिश में जुटी रही. एक नजर इस खास बातचीत पर...

Special interview with Frontline Corona Warrior Abhilasha Gujarati
फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर अभिलाषा से खास बातचीत
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Published : Oct 22, 2020, 2:29 PM IST

Updated : Oct 22, 2020, 3:27 PM IST

रायपुर: जिस समय कोरोना वायरस ने छत्तीसगढ़ में दस्तक दी थी उस समय मेडिकल स्टाफ के बीच एक डर भी था और इस बीमारी को लेकर कई सवाल भी थे. बीमारी नई थी इसलिए इसे लेकर किसी को कोई अनुभव नहीं था. इस दौरान मेकाहारा की असिस्टेंट नर्स सुपरिटेंडेंट अभिलाषा गुजराती की एम्स के कोविड केयर वार्ड में ड्यूटी लगाई गई. फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए दिन-रात कोविड वार्ड में मरीजों को स्वस्थ करने में जुटी रही. घर में छोटे बच्चों को छोड़कर अभिलाषा ने अपना दायित्व बखूबी निभाया. लॉकडाउन से लेकर अब तक स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासनिक क्षेत्र में महिलाएं अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं. ETV भारत नवरात्रि के पावन पर्व पर छत्तीसगढ़ की ऐसी ही महिलाओं से आपको रूबरू करा रहा है. नवरात्र के छठे दिन हमने अभिलाषा गुजराती से उनके अनुभव के विषय में बातचीत की.

फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर अभिलाषा से खास बातचीत

पढ़ें-कोरोना वॉरियर कामिनी साहू ने जगाई शिक्षा की अलख, लाखों बच्चों की संवार रहीं जिंदगी

लड़कियों को ज्यादा न पढ़ाने और कम उम्र में ही शादी कर देने वाले बैकग्राउंड से ऊपर उठकर नर्स की जिम्मेदारी निभाना अभिलाषा के लिए आसान काम नहीं था. कोरबा से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए अभिलाषा ने मेडिकल फील्ड में अपनी सेवा देने का फैसला लिया. रायपुर से नर्सिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अभिलाषा बतौर नर्स समाजसेवा में जुट गई.

सवाल:जब कोविड-19 वार्ड में पहली बार आपकी ड्यूटी लगाई गई तो वह कितना चैलिंजिंग रहा आपके लिए?

जवाब: कोविड-19 हमारे लिए नई बीमारी है और उस समय कोविड-19 से एक भयंकर बीमारी लगती थी और किसी को कुछ पता नहीं था. इसका क्या इलाज है, मेकाहारा अस्पताल में मेरी नौकरी है, लेकिन उस दौरान रायपुर एम्स में मेरी ड्यूटी लगाई गई थी. जब अस्पताल पहुंचे तो वहां के लोगों ने सारी चीजें बताई, कोई स्पेशल ट्रेनिंग करके नहीं गए थे, वहां के स्टाफ का बहुत अच्छा सहयोग था.उस दौरान हमें आइसोलेट होकर रहना था. पति की प्राइवेट नौकरी और छोटे बच्चों को छोड़कर रहना वह भी 28 दिनों के लिए, उस दौरान 14 दिन की ड्यूटी और 14 दिन आइसोलेशन में रहना था. यह एक ऐसा समय था कि हमें कुछ भी नहीं पता था कि कैसे चीजें करनी है, लेकिन हमारे साथियों और फैमिली का उस समय अच्छा सपोर्ट रहा.

पढ़ें- मिलिए रायपुर की स्वच्छता दीदी से, कैसे लॉकडाउन में शहर को बनाए रखा साफ-सुथरा

सवाल:एक ओर महामारी का खतरा और दूसरी तरफ घर, कैसे मैनेज किया सब?

जवाब: उस दौरान घरवालों का बेहद सपोर्ट रहा. बच्चे छोटे थे और बच्चों को भी लगता था कि हमारी मम्मी अच्छा काम करने गई है, लेकिन उस दौरान मुझे भी डर था कि अगर मैं घर जाऊंगी तो मेरी वजह से फैमिली को कुछ प्रॉब्लम न हो इसलिए आइसोलेशन में रहना ही सही था.

सवाल:कोविड वार्ड में इलाज के दौरान कुछ ऐसी परिस्थिति जो आपको याद हो?

जवाब:कोविड-19 बीमारी सभी के लिए नई थी और उस दौरान जब मरीज आते थे थोड़ी सर्दी-खांसी भी होती थी तो वह बहुत डरे हुए रहते थे. मेडिकल स्टाफ से बात नहीं करते थे, मरीज इतना डरे हुए थे कि उनसे हम बात करते थे तो वह कहते कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है और जब टेस्ट कराया जाता उस दौरान भी बहुत पैनिक रहा करते थे. ऐसे में उन लोगों को समझाना बहुत मुश्किल होता था. वह समझना नहीं चाहते थे और वह मानते ही नहीं थे कि उन्हें संक्रमण हो सकता है.

पढ़ें- जब आप अपने काम से किसी की मदद करते हैं तो सुकून मिलता है: डॉ. अंजलि शर्मा

सवाल:लगातार खतरा बढ़ रहा था उस समय आपने फैमिली और अपनी जॉब को कैसे मैनेज किया?

जवाब:जब मेरी कोविड ड्यूटी लगी तो मैं खुद बेहद डरी हुई थी और जब मैंने घर में इस बारे में बताया कि मुझे ड्यूटी के लिए एम्स जाना पड़ेगा. उस समय घरवाले भी बहुत ज्यादा घबरा चुके थे, लेकिन हमें खुद लगा कि हम फ्रंटलाइन वॉरियर थे. इस दौरान हमें आगे रहकर काम करना है और उस दौरान एक खुशी भी थी कि मैं एक अच्छी जगह जा रही हूं. कुछ नया सीखने को मिलेगा. समय ऐसा था कि अपने आप को संभालना और परिवार को संभालना तो बहुत बड़ी चुनौती थी.जब ड्यूटी की जानकारी मिली तो अगले दिन ड्यूटी करना है उस रात मैं सो नहीं पाई. पूरी रात कैसे बीत गई पता ही नहीं चला.

सवाल:इस संक्रमण के दौरान महिलाओं की भूमिका को किस तरफ देखती है आप?

जवाब:महिलाओंं ने कभी हार नहीं मानी, लोगों को ऐसा लगाता है कि महिलाएं कमजोर होती हैं, लेकिन बिहार का केस आपने देखा होगा जहां एक बच्ची अपने पिता को लेकर साइकिल से ही निकल गई. हमारी भी कई नर्स अपने 2 महीने, 8 महीने के बच्चों को छोड़कर ड्यूटी करने के लिए आगे आई थीं. ये समय ऐसा है कि हम सबको लगा कि इस कोरोना को हराना है. हम नहीं डरेंगे हम कोरोना को हरा कर ही रहेंगे.

पढ़ें- हम अगर अपनी जान बचाने घर पर बैठ जाते, तो बाहर न जाने कितनी मौतें हो जातीं: मनजीत कौर बल

सवाल: नारी सशक्तिकरण को लेकर आप समाज से क्या कहना चाहेंगी?
जवाब: बस इतना कहना चाहती हूं कि आप बेटे और बेटियों दोनों को पढ़ाइए जैसे बेटे नाम रोशन करते है वैसे ही बेटियां भी नाम रोशन कर रही हैं. माता-पिता के लिए जितने अहम बेटे है उतनी ही बेटियां भी हैं.

रायपुर: जिस समय कोरोना वायरस ने छत्तीसगढ़ में दस्तक दी थी उस समय मेडिकल स्टाफ के बीच एक डर भी था और इस बीमारी को लेकर कई सवाल भी थे. बीमारी नई थी इसलिए इसे लेकर किसी को कोई अनुभव नहीं था. इस दौरान मेकाहारा की असिस्टेंट नर्स सुपरिटेंडेंट अभिलाषा गुजराती की एम्स के कोविड केयर वार्ड में ड्यूटी लगाई गई. फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए दिन-रात कोविड वार्ड में मरीजों को स्वस्थ करने में जुटी रही. घर में छोटे बच्चों को छोड़कर अभिलाषा ने अपना दायित्व बखूबी निभाया. लॉकडाउन से लेकर अब तक स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासनिक क्षेत्र में महिलाएं अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं. ETV भारत नवरात्रि के पावन पर्व पर छत्तीसगढ़ की ऐसी ही महिलाओं से आपको रूबरू करा रहा है. नवरात्र के छठे दिन हमने अभिलाषा गुजराती से उनके अनुभव के विषय में बातचीत की.

फ्रंटलाइन कोरोना वॉरियर अभिलाषा से खास बातचीत

पढ़ें-कोरोना वॉरियर कामिनी साहू ने जगाई शिक्षा की अलख, लाखों बच्चों की संवार रहीं जिंदगी

लड़कियों को ज्यादा न पढ़ाने और कम उम्र में ही शादी कर देने वाले बैकग्राउंड से ऊपर उठकर नर्स की जिम्मेदारी निभाना अभिलाषा के लिए आसान काम नहीं था. कोरबा से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए अभिलाषा ने मेडिकल फील्ड में अपनी सेवा देने का फैसला लिया. रायपुर से नर्सिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अभिलाषा बतौर नर्स समाजसेवा में जुट गई.

सवाल:जब कोविड-19 वार्ड में पहली बार आपकी ड्यूटी लगाई गई तो वह कितना चैलिंजिंग रहा आपके लिए?

जवाब: कोविड-19 हमारे लिए नई बीमारी है और उस समय कोविड-19 से एक भयंकर बीमारी लगती थी और किसी को कुछ पता नहीं था. इसका क्या इलाज है, मेकाहारा अस्पताल में मेरी नौकरी है, लेकिन उस दौरान रायपुर एम्स में मेरी ड्यूटी लगाई गई थी. जब अस्पताल पहुंचे तो वहां के लोगों ने सारी चीजें बताई, कोई स्पेशल ट्रेनिंग करके नहीं गए थे, वहां के स्टाफ का बहुत अच्छा सहयोग था.उस दौरान हमें आइसोलेट होकर रहना था. पति की प्राइवेट नौकरी और छोटे बच्चों को छोड़कर रहना वह भी 28 दिनों के लिए, उस दौरान 14 दिन की ड्यूटी और 14 दिन आइसोलेशन में रहना था. यह एक ऐसा समय था कि हमें कुछ भी नहीं पता था कि कैसे चीजें करनी है, लेकिन हमारे साथियों और फैमिली का उस समय अच्छा सपोर्ट रहा.

पढ़ें- मिलिए रायपुर की स्वच्छता दीदी से, कैसे लॉकडाउन में शहर को बनाए रखा साफ-सुथरा

सवाल:एक ओर महामारी का खतरा और दूसरी तरफ घर, कैसे मैनेज किया सब?

जवाब: उस दौरान घरवालों का बेहद सपोर्ट रहा. बच्चे छोटे थे और बच्चों को भी लगता था कि हमारी मम्मी अच्छा काम करने गई है, लेकिन उस दौरान मुझे भी डर था कि अगर मैं घर जाऊंगी तो मेरी वजह से फैमिली को कुछ प्रॉब्लम न हो इसलिए आइसोलेशन में रहना ही सही था.

सवाल:कोविड वार्ड में इलाज के दौरान कुछ ऐसी परिस्थिति जो आपको याद हो?

जवाब:कोविड-19 बीमारी सभी के लिए नई थी और उस दौरान जब मरीज आते थे थोड़ी सर्दी-खांसी भी होती थी तो वह बहुत डरे हुए रहते थे. मेडिकल स्टाफ से बात नहीं करते थे, मरीज इतना डरे हुए थे कि उनसे हम बात करते थे तो वह कहते कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है और जब टेस्ट कराया जाता उस दौरान भी बहुत पैनिक रहा करते थे. ऐसे में उन लोगों को समझाना बहुत मुश्किल होता था. वह समझना नहीं चाहते थे और वह मानते ही नहीं थे कि उन्हें संक्रमण हो सकता है.

पढ़ें- जब आप अपने काम से किसी की मदद करते हैं तो सुकून मिलता है: डॉ. अंजलि शर्मा

सवाल:लगातार खतरा बढ़ रहा था उस समय आपने फैमिली और अपनी जॉब को कैसे मैनेज किया?

जवाब:जब मेरी कोविड ड्यूटी लगी तो मैं खुद बेहद डरी हुई थी और जब मैंने घर में इस बारे में बताया कि मुझे ड्यूटी के लिए एम्स जाना पड़ेगा. उस समय घरवाले भी बहुत ज्यादा घबरा चुके थे, लेकिन हमें खुद लगा कि हम फ्रंटलाइन वॉरियर थे. इस दौरान हमें आगे रहकर काम करना है और उस दौरान एक खुशी भी थी कि मैं एक अच्छी जगह जा रही हूं. कुछ नया सीखने को मिलेगा. समय ऐसा था कि अपने आप को संभालना और परिवार को संभालना तो बहुत बड़ी चुनौती थी.जब ड्यूटी की जानकारी मिली तो अगले दिन ड्यूटी करना है उस रात मैं सो नहीं पाई. पूरी रात कैसे बीत गई पता ही नहीं चला.

सवाल:इस संक्रमण के दौरान महिलाओं की भूमिका को किस तरफ देखती है आप?

जवाब:महिलाओंं ने कभी हार नहीं मानी, लोगों को ऐसा लगाता है कि महिलाएं कमजोर होती हैं, लेकिन बिहार का केस आपने देखा होगा जहां एक बच्ची अपने पिता को लेकर साइकिल से ही निकल गई. हमारी भी कई नर्स अपने 2 महीने, 8 महीने के बच्चों को छोड़कर ड्यूटी करने के लिए आगे आई थीं. ये समय ऐसा है कि हम सबको लगा कि इस कोरोना को हराना है. हम नहीं डरेंगे हम कोरोना को हरा कर ही रहेंगे.

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सवाल: नारी सशक्तिकरण को लेकर आप समाज से क्या कहना चाहेंगी?
जवाब: बस इतना कहना चाहती हूं कि आप बेटे और बेटियों दोनों को पढ़ाइए जैसे बेटे नाम रोशन करते है वैसे ही बेटियां भी नाम रोशन कर रही हैं. माता-पिता के लिए जितने अहम बेटे है उतनी ही बेटियां भी हैं.

Last Updated : Oct 22, 2020, 3:27 PM IST
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