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रायपुर NIT स्टूडेंट का प्रोडक्ट स्पेस इंडस्ट्री में ला सकता है क्रांति

रायपुर में रहने वाले NIT के स्टूडेंट (researcher of Raipur nit Dr mohit kumar sahu) एक ऐसा मटेरियल तैयार किया है जो स्पेस इंडस्ट्री में क्रांति ला सकता है.

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रायपुर NIT स्टूडेंट का प्रोडक्ट स्पेस इंडस्ट्री में ला सकता है क्रांति
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Published : Jul 19, 2022, 7:13 PM IST

Updated : Jul 23, 2022, 11:46 PM IST

रायपुर : अंतरिक्ष उड़ान से लेकर सुरक्षा उपकरणों के निर्माण तक में महंगे पदार्थों के कारण बढ़ने वाली कीमत को राख (फ्लाई-ऐश) जल्द नियंत्रित करने में सक्षम होगा. एनआईटी रायपुर के शोध छात्र डॉ मोहित कुमार साहू (researcher of Raipur nit Dr mohit kumar sahu) ने औद्योगिक राख और बोरॉन कार्बाईड को एल्यूमीनियम में मिलाकर ऐसा पदार्थ तैयार किया है, जो उच्च यांत्रिक शक्ति (मैकेनिकल स्ट्रैंथ), उच्च घर्षण प्रतिरोधक होने के साथ उच्च तापमान का भी प्रतिरोधक है. हल्का होने की वजह से इस पदार्थ का उपयोग अंतरिक्ष यान सुरक्षा उपकरणों के साथ-साथ वाहन उद्योग में चमत्कारी प्रभाव दिखाने में सक्षम है. औद्योगिक राख (फ्लाई ऐश) के उपयोग से पदार्थ की कीमत भी काफी कम हो जाएगी. ऐसे में ईटीवी भारत ने शोधार्थी डॉ. मोहित साहू से खास बातचीत की. आइए जाने उन्होंने इसे कैसे बनाया.

रायपुर NIT स्टूडेंट का आविष्कार
सवाल: आपने किस टॉपिक पर शोध किया. इसकी खासियत क्या है? जवाब: मैंने अपने शोध में जो ऐरो स्पेस एप्लीकेशन या ऑटोमोबाइल एप्लीकेशन होते (Research of Raipur NIT student regarding Aerospace Application) हैं. उसमें इस्तेमाल होने वाले मटेरियल्स काफी अच्छी होनी चाहिए. साथ साथ ही उसका वजन भी कम होना चाहिए. ऐसे मटेरियल्स उपलब्ध थे, लेकिन बहुत कॉस्टली होता है. जैसे टंगस्टन और टाइटेनियम हैं. ये मटेरियल एरो स्पेस एप्लिकेशन में इस्तेमाल किए जाते हैं. लेकिन मैंने एक ऐसा मटेरियल बनाना चाहा, जो कम लागत में बने. उसकी स्ट्रेंथ भी बहुत अच्छी हो और हल्के वजन का हो. इसके लिए मैंने एल्युमिनियम में बोरोन कार्बाइड और फ्लाई ऐश को मिलाया. इंडस्ट्रीज में कोयले के जलने से राख मिलता है. उसे फ्लाई ऐश कहते हैं. इन सभी का मिश्रण किया. इन्हें मिक्स करने के लिए स्टेयर कास्टिंग का मेथड उपयोग किया. स्टेयर कास्टिंग में मेटल को पहले मेल्ड करते हैं. उसके बाद पाउडर को फीडिंग करते हैं. इसके साथ ही स्टेलर यूज करते हैं, जो मिक्सिंग के लिए होता है. किसी भी मेटल में पाउडर मिक्स करना ऑल मोस्ट इम्पॉसिबल होता है. क्योंकि उसकी वेटाबिलिटी काफी लेस होती. उसके लिए पहले मैंने उस प्रोसेस को कंप्यूटेशनल फ्लूट डायनामिक मेथड के माध्यम से सिमुलेशन किया. फिर स्टेस्टिकल टूल्स यूज करते हुए उसके मेथड को जो पैरामीटर्स है कि वो कितने स्पीड से घूमने वाला है. उसके ब्लेड का साइज कितना होना चाहिए. उसकी एंगल कितनी होनी चाहिए. ये पहले सिमुलेशन किया और उसको ऑप्टोमाइस करके पैरामीटर्स को फाइंड आउट किया. जब वो पैरामीटर्स मुझे मिल गया. फिर उसे यूज करने के बाद मैंने मटेरियल को फेब्रिकेट किया. जब वो मटेरियल बना तो सबसे पहले उसका माइक्रो स्ट्रक्चर कैरिट्राइजेशन किया. जिससे मुझे पता चला कि जो मटेरियल्स मिला रहा हूं, जो फ्लाई ऐश और बोरोन कार्बाइड में, क्या उसमें मिला है या नहीं. इसे जब चेक किया तो पाया कि जो परसेंटेज मैंने मिलाया था तो एक ऐसा कंडीशन था जिसमें वो परफेक्टली मिक्स था. उसमें कोई भी एक्यूमिनेशन नहीं था. उसका भी मैंने मैकेनिकल और ट्राइबो लॉजिकल टेस्ट किया. उसकी डेन्टसिटी टेस्ट किया. उसके बाद डेंसलिटी मुझे मिली वह एल्युमिनियम से थोड़ी हाई थी, लेकिन स्ट्रेंथ ऑलमोस्ट एल्युमिनियम यूज किया था. उससे दोगुनी थी. चूंकि उसमें फ्लाई ऐश भी यूज किया है, जो फ्री ऑफ कॉस्ट होता है. ये सब टेस्ट करने के बाद उसकी प्रॉपर्टी मुझे मिली वो एरो स्पेस या ऑटो मोबाइल्स में जो मटेरियल यूज होते हैं. उनकी प्रॉपर्टी रहती उससे मैच कर रही है. मैंने जो मटेरियल डेवेलेप किया है. ये उन कॉस्टली मटेरियल को रिप्लेस करने में सक्षम है. सवाल: शोध करने के लिए आपको बहुत से समान लगे हैं. कितना वक्त लगा और कैसे इन समानों को लेकर आए? जवाब: ''इसमें मैने एलुमिनियम यूज किया है. इसे मैंने परचेस किया था. फ्लाई ऐश को एक इंडस्ट्रीज से कलेक्ट किया था. बोरॉन कार्बाइड को पर्चेस किया है. और जो सेटअप था. जिसे मैंने बनाया. उसको हमने तैयार किया. उसके बाद सारी चीजों को फेब्रिक (NIT student of Raipur made fly ash special) किया.'' सवाल: शोध करने में आपको कितना समय लगा? जवाब: इस शोध को पूरा करने के लिए लगभग 5 साल का समय लगा. शुरू से सारी इंफॉर्मेशन कलेक्ट करने में और रिसर्च पढ़ना पड़ा. आखिर लोगों ने क्या यूज किया है. ये सब करने में मुझे 5 साल हो गए. सवाल: यह टॉपिक आपको मिला या खुद से चुना? जवाब: दरअसल मैंने एमटेक एनआईटी से किया हुआ था. वहां इस पर थोड़ा काम किया था, लेकिन वो मटेरियल दूसरा था. मैंने रायपुर एनआईटी में पीएचडी के लिए एडमिशन लिया. मेरे सुपर वाइजर डॉ राजकुमार साहू जी हैं. उन्होंने बोला कि आपका इंटरेस्ट एरिया कौन सा है. उस दौरान डॉ साहू को अपना इंटरेस्ट एरिया बताया. उन्हें लगा कि यह सही एरिया है. हम इस पर काम कर सकते हैं. वहां से हमने काम शुरू किया. सवाल: अपने जिस पर शोध किया है उससे फायदा क्या होगा? जवाब: जिन कॉस्टली मटेरियल ऐसे एप्लिकेशन पर यूज हो रहे हैं. यदि उस पर मैं अपना मटेरियल यूज करता हूं तो उस एप्लिकेशन में सेम स्ट्रेंथ मिल जाएगा. साथ ही उस उपकरण का ओवर आल कॉस्ट रिड्यूस हो जाएगा. सवाल: इसे लेकर भविष्य में आपकी क्या तैयारी है? जवाब: अभी मैं पेटेंट की प्रक्रिया की तैयारी कर रहा हूँ. जल्द ही इस पर एक पेटेंट फाइल करूंगा.

रायपुर : अंतरिक्ष उड़ान से लेकर सुरक्षा उपकरणों के निर्माण तक में महंगे पदार्थों के कारण बढ़ने वाली कीमत को राख (फ्लाई-ऐश) जल्द नियंत्रित करने में सक्षम होगा. एनआईटी रायपुर के शोध छात्र डॉ मोहित कुमार साहू (researcher of Raipur nit Dr mohit kumar sahu) ने औद्योगिक राख और बोरॉन कार्बाईड को एल्यूमीनियम में मिलाकर ऐसा पदार्थ तैयार किया है, जो उच्च यांत्रिक शक्ति (मैकेनिकल स्ट्रैंथ), उच्च घर्षण प्रतिरोधक होने के साथ उच्च तापमान का भी प्रतिरोधक है. हल्का होने की वजह से इस पदार्थ का उपयोग अंतरिक्ष यान सुरक्षा उपकरणों के साथ-साथ वाहन उद्योग में चमत्कारी प्रभाव दिखाने में सक्षम है. औद्योगिक राख (फ्लाई ऐश) के उपयोग से पदार्थ की कीमत भी काफी कम हो जाएगी. ऐसे में ईटीवी भारत ने शोधार्थी डॉ. मोहित साहू से खास बातचीत की. आइए जाने उन्होंने इसे कैसे बनाया.

रायपुर NIT स्टूडेंट का आविष्कार
सवाल: आपने किस टॉपिक पर शोध किया. इसकी खासियत क्या है? जवाब: मैंने अपने शोध में जो ऐरो स्पेस एप्लीकेशन या ऑटोमोबाइल एप्लीकेशन होते (Research of Raipur NIT student regarding Aerospace Application) हैं. उसमें इस्तेमाल होने वाले मटेरियल्स काफी अच्छी होनी चाहिए. साथ साथ ही उसका वजन भी कम होना चाहिए. ऐसे मटेरियल्स उपलब्ध थे, लेकिन बहुत कॉस्टली होता है. जैसे टंगस्टन और टाइटेनियम हैं. ये मटेरियल एरो स्पेस एप्लिकेशन में इस्तेमाल किए जाते हैं. लेकिन मैंने एक ऐसा मटेरियल बनाना चाहा, जो कम लागत में बने. उसकी स्ट्रेंथ भी बहुत अच्छी हो और हल्के वजन का हो. इसके लिए मैंने एल्युमिनियम में बोरोन कार्बाइड और फ्लाई ऐश को मिलाया. इंडस्ट्रीज में कोयले के जलने से राख मिलता है. उसे फ्लाई ऐश कहते हैं. इन सभी का मिश्रण किया. इन्हें मिक्स करने के लिए स्टेयर कास्टिंग का मेथड उपयोग किया. स्टेयर कास्टिंग में मेटल को पहले मेल्ड करते हैं. उसके बाद पाउडर को फीडिंग करते हैं. इसके साथ ही स्टेलर यूज करते हैं, जो मिक्सिंग के लिए होता है. किसी भी मेटल में पाउडर मिक्स करना ऑल मोस्ट इम्पॉसिबल होता है. क्योंकि उसकी वेटाबिलिटी काफी लेस होती. उसके लिए पहले मैंने उस प्रोसेस को कंप्यूटेशनल फ्लूट डायनामिक मेथड के माध्यम से सिमुलेशन किया. फिर स्टेस्टिकल टूल्स यूज करते हुए उसके मेथड को जो पैरामीटर्स है कि वो कितने स्पीड से घूमने वाला है. उसके ब्लेड का साइज कितना होना चाहिए. उसकी एंगल कितनी होनी चाहिए. ये पहले सिमुलेशन किया और उसको ऑप्टोमाइस करके पैरामीटर्स को फाइंड आउट किया. जब वो पैरामीटर्स मुझे मिल गया. फिर उसे यूज करने के बाद मैंने मटेरियल को फेब्रिकेट किया. जब वो मटेरियल बना तो सबसे पहले उसका माइक्रो स्ट्रक्चर कैरिट्राइजेशन किया. जिससे मुझे पता चला कि जो मटेरियल्स मिला रहा हूं, जो फ्लाई ऐश और बोरोन कार्बाइड में, क्या उसमें मिला है या नहीं. इसे जब चेक किया तो पाया कि जो परसेंटेज मैंने मिलाया था तो एक ऐसा कंडीशन था जिसमें वो परफेक्टली मिक्स था. उसमें कोई भी एक्यूमिनेशन नहीं था. उसका भी मैंने मैकेनिकल और ट्राइबो लॉजिकल टेस्ट किया. उसकी डेन्टसिटी टेस्ट किया. उसके बाद डेंसलिटी मुझे मिली वह एल्युमिनियम से थोड़ी हाई थी, लेकिन स्ट्रेंथ ऑलमोस्ट एल्युमिनियम यूज किया था. उससे दोगुनी थी. चूंकि उसमें फ्लाई ऐश भी यूज किया है, जो फ्री ऑफ कॉस्ट होता है. ये सब टेस्ट करने के बाद उसकी प्रॉपर्टी मुझे मिली वो एरो स्पेस या ऑटो मोबाइल्स में जो मटेरियल यूज होते हैं. उनकी प्रॉपर्टी रहती उससे मैच कर रही है. मैंने जो मटेरियल डेवेलेप किया है. ये उन कॉस्टली मटेरियल को रिप्लेस करने में सक्षम है. सवाल: शोध करने के लिए आपको बहुत से समान लगे हैं. कितना वक्त लगा और कैसे इन समानों को लेकर आए? जवाब: ''इसमें मैने एलुमिनियम यूज किया है. इसे मैंने परचेस किया था. फ्लाई ऐश को एक इंडस्ट्रीज से कलेक्ट किया था. बोरॉन कार्बाइड को पर्चेस किया है. और जो सेटअप था. जिसे मैंने बनाया. उसको हमने तैयार किया. उसके बाद सारी चीजों को फेब्रिक (NIT student of Raipur made fly ash special) किया.'' सवाल: शोध करने में आपको कितना समय लगा? जवाब: इस शोध को पूरा करने के लिए लगभग 5 साल का समय लगा. शुरू से सारी इंफॉर्मेशन कलेक्ट करने में और रिसर्च पढ़ना पड़ा. आखिर लोगों ने क्या यूज किया है. ये सब करने में मुझे 5 साल हो गए. सवाल: यह टॉपिक आपको मिला या खुद से चुना? जवाब: दरअसल मैंने एमटेक एनआईटी से किया हुआ था. वहां इस पर थोड़ा काम किया था, लेकिन वो मटेरियल दूसरा था. मैंने रायपुर एनआईटी में पीएचडी के लिए एडमिशन लिया. मेरे सुपर वाइजर डॉ राजकुमार साहू जी हैं. उन्होंने बोला कि आपका इंटरेस्ट एरिया कौन सा है. उस दौरान डॉ साहू को अपना इंटरेस्ट एरिया बताया. उन्हें लगा कि यह सही एरिया है. हम इस पर काम कर सकते हैं. वहां से हमने काम शुरू किया. सवाल: अपने जिस पर शोध किया है उससे फायदा क्या होगा? जवाब: जिन कॉस्टली मटेरियल ऐसे एप्लिकेशन पर यूज हो रहे हैं. यदि उस पर मैं अपना मटेरियल यूज करता हूं तो उस एप्लिकेशन में सेम स्ट्रेंथ मिल जाएगा. साथ ही उस उपकरण का ओवर आल कॉस्ट रिड्यूस हो जाएगा. सवाल: इसे लेकर भविष्य में आपकी क्या तैयारी है? जवाब: अभी मैं पेटेंट की प्रक्रिया की तैयारी कर रहा हूँ. जल्द ही इस पर एक पेटेंट फाइल करूंगा.
Last Updated : Jul 23, 2022, 11:46 PM IST

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