रायपुर: छत्तीसगढ़ में हाथी की समस्या को काबू में करने के लिए भूपेश सरकार एक नया प्रयोग करने जा रही है. इस प्रयोग को लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. दरअसल सरकार हाथियों को मानव बस्तियों से दूर रखने के लिए जंगलों में या गांवों से बाहर धान रखना चाह रही है. दावा किया जा रहा है कि इससे हाथी मानव बस्तियों की ओर नहीं जाएगा. इससे जंगलों के आसपास रहने वाले लोग सुरक्षित रह सकेंगे. वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा है कि हाथियों को काबू में रखने के लिए सरकार की ओर से ये एक प्रयोग है. फिलहाल हम नहीं कह सकते कि ये कितना कामयाब होगा. इसमें धान खरीदी का मामला नहीं है बल्कि एक विभाग से दूसरे विभाग को दिया जाना है.
सरकार की एस कवायद पर सियासी बयानबाजी शुरू
सरकार के इस फैसले पर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने आरोप लगाया है कि सरकार द्वारा धान खरीदी में भारी अनियमितता की गई है. इसी को छुपाने के लिए उटपटांग फैसले लिए जा रहे हैं. भाजपा का आरोप है कि जब सरकार खुद 1350 की दर पर धान नीलाम कर रही है तो 2050 पर धान खरीदने का क्या औचित्य है?
कांग्रेस ने भी पलटवार किया है और केन्द्र सरकार पर छत्तीसगढ़ को धान से एथनॉल नहीं बनाने देने और समर्थन मूल्य पर पर्याप्त धान नहीं खरीदने का आरोप लगाया गया है. कांग्रेस प्रवक्ता शैलेष नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार के हर काम में अड़ंगा लगाना ही भाजपा का एजेंडा बन गया है. जबकि हाथी की समस्या भी रमन सरकार की देन है.
हाथियों के लिए सड़ा धान क्यों खरीद रही सरकार, धरमलाल कौशिक ने भ्रष्टाचार का जताया संदेह
एक्सपर्ट भी सरकार के प्रयोग पर उठा रहे सवाल
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट नितिन सिंघवी (Wildlife expert Nitin Singhvi) से हमने हाथियों को काबू में रखने के इस प्रयोग के संबंध में पूछा तो उनका कहना है कि ये प्रयोग सफल नहीं होगा. उनका कहना है कि धान को हाथी ज्यादा नहीं खाते फिर जंगल में खुले में धान रखने से वो सड़ जाएगा उसमें कई तरह के फंगस पैदा हो जाएंगे, इस सड़े धान को हाथी जैसा बुद्धिमान प्राणी नहीं खाएगा. उन्हें लगता कि इस तरह का प्रयोग सफल होगा.
छत्तीसगढ़ में कितनी बड़ी है हाथियों की समस्या
प्रदेश में पहले सरगुजा के जंगल में हाथियों का बसेरा होता था, ये हाथी पड़ोसी राज्य झारखंड और ओडिशा तक भ्रमण करते थे लेकिन पिछले कुछ सालों में हाथियों का दल सरगुजा के साथ ही कोरबा, रायगढ़, महासमुंद, गरियाबंद धमतरी, बालोद, मुंगेली, कांकेर जिले तक पहुंच गए हैं. कई इनकी आमद राजधानी रायपुर के आसपास तक हो चुकी है. यहां पिछले 5 वर्षों में 350 से ज्यादा लोगों की मौत मानव हाथी द्वंद में हुई है. वहीं 25 से ज्यादा हाथी भी इसमें मारे गए हैं. हाथियों को काबू में लाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं तैयार किए लेकिन जमीन पर अब तक सभी लगभग नाकाम हैं. लगातार हाथियों से प्रभावित क्षेत्र बढ़ता चला जा रहा है.
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स का मानना है कि हाथियों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर होना चाहिए इसके साथ ही यहां लोगों को इनके साथ जीने की आदत डालनी चाहिए. जैसे कुछ राज्यों में इसे हव्वा की तरह न लेकर सामान्य तौर पर लिया जाता है, जबकि छत्तीसगढ़ में हाथियों के दल के आसपास अक्सर भीड़ जुट जाती है लोग उन्हें खदेड़ने के लिए तरह तरह के उपाय जैसे पटाखा फोड़ना, नगाड़ा बजाना जैसे प्रयास करने लगते हैं. इससे हाथी उग्र हो जाते हैं. जबकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर हाथियों का न छेड़ा जाए तो वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते.