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दूर करने हैं जन्मों के पाप तो इस तरह मनाएं पापकुंशा एकादशी

आज पापकुंशा एकादशी है.(Papakunsha Ekadashi ) इस एकादशी का व्रत करने से जन्मों के पाप धुल जाते हैं.

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पापकुंशा एकादशी
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Published : Oct 14, 2021, 7:33 AM IST

Updated : Oct 16, 2021, 6:59 AM IST

रायपुर: धनिष्ठा नक्षत्र गंड योग विषकुंभ योग के शुभ प्रभाव में आज 16 अक्टूबर को पापकुंशा एकादशी (Papakunsha Ekadashi ) का पावन पर्व मनाया जाएगा. यह श्री हरि की उपासना का विशेष पर्व है. श्री हरि विष्णु एकादशी का उपवास करने पर बहुत प्रसन्न होते हैं. ऐसी मान्यता है कि जन्म जन्मांतर के पाप इस उपवास को करने से दूर हो जाते हैं.

इस तरह मनाएं पापकुंशा एकादशी

ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा (Pandit Vineet Sharma) ने बताया कि 'एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं कि ऐसे कौन से विधान हैं. जिससे मनुष्यों के पाप नष्ट हो जाते हैं. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि पापकुंशा एकादशी पर नियमपूर्वक व्रत पारण करने पर मनुष्य के पाप धीरे-धीरे धुल जाते हैं. इस दिन भगवान श्री विष्णु की विशेष पूजा की जाती है. भगवान श्री विष्णु, विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम, द्वादश अक्षर के मंत्र से प्रसन्न हो जाते हैं.भगवान श्री विष्णु (Lord Shri Vishnu) सृष्टि के संचालक हैं. यह पर्व सभी भक्तों को आस्था पूर्वक मनाना चाहिए.सुबह उठकर स्नान, ध्यान से निवृत्त होकर शालिग्राम भगवान को निर्मल जल से साफ किया जाता है, श्री हरि विष्णु के आसनों को भली-भांति साफ किया जाता है. शालिग्राम भगवान की पूजा का विशेष विधान है. श्री हरि विष्णु को श्री शालिग्राम भगवान के साथ पूजा जाता है.

रवि प्रदोष के साथ पद्मनाभ द्वादशी के कारण बन रहा उत्तम योग

कुमार्ग से बचाता है पापकुंशा एकादशी

प्राचीन काल में गोधन नाम का एक बहेलिया था. जो जीवन भर पाप कर्म करता रहा. पूरे जीवन में उसने कोई भी अच्छा काम नहीं किया था. अंत समय में यमराज के आने पर उसकी बुद्धि खुली और उसने पापकुंशा एकादशी का व्रत किया. जिससे वह पापों से विमुख होकर विष्णु के आशीर्वाद से अच्छे मार्ग पर पहुंच गया. पापकुंशा एकादशी का व्रत निराहार विधि से करने से इसका फल ज्यादा मिलता है. इस उपवास को करने के 1 दिन पहले यानी दशहरा के दिन से ही सात्विकता संयमितता का पालन किया जाना कल्याणकारी होता है. द्वादशी तिथि के दिन इस व्रत का पारण किया जाता है. यह पारण द्वादशी तिथि के समापन के पहले ही नियमपूर्वक किया जाना चाहिए. भगवान श्री विष्णु जी की मंगल आरती, पूजा पाठ और महालक्ष्मी जी की आरती किए जाने का पापकुंशा एकादशी पर्व में शुभ विधान है. यह एकादशी मानव मात्र को पाप के कुमार्ग से दूर रहने के लिए प्रेरित कर मनुष्यता श्रेष्ठता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है.

रायपुर: धनिष्ठा नक्षत्र गंड योग विषकुंभ योग के शुभ प्रभाव में आज 16 अक्टूबर को पापकुंशा एकादशी (Papakunsha Ekadashi ) का पावन पर्व मनाया जाएगा. यह श्री हरि की उपासना का विशेष पर्व है. श्री हरि विष्णु एकादशी का उपवास करने पर बहुत प्रसन्न होते हैं. ऐसी मान्यता है कि जन्म जन्मांतर के पाप इस उपवास को करने से दूर हो जाते हैं.

इस तरह मनाएं पापकुंशा एकादशी

ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा (Pandit Vineet Sharma) ने बताया कि 'एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं कि ऐसे कौन से विधान हैं. जिससे मनुष्यों के पाप नष्ट हो जाते हैं. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि पापकुंशा एकादशी पर नियमपूर्वक व्रत पारण करने पर मनुष्य के पाप धीरे-धीरे धुल जाते हैं. इस दिन भगवान श्री विष्णु की विशेष पूजा की जाती है. भगवान श्री विष्णु, विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम, द्वादश अक्षर के मंत्र से प्रसन्न हो जाते हैं.भगवान श्री विष्णु (Lord Shri Vishnu) सृष्टि के संचालक हैं. यह पर्व सभी भक्तों को आस्था पूर्वक मनाना चाहिए.सुबह उठकर स्नान, ध्यान से निवृत्त होकर शालिग्राम भगवान को निर्मल जल से साफ किया जाता है, श्री हरि विष्णु के आसनों को भली-भांति साफ किया जाता है. शालिग्राम भगवान की पूजा का विशेष विधान है. श्री हरि विष्णु को श्री शालिग्राम भगवान के साथ पूजा जाता है.

रवि प्रदोष के साथ पद्मनाभ द्वादशी के कारण बन रहा उत्तम योग

कुमार्ग से बचाता है पापकुंशा एकादशी

प्राचीन काल में गोधन नाम का एक बहेलिया था. जो जीवन भर पाप कर्म करता रहा. पूरे जीवन में उसने कोई भी अच्छा काम नहीं किया था. अंत समय में यमराज के आने पर उसकी बुद्धि खुली और उसने पापकुंशा एकादशी का व्रत किया. जिससे वह पापों से विमुख होकर विष्णु के आशीर्वाद से अच्छे मार्ग पर पहुंच गया. पापकुंशा एकादशी का व्रत निराहार विधि से करने से इसका फल ज्यादा मिलता है. इस उपवास को करने के 1 दिन पहले यानी दशहरा के दिन से ही सात्विकता संयमितता का पालन किया जाना कल्याणकारी होता है. द्वादशी तिथि के दिन इस व्रत का पारण किया जाता है. यह पारण द्वादशी तिथि के समापन के पहले ही नियमपूर्वक किया जाना चाहिए. भगवान श्री विष्णु जी की मंगल आरती, पूजा पाठ और महालक्ष्मी जी की आरती किए जाने का पापकुंशा एकादशी पर्व में शुभ विधान है. यह एकादशी मानव मात्र को पाप के कुमार्ग से दूर रहने के लिए प्रेरित कर मनुष्यता श्रेष्ठता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है.

Last Updated : Oct 16, 2021, 6:59 AM IST
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