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इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में विकसित की गई सोयाबीन की नई किस्में, जानिए क्यों है खास - टोबैको किटर पिलर

New varieties of soybean developed in Raipur इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा रिसर्च के बाद सोयाबीन की 6 किस्में विकसित की गई है. बारिश की समाप्ति के साथ ही ठंड की शुरुआत में सोयाबीन की फसल में कीट का प्रकोप एक बड़ी समस्या है. वर्तमान समय में सोयाबीन में तंबाकू इल्ली के साथ ही दूसरे का कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है. लेकिन कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करके उस पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

New varieties of soybean developed in Raipur
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में सोयाबीन की नई किस्में विकसित
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Published : Oct 13, 2022, 6:14 PM IST

रायपुर: रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में पिछले 10 सालों में सोयाबीन की अलग अलग किस्में विकसित की गई है. सोयाबीन की विकसित किस्में अच्छी पैदावार दे रही है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की लगभग 6 नई किस्में विकसित की है. इन विकसित किस्मों में छत्तीसगढ़ सोयाबीन-1 अधिक मात्रा में हुई है. जिसका बीज छत्तीसगढ़ के किसानों को उपलब्ध कराया गया है. आने वाले दिनों में प्रदेश के किसानों को अन्य विकसित किस्मों के बीज भी दिए जाएंगे. New varieties of soybean developed in Raipur

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में सोयाबीन की नई किस्में विकसित
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की सोयाबीन की 6 किस्में: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक सुनील नाग ने बताया कि "इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा पिछले 10 वर्षों से रिसर्च करने के बाद सोयाबीन की 6 किस्में विकसित की गई है. जिसमें छत्तीसगढ़ सोयाबीन RSC 10-52, RSC 10-46, RSC 11-07, RSC 10-71, छत्तीसगढ़ सोयाबीन -1, और छत्तीसगढ़ सोयाबीन 11-15 है. बारिश की समाप्ति के साथ ही ठंड की शुरुआत में सोयाबीन की फसल में कीट आदि का प्रकोप एक बड़ी समस्या है. वर्तमान समय में सोयाबीन में तंबाकू इल्ली (Tobacco Caterpillar) के साथ ही दूसरे का कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है."

यह भी पढ़ें: Panicle mite outbreak in Dhamtari: धमतरी में अदृश्य मकड़ी से किसान परेशान

तंबाकू इल्ली पर काबू पाने कीटनाशक दवाओं का करें प्रयोग: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (Indira Gandhi Agricultural University) के कृषि वैज्ञानिक सुनील नाग ने बताया कि "सोयाबीन की फसल में इस समय टोबैको किटर पिलर(Tobacco Caterpillar), जिसे आम भाषा में तंबाकू इल्ली कहा जाता है, का प्रकोप देखा जा रहा है. किट का प्रकोप बारिश की समाप्ति और ठंड के शुरुआती दिनों में ज्यादा दिखाई देता है. कीट प्रकोप के बचाव के लिए किसान भाइयों को कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करके उस पर नियंत्रण पाया जा सकता है. इस मौसम में सेमिलूपर जैसे कीट का प्रकोप भी देखने को मिल रहा है और गड़ल बीटर भी सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं."

फसल की अच्छी देखभाल करते हैं, तो होगी अच्छी पैदावार: छत्तीसगढ़ के किसान अगर सोयाबीन की फसल की अच्छी देखभाल करते हैं, तो अच्छी पैदावार भी ली जा सकती हैं. प्रति हेक्टेयर सोयाबीन का बीज लगाने से 25 से 30 क्विंटल सोयाबीन की फसल आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं. व्यावसायिक दृष्टिकोण से सोयाबीन का उपयोग तेल निकालने में किया जाता है. इसके साथ प्रोटीन फीड पोल्ट्री में भी इसका ज्यादा उपयोग होता है. खाने पीने के रूप में सोया मिल्क, सोया पनीर, स्नेक्स और सोयाबीन बड़ी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

रायपुर: रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में पिछले 10 सालों में सोयाबीन की अलग अलग किस्में विकसित की गई है. सोयाबीन की विकसित किस्में अच्छी पैदावार दे रही है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की लगभग 6 नई किस्में विकसित की है. इन विकसित किस्मों में छत्तीसगढ़ सोयाबीन-1 अधिक मात्रा में हुई है. जिसका बीज छत्तीसगढ़ के किसानों को उपलब्ध कराया गया है. आने वाले दिनों में प्रदेश के किसानों को अन्य विकसित किस्मों के बीज भी दिए जाएंगे. New varieties of soybean developed in Raipur

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में सोयाबीन की नई किस्में विकसित
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की सोयाबीन की 6 किस्में: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक सुनील नाग ने बताया कि "इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा पिछले 10 वर्षों से रिसर्च करने के बाद सोयाबीन की 6 किस्में विकसित की गई है. जिसमें छत्तीसगढ़ सोयाबीन RSC 10-52, RSC 10-46, RSC 11-07, RSC 10-71, छत्तीसगढ़ सोयाबीन -1, और छत्तीसगढ़ सोयाबीन 11-15 है. बारिश की समाप्ति के साथ ही ठंड की शुरुआत में सोयाबीन की फसल में कीट आदि का प्रकोप एक बड़ी समस्या है. वर्तमान समय में सोयाबीन में तंबाकू इल्ली (Tobacco Caterpillar) के साथ ही दूसरे का कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है."

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तंबाकू इल्ली पर काबू पाने कीटनाशक दवाओं का करें प्रयोग: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (Indira Gandhi Agricultural University) के कृषि वैज्ञानिक सुनील नाग ने बताया कि "सोयाबीन की फसल में इस समय टोबैको किटर पिलर(Tobacco Caterpillar), जिसे आम भाषा में तंबाकू इल्ली कहा जाता है, का प्रकोप देखा जा रहा है. किट का प्रकोप बारिश की समाप्ति और ठंड के शुरुआती दिनों में ज्यादा दिखाई देता है. कीट प्रकोप के बचाव के लिए किसान भाइयों को कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करके उस पर नियंत्रण पाया जा सकता है. इस मौसम में सेमिलूपर जैसे कीट का प्रकोप भी देखने को मिल रहा है और गड़ल बीटर भी सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं."

फसल की अच्छी देखभाल करते हैं, तो होगी अच्छी पैदावार: छत्तीसगढ़ के किसान अगर सोयाबीन की फसल की अच्छी देखभाल करते हैं, तो अच्छी पैदावार भी ली जा सकती हैं. प्रति हेक्टेयर सोयाबीन का बीज लगाने से 25 से 30 क्विंटल सोयाबीन की फसल आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं. व्यावसायिक दृष्टिकोण से सोयाबीन का उपयोग तेल निकालने में किया जाता है. इसके साथ प्रोटीन फीड पोल्ट्री में भी इसका ज्यादा उपयोग होता है. खाने पीने के रूप में सोया मिल्क, सोया पनीर, स्नेक्स और सोयाबीन बड़ी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

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