रायपुर : हसदेव अरण्य में कोयला खनन (Hasdeo Aranya Coal Block) को लेकर कई सामाजिक संगठन अब एकजुट हो गए हैं.इसी कड़ी में कई संगठनों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का समर्थन भी आंदोलनकारियों को मिला है. नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर (Narmada Bachao Andolan leader Medha Patkar) ने गुरुवार को रायपुर में कहा कि '' हसदेव क्षेत्र में आदिवासी खदान परियोजना का विरोध कर रहे हैं.. उस खदान से पर्यावरण का विनाश संभावित है. ऐसे में सरकारें अपने ही वन और पंचायतों से जुड़े कानूनों का सम्मान करें. वहां खनन का आदेश निरस्त होना चाहिए.''
अडानी का कोयला भारत लाने की कोशिश : मेधा के मुताबिक ''हमारे देश में हर साल 2000 या 3000 मेट्रिक टन कोयले का उपयोग या जरूरत होती है मुझे लगता है कि अडानी ने ऑस्ट्रेलिया में जाकर जो कोयला निकाला है, उस कोयले को लाने के लिए तो यह संकट नहीं हो रहा है. आज हसदेव और अनेकों ग्राम सभा के सही प्रस्ताव को लाकर वहां के लोगों के जीवन को बचाना बहुत जरूरी है,, राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य को बचाने के लिए जो वादा किया था वह अपनी भूमिका से पीछे ना हटे. हसदेव अरण्य की सभी कोयला खदानों को ग्राम सभाओं के निर्णय का पालन करते हुए निरस्त किया जाए.''
खनन के लिए वहां नो- गो की घोषणा को बरकरार रखा जाए : मेधा पाटकर ने कहा कि ''17100 वर्ग किलोमीटर का हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि मध्य भारत का एक समृद्ध जीवन है. यह जैव विविधता से परिपूर्ण एवं वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की श्रेणी के 21 महत्वपूर्ण वन्य जीवों का रहवास और माइग्रेटरी कॉरिडोर भी है. यह वन क्षेत्र छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी हसदेव का जलागम क्षेत्र जिससे 4 जिलों की लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित होती है.अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण इस संपूर्ण वन क्षेत्र को साल 2010 में खनन से मुक्त रखने का निर्णय करते हुए इसे लोगों से नो- गो घोषित किया गया था. लेकिन सिर्फ कॉरपोरेट मुनाफे के लिए इसे खोलते हुए कोयला खनन की इजाजत दी जा रही है. हमारी मांग है कि वहां नो- गो की घोषणा को बरकरार रखा जाए.''
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ग्रामीणों से नहीं मिली मेधा पाटकर : एक वर्ग ऐसा है जो खनन का विरोध कर रहा है. लेकिन वहीं कुछ ग्रामीणों ने इस खनन परियोजना का साथ देने की बात कही है. इसके लिए उन्होंने बुधवार को मेधा पाटकर को लिखित में चिट्टी देने की कोशिश की थी. लेकिन इस चिट्ठी को मेधा पाटकर और उनके समाजसेवियों ने लेनेसे इंकार कर दिया. इस चिट्टी में 200 से ज्यादा ग्रामीणों ने हस्ताक्षर के साथ इस परियोजना को शुरु करने की बात कही है. चिट्ठी में ये भी कहा गया है कि किस तरह से कोल परियोजना से आने वाले दिनों में उनके क्षेत्र का विकास होगा.अब सवाल ये उठता है कि जिस आंदोलन की बात समाजसेवी के लोग कह रहे हैं. उसमें ग्रामीणों की कितनी रजामंदी है. इस बात की जांच होनी भी जरुरी है कि क्या वाकई जिस क्षेत्र में आंदोलन की बात कही जा रही है वहां के ग्रामीणों ने परियोजना के लिए खुद की मंजूरी दी भी है या नहीं. क्योंकि इस तरह से सरेआम ग्रामीणों को बरगलाकर आंदोलन खड़ा करना कहां तक सही है.