रायपुर: राजधानी सहित पूरे देश में 24 अक्टूबर को दीपावली का पर्व मनाया जाएगा. दीपावली का यह त्यौहार दीपों के नाम से जाना जाता है. दीपावली पर्व को लेकर कुम्हार परिवार के द्वारा मिट्टी के दीये कलश और लक्ष्मी की मूर्ति बनाने के साथ ही ग्वालिन की मूर्ति भी तैयार की जा रही है. लेकिन बदलते परिवेश के इस दौर में फैंसी लाइट और झालर ने मिट्टी के बने दीयों के साथ ही अन्य दूसरे सामानों की चमक को फीकी कर दी है. जिसका सीधा असर कुम्हार परिवारों की रोजी-रोटी पर पड़ा है. कुम्हार परिवार भी मानते हैं कि फैंसी लाइट और झालर के आ जाने से अब मिट्टी के सामानों की डिमांड कम हो गई है. increased the concerns of potters
फैंसी लाइट और झालर ने कुम्हारों की बढ़ाई चिंता: राजधानी के रायपुरा में लगभग 50 कुम्हार परिवार रहते हैं. जो साल भर मिट्टी के बने सामान बनाकर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. लेकिन बदलते परिवेश के इस दौर में इलेक्ट्रिक से चलने वाले फैंसी लाइट और झालर ने कुम्हार परिवार की चिंताएं बढ़ी है. कुम्हार परिवारों का यह पुश्तैनी धंधा होने के कारण दादा परदादा के जमाने से इस काम को करते आ रहे हैं. मिट्टी के सामान बनाकर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं. लेकिन कुम्हार परिवारों का यह धंधा अब धीरे-धीरे मंदा होता जा रहा है. जिसका सीधा असर इनकी रोजी रोटी पर पड़ रहा है.
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कुम्हारों को मेहनत के हिसाब से नहीं मिलता पैसा: रायपुरा के रहने वाले कुछ कुम्हारों से हमने बात की तो उन्होंने बताया कि 'दीपावली पर्व की तैयारी में लगभग 2 महीने पहले से पूरा परिवार जुट गया है. मिट्टी के दीये कलश लक्ष्मी जी की मूर्ति और ग्वालिन की मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. मिट्टी के इस काम में खूब मेहनत लगता है, लेकिन मेहनत के हिसाब से इन कुम्हारों को पैसा नहीं मिल पाता. कुम्हार बताते हैं कि आधुनिकता के इस दौर में फैंसी लाइट और झालर के आ जाने से मिट्टी से बने सामानों की डिमांड पहले की तुलना में घट गई हैं. जिसका सीधा असर कुम्हार परिवार की रोजी-रोटी पर पड़ता है. लेकिन कुम्हार परिवारों की पुश्तैनी धंधा होने के कारण मिट्टी के इस काम को मजबूरन आगे बढ़ा रहे हैं, जिससे यह कला विलुप्त ना हो जाए."