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छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बड़ी उपलब्धि, 'भूलन द मेज' को मिला नेशनल फिल्म अवॉर्ड - Chhattisgarhi film Bhulan the Maze

छत्तीसगढ़ में पहली बार किसी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है. डायरेक्टर मनोज वर्मा की फिल्म 'भूलन द मेज' को नेशनल फिल्म अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. ETV भारत ने इस फिल्म के डायरेक्टर मनोज वर्मा से इससे जुड़ी खास चर्चा की.

exclusive interview with bhulan the maze film director manoj verma
डायरेक्टर मनोज वर्मा
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Published : Mar 22, 2021, 10:56 PM IST

Updated : Mar 23, 2021, 6:49 AM IST

रायपुर : सालभर के इंतजार के बाद 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के विजेताओं की घोषणा की गई. कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले साल इसे टाल दिया गया था, लेकिन इस साल विजेताओं की घोषणा की गई. पहली बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए छत्तीसगढ़ी फिल्म का चयन किया गया है. निर्माता मनोज वर्मा की 'भूलन द मेज' को नेशनल फिल्म अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. ETV भारत ने डायरेक्टर मनोज वर्मा से खास बातचीत की.

डायरेक्टर मनोज वर्मा

सवाल- आपकी फिल्म को अवॉर्ड मिला है कैसा महसूस कर रहे हैं?
जवाब- बहुत अच्छा लग रहा है. किसी छत्तीसगढ़ी फिल्म को पहली बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है, इसके लिए पूरी टीम को बधाई देता हूं जिन्होंने प्रयास किया है और यह हमारे पूरे छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए बड़ी उपलब्धि है.

सवाल- इस फिल्म को बनाने के लिए आपको कितना समय लगा और क्या तकलीफें उठानी पड़ी ?
जवाब- मनोज वर्मा ने कहा कठिनाइयां इतनी आई है कि उस पर भी एक फिल्म में बन सकती है. संजीव बख्शी का उपन्यास 'भूलन कांदा' है. उस पर यह आधारित फिल्म है. दो से ढाई साल पटकथा लिखने में लगे. उसके बाद कोशिश की गई थी की फिल्म को मुंबई से प्रोड्यूस किया जाए. सभी इसकी स्क्रिप्ट मांगा करते थे, बड़े-बड़े बैनर ने फिल्म की स्क्रिप्ट मांगी थी, चूंकि यह छत्तीसगढ़ की कहानी है, मुझे ऐसा लगता है कि यहां की संस्कृति और यहां के संस्कारों को मैं ज्यादा अच्छे तरह से समझ सकता हूं, इसलिए मैंने बाहर स्क्रिप्ट नहीं भेजी और मुश्किलों से रुपए इकट्ठा कर फिल्म तैयार की. फिल्म बनने के बाद उसे बाहर फिल्म फेस्टिवल में भेजना शुरू किया.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस फिल्म को तीन पुरस्कार मिले हैं. उसके बाद भारत मे 7 अवार्ड अलग जगह मिले. मुझे उम्मीद थी कि नेशनल अवार्ड इस फिल्म को आना चाहिए.

'भूलन द मेज' बनी बेस्ट छत्तीसगढ़ी फिल्म


सवाल- फिल्म का नाम आपने भूलन द मेज क्यों रखा ?
जवाब- छत्तीसगढ़ के लोग भूलन को समझते हैं और उपन्यास का नाम ही भूलन कांदा था. भूलन कांदा एक ऐसा पौधा होता है जिस पर किसी का पैर पड़ जाए तो वह रास्ता भटक जाता है. तब तक होश में नहीं आता जब तक कोई दूसरा इंसान उसे छूता नहीं है. हमारी न्याय व्यवस्था का पैर उस भूलन पर पड़ा हुआ है.उसे छूने और जगाने की जरूरत है यही फिल्म का कंसेप्ट है. कंसेप्ट के हिसाब से हमने भूलन इसलिए रखा है क्योंकि आज की स्तिथि में समाज का हर वर्ग कही न कही भटका हुआ है और उस दूरी पर वो घूम रहा उसी को दिखाने की कोशिश की गई है.

सवाल- छत्तीसगढ़ की फिल्म को पहली बार नेशनल अवार्ड मिला है, अब छत्तीसगढ़ी फिल्म को लेकर आगे क्या संभावनाएं देखते हैं?
जवाब- यह छत्तीसगढ़ी फिल्म का परिदृश्य बदलने की संभावनाएं दिखती हैं, क्योंकि अभी तक सिनेमा बन रहे हैं वे प्रयास नहीं करते है कि समानांतर सिनेमा बेस्ड फिल्म बनाया जाए. यहां पर थियेटर की कमी है, लागत निकलना मुश्किल है, बहुत से आर्थिक दिक्कतें आती है, लेकिन जिस तरस से सरकार नई फिल्म नीति लाने वाली है जिसमें 50 प्रतिशत तक सब्सिडी की बात चल रही है. अगर सरकार का समर्थन रहा तो अब छत्तीसगढ़ में भी ऐसी कई फिल्में बनने लगे जाएगी, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी दस्तक देगी.


राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का एलान : 'छिछोरे' सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म, कंगना सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री

सवाल- आपकी अभी किस फिल्म पर काम कर रहे हैं?
जवाब- अभी फिलहाल स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है. इस साल 2 फिल्म करने जा रहे हैं, जिसकी शूटिंग जून में और दूसरी फिल्म की शूटिंग नवम्बर के आसपास होगी. दोनों की स्क्रिप्ट तैयार है, प्री-प्रोडक्शन का काम जारी है.

सवाल- बहुत से युवा कलाकार फिल्म बना रहे हैं उन्हें क्या संदेश देना चाहेंगे?
जवाब- युवा सीख कर आएं और अच्छा कार्य करें. ज्यादातर देखा गया है लोग सीखने मुंबई जाते हैं, लेकिन लौटकर वापस नहीं आते. वे वहीं सिनेमा बनाकर वहीं रह जाता है. ऐसे में हमारा रीजनल सिनेमा कैसे बढ़ेगा. जो अच्छा सीख रहे हैं उनका पलायन हो जा रहा है. वह लोग वापस आए और अपने जगह में आकर कार्य करें. जो युवा फिल्में बना रहे हैं. उनका सोचने और फिल्म बनाने का तरीका अलग है और निश्चित तौर पर वे इस कड़ी को आगे बढ़ाएंगे.

रायपुर : सालभर के इंतजार के बाद 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के विजेताओं की घोषणा की गई. कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले साल इसे टाल दिया गया था, लेकिन इस साल विजेताओं की घोषणा की गई. पहली बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए छत्तीसगढ़ी फिल्म का चयन किया गया है. निर्माता मनोज वर्मा की 'भूलन द मेज' को नेशनल फिल्म अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. ETV भारत ने डायरेक्टर मनोज वर्मा से खास बातचीत की.

डायरेक्टर मनोज वर्मा

सवाल- आपकी फिल्म को अवॉर्ड मिला है कैसा महसूस कर रहे हैं?
जवाब- बहुत अच्छा लग रहा है. किसी छत्तीसगढ़ी फिल्म को पहली बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है, इसके लिए पूरी टीम को बधाई देता हूं जिन्होंने प्रयास किया है और यह हमारे पूरे छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए बड़ी उपलब्धि है.

सवाल- इस फिल्म को बनाने के लिए आपको कितना समय लगा और क्या तकलीफें उठानी पड़ी ?
जवाब- मनोज वर्मा ने कहा कठिनाइयां इतनी आई है कि उस पर भी एक फिल्म में बन सकती है. संजीव बख्शी का उपन्यास 'भूलन कांदा' है. उस पर यह आधारित फिल्म है. दो से ढाई साल पटकथा लिखने में लगे. उसके बाद कोशिश की गई थी की फिल्म को मुंबई से प्रोड्यूस किया जाए. सभी इसकी स्क्रिप्ट मांगा करते थे, बड़े-बड़े बैनर ने फिल्म की स्क्रिप्ट मांगी थी, चूंकि यह छत्तीसगढ़ की कहानी है, मुझे ऐसा लगता है कि यहां की संस्कृति और यहां के संस्कारों को मैं ज्यादा अच्छे तरह से समझ सकता हूं, इसलिए मैंने बाहर स्क्रिप्ट नहीं भेजी और मुश्किलों से रुपए इकट्ठा कर फिल्म तैयार की. फिल्म बनने के बाद उसे बाहर फिल्म फेस्टिवल में भेजना शुरू किया.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस फिल्म को तीन पुरस्कार मिले हैं. उसके बाद भारत मे 7 अवार्ड अलग जगह मिले. मुझे उम्मीद थी कि नेशनल अवार्ड इस फिल्म को आना चाहिए.

'भूलन द मेज' बनी बेस्ट छत्तीसगढ़ी फिल्म


सवाल- फिल्म का नाम आपने भूलन द मेज क्यों रखा ?
जवाब- छत्तीसगढ़ के लोग भूलन को समझते हैं और उपन्यास का नाम ही भूलन कांदा था. भूलन कांदा एक ऐसा पौधा होता है जिस पर किसी का पैर पड़ जाए तो वह रास्ता भटक जाता है. तब तक होश में नहीं आता जब तक कोई दूसरा इंसान उसे छूता नहीं है. हमारी न्याय व्यवस्था का पैर उस भूलन पर पड़ा हुआ है.उसे छूने और जगाने की जरूरत है यही फिल्म का कंसेप्ट है. कंसेप्ट के हिसाब से हमने भूलन इसलिए रखा है क्योंकि आज की स्तिथि में समाज का हर वर्ग कही न कही भटका हुआ है और उस दूरी पर वो घूम रहा उसी को दिखाने की कोशिश की गई है.

सवाल- छत्तीसगढ़ की फिल्म को पहली बार नेशनल अवार्ड मिला है, अब छत्तीसगढ़ी फिल्म को लेकर आगे क्या संभावनाएं देखते हैं?
जवाब- यह छत्तीसगढ़ी फिल्म का परिदृश्य बदलने की संभावनाएं दिखती हैं, क्योंकि अभी तक सिनेमा बन रहे हैं वे प्रयास नहीं करते है कि समानांतर सिनेमा बेस्ड फिल्म बनाया जाए. यहां पर थियेटर की कमी है, लागत निकलना मुश्किल है, बहुत से आर्थिक दिक्कतें आती है, लेकिन जिस तरस से सरकार नई फिल्म नीति लाने वाली है जिसमें 50 प्रतिशत तक सब्सिडी की बात चल रही है. अगर सरकार का समर्थन रहा तो अब छत्तीसगढ़ में भी ऐसी कई फिल्में बनने लगे जाएगी, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी दस्तक देगी.


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सवाल- आपकी अभी किस फिल्म पर काम कर रहे हैं?
जवाब- अभी फिलहाल स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है. इस साल 2 फिल्म करने जा रहे हैं, जिसकी शूटिंग जून में और दूसरी फिल्म की शूटिंग नवम्बर के आसपास होगी. दोनों की स्क्रिप्ट तैयार है, प्री-प्रोडक्शन का काम जारी है.

सवाल- बहुत से युवा कलाकार फिल्म बना रहे हैं उन्हें क्या संदेश देना चाहेंगे?
जवाब- युवा सीख कर आएं और अच्छा कार्य करें. ज्यादातर देखा गया है लोग सीखने मुंबई जाते हैं, लेकिन लौटकर वापस नहीं आते. वे वहीं सिनेमा बनाकर वहीं रह जाता है. ऐसे में हमारा रीजनल सिनेमा कैसे बढ़ेगा. जो अच्छा सीख रहे हैं उनका पलायन हो जा रहा है. वह लोग वापस आए और अपने जगह में आकर कार्य करें. जो युवा फिल्में बना रहे हैं. उनका सोचने और फिल्म बनाने का तरीका अलग है और निश्चित तौर पर वे इस कड़ी को आगे बढ़ाएंगे.

Last Updated : Mar 23, 2021, 6:49 AM IST
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