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छत्तीसगढ़ में तेरह मई को संविदा कर्मचारी महासंघ की हड़ताल, एक दिन बंद रहेगा सरकारी कामकाज - strike of chhattisgarh contract employees federation

संविदा कर्मचारी महासंघ एक बार फिर सरकार के खिलाफ एकजुट होने की तैयारी कर रहा है. कर्मचारी महासंघ ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए एकदिवसीय हड़ताल का आह्वान किया (strike of chhattisgarh contract employees federation) है.

Contractual Employees Federations strike on May thirteen in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में तेरह मई को संविदा कर्मचारी महासंघ की हड़ताल
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Published : May 12, 2022, 3:44 PM IST

रायपुर : सर्व विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ ने नियमितीकरण सहित अपनी अन्य मांगों को लेकर 13 मई को एक दिवसीय राज्य स्तरीय हड़ताल का आह्वान (strike of chhattisgarh contract employees federation) किया है. इस हड़ताल की वजह से सभी सरकारी दफ्तरों में कामकाज लगभग बंद रहेगा. महासंघ के प्रांतीय अध्यक्ष कौशलेश तिवारी ने बताया कि ''कांग्रेस सरकार बने 4 साल पूरे होने को है, लेकिन अब तक संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के वादे पर सरकार खरी नहीं उतरी है. सरकार केवल समितियों का गठन कर संविदा कर्मचारियों को ठगने का कार्य कर रही है. स्थिति को लेकर गहन असंतोष की वजह से संविदा कर्मचारी बार-बार आंदोलन पर मजबूर हो रहे हैं.''

क्यों की जा रही है हड़ताल : अध्यक्ष कौशलेश तिवारी ने कहा कि ''हम सरकार को चेतावनी देने के लिए सिर्फ 1 दिन की हड़ताल पर जा रहे हैं, लेकिन नक्कारखाने में हमारी इस एक दिनी तूती की आवाज यदि किसी ने ना सुनी तो अनिश्चितकालीन हड़ताल की रणभेरी बजानी पड़ेगी. सरकार को आने वाले दिनों में एक गंभीर और लंबे संघर्ष को देखने के लिए खुद को तैयार कर लेना चाहिए, क्योंकि हमारी तैयारी युद्ध स्तर पर जारी है और हर संविदा कर्मचारी सरकार को उसका वादा याद दिलाने और निभाने पर मजबूर करने के लिए कटिबद्ध है.''

सरकार पर विश्वसनीयता खोने का आरोप : महासंघ के उपाध्यक्ष हेमंत सिन्हा का कहना है कि ''मनरेगा के कर्मचारियों की मांगों के परीक्षण के लिए सरकार की प्रसन्ना कमेटी का गठन एक छलावा ही है. क्योंकि इसके पूर्व संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए (Demand for regularization of contract workers) नीति-निर्देश तैयार करने के लिए सरकार गठन के तत्काल बाद पिंगुआ समिति बनी थी. लेकिन नतीजा शून्य ही रहा. फिर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कर्मचारियों की मांगों के परीक्षण के लिए भी एक समिति का गठन किया गया. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात. आज पर्यंत उक्त दोनों ही समितियों ने प्रतिवेदन सरकार को नहीं सौंपा. ना ही उनकी रिपोर्ट सार्वजनिक हुई. इसलिए एक और नई समिति के गठन का औचित्य समझ से परे है.''


बीजेपी शासन को किया जा रहा याद : महासंघ के सचिव श्रीकांत लाश्कर ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि ''हम संविदा कर्मचारी भी इसी व्यवस्था का हिस्सा हैं. हमारे ही कंधों पर इस सरकार ने कोविड-19 जैसा महासमर पार किया है. कोविड-19 से बहुत से संविदा कर्मचारी भी काल कवलित हुए. आज उनके बच्चे दाने-दाने को मोहताज हैं. क्योंकि हम संविदा कर्मचारियों को ना तो चिकित्सा परिचर्या का लाभ मिलता है, ना कर्मचारी जीवन बीमा, ना ही अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान हमारे लिए है. कांग्रेस शासन काल के 4 वर्षों में संविदा कर्मचारियों को एक भी वेतन वृद्धि नहीं प्राप्त हुई है. जबकि भाजपा शासनकाल में हर 2 वर्ष में एक बार कम से कम 10% की वृद्धि होती थी.''

क्यों हो रही सड़क पर उतरने की तैयारी : बता दें कि विधानसभा चुनाव 2018 के दौरान कांग्रेस में अपने जन घोषणापत्र में संविदा कर्मचारियों को नियमितीकरण करने की बात कही (Demands of Chhattisgarh Contract Employees Federation) थी. लेकिन सत्ता पर काबिज होने के लगभग 4 साल बाद भी अब तक सरकार जन घोषणा पत्र में किए अपने इस वादे को पूरा नहीं कर सकी है .जिसे लेकर संविदा कर्मचारियों में काफी आक्रोश है. यही वजह है कि अब यह संविदा कर्मी अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की तैयारी में है.

रायपुर : सर्व विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ ने नियमितीकरण सहित अपनी अन्य मांगों को लेकर 13 मई को एक दिवसीय राज्य स्तरीय हड़ताल का आह्वान (strike of chhattisgarh contract employees federation) किया है. इस हड़ताल की वजह से सभी सरकारी दफ्तरों में कामकाज लगभग बंद रहेगा. महासंघ के प्रांतीय अध्यक्ष कौशलेश तिवारी ने बताया कि ''कांग्रेस सरकार बने 4 साल पूरे होने को है, लेकिन अब तक संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के वादे पर सरकार खरी नहीं उतरी है. सरकार केवल समितियों का गठन कर संविदा कर्मचारियों को ठगने का कार्य कर रही है. स्थिति को लेकर गहन असंतोष की वजह से संविदा कर्मचारी बार-बार आंदोलन पर मजबूर हो रहे हैं.''

क्यों की जा रही है हड़ताल : अध्यक्ष कौशलेश तिवारी ने कहा कि ''हम सरकार को चेतावनी देने के लिए सिर्फ 1 दिन की हड़ताल पर जा रहे हैं, लेकिन नक्कारखाने में हमारी इस एक दिनी तूती की आवाज यदि किसी ने ना सुनी तो अनिश्चितकालीन हड़ताल की रणभेरी बजानी पड़ेगी. सरकार को आने वाले दिनों में एक गंभीर और लंबे संघर्ष को देखने के लिए खुद को तैयार कर लेना चाहिए, क्योंकि हमारी तैयारी युद्ध स्तर पर जारी है और हर संविदा कर्मचारी सरकार को उसका वादा याद दिलाने और निभाने पर मजबूर करने के लिए कटिबद्ध है.''

सरकार पर विश्वसनीयता खोने का आरोप : महासंघ के उपाध्यक्ष हेमंत सिन्हा का कहना है कि ''मनरेगा के कर्मचारियों की मांगों के परीक्षण के लिए सरकार की प्रसन्ना कमेटी का गठन एक छलावा ही है. क्योंकि इसके पूर्व संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए (Demand for regularization of contract workers) नीति-निर्देश तैयार करने के लिए सरकार गठन के तत्काल बाद पिंगुआ समिति बनी थी. लेकिन नतीजा शून्य ही रहा. फिर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कर्मचारियों की मांगों के परीक्षण के लिए भी एक समिति का गठन किया गया. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात. आज पर्यंत उक्त दोनों ही समितियों ने प्रतिवेदन सरकार को नहीं सौंपा. ना ही उनकी रिपोर्ट सार्वजनिक हुई. इसलिए एक और नई समिति के गठन का औचित्य समझ से परे है.''


बीजेपी शासन को किया जा रहा याद : महासंघ के सचिव श्रीकांत लाश्कर ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि ''हम संविदा कर्मचारी भी इसी व्यवस्था का हिस्सा हैं. हमारे ही कंधों पर इस सरकार ने कोविड-19 जैसा महासमर पार किया है. कोविड-19 से बहुत से संविदा कर्मचारी भी काल कवलित हुए. आज उनके बच्चे दाने-दाने को मोहताज हैं. क्योंकि हम संविदा कर्मचारियों को ना तो चिकित्सा परिचर्या का लाभ मिलता है, ना कर्मचारी जीवन बीमा, ना ही अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान हमारे लिए है. कांग्रेस शासन काल के 4 वर्षों में संविदा कर्मचारियों को एक भी वेतन वृद्धि नहीं प्राप्त हुई है. जबकि भाजपा शासनकाल में हर 2 वर्ष में एक बार कम से कम 10% की वृद्धि होती थी.''

क्यों हो रही सड़क पर उतरने की तैयारी : बता दें कि विधानसभा चुनाव 2018 के दौरान कांग्रेस में अपने जन घोषणापत्र में संविदा कर्मचारियों को नियमितीकरण करने की बात कही (Demands of Chhattisgarh Contract Employees Federation) थी. लेकिन सत्ता पर काबिज होने के लगभग 4 साल बाद भी अब तक सरकार जन घोषणा पत्र में किए अपने इस वादे को पूरा नहीं कर सकी है .जिसे लेकर संविदा कर्मचारियों में काफी आक्रोश है. यही वजह है कि अब यह संविदा कर्मी अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की तैयारी में है.

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