रायपुर : छत्तीसगढ़ में गोबर से ब्रीफकेस बनाने वाली महिला स्व सहायता समूह की महिलाओं से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुलाकात की. सीएम बघेल ने उन्हें विधानसभा स्थित अपने कार्यालय में बुलाकर सम्मानित भी किया. मुख्यमंत्री से सम्मानित होने पर स्व सहायता समूह की महिलाएं भावुक हो गईं. उन्होंने कहा कि कभी सोचा भी नहीं था कि उनके काम का सम्मान खुद मुख्यमंत्री करेंगे. इस मौके पर सीएम बघेल ने होली से पहले स्व सहायता समूह की महिलाओं को मिठाई भेंट की. बता दें कि छत्तीसगढ़ में जिस तरह से गोबर को लेकर काम किया जा रहा है, वह काबिल-ए-तारीफ है. छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने गोबर से न सिर्फ उत्पाद बनाया है, बल्कि उनकी बिक्री से पूरे छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया है. आज गोबर से बनी चीजें हमारे प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बिक रही हैं.
आपके बनाए ब्रीफकेस की चर्चा देशभर में : सीएम बघेल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने महिलाओं को होली की अग्रिम शुभकामनाएं दीं. सीएम ने कहा कि आपके बनाए ब्रीफकेस की चर्चा पूरे देश में हो रही है. आपका यह कार्य मौलिक तो है ही, साथ ही हमारे गोधन का भी सम्मान है. वहीं महिला स्व सहायता समूह की सदस्य नोमिन पाल ने सीएम से कहा कि अब हम गोबर से पेंट बनाने की तैयारी कर रहे हैं. साथ ही गोबर की ईंट बनाकर छत्तीसगढ़ महतारी का मंदिर बनाने की भी योजना है. इसके बाद मुख्यमंत्री ने उनके प्रयासों में सहयोग करने का आश्वासन दिया.
गौठान ने दिया कठिन वक्त में सहारा...
समूह की नोमिन पाल ने बताया कि पति के निधन के बाद घर चलाना मुश्किल हो गया था. 6 महीने बहुत दिक्कत हुई, लेकिन अब गौठान के जरिये गोबर से निर्मित सामान बना रहे हैं. महीने में करीब 15 हजार रुपये कमा लेते हैं. होली से पहले ही गोबर से निर्मित 150 किलो से ज्यादा गुलाल बेच चुके हैं. दिल्ली से भी गुलाल का ऑर्डर मिला, लेकिन समय की कमी के चलते हमने मना कर दिया. गोबर की लकड़ी, दीये, मूर्ति, चप्पल भी बड़ी संख्या में बना रहे हैं. सीएम भूपेश बघेल से मुलाकात के दौरान समूह की नीलम अग्रवाल, नोमिन पाल, मनीषा पटवा, कांति यादव और लता पुणे उपस्थित रहीं.
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10 दिन में तैयार हुआ ब्रीफकेस
बता दें कि बजट ब्रीफकेस नगर पालिक निगम रायपुर के गोकुल धाम गोठान में कार्य करने वाली 'एक पहल' महिला स्व सहायता समूह की दीदी नोमिन पाल की टीम ने बनाया है. ब्रीफकेस को गोबर, चूना पावडर, मैदा लकड़ी एवं ग्वार गम के मिक्चर को परत-दर-परत लगाकर 10 दिनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया है. इसी तकनीक से समूह द्वारा गोबर का खड़ाऊ भी बनाया जाता है. इसमें लगे हैंडल और कॉर्नर कोंडागांव शहर में समूह द्वारा निर्मित बस्तर आर्ट कारीगर से तैयार कराए गए हैं.