रायपुर : बाल विवाह समाज के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है. महिला एवं बाल विभाग (Chhattisgarh Women and Child Development Department) ने इस साल अब तक 60 से अधिक नाबालिगों को बालिका वधु बनने से रोकने में सफलता हासिल की है. बाल विवाह को रोकने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका विभाग की ओर से बनाई गई बाल संरक्षण समितियां हैं, जिसे विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में बनाई है. ये समितियां दिन रात निगरानी करती हैं. यदि कहीं बाल विवाह का संदेह होता है तो तत्काल इसकी जानकारी प्रशासन को देती हैं. इसके बाद प्रशासन पुलिस की मदद से मौके पर पहुंचकर समझाइश देते हुए बालिका वधु बनने से रोकती हैं.
पिछले साल कितने बाल विवाह रोके : महिला एवं बाल विकास विभाग ने पिछले साल 379 बाल विवाह रोके थे. इसमें भी गांव में बनाई गई समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस साल यानी जनवरी से लेकर अब तक की बात करें तो रायपुर जिले में नौ, गरियाबंद में छह, दुर्ग में छह, कोरिया में 14 समेत अन्य जिलों में भी बाल विवाह रोकने में विभाग ने सफलता पाई है. बाल संरक्षण इकाई के अफसर नवनीत स्वर्णकार (Navneet Swarnakar Officer of Child Protection Unit) ने बताया कि "हमारी टीम ने इस साल रायपुर जिले में 9 बाल विवाह रोकने में सफलता पाई है. शादी के सीजन में हमारी टीम ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार नजर बनाकर रखी थी. जिसके बदौलत 9 बालिकाओं को बालिका वधु बनने से रोका है."
कितने घटे मामले : महिला बाल एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों के मुताबिक 5 साल पहले प्रदेश में बाल विवाह की स्थिति करीब 21 फीसदी थी, जो वर्तमान में 9 फीसद घट गई है. हालांकि अभी भी प्रदेश में 12.1% यानी 100 में 12 किशोरियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो रही है. इसका खुलासा नेशनल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में हुआ है. वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के अंतर्गत प्रदेश में वर्ष 2016 में आठ, 2017 में एक, 2018 में दो, 2019 में शून्य और 2020 में एक प्रकरण दर्ज किया गया है.
किन जिलों में बढ़े मामले -सर्वे के मुताबिक रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, धमतरी, कोरिया, गरियाबंद, जांजगीर-चांपा और नारायणपुर में सर्वाधिक बाल विवाह हो रहे हैं. इन इलाकों में बाल संरक्षण समितियां दिन रात एककर मेहनत कर रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भी कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि लोगों को बाल विवाह से होने वाले दुष्परिणाम के बारे में जागरूक किया जा (child marriage in chhattisgarh) सके.
केस-1 : बिलासपुर के कोटा में एक किशोरी की शादी की सूचना बाल कल्याण समिति (child welfare committee chhattisgarh) ने प्रशासन को दी. शादी की सूचना फोन पर दी गई तो बाल संरक्षण से जुड़ी टीम ने मंडप में पहुंचकर शादी रुकवाई. इस दौरान दोनों परिवारों ने खूब विवाद किया. पुलिस के हस्तक्षेप के बाद शादी को रुकवा दी.
केस- 2 : राजधानी रायपुर से सटे अभनपुर क्षेत्र के मानिकचौरी गांव में भी बाल विवाह का मामला सामने आया था. इसकी खबर बाल संरक्षण समिति को मिलते ही टीम सक्रियता से वहां पहुंची और किशोरी को बालिका वधू बनने से रोका गया.
बाल विवाह में छत्तीसगढ़ का स्थान : देशभर में छत्तीसगढ़ बाल विवाह के मामले में 11 नंबर पर है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवी रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 12.1 प्रतिशत बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं. देश मे पहले स्थान पर पश्चिम बंगाल 42% है. इसके बाद बिहार 40%, झारखंड 32.2%, आंध्र प्रदेश 29.3%, राजस्थान 25.4%, मध्यप्रदेश 23.1 %, महाराष्ट्र 21.9%, गुजरात 21.8 % , उड़ीसा 20.5%, उत्तर प्रदेश 12.1% है.
क्यों कम हो रहे हैं मामले : महिला एवं बाल विकास विभाग की संचालक दिव्या उमेश मिश्रा ने बताया कि "लोगों में अब धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ती जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में हमारी बाल संरक्षण समितियां लगी हुई है, जो सूचना मिलने विभाग को खबर करती हैं. इसके बाद टीम मौके पर पहुंचकर दोनों पक्षों को समझाते हुए विवाह रुकवाती है. विवाद की स्थिति निर्मित होने पर पुलिस की मदद ली जाती है."
छत्तीसगढ़ में बाल विवाह के मामले हुए कम, जानिए क्यों हुआ ऐसा ?
छत्तीसगढ़ में बाल विवाह के मामलों में कमी देखी गई है. इसका श्रेय महिला एवं बाल विकास विभाग (Chhattisgarh Women and Child Development Department) के अधिकारियों को जाता है. जिन्होंने समाज सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर बाल विवाह रोकने के प्रति लोगों को जागरुक किया है.
रायपुर : बाल विवाह समाज के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है. महिला एवं बाल विभाग (Chhattisgarh Women and Child Development Department) ने इस साल अब तक 60 से अधिक नाबालिगों को बालिका वधु बनने से रोकने में सफलता हासिल की है. बाल विवाह को रोकने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका विभाग की ओर से बनाई गई बाल संरक्षण समितियां हैं, जिसे विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में बनाई है. ये समितियां दिन रात निगरानी करती हैं. यदि कहीं बाल विवाह का संदेह होता है तो तत्काल इसकी जानकारी प्रशासन को देती हैं. इसके बाद प्रशासन पुलिस की मदद से मौके पर पहुंचकर समझाइश देते हुए बालिका वधु बनने से रोकती हैं.
पिछले साल कितने बाल विवाह रोके : महिला एवं बाल विकास विभाग ने पिछले साल 379 बाल विवाह रोके थे. इसमें भी गांव में बनाई गई समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस साल यानी जनवरी से लेकर अब तक की बात करें तो रायपुर जिले में नौ, गरियाबंद में छह, दुर्ग में छह, कोरिया में 14 समेत अन्य जिलों में भी बाल विवाह रोकने में विभाग ने सफलता पाई है. बाल संरक्षण इकाई के अफसर नवनीत स्वर्णकार (Navneet Swarnakar Officer of Child Protection Unit) ने बताया कि "हमारी टीम ने इस साल रायपुर जिले में 9 बाल विवाह रोकने में सफलता पाई है. शादी के सीजन में हमारी टीम ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार नजर बनाकर रखी थी. जिसके बदौलत 9 बालिकाओं को बालिका वधु बनने से रोका है."
कितने घटे मामले : महिला बाल एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों के मुताबिक 5 साल पहले प्रदेश में बाल विवाह की स्थिति करीब 21 फीसदी थी, जो वर्तमान में 9 फीसद घट गई है. हालांकि अभी भी प्रदेश में 12.1% यानी 100 में 12 किशोरियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो रही है. इसका खुलासा नेशनल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में हुआ है. वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के अंतर्गत प्रदेश में वर्ष 2016 में आठ, 2017 में एक, 2018 में दो, 2019 में शून्य और 2020 में एक प्रकरण दर्ज किया गया है.
किन जिलों में बढ़े मामले -सर्वे के मुताबिक रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, धमतरी, कोरिया, गरियाबंद, जांजगीर-चांपा और नारायणपुर में सर्वाधिक बाल विवाह हो रहे हैं. इन इलाकों में बाल संरक्षण समितियां दिन रात एककर मेहनत कर रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भी कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि लोगों को बाल विवाह से होने वाले दुष्परिणाम के बारे में जागरूक किया जा (child marriage in chhattisgarh) सके.
केस-1 : बिलासपुर के कोटा में एक किशोरी की शादी की सूचना बाल कल्याण समिति (child welfare committee chhattisgarh) ने प्रशासन को दी. शादी की सूचना फोन पर दी गई तो बाल संरक्षण से जुड़ी टीम ने मंडप में पहुंचकर शादी रुकवाई. इस दौरान दोनों परिवारों ने खूब विवाद किया. पुलिस के हस्तक्षेप के बाद शादी को रुकवा दी.
केस- 2 : राजधानी रायपुर से सटे अभनपुर क्षेत्र के मानिकचौरी गांव में भी बाल विवाह का मामला सामने आया था. इसकी खबर बाल संरक्षण समिति को मिलते ही टीम सक्रियता से वहां पहुंची और किशोरी को बालिका वधू बनने से रोका गया.
बाल विवाह में छत्तीसगढ़ का स्थान : देशभर में छत्तीसगढ़ बाल विवाह के मामले में 11 नंबर पर है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवी रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 12.1 प्रतिशत बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं. देश मे पहले स्थान पर पश्चिम बंगाल 42% है. इसके बाद बिहार 40%, झारखंड 32.2%, आंध्र प्रदेश 29.3%, राजस्थान 25.4%, मध्यप्रदेश 23.1 %, महाराष्ट्र 21.9%, गुजरात 21.8 % , उड़ीसा 20.5%, उत्तर प्रदेश 12.1% है.
क्यों कम हो रहे हैं मामले : महिला एवं बाल विकास विभाग की संचालक दिव्या उमेश मिश्रा ने बताया कि "लोगों में अब धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ती जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में हमारी बाल संरक्षण समितियां लगी हुई है, जो सूचना मिलने विभाग को खबर करती हैं. इसके बाद टीम मौके पर पहुंचकर दोनों पक्षों को समझाते हुए विवाह रुकवाती है. विवाद की स्थिति निर्मित होने पर पुलिस की मदद ली जाती है."