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बस्तर दशहरा में रथ निर्माण का कार्य शुरू, प्रशासन की व्यवस्था से नाखुश हैं कारीगर

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व (world famous bastar dussehra festival) की शुरुआत हो चुकी है. इसको लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. 75 दिनों तक चलने वाले इस दशहरा में सबसे प्रमुख परंपरा (dominant tradition) है रथ परिक्रमा. रथ परिक्रमा (chariot circumambulation) के लिए रथ निर्माण की तैयारियां शुरू हो चुकी है. इसी रथ में दंतेश्वरी देवी (Danteshwari Devi) के छत्र को रख शहर की परिक्रमा कराई जाती है.

Artisans are unhappy with the system of administration
प्रशासन की व्यवस्था से नाखुश हैं कारीगर
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Published : Sep 26, 2021, 10:16 PM IST

Updated : Sep 26, 2021, 11:17 PM IST

जगदलपुरः विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व (world famous bastar dussehra festival) की शुरुआत हो चुकी है. 75 दिनों तक चलने वाली इस दशहरा में सबसे प्रमुख परंपरा (dominant tradition) है रथ परिक्रमा. रथ परिक्रमा के लिए रथ निर्माण की तैयारियां (Chariot construction preparations) शुरू हो चुकी हैं. इसी रथ में दंतेश्वरी देवी के छत्र को रख शहर की परिक्रमा कराई जाती है. लगभग 30 फुट ऊंचे इस विशालकाय रथ को परिक्रमा कराने के लिए 400 से अधिक आदिवासियों की जरूरत पड़ती है.

बस्तर दशहरा रथ निर्माण का कार्य शुरू

विशेष रुप से बस्तर जिले के 2 गांव से पहुंचे 200 से अधिक रथ कारीगरों द्वारा रथ निर्माण का कार्य शुरू कर दिया गया है और नवरात्रि के दूसरे दिन तक यह रथ पूरी तरह से बन कर तैयार हो जाएगा. जिसके बाद बस्तर की कुलदेवी मां दंतेश्वरी (Kuldevi Maa Danteshwari) के छत्र को रथारूढ़ कर शहर परिक्रमा (city ​​parikrama) कराया जाएगा.

इस ऐतिहासिक पर्व (historical festival) में आदिवासियों द्वारा खींचे जाने वाले रथ के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. शहर के सिरहासार भवन में ग्रामीण कारीगरों द्वारा रथ निर्माण का कार्य किया जा रहा है. रथ बनाने की यह प्रक्रिया भी काफी विशेष होती है. परंपरा अनुसार इस रथ निर्माण की पूरी प्रक्रिया स्थानीय गांव के विशेष वर्गों में बंटी होती है. रथ निर्माण में प्रयुक्त सरई की लकड़ियों को एक विशेष वर्ग के लोगों के द्वारा लाया जाता है और इस लकड़ी की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है.

लगभग 600 वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार इस रथ निर्माण के लिए बस्तर जिले में स्थित बड़ेउमर गांव और झाड़उमर गांव के ही ग्रामीण आदिवासियों द्वारा25 दिनों में इन लकड़ियों से विशालकाय रथ का निर्माण (building a giant chariot) किया जाता है. इस रथ को बनाने के लिए 200 से अधिक ग्रामीण कारीगर शहर के सिरासार भवन में ठहरकर 25 दिनों के भीतर ही रथ तैयार कर लेते हैं और नवरात्रि के दूसरे दिन बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढ़ कर शहर में परिक्रमा लगाई जाती है.

इस बार कम संख्या में पहुंच रहे रथ कारीगर

हालांकि इस बार कोरोना काल को देखते हुए काफी कम संख्या में रथ कारीगर शहर पहुंचे हुए हैं. वहीं इस बार 8 चक्कों की रथ के जगह चार चक्कों की रथ का निर्माण किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक पिछले साल 8 चक्कों के रथ का निर्माण किया गया था. वहीं इस साल 4 चक्कों के रथ का निर्माण किया जा रहा है. इधर, प्रशासन भी इन रथ कारीगरों के लिए शहर के सिरासार भवन में ठहरने की व्यवस्था कराया हुआ है. हालांकि रथ कारीगर (chariot artisan) प्रशासन की व्यवस्था से थोड़ी नाराज दिखे. कारीगरों का कहना है कि उन्हें राशन के नाम पर दाल, चावल और आलू, प्याज तो दिए जा रहे हैं, लेकिन हरी सब्जी और सुबह का नाश्ता नहीं दिया जा रहा है. जिसके चलते उन्हें काफी परेशानी हो रही है.

दंतेवाड़ा में सागौन लकड़ी के साथ धराया सीआरपीएफ का जवान

दशहरा समिति और राज्य शासन तक पहुंचाई जाएगी की समस्या

प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में रथ कारीगरों से मिली शिकायत के बाद काफी व्यवस्था दुरुस्त की गई है. वहीं, परंपरा अनुसार विशेष 2 गांव के ही रथ कारीगरों द्वारा हर साल रथ का निर्माण किया जाता है और उनके द्वारा निस्वार्थ भावना से रथ का निर्माण किया जाता है. दशहरा समिति और राज्य शासन के सामने रथ कारीगरों की बात रखने की बात प्रशासन के अधिकारियों ने कही है.

जगदलपुरः विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व (world famous bastar dussehra festival) की शुरुआत हो चुकी है. 75 दिनों तक चलने वाली इस दशहरा में सबसे प्रमुख परंपरा (dominant tradition) है रथ परिक्रमा. रथ परिक्रमा के लिए रथ निर्माण की तैयारियां (Chariot construction preparations) शुरू हो चुकी हैं. इसी रथ में दंतेश्वरी देवी के छत्र को रख शहर की परिक्रमा कराई जाती है. लगभग 30 फुट ऊंचे इस विशालकाय रथ को परिक्रमा कराने के लिए 400 से अधिक आदिवासियों की जरूरत पड़ती है.

बस्तर दशहरा रथ निर्माण का कार्य शुरू

विशेष रुप से बस्तर जिले के 2 गांव से पहुंचे 200 से अधिक रथ कारीगरों द्वारा रथ निर्माण का कार्य शुरू कर दिया गया है और नवरात्रि के दूसरे दिन तक यह रथ पूरी तरह से बन कर तैयार हो जाएगा. जिसके बाद बस्तर की कुलदेवी मां दंतेश्वरी (Kuldevi Maa Danteshwari) के छत्र को रथारूढ़ कर शहर परिक्रमा (city ​​parikrama) कराया जाएगा.

इस ऐतिहासिक पर्व (historical festival) में आदिवासियों द्वारा खींचे जाने वाले रथ के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. शहर के सिरहासार भवन में ग्रामीण कारीगरों द्वारा रथ निर्माण का कार्य किया जा रहा है. रथ बनाने की यह प्रक्रिया भी काफी विशेष होती है. परंपरा अनुसार इस रथ निर्माण की पूरी प्रक्रिया स्थानीय गांव के विशेष वर्गों में बंटी होती है. रथ निर्माण में प्रयुक्त सरई की लकड़ियों को एक विशेष वर्ग के लोगों के द्वारा लाया जाता है और इस लकड़ी की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है.

लगभग 600 वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार इस रथ निर्माण के लिए बस्तर जिले में स्थित बड़ेउमर गांव और झाड़उमर गांव के ही ग्रामीण आदिवासियों द्वारा25 दिनों में इन लकड़ियों से विशालकाय रथ का निर्माण (building a giant chariot) किया जाता है. इस रथ को बनाने के लिए 200 से अधिक ग्रामीण कारीगर शहर के सिरासार भवन में ठहरकर 25 दिनों के भीतर ही रथ तैयार कर लेते हैं और नवरात्रि के दूसरे दिन बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढ़ कर शहर में परिक्रमा लगाई जाती है.

इस बार कम संख्या में पहुंच रहे रथ कारीगर

हालांकि इस बार कोरोना काल को देखते हुए काफी कम संख्या में रथ कारीगर शहर पहुंचे हुए हैं. वहीं इस बार 8 चक्कों की रथ के जगह चार चक्कों की रथ का निर्माण किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक पिछले साल 8 चक्कों के रथ का निर्माण किया गया था. वहीं इस साल 4 चक्कों के रथ का निर्माण किया जा रहा है. इधर, प्रशासन भी इन रथ कारीगरों के लिए शहर के सिरासार भवन में ठहरने की व्यवस्था कराया हुआ है. हालांकि रथ कारीगर (chariot artisan) प्रशासन की व्यवस्था से थोड़ी नाराज दिखे. कारीगरों का कहना है कि उन्हें राशन के नाम पर दाल, चावल और आलू, प्याज तो दिए जा रहे हैं, लेकिन हरी सब्जी और सुबह का नाश्ता नहीं दिया जा रहा है. जिसके चलते उन्हें काफी परेशानी हो रही है.

दंतेवाड़ा में सागौन लकड़ी के साथ धराया सीआरपीएफ का जवान

दशहरा समिति और राज्य शासन तक पहुंचाई जाएगी की समस्या

प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में रथ कारीगरों से मिली शिकायत के बाद काफी व्यवस्था दुरुस्त की गई है. वहीं, परंपरा अनुसार विशेष 2 गांव के ही रथ कारीगरों द्वारा हर साल रथ का निर्माण किया जाता है और उनके द्वारा निस्वार्थ भावना से रथ का निर्माण किया जाता है. दशहरा समिति और राज्य शासन के सामने रथ कारीगरों की बात रखने की बात प्रशासन के अधिकारियों ने कही है.

Last Updated : Sep 26, 2021, 11:17 PM IST
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