जगदलपुर : बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती नदी को बचाने की कवायद में प्रदेश सरकार ने कदम उठाया है. छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद पहली बार बस्तर में बस्तर विकास प्राधिकरण की बैठक हुई. जिसकी अध्यक्षता स्थानीय विधायक लखेश्वर बघेल के द्वारा की गई. इस बैठक में खुद मुख्यमंत्री भी शामिल हुए. लगभग 2 घंटे से अधिक समय तक चली इस बैठक में कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई और कई फैसले भी लिए गए.
बैठक के सबसे अधिक महत्वपूर्ण और चर्चा में आने वाला फैसला है इंद्रावती विकास प्राधिकरण के गठन का. बस्तर के इतिहास में पहली बार ऐसा देखने में आया जब बस्तर की प्राण दायिनी इंद्रावती नदी पूरी तरह से सूख गई, जिससे बस्तर का गौरव माने जाने वाला चित्रकोट जलप्रपात भी पूरी तरह सूख गया.
आंदोलन के बाद सीएम ने लिया बड़ा फैसला
यह बस्तर के लिए बेहद चिंताजनक विषय था जिसे लेकर बस्तर के कुछ प्रबुद्ध जनों व जागरूक शहरवासियों ने चिंता जाहिर करते हुए इंद्रावती बचाने के उद्देश्य से ओडिसा के जोरा नाला से चित्रकोट तक पदयात्रा करने का निर्णय लिया. मुट्ठी भर लोगों से शुरू हुए इस आंदोलन में लगातार ग्रामीण और अन्य जागरूक शहरवासी भी जुड़ने लगे और इस आंदोलन की आवाज रायपुर तक पहुंची. मुख्यमंत्री ने इसके समाधान के लिए इंद्रावती विकास प्राधिकरण का गठन करने का बड़ा फैसला लिया.
बस्तर की प्राणदायिनी है इंद्रावती नदी
बस्तर की प्राण दायिनी इंद्रावती नदी का सूख जाना मानो बस्तर के लिए एक अभिशाप है और यही वजह है कि इसे लेकर प्रबुद्ध जनों ने एक आंदोलन की शुरुआत की और इस आंदोलन का ही असर था कि सरकार को इंद्रावती को बचाने के लिए एक प्राधिकरण का गठन करना पड़ा. खुद मुख्यमंत्री ने माना कि इंद्रावती बस्तर की प्राण दायिनी है और इसके पुनर्जीवन के लिए इस तरह के फैसले लेने जरूरी थे.
ओडिशा के संबंध में सीएम ने नहीं दी ज्यादा जानकारी
हालांकि इंद्रावती नदी में पानी ओडिशा से ही आना है और ओडिशा से बातचित करने को लेकर मुख्यमंत्री ने केवल इतना ही कहा कि ओडिशा से बात की जाएगी और जो कानूनी प्रक्रिया चल रही है उसे आगे बढ़ाया जाएगा. ओडिशा से बातचीत कब की जाएगी और कानूनी प्रक्रिया किस तरह से आगे बढ़ जाएगी इस पर मुख्यमंत्री ने कोई विशेष जानकारी नहीं दी.
इंद्रावती का सूख जाना पूरे बस्तर के लिए एक बड़ी समस्या है, खासकर उन किसानों के लिए जो इंद्रावती के किनारे बसे हैं. इंद्रावती के पानी पर ही उनका जीवन निर्वाह होता है. ऐसे में जिन लोगों ने एक सार्थक परिणाम के उद्देश्य से 'इंद्रावती बचाओ' आंदोलन की शुरुआत की उनके मन में इंद्रावती प्राधिकरण के गठन को लेकर खुशी तो है वहीं दूसरी और कुछ शंकाएं भी हैं.
क्या कहते हैं आंदोलन से जुड़े लोग
'इंद्रावती बचाओ' आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री का इंद्रावती को लेकर प्राधिकरण के गठन करने का फैसला स्वागत योग्य है और उम्मीद है कि इससे कोई सार्थक परिणाम जरूर निकलेगा. वे कहते हैं कि इस प्राधिकरण में सदस्यों के तौर पर आम जनों को और साथ ही साथ उन किसानों को भी लेना होगा जो इंद्रावती नदी पर निर्भर हैं और साथ ही स्थानीय लोगों को भी विशेष तौर पर प्राथमिकता देनी होगी, जिससे भविष्य में इंद्रावती के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम उठाया जा सके.
सिर्फ प्राधिकरण के गठन से नहीं बचेगी इंद्रावती
वहीं इस अभियान से जुड़े शहर के वरिष्ठ वकील आनंद मोहन मिश्रा ने कहा कि यह मसला अंतरराज्यीय है. इस पर केवल एक राज्य निर्णय नहीं ले सकता. इस समस्या के समाधान के लिए छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्य ओडिशा को केंद्रीय जल आयोग के साथ बैठकर कोई ठोस निर्णय लेना होगा. केवल इंद्रावती प्राधिकरण के गठन से ही इंद्रावती को बचाया नहीं जा सकता क्योंकि इसमें दोनों ही राज्यों की प्रमुख भूमिका है इसलिए केंद्रीय जल आयोग के सहयोग से दोनों ही राज्यों को बैठकर कोई रास्ता निकालना होगा जिससे कि इंद्रावती को बचाया जा सके.
वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने इंद्रावती के मूल स्वरूप को लेकर सुप्रीम कोर्ट के शरण में जाने का फैसला किया है. इस पर भी वरिष्ठ वकील ने कहा कि इससे पहले भी मामला न्यायालय में जा चुका है पर कोई सार्थक परिणाम नहीं आया. मंच के सदस्यों का कहना है कि अभी उनके उद्देश्य की पूर्ति नहीं हुई है हालांकि इंद्रावती प्राधिकरण के गठन पर फैसला ले लिया गया है पर स्थायी समाधान और नदी के मूलस्वरूप को लेकर उनका यह आंदोलन और संघर्ष आगे भी चलता रहेगा.
इंद्रावती विकास प्राधिकरण के गठन को लेकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने इसके संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. वहीं इंद्रावती को बचाने की मुहिम शुरू करने वाले सदस्यों की यदि मानी जाए तो केवल प्राधिकरण के गठन से ही इंद्रावती का संरक्षण संभव नहीं है. निश्चित तौर पर पड़ोसी राज्य ओडिशा से भी सार्थक बातचीत करना आवश्यक है क्योंकि ओडिशा से हुए समझौते के मुताबिक छत्तीसगढ़ को उड़ीसा द्वारा 45 टीएमसी पानी दिया जाना है पर वहां की सरकार द्वारा अब तक इस समझौते में वादाखिलाफी ही की गई है. जिससे आज बस्तर में यह स्थिति निर्मित हुई है. अब देखना होगा कि आने वाले समय में इस प्राधिकरण से इंद्रावती की रूपरेखा व दशा किस तरह से सुधर पाती है.