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पेसा कानून को लेकर अरविंद नेताम ने अपनी ही पार्टी पर उठाए सवाल

कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने पेसा कानून को लेकर भूपेश सरकार पर सवाल उठाए हैं.

Arvind Netam allegation on Congress
पेसा कानून को लेकर अरविंद नेताम ने अपनी ही पार्टी पर उठाए सवाल
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Published : Aug 24, 2022, 7:49 PM IST

जगदलपुर : पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस पार्टी के सीनियर आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने पेसा कानून को लेकर अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया (Arvind Netam allegation on Congress ) है. अरविंद नेताम ने पेसा कानून (pesa act in chhattisgarh) के बहुप्रतीक्षित नियमों में जानबूझकर ढिलाई बरतने की बात कही. जगदलपुर में अरविंद नेताम ने कहा 1996 में संविधान की पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में स्वशासन की स्थापना के लिए पेसा कानून पारित किया गया था. देश में ऐसे कुल 10 राज्य हैं जो पूर्ण या आंशिक रूप से संविधान की इस दायरे में आते हैं. इन राज्यों में से पांच ने पहले ही पेसा कानून को लागू करने नियमावली बना ली थी.

ग्राम सभा की शक्तियां कमजोर : नेताम ने कहा कि '' छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार ने पेसा कानून को लागू कराने के लिए नियमों को जरूर बना लिया है. लेकिन इस कानून की मूल भावना के साथ बनाए गए नियम इंसाफ नहीं कर रहे. ग्राम सभा की संवैधानिक शक्तियों को जिला प्रशासन के सामने बौना बना दिया गया है. भूमि अधिग्रहण से पहले ग्राम सभाओं की सहमति के प्रावधान को परामर्श तक सीमित किया गया है. जो कि ठीक नहीं है.''

राज्य सरकार से नेताम की अपील : इन नियमों पर पुनर्विचार करने की मांग नेताम ने राज्य सरकार से की है. उन्होंने कहा अगर राज्य सरकार नियमों को लेकर अडिग रहती है तो आदिवासी समाज भविष्य में आंदोलन को लेकर विचार कर सकता है. फिलहाल बातचीत से समाधान का प्रयास किया जाएगा.

पेसा नियमों में क्या खास है : इन नियमों के अधिसूचित होने से ग्राम सभा को गौण खनिज के हक और उन पर निर्णायक भूमिका को भी तवज्जो मिली है. अब ग्राम सभा की अनुमति और निर्णय के बगैर गौण खनिजों का दोहन नहीं किया जा सकता.स्थानीय तौर पर मौजूद जल संरचनाओं पर नियंत्रण और ग्राम सभाओं की भूमिका को सुनिश्चित किया गया है. हालांकि यह प्रावधान पहली नजर में ही वनाधिकार कानून के प्रावधानों को संकुचित किए जाने का प्रयास दिखाई पड़ता है.ग्राम सभा के गठन, संचालन और उसकी प्रशासनिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इन नियमों में विस्तृत जगह मिली है.वनाधिकार कानून को ध्यान में रखते हुए पेसा नियमों को उसके अनुकूल बनाने की भरसक कोशिश हुई है. लेकिन इस कोशिश में 22 पन्नों में प्रकाशित दस्तावेज में व्यापक अंतर्विरोध हैं. हालांकि इन दोनों महत्वपूर्ण कानूनों के बीच संतुलन बनाने और एक दूसरे का पूरक बनाने के लिए भी गुंजाइश तलाश की गयी है.

जगदलपुर : पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस पार्टी के सीनियर आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने पेसा कानून को लेकर अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया (Arvind Netam allegation on Congress ) है. अरविंद नेताम ने पेसा कानून (pesa act in chhattisgarh) के बहुप्रतीक्षित नियमों में जानबूझकर ढिलाई बरतने की बात कही. जगदलपुर में अरविंद नेताम ने कहा 1996 में संविधान की पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में स्वशासन की स्थापना के लिए पेसा कानून पारित किया गया था. देश में ऐसे कुल 10 राज्य हैं जो पूर्ण या आंशिक रूप से संविधान की इस दायरे में आते हैं. इन राज्यों में से पांच ने पहले ही पेसा कानून को लागू करने नियमावली बना ली थी.

ग्राम सभा की शक्तियां कमजोर : नेताम ने कहा कि '' छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार ने पेसा कानून को लागू कराने के लिए नियमों को जरूर बना लिया है. लेकिन इस कानून की मूल भावना के साथ बनाए गए नियम इंसाफ नहीं कर रहे. ग्राम सभा की संवैधानिक शक्तियों को जिला प्रशासन के सामने बौना बना दिया गया है. भूमि अधिग्रहण से पहले ग्राम सभाओं की सहमति के प्रावधान को परामर्श तक सीमित किया गया है. जो कि ठीक नहीं है.''

राज्य सरकार से नेताम की अपील : इन नियमों पर पुनर्विचार करने की मांग नेताम ने राज्य सरकार से की है. उन्होंने कहा अगर राज्य सरकार नियमों को लेकर अडिग रहती है तो आदिवासी समाज भविष्य में आंदोलन को लेकर विचार कर सकता है. फिलहाल बातचीत से समाधान का प्रयास किया जाएगा.

पेसा नियमों में क्या खास है : इन नियमों के अधिसूचित होने से ग्राम सभा को गौण खनिज के हक और उन पर निर्णायक भूमिका को भी तवज्जो मिली है. अब ग्राम सभा की अनुमति और निर्णय के बगैर गौण खनिजों का दोहन नहीं किया जा सकता.स्थानीय तौर पर मौजूद जल संरचनाओं पर नियंत्रण और ग्राम सभाओं की भूमिका को सुनिश्चित किया गया है. हालांकि यह प्रावधान पहली नजर में ही वनाधिकार कानून के प्रावधानों को संकुचित किए जाने का प्रयास दिखाई पड़ता है.ग्राम सभा के गठन, संचालन और उसकी प्रशासनिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इन नियमों में विस्तृत जगह मिली है.वनाधिकार कानून को ध्यान में रखते हुए पेसा नियमों को उसके अनुकूल बनाने की भरसक कोशिश हुई है. लेकिन इस कोशिश में 22 पन्नों में प्रकाशित दस्तावेज में व्यापक अंतर्विरोध हैं. हालांकि इन दोनों महत्वपूर्ण कानूनों के बीच संतुलन बनाने और एक दूसरे का पूरक बनाने के लिए भी गुंजाइश तलाश की गयी है.

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