बालोद : बालोद शहर में माह-ए- रमजान (ramadan in balod) की बेहतरीन तस्वीर देखने को मिल रही है. साथ ही लोग इस मुबारक महीने में शेहरी और आफतारी का बेहतरीन इंतजाम अपने-अपने घरों में कर रहे हैं . वहीं जामा मस्जिद बालोद परिसर में भी सभी मुस्लिम भाई रोजा इफ्तार करने का लुत्फ उठा रहे हैं. पाक परवरदिगार का लाखों एहसान और करम है . बीते दो साल से इस दुनिया में फैले मुतलक बीमारी कोरोना के कारण मस्जिदों में ज्यादा तादाद में नमाज पढ़ना मना था. जिसको लेकर मुस्लिम भाई काफी परेशान थे . मस्जिदों में नमाज़ और तराबी (विशेष नमाज़) पढ़ने के लिए बेताब रहते थे.
रहती है दिल्ली तमन्ना : हर किसी की दिली तमन्ना रहती थी ,कि मस्जिद में जाकर अल्लाह की इबादत (worship of allah) करें. लेकिन शासन-प्रशासन के मना करने और कोरोना बीमारी से बचने के लिये ऐहतियात बरतने के कारण बहुत ही कम तादाद में लोग नमाज की अदायगी करते थे. जिन लोगों को नमाज पढ़ने का मौका नहीं मिलता था. उन्हें काफी दिली तकलीफ भी होती थी. जैसे तैसे यह कोरोना बीमारी अल्लाह के फजलों करम से अब कम हो गई है. लोग पुराने वक्त के हिसाब से अब मस्जिदों में नमाज में शरीक होकर खुद और परिवार के तरक्की के साथ मरहूमों के मगफिरत के लिए दुआ मांग रहे हैं.
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रमजान का पवित्र महीना : इस माहे रमज़ान के महीने में जब कोई बंदा खुलूशे लिल्लाहियत के साथ कुराने अज़ीम की तिलावत करता है. रब तबारको और ताआला उसके नाम आए अमाल में एक हरफ के बदले एक हजार नेकी अता फरमाता है. माहे रमजान का खास मकसद महीने भर रोज़े रखो. भूखे रहकर अल्लाह की इबादत करो और भूखे रहकर जो बचाओ उसे अपने गरीब भाइयों में ईद उल फितर के रोज बांटों . जो उनके लिए बरकत बनकर नाजिल होगा. तुम्हारे लिए शबाब की शक्ल में रहमत बनकर नाजिल होगा.