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अनूठी पहल: अब पेड़ों पर भी दिखेगी छत्तीसगढ़िया संस्कृति की झलक

छत्तीसगढ़ की संस्कृति दुनियाभर में मशहूर है. बस्तर से लेकर सरगुजा तक के रीति-रिवाज अनोखे हैं. लोग विदेश से भी इसे जानने-समझने के लिए आते हैं. अब बस्तर की संस्कृति को पेड़ों पर उकेरा जा रहा है.

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अब पेड़ों पर दिखाई देगी छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक
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Published : Jan 11, 2021, 2:06 PM IST

दुर्ग: छत्तीसगढ़ की परंपरा और संस्कृति अपने आप में अद्भुत मानी जाती है. बस्तर से लेकर सरगुजा तक छत्तीसगढ़ में विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ ही तीज त्योहारों को मानने वाले लोग रहते हैं. इसकी झलक अब पेड़ों पर भी दिखाई देगी. इस अनोखी पहल की शुरुआत कुम्हारी नगर पालिका की ओर से की गई है.

पेड़ों पर छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक

पढ़ें: राजपथ पर बिखरेगी छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति की छटा

कुम्हारी नगर पालिका प्रदेश का पहला नगर पालिका है, जहां पेड़ों पर कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं. यह कलाकृतियां आने और जाने वालों को छत्तीसगढ़ी संस्कृति से रू-ब-रू कराएगी. इसके लिए बकायदा रायपुर से कलाकार बुलाए गए हैं, जो पेड़ों पर पेंटिंग कर छत्तीसगढ़ी संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित कर रहे हैं.

painting is being on trees of tradition and culture of Chhattisgarh in Kumhari of durg
पेड़ों पर छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक

पढ़ें: SPECIAL: गली-मोहल्लों में बिखरे हैं प्राचीन मूर्तियों के अवशेष

3 से 4 फीट की ऊंचाई तक उकेरी जा रही कलाकृतियां

कुम्हारी से जंजगिरी तक करीब 300 पेड़ों पर कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं. सभी पेड़ों पर 3 से 4 फीट की ऊंचाई तक रंगरोगन किया जाना है. सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए रंगों का चयन भी किया गया है. हर एक पेड़ पर अलग-अलग कलाकृतियों के आधार पर रंगों का उपयोग किया जा रहा है, ताकि आगे चलकर यह छत्तीसगढ़ संस्कृति और कला की मिसाल बन सके.

painting is being on trees of tradition and culture of Chhattisgarh in Kumhari of durg
पेड़ों पर बनाई जा रही छत्तीसगढ़ी संस्कृतियों की तस्वीर

लोक नृत्यों के साथ वाद्य यंत्रों की भी छटा

पेड़ों पर जो कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं, उस पर आदिवासी संस्कृति समेत तीज-त्योहारों की भी छटा दिखाई देगी. छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य गौर, शैला, ककसार, सुआ, जवारा, पंडवानी, करमा, राउत और पंथी समेत अनेक नृत्यों की कलाकृति उकेरी जा रही है. ये इन दिनों आकर्षण का केंद्र भी बना है. विलुप्त हो रहे कुछ ऐसे वाद्य यंत्र भी हैं, जो आदिवासी संस्कृति और परंपरा पर आधारित हैं, उसे भी उकेरा जा रहा है.

painting is being on trees of tradition and culture of Chhattisgarh in Kumhari of durg
बस्तर की संस्कृति पेड़ों पर उकेरी जा रही
बाहर से बुलाए गए कलाकार

कुम्हारी नगर पालिका ने इसे आकर्षक रूप देने के लिए बाहर से कलाकारों को बुलाया है. चार लोगों की रायपुर से आई इस टीम को पालिका ने दो सप्ताह का समय दिया है. कलाकार संतोष कुमार गजेंद्र ने बताया कि यह पहली दफा है, जब वे पेड़ों पर कलाकृतियां उकेर रहे हैं. इससे पहले उन्होंने और उनकी टीम ने ऐसा नहीं किया है. उन्होंने कहा कि जितनी भी कलाकृतियां हैं, सभी आदिवासी संस्कृति और परंपरा के साथ छत्तीसगढ़ पर आधारित हैं.

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छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक

गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ स्लोगन के तहत किया जा रहा कार्य

कुम्हारी नगर पालिका अध्यक्ष राजेश्वर सोनकर ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मार्गदर्शन में यह कार्य किया जा रहा है. उन्होंने गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का स्लोगन दिया है. उसी के तर्ज पर काम हो रहा है. इसके माध्यम से अपनी धरोहर और संस्कृति को प्रदर्शित किया जा रहा है. 38 लाख की लागत से सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. इसमें करीब 18 लाख की लागत से पेड़ों पर कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं.

दुर्ग: छत्तीसगढ़ की परंपरा और संस्कृति अपने आप में अद्भुत मानी जाती है. बस्तर से लेकर सरगुजा तक छत्तीसगढ़ में विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ ही तीज त्योहारों को मानने वाले लोग रहते हैं. इसकी झलक अब पेड़ों पर भी दिखाई देगी. इस अनोखी पहल की शुरुआत कुम्हारी नगर पालिका की ओर से की गई है.

पेड़ों पर छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक

पढ़ें: राजपथ पर बिखरेगी छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति की छटा

कुम्हारी नगर पालिका प्रदेश का पहला नगर पालिका है, जहां पेड़ों पर कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं. यह कलाकृतियां आने और जाने वालों को छत्तीसगढ़ी संस्कृति से रू-ब-रू कराएगी. इसके लिए बकायदा रायपुर से कलाकार बुलाए गए हैं, जो पेड़ों पर पेंटिंग कर छत्तीसगढ़ी संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित कर रहे हैं.

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पेड़ों पर छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक

पढ़ें: SPECIAL: गली-मोहल्लों में बिखरे हैं प्राचीन मूर्तियों के अवशेष

3 से 4 फीट की ऊंचाई तक उकेरी जा रही कलाकृतियां

कुम्हारी से जंजगिरी तक करीब 300 पेड़ों पर कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं. सभी पेड़ों पर 3 से 4 फीट की ऊंचाई तक रंगरोगन किया जाना है. सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए रंगों का चयन भी किया गया है. हर एक पेड़ पर अलग-अलग कलाकृतियों के आधार पर रंगों का उपयोग किया जा रहा है, ताकि आगे चलकर यह छत्तीसगढ़ संस्कृति और कला की मिसाल बन सके.

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पेड़ों पर बनाई जा रही छत्तीसगढ़ी संस्कृतियों की तस्वीर

लोक नृत्यों के साथ वाद्य यंत्रों की भी छटा

पेड़ों पर जो कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं, उस पर आदिवासी संस्कृति समेत तीज-त्योहारों की भी छटा दिखाई देगी. छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य गौर, शैला, ककसार, सुआ, जवारा, पंडवानी, करमा, राउत और पंथी समेत अनेक नृत्यों की कलाकृति उकेरी जा रही है. ये इन दिनों आकर्षण का केंद्र भी बना है. विलुप्त हो रहे कुछ ऐसे वाद्य यंत्र भी हैं, जो आदिवासी संस्कृति और परंपरा पर आधारित हैं, उसे भी उकेरा जा रहा है.

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बस्तर की संस्कृति पेड़ों पर उकेरी जा रही
बाहर से बुलाए गए कलाकार

कुम्हारी नगर पालिका ने इसे आकर्षक रूप देने के लिए बाहर से कलाकारों को बुलाया है. चार लोगों की रायपुर से आई इस टीम को पालिका ने दो सप्ताह का समय दिया है. कलाकार संतोष कुमार गजेंद्र ने बताया कि यह पहली दफा है, जब वे पेड़ों पर कलाकृतियां उकेर रहे हैं. इससे पहले उन्होंने और उनकी टीम ने ऐसा नहीं किया है. उन्होंने कहा कि जितनी भी कलाकृतियां हैं, सभी आदिवासी संस्कृति और परंपरा के साथ छत्तीसगढ़ पर आधारित हैं.

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छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक

गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ स्लोगन के तहत किया जा रहा कार्य

कुम्हारी नगर पालिका अध्यक्ष राजेश्वर सोनकर ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मार्गदर्शन में यह कार्य किया जा रहा है. उन्होंने गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का स्लोगन दिया है. उसी के तर्ज पर काम हो रहा है. इसके माध्यम से अपनी धरोहर और संस्कृति को प्रदर्शित किया जा रहा है. 38 लाख की लागत से सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. इसमें करीब 18 लाख की लागत से पेड़ों पर कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं.

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