बिलासपुरः छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में न्याय के लिए अब बकरे भी थाने में पहुंचने लगे हैं. ताजा मामला बिलासपुर के सिविल लाइन (civil Line) थाने का है. जहां दो पक्ष थाने पहुंचे. एक पक्ष का आरोप है कि दूसरा पक्ष बकरे को आज मगरपारा स्थित मरिमाई मंदिर (marimai temple) में बलि देने जा रहे था. एनिमल प्रेमियों ने मंदिर पहुंच कर बकरा को छुड़ाया और थाना में की शिकायत की. बकरे को एनिमल प्रेमी अपने साथ ले गए. इस तरह से एक बुजान बकरे की जान बच गई.
दशहरा पर्व पर बकरे की बलि की तैयारी चल रही थी. मंदिर में बकरा पहुंच गया था. लेकिन जिस भगवान को खुश करने बकरे की बलि देकर खुश करना था, शायद वह भगवान बलि देने वाले से नाराज था और उस बकरे की बलि भगवान नहीं चाह रहा था. तभी तो भगवान ने बकरे की जान बचाने के लिए अपना दूत भेज दिया.
मगरपारा के मरीमाई मंदिर में बकरे की बलि दी जानी थी, लेकिन ठीक एक दिन पहले पशु प्रेमी मरीमाई मंदिर पूजा करने पहुंची और वहां बकरा बंधा देख उसने वहां के पंडित से जानकारी ली. पंडित ने बताया कि बकरा को दशहरा पर्व (Dussehra festival) के दिन दोपहर 1 बजे बलि दी जाएगी. पशु प्रेमी को यह बात नागवार गुजरी. उसने अपने साथियों के साथ शुक्रवार 12 बजे के आसपास मंदिर पहुंच गए और उन्होंने देखा कि मंदिर में बकरे की बलि देने की तैयारी चल रही थी.
तब उन्होंने वहां बकरे की बलि का विरोध किया और बकरे को जबरदस्ती अपने साथ थाना सिविल लाइन ले आए. इस बात की जानकारी जब बलि देने वाले को पहुंची तो वह भी सिविल लाइन थाना पहुंच गया. मामला बहस में बदल गया. तब पशु प्रेमियों ने थाना सिविल लाइन में आवेदन दिया और बताया कि किसी भी मंदिर में बलि देना कानूनन अपराध है. इस बात को लेकर सिविल लाइन थाना पुलिस ने भी बकरे की बलि देने की बात सुन कर उसके मालिक को समझाइश दी.
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पांच साल से बंद है परंपरा
बकरे की बलि देने वाले व्यक्ति पूर्व महापौर उमाशंकर जायसवाल हैं .उन्होंने पुलिस को बताया कि मंदिर में 5 सालों से बलि देना बंद कर दिया गया है और वह बकरे की बलि नहीं दे रहे थे. लेकिन पशु प्रेमी को पुख्ता जानकारी मिली थी कि बकरे की बलि दी जा रही है. इस पर उन्होंने कहा कि बकरे की जब बलि नहीं होनी थी तो बकरे को मंदिर में क्यों लाया गया था? इस बात का जवाब बकरा मालिक नहीं दे सका.