मंगलुरु : कर्नाटक के गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए, जो मछुआरे हफ्तों से समुद्र में हैं, उन्हें पीने का साफ पानी अपने साथ रखना होगा, लेकिन यह नाव पर बोझ बढ़ाती है. इसके साथ-साथ काफी जगह की भी बर्बादी होती है, इसीलिए समुद्री खारे पानी को शुद्ध पानी में बदलने के लिए एक नई तकनीक अपनाई गई है.
देश में इस तरह का यह पहला ट्रायल है. मछुआरों को अब अपना जरूरी पानी अपने साथ नहीं ले जाना पड़ेगा. यह नवोन्मेषी तकनीक समुद्री खारे पानी को शुद्ध पानी में बदल सकती है. यह तकनीक मछुआरों को अपने आवश्यक पानी की चिंता को दरकिनार कर मछली पकड़ने की अनुमति देती है.
क्या है तकनीक?
खारे पानी को शुद्ध पानी में बदलने वाले उपकरण को ऑस्ट्रेलिया की रेनेस रेनमैन कंपनी ने विकसित किया है. यह पहली बार है जब मंगलुरु में इस तरह के उपकरण को नाव में लगाया गया है. इस उपकरण में दो पाइप हैं. एक पाइप समुद्री जल को अवशोषित करके उपकरण खारे पानी को शुद्ध करता है. उसके बाद, ताजा पानी दूसरे पाइप से आता है.
जब कोई नाव गहरे समुद्र में मछली पकड़ने जाती है, तो उन्हें अपने साथ लगभग 6,000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. इस वजह से नाव पर भार बढ़ता है. वहीं, इस उपकरण वाली नाव में पानी जमा करने के लिए पर्याप्त जगह भी है.
प्रतिदिन 2 हजार लीटर स्वच्छ जल का उत्पादन
बात अगर इस उपकरण की क्षमता की करें तो यह प्रतिदिन 2 हजार लीटर ताजे पानी का उत्पादन कर सकता है. इससे एक नाव में करीब 60 हजार लीटर ताजे पानी की बचत होगी. बता दें, इस उपकरण की कीमत करीब ₹4.60 लाख है. खबरें मिली हैं कि इस तरह के उपकरण को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार 50 प्रतिशत सब्सिडी भी देगी. यह नवोन्मेषी तकनीक पूरे यूरोप के 160 देशों में सफल रही है.
एक ट्रायल स्कूल में इस पानी का निरीक्षण पहले ही किया जा चुका है और कथित तौर पर यह पीने लायक है. राज्य के मत्स्य पालन और बंदरगाह मंत्री एस अंगारा ने तकनीक और पीने के पानी की गुणवत्ता परखी.