नई दिल्ली : केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का कहना है कि 1989 में रुबिया सईद के अपहरण के बाद उन्होंने तय कर लिया था कि अगर जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की राय से अलग फैसला लिया गया और पांचों आतंकी छोड़े गए, तो वह एक बार फिर से पद छोड़ देंगे. उन्होंने कहा कि फारूक अब्दुल्ला दबाव में आ गए और बगैर उन्हें कोई जानकारी दिए, पांचों आतंकी छोड़ दिए गए. बता दें, उस वक्त केंद्रीय मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान को तत्कालीन विदेश मंत्री आईके गुजराल के साथ इस मसले को सुलझाने के लिए कश्मीर भेजा गया था. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि उस वक्त के प्रधानमंत्री वीपी सिंह और गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पर आतंकियों को छोड़ने का दबाव बनाया था. पेश है आरिफ मोहम्मद खान से बातचीत का अंश...
सवाल : हाल ही में फारूक अब्दुल्ला ने एक इंटरव्यू में ये कहा है कि रुबिया सईद के अपहरण के बाद उन्होंने आपसे ये कहा था कि रुबिया को छोड़ने के बदले में भारत को पांचों आतंकियों को नहीं छोड़ना चाहिए था. इस बयान पर आप क्या कहेंगे ?
जवाब : फारूक साहब की राय तो यही थी. दरअसल मुझे और इंद्र कुमार गुजराल को कश्मीर भेजा गया था. फारूक साहब और उनके अफसरों ने हमें यह बताने की कोशिश की कि रुबिया सईद को छुड़वाने के लिए आतंकियों को छोड़ने की जरूरत नहीं है, जैसा कि वे मांग कर रहे थे. फारूक साहब को विश्वास था कि वे बगैर आतंकियों को छोड़े रुबिया सईद को छुड़वाने में कामयाब हो जाएंगे. मैं दिल्ली से इस सोच के साथ गया था कि जैसे जम्मू-कश्मीर सरकार और आतंकवादी मिले हुए हैं. फारूक साहब कह रहे थे कि आतंकियों को नहीं छोड़ना चाहिए. मैंने उनसे कहा कि मैं आपसे सहमत हूं कि आतंकियों को हर्गिज नहीं छोड़ना चाहिए, बस आप अपने फैसले पर कायम रहिए. ये बात मैंने एक बार नहीं, कई बार अलग-अलग तरीके से उनसे कही कि मैं किसी भी हद तक जाऊंगा, आपको सपोर्ट करने में. यकीनी तौर पर इंद्र कुमार गुजराल साहब ने ये बात दिल्ली को बता दी होगी. बाद में मुझे पता चला कि हमें तो ये दबाव डालने के लिए भेजा गया था कि आतंकवादियों को छोड़ दो. मैंने इसके उल्ट बात कह दी वहां पर और वो बात दिल्ली तक पहुंचा दी गई. मैं पूरा दिन अकेला रहा, अपने दोस्तों से मिल भी रहा था, कश्मीर के दूसरे लोगों से भी मिला. जो बात फारूक अब्दुल्ला और उनके अफसर मुझे बता रहे थे, वही बात कश्मीर के लोगों ने मुझसे कही. कश्मीरियों ने मुझे बताया कि कश्मीर का माहौल अलग है. अगर लड़की को हाथ लगा दिया आतंकियों ने, तो लोग एक-एक आतंकी को ढूंढ-ढूंढ कर मार डालेंगे. इसलिए इनके दबाव में मत आइएगा. ये उन कश्मीरियों की आम राय थी, जिन्हें मैं वहां जानता हूं. अब मुझे कुछ पता नहीं था कि दिन-भर क्या हुआ. मुझे तो लूप से अलग कर दिया गया. पांच बजे इत्तिला मिली कि आतंकियों को छोड़ दिया. तो इसका क्या मतलब हुआ. इसका मतलब ये कि फारूक साहब आतंकियों को न छोड़ने के खिलाफ तो थे, लेकिन दिल्ली के दबाव के कारण वो अपनी राय पर कायम न रह सके. काश उन्होंने बीच में ही एक बार मुझसे कॉन्टैक्ट किया होता दिन में, कि भई मेरे ऊपर तो दबाव बहुत ज्यादा है. तो मैं भी शायद कुछ उन्हें सलाह देता. मुझसे तो किसी ने बात ही नहीं की सुबह पांच बजे के बाद, क्योंकि मैंने खुल कर अपनी राय दे दी थी.
सवाल : तो ये फैसले ले कौन रहा था ?
जवाब : जाहिर है दिल्ली. अब मुझसे नाम मत बुलवाइए. मुफ्ती सईद होम मिनिस्टर थे. जिस दिन बच्ची की किडनैपिंग हुई, उस दिन पहली मीटिंग में मैंने कहा कि और भी ऐसे देश हैं जहां मंत्रियों के बच्चों या रिश्तेदारों की किडनैपिंग हुई है, उनसे हमें कुछ सीखना चाहिए. जैसे डॉक्टर खुद अपना इलाज नहीं करता, वैसे ही मंत्री उस मामले में नहीं बोलता. बेहतर तरीका ये होता है कि वो मंत्री कुछ दिन के लिए इस्तीफा दे देता है, जिससे कोई दूसरा डील करे इस मामले को. वीपी सिंह ने कहा- कौन डील करेगा. मैंने कहा- कराइए मुफ्ती साहब का इस्तीफा, मुझे जिम्मेदारी दीजिए, मैं डील करूंगा. बात आई गई हो गई. तो फारूक साहब ने बात तो सही कही थी, लेकिन सख्ती से वे अपनी राय पर कायम नहीं रह सके.
सवाल : उसकी क्या वजह थी ?
जवाब : ये तो वही बता सकते हैं. हालांकि उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि उन्हें धमकियां मिल रही थीं.
सवाल : कश्मीर को आपने बड़े नजदीक से देखा. अभी आपने कहा कि कश्मीरियों ने आपसे कहा कि रुबिया सईद को अगर किसी आतंकी ने हाथ भी लगाया तो कश्मीरी उन आतंकियों को ढूंढ-ढूंढ कर मारेंगे. लेकिन ऐसा तब क्यों नहीं हुआ, जब कश्मीरी पंडितों की महिलाओं के साथ अत्याचार हुए ?
जवाब: कश्मीरी पंडितों की महिलाओं को लेकर जो भी कहा गया जुबानी कहा गया. मुझे नहीं मालूम कि किसी कश्मीरी पंडित महिला के सथ कोई बदतमीजी हुई. मारा..किलिंग हुई है, लेकिन महिलाओं के साथ कोई गलत आचरण हुआ हो, ये कश्मीर के कल्चर में नहीं है. लेकिन इन पांच आतंकियों के छोड़े जाने के बाद, इसमें कोई शक नहीं कि आतंक को एक नया उत्साह, नई ताकत मिल गई. उन्हें लगा कि उनमें ये ताकत है कि वे सरकार को झुका सकते हैं.
सवाल : आप उस वक्त सरकार में मंत्री थे, आपकी सरकार ने पलायन रोकने के लिए, जो भी कदम उठाए, आप संतुष्ट हैं उनसे ?
जवाब : बुनियादी तौर पर ये जिम्मेदारी तो राज्य सरकार की है. जब सरकार नहीं रही, तो ये जिम्मेदारी गवर्नर की है. जो सीधे होम मिनिस्टर को रिपोर्ट करते हैं. हर चीज हर मिनिस्टर को पता नहीं होती. उस वक्त आज की तरह के चैनल भी नहीं थे. मीडिया भी बहुत ज्यादा रिपोर्ट नहीं कर रहा था. लेकिन दो-तीन महीने के भीतर सबकुछ पता चल गया था. पलायन के मुद्दे पर मैंने कई बार संसद के सेंट्रल हॉल में लोगों से मुलाकात कर ये कहा कि ये वो मुद्दा है जिस पर स्टैंड लेना चाहिए, क्योंकि इससे ज्यादा शर्मनाक बात कोई हो नहीं सकती कि किसी भी व्यक्ति को अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़े.
सवाल : आप मुद्दों की राजनीति करते रहे हैं, आपने शाह बानो केस में कुर्सी छोड़ने से भी परहेज नहीं किया. क्या कश्मीरी पंडितों के पलायन के मुद्दे पर कभी आपके मन में आया कि कुर्सी छोड़ दूं ?
जवाब : रुबिया सईद को छुड़ाने के लिए जब आतंकी छोड़े गए, तब ये बात मेरे दिमाग में आई थी, लेकिन मैं तब ये काम कर सकता था, जब फारूक साहब स्टैंड लेते. फारूक साहब बार-बार कहते कि प्राइम मिनिस्टर की ओर से दबाव आ रहा है, मुफ्ती सईद की तरफ से दबाव आ रहा है, मैंने कहा- फारूक भाई किसी भी तरफ से दबाव आए, आप अपने फैसले को बदलिएगा मत. मैं किसी भी हद तक जाऊंगा आपको सपोर्ट करने में.
सवाल : मतलब आप कुर्सी छोड़ सकते थे ?
जवाब : अब इससे आप अंदाजा लगा लीजिए. किसी भी हद तक जाने का मतलब तो यही है.
सवाल : फारूक साहब तो ये भी कह रहे हैं कि पलायन के लिए जगमोहन जिम्मेदार हैं ?
जवाब : फारूक साहब को अपनी राय रखने का पूरा हक है. लेकिन मेरी राय में इन परिस्थितियों के बनने की शुरुआत जगमोहन जी के गवर्नर बनने से बहुत पहले ही हो चुकी थी. क्योंकि जब समाज में भरोसे की कमी होगी, तो समस्याएं तो पैदा होंगी ही.
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