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अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस : वर्तमान से ही सुनिश्चित हो पाएगा सुनहरा भविष्य

बच्चे इस दुनिया के भविष्य हैं. यदि उनका वर्तमान ठीक नहीं होगा, तो दुनिया के उज्जवल भविष्य की कामना नहीं की जा सकती है. इसीलिए बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसी उद्देश्य से हर वर्ष 20 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस मनाया जाता है.

childrens rights day awareness
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Published : Nov 20, 2020, 2:08 PM IST

Updated : Nov 20, 2020, 5:39 PM IST

हैदराबाद : हर साल दुनियाभर में 20 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य बच्चो के अधिकारों, स्वास्थ्य और कल्याण के प्रति जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ उनके बीच मैत्री का भाव और समझ विकसित करना है.

बाल अधिकार क्या हैं?
बाल अधिकार मानव अधिकार है, जो नाबालिगों की देखभाल और सुरक्षा के लिए विशेष जरूरतों को ध्यान में रखते हैं.

बाल अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों का कहना है कि सभी बच्चों का विकास शांति, सम्मान, सहिष्णुता, स्वतंत्रता, समानता और एकजुटता की भावना के बीच होना चाहिए.

एक आदर्श दुनिया में, ये सिद्धांत प्रत्येक देश की शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून और सामाजिक सेवाओं की प्रणालियों को निर्देशित करेंगे. दुर्भाग्य से ऐसा हमेशा नहीं होता है.

तथ्य - बाल अधिकारों का उल्लंघन
वर्ष 2015 के दौरान दो से 17 वर्ष के लगभग 1 बिलियन बच्चों को शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा या उपेक्षा का सामना करना पड़ा है.

152 मिलियन बच्चे बाल श्रम कर रहे हैं.

73 मिलियन बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं.

सबसे कम विकसित देशों में 41% लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है. 47 सबसे कम विकसित देशों में से 33 अफ्रीका में हैं.

विश्व बैंक के एक अध्ययन से पता चला है कि 10 दिव्यांग बच्चों में से तीन कभी स्कूल नहीं गए हैं.

200 मिलियन से अधिक महिलाएं खतना जैसी क्रूर प्रथाओं से गुजरी हैं.

दिव्यांग बच्चों के साथ शारीरिक या यौन हिंसा होने की संभावना चार गुना अधिक होती है. दुनियाभर में 126 मिलियन लड़कियां लापता हैं.

बाल अधिकार दिवस का महत्व
बच्चे इस देश के भविष्य हैं और यह दिन उनकी शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करना है. यह दुनियाभर में बच्चों को होने वाली समस्याओं को विश्व पटल पर रखता है.

लाखों बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाएं और अवसर नहीं प्राप्त हैं.

यह दिन 1989 में अपनाए गए बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के साथ मिलकर बच्चों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करना है. बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना इस दिवस का उद्देश्य है.

बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अनुसार - 1992 में भारत ने पुष्टि की कि सभी बच्चे मौलिक अधिकारों के साथ पैदा होंगे.

  • जीवन रक्षा का अधिकार - जीवन, स्वास्थ्य, पोषण, नाम, राष्ट्रीयता के लिए
  • विकास का अधिकार - शिक्षा, देखभाल, अवकाश, मनोरंजन, सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए
  • संरक्षण का अधिकार - शोषण, दुर्व्यवहार, उपेक्षा से
  • सहभागिता का अधिकार - अभिव्यक्ति, सूचना, विचार, धर्म के लिए
  • और इन सपनों को पूरा करने का अधिकार

भारतीय आबादी का एक तिहाई हिस्सा बच्चे हैं. लेकिन कभी भी उनके अधिकारों को प्राथमिकता नहीं दी गई.

बच्चों पर कोविड-19 का प्रभाव

1-कुपोषण
2019 में पांच वर्षों से कम उम्र के 47 मिलियन बच्चे कुपोषित थे और 14.3 मिलियन गंभीर कुपोषण का शिकार थे.

पोषक तत्वों की कमी और / या बीमारी बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है. इससे दीर्घकालिक विकास में देरी होती है और गंभीर मामलों में जान का भी खतरा रहता है.

यूनिसेफ ने हालिया रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि पांच से कम उम्र के 6.7 मिलियन बच्चे महामारी के सामाजिक व आर्थिक प्रभाव के कारण कुपोषित हो सकते हैं.

2-शिक्षा
अगस्त तक, दुनियाभर में एक अरब से अधिक बच्चे स्कूल बंद होने से प्रभावित हैं. मार्च में यह संख्या डेढ़ अरब थी.

कोविड-19 से पहले 250 मिलियन से अधिक थी.

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि कोविड-19 के परिणामस्वरूप आए वित्तीय संकट से अगले वर्ष तक 23.8 मिलियन बच्चों की शिक्षा प्रभावित करेगी.

3-मिड डे मील
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए स्कूलों को बंद करने के परिणाम स्वरूप 370 मिलियन बच्चों को स्कूलों से मिलने वाला भोजन नहीं मिला. फिलहाल यह संख्या 346 मिलियन है.

4-टीकाकरण कार्यक्रम बाधित
80 मिलियन से अधिक बच्चों का कोरोना के कारण टीकाकरण नहीं हो पाया.

हैदराबाद : हर साल दुनियाभर में 20 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य बच्चो के अधिकारों, स्वास्थ्य और कल्याण के प्रति जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ उनके बीच मैत्री का भाव और समझ विकसित करना है.

बाल अधिकार क्या हैं?
बाल अधिकार मानव अधिकार है, जो नाबालिगों की देखभाल और सुरक्षा के लिए विशेष जरूरतों को ध्यान में रखते हैं.

बाल अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों का कहना है कि सभी बच्चों का विकास शांति, सम्मान, सहिष्णुता, स्वतंत्रता, समानता और एकजुटता की भावना के बीच होना चाहिए.

एक आदर्श दुनिया में, ये सिद्धांत प्रत्येक देश की शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून और सामाजिक सेवाओं की प्रणालियों को निर्देशित करेंगे. दुर्भाग्य से ऐसा हमेशा नहीं होता है.

तथ्य - बाल अधिकारों का उल्लंघन
वर्ष 2015 के दौरान दो से 17 वर्ष के लगभग 1 बिलियन बच्चों को शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा या उपेक्षा का सामना करना पड़ा है.

152 मिलियन बच्चे बाल श्रम कर रहे हैं.

73 मिलियन बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं.

सबसे कम विकसित देशों में 41% लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है. 47 सबसे कम विकसित देशों में से 33 अफ्रीका में हैं.

विश्व बैंक के एक अध्ययन से पता चला है कि 10 दिव्यांग बच्चों में से तीन कभी स्कूल नहीं गए हैं.

200 मिलियन से अधिक महिलाएं खतना जैसी क्रूर प्रथाओं से गुजरी हैं.

दिव्यांग बच्चों के साथ शारीरिक या यौन हिंसा होने की संभावना चार गुना अधिक होती है. दुनियाभर में 126 मिलियन लड़कियां लापता हैं.

बाल अधिकार दिवस का महत्व
बच्चे इस देश के भविष्य हैं और यह दिन उनकी शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करना है. यह दुनियाभर में बच्चों को होने वाली समस्याओं को विश्व पटल पर रखता है.

लाखों बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाएं और अवसर नहीं प्राप्त हैं.

यह दिन 1989 में अपनाए गए बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के साथ मिलकर बच्चों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करना है. बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना इस दिवस का उद्देश्य है.

बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अनुसार - 1992 में भारत ने पुष्टि की कि सभी बच्चे मौलिक अधिकारों के साथ पैदा होंगे.

  • जीवन रक्षा का अधिकार - जीवन, स्वास्थ्य, पोषण, नाम, राष्ट्रीयता के लिए
  • विकास का अधिकार - शिक्षा, देखभाल, अवकाश, मनोरंजन, सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए
  • संरक्षण का अधिकार - शोषण, दुर्व्यवहार, उपेक्षा से
  • सहभागिता का अधिकार - अभिव्यक्ति, सूचना, विचार, धर्म के लिए
  • और इन सपनों को पूरा करने का अधिकार

भारतीय आबादी का एक तिहाई हिस्सा बच्चे हैं. लेकिन कभी भी उनके अधिकारों को प्राथमिकता नहीं दी गई.

बच्चों पर कोविड-19 का प्रभाव

1-कुपोषण
2019 में पांच वर्षों से कम उम्र के 47 मिलियन बच्चे कुपोषित थे और 14.3 मिलियन गंभीर कुपोषण का शिकार थे.

पोषक तत्वों की कमी और / या बीमारी बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है. इससे दीर्घकालिक विकास में देरी होती है और गंभीर मामलों में जान का भी खतरा रहता है.

यूनिसेफ ने हालिया रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि पांच से कम उम्र के 6.7 मिलियन बच्चे महामारी के सामाजिक व आर्थिक प्रभाव के कारण कुपोषित हो सकते हैं.

2-शिक्षा
अगस्त तक, दुनियाभर में एक अरब से अधिक बच्चे स्कूल बंद होने से प्रभावित हैं. मार्च में यह संख्या डेढ़ अरब थी.

कोविड-19 से पहले 250 मिलियन से अधिक थी.

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि कोविड-19 के परिणामस्वरूप आए वित्तीय संकट से अगले वर्ष तक 23.8 मिलियन बच्चों की शिक्षा प्रभावित करेगी.

3-मिड डे मील
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए स्कूलों को बंद करने के परिणाम स्वरूप 370 मिलियन बच्चों को स्कूलों से मिलने वाला भोजन नहीं मिला. फिलहाल यह संख्या 346 मिलियन है.

4-टीकाकरण कार्यक्रम बाधित
80 मिलियन से अधिक बच्चों का कोरोना के कारण टीकाकरण नहीं हो पाया.

Last Updated : Nov 20, 2020, 5:39 PM IST
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