ETV Bharat / technology

गरीबी देखी, पढ़ाई छोड़ी, प्राइवेट नौकरी की और अब इसरो चीफ बने, जानें वी नारायणन का संघर्षपूर्ण इतिहास - IRSO CHIEF V NARAYANAN HISTORY

वी नारायणन इसरो के नए चीफ बन चुके हैं. आइए हम आपको उनके बचपन से लेकर अभी तक की कहानी बताते हैं.

V Narayanan is the new chief of ISRO.
वी नारायणन ने इसरो के नए अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाल लिया है. (फोटो - Left - ISRO | Right - ANI))
author img

By ETV Bharat Tech Team

Published : Jan 14, 2025, 4:21 PM IST

हैदराबाद: वी नारायणन ने 13 जनवरी 2025 से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो (IRSO) के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाल लिया है. 60 साल के वी नारायणन ने इसरो के पूर्व अध्यक्ष एस. सोमनाथ की जगह कार्यभार संभाला है. वी नारायणन ने इसरो चीफ के पदभार के साथ-साथ भारतीय अंतरिक्ष विभाग के सचिव और अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार भी संभाल लिया है.

इसरो के नए चीफ बने नारायणन

इसरो चीफ बनने से पहले वी नारायणन इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC) के डायरेक्टर थे. इसरो के महान रॉकेट साइनटिस्ट वी नारायणन को लगभग 40 साल का अनुभव प्राप्त करने के बाद इसरो के सर्वेसर्वा घोषित किया गया है, लेकिन उनका यह सफर आसान नहीं रहा है. उन्होंने बचपन से आपार मुश्किलों का सामना करते हुए काफी संघर्ष किया और आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं. आइए हम आपको इसरो के नए चीफ की पूरी जर्नी के बारे में बताते हैं.

वी नारायणन का जन्म तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के नागरकोइल के पास एक छोटे से गांव मेलाकट्टुविलई में हुआ था. उनके पिता का नाम वानिया पेरुमल-थंगम्मल था और वह सबसे बड़े बेटे थे. नारायणन पांच भाई-बहन थे जिनमें तीन भाई और दो बहनें थीं. उनके पिता एक नारियल व्यापारी थे और घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. यहां तक कि उनके पिता पूरे परिवार का एक वक्त का खाना भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाते थे.

मुश्किलों में बीता बचपन

इस कारण से उनके लिए अपने सभी बच्चों को शिक्षा देना काफी लग्जरी वाला काम था. वहीं, नारायणन ने बचपन से ही पढ़ाई में काफी रुचि दिखाई थी. उनकी प्राथमिक शिक्षा मेलाकट्टुविलाई के एक सरकारी स्कूल से हुई थी. उन्होंने आधी काटुविलाई में स्थित सेओनपुरम सीएसआई गवर्नमेंट एडेड स्कूल से कक्षा दस की परीक्षा में टॉप किया था. उसके बाद उन्होंने कोनाम गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी से डिप्लोमा किया था.

नारायणन ने डिप्लोमा पूरा करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर की थी और उनके छोटे भाई ने भी ऐसी ही इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उनके पिता ने स्पष्ट कह दिया था कि वो उनमें से किसी एक को ही शिक्षा जारी रखने की अनुमति दे सकते हैं. ऐसे में नारायणन ने जरा भी विचार किए पने सपनों का त्याग कर दिया और छोटे भाई को पढ़ाई जारी करने के लिए कहा, जबकि खुद परिवार की आय बढ़ाने के लिए काम की तलाश में जुट गए थे.

नारायणन के भाई इंजीनियरिंग करने चले गए और वो खुद चेन्नई, तिरुथानी, रानीपेट जैसे जगहों पर स्थित अलग-अलग प्राइवेट कंपनियों में काम करने लगे. उन्होंने करीब ढ़ाई साल तक काम किया और अपने परिवार का ख्याल रखा. हालांकि, प्राइवेट नौकरी करने के दौरान भी उन्होंने इंजीनियरिंग करने का सपना देखना बंद नहीं किया था.

1984 में जॉइन की इसरो

1984 में उन्होंने इसरो में एक टेक्निशियन की नौकरी के लिए आवदेन किया था और उन्हें वो नौकरी मिल गई, लेकिन वो इसरो के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में शामिल होना चाहते थे, लेकिन उसके लिए उन्हें एक योग्य इंजीनियर और उसका आठ साल का अनुभव होना जरूरी था. इस कारण नारायणन ने एक पार्ट-टाइम इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन लिया और उसकी डिग्री हासिल की. इस दौरान वो इसरो में एक टेक्निशियल के रूप में काम भी कर रहे थे.

4 साल बाद उन्हें इसरो में इंजीनियर के रूप में प्रमोशन मिला और उन्होंने क्रायोजेनिक डिवीजन में काम किया. उसके बाद, 1987 में उन्होंने इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स-इंडिया से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में AMIE पूरा किया. 1989 में उन्होंने IIT-खड़गपुर से क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में फर्स्ट रैंक के साथ M.Tech पूरा किया और इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC) में क्रायोजेनिक प्रोपल्शन डिपार्टमेंट में शामिल हो गए.

उन्होंने साल 2000 में आईआईटी खड़गपुर से ही एरोस्पेस इंजीनियरिंग (क्रायोजेनिक प्रोपल्शन) में पीएचडी की. इन डिग्रियों को हासिल करते हुए नारायणन इसरो में अपने शानदार ज्ञान और काम का योगदान देते रहे और एक प्रख्यात रॉकेट वैज्ञानिक बन गए. अब नारायणन के पास इसरो में काम करने का लगभग 40 साल का अनुभव है. इस दौरान उन्होंने इस संगठन में कोई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई.

इसरो चीफ बनने से पहले तक नारायणन एलपीएससी के डायरेक्टर थे, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रमुख केंद्रों में से एक है और उसका मुख्यालय तिरुवनंतपुरम के वलियामला में है, जबकि उसका एक यूनिट बेंगलुरु में है.

क्रायोजेनिक स्टेज की सफलता में निभाई मुख्य भूमिका

नारायणन ISRO में GSLV-D5 रॉकेट के लिए भारत के पहले क्रायोजेनिक स्टेज विकास और उसकी मदद से सफल उड़ान का परीक्षण करने वाले मिशन के मुख्य वैज्ञानिक थे. क्रायोजेनिक स्टेज टेक्नोलॉजी की मदद से रॉकेट ठंडे तापमान पर काम कर पाता है. नारायणन ने CE20 क्रायोजेनिक इंजन को डिज़ाइन किया और वह GSLV MkIII रॉकेट (जिसे अब LVM3 कहा जाता है) के C25 क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी थे.

इसके अलावा, उन्हें क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी का अध्ययन करने के लिए भारतीय सरकार द्वारा रूस भेजे गए वैज्ञानिकों की टीम में शामिल किया गया था. इस प्रकार, नारायणन ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी के विकास और सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इस दौरान उन्होंने साउंडिंग रॉकेट्स और ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV) और पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) में साढ़े चार साल तक सॉलिड प्रोपल्शन क्षेत्र में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) में काम किया. अब उन्होंने इसरो के अध्यक्ष का कार्यभार संभाल लिया है.

बचपन की टीचर ने क्या कहा?

जब नारायणन की ISRO के नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की खबर, उनके गांव मेलाकट्टुविलाई गांव पहुंची तो वहां खुशी की लहर दौड़ गई. उनके दोस्त और रिश्तेदार उनके साथ बिताए सभी पलों को याद कर रहे थे. नारायणन ने बचपन में जिस प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की थी, उस स्कूल की एक टीचर वाइस्लिन बिनोमिला से ईटीवी भारत ने बात की. वो अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाईं और बोलीं कि, "यह हमारे लिए गर्व की बात है कि नारायणन हमारे स्कूल में पढ़ें. ISRO के प्रमुख के रूप में उनकी उपलब्धि यह साबित करती है कि सरकारी स्कूलों के बच्चे भी अपने विषय में देश का नेतृत्व कर सकते हैं."

सेओनपुरम गवर्नमेंट एडेड हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रधानाध्यापिका, क्लारा पुराना ज्ञानसी, कहती हैं, "नारायणन सर ने हमारी स्कूल में कक्षा 10 तक पढ़ाई की. स्कूल को उनके माध्यम से नई पहचान मिली है. सच में, इस स्कूल को नारायणन के स्कूल के रूप में नई पहचान मिली है और यह हमें गर्व महसूस कराती है." अब देखना होगा कि इसरो के नए अध्यक्ष के रूप में नारायणन और किन-किन उपलब्धियों को अपने नाम करते हैं और देश के लिए स्पेस मिशन में क्या-क्या योगदान देते हैं.

यह भी पढ़ें: Huawei Band 9 से लेकर Samsung Galaxy S25 तक, पढ़ें आज की बड़ी टेक न्यूज़

हैदराबाद: वी नारायणन ने 13 जनवरी 2025 से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो (IRSO) के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाल लिया है. 60 साल के वी नारायणन ने इसरो के पूर्व अध्यक्ष एस. सोमनाथ की जगह कार्यभार संभाला है. वी नारायणन ने इसरो चीफ के पदभार के साथ-साथ भारतीय अंतरिक्ष विभाग के सचिव और अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार भी संभाल लिया है.

इसरो के नए चीफ बने नारायणन

इसरो चीफ बनने से पहले वी नारायणन इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC) के डायरेक्टर थे. इसरो के महान रॉकेट साइनटिस्ट वी नारायणन को लगभग 40 साल का अनुभव प्राप्त करने के बाद इसरो के सर्वेसर्वा घोषित किया गया है, लेकिन उनका यह सफर आसान नहीं रहा है. उन्होंने बचपन से आपार मुश्किलों का सामना करते हुए काफी संघर्ष किया और आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं. आइए हम आपको इसरो के नए चीफ की पूरी जर्नी के बारे में बताते हैं.

वी नारायणन का जन्म तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के नागरकोइल के पास एक छोटे से गांव मेलाकट्टुविलई में हुआ था. उनके पिता का नाम वानिया पेरुमल-थंगम्मल था और वह सबसे बड़े बेटे थे. नारायणन पांच भाई-बहन थे जिनमें तीन भाई और दो बहनें थीं. उनके पिता एक नारियल व्यापारी थे और घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. यहां तक कि उनके पिता पूरे परिवार का एक वक्त का खाना भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाते थे.

मुश्किलों में बीता बचपन

इस कारण से उनके लिए अपने सभी बच्चों को शिक्षा देना काफी लग्जरी वाला काम था. वहीं, नारायणन ने बचपन से ही पढ़ाई में काफी रुचि दिखाई थी. उनकी प्राथमिक शिक्षा मेलाकट्टुविलाई के एक सरकारी स्कूल से हुई थी. उन्होंने आधी काटुविलाई में स्थित सेओनपुरम सीएसआई गवर्नमेंट एडेड स्कूल से कक्षा दस की परीक्षा में टॉप किया था. उसके बाद उन्होंने कोनाम गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी से डिप्लोमा किया था.

नारायणन ने डिप्लोमा पूरा करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर की थी और उनके छोटे भाई ने भी ऐसी ही इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उनके पिता ने स्पष्ट कह दिया था कि वो उनमें से किसी एक को ही शिक्षा जारी रखने की अनुमति दे सकते हैं. ऐसे में नारायणन ने जरा भी विचार किए पने सपनों का त्याग कर दिया और छोटे भाई को पढ़ाई जारी करने के लिए कहा, जबकि खुद परिवार की आय बढ़ाने के लिए काम की तलाश में जुट गए थे.

नारायणन के भाई इंजीनियरिंग करने चले गए और वो खुद चेन्नई, तिरुथानी, रानीपेट जैसे जगहों पर स्थित अलग-अलग प्राइवेट कंपनियों में काम करने लगे. उन्होंने करीब ढ़ाई साल तक काम किया और अपने परिवार का ख्याल रखा. हालांकि, प्राइवेट नौकरी करने के दौरान भी उन्होंने इंजीनियरिंग करने का सपना देखना बंद नहीं किया था.

1984 में जॉइन की इसरो

1984 में उन्होंने इसरो में एक टेक्निशियन की नौकरी के लिए आवदेन किया था और उन्हें वो नौकरी मिल गई, लेकिन वो इसरो के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में शामिल होना चाहते थे, लेकिन उसके लिए उन्हें एक योग्य इंजीनियर और उसका आठ साल का अनुभव होना जरूरी था. इस कारण नारायणन ने एक पार्ट-टाइम इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन लिया और उसकी डिग्री हासिल की. इस दौरान वो इसरो में एक टेक्निशियल के रूप में काम भी कर रहे थे.

4 साल बाद उन्हें इसरो में इंजीनियर के रूप में प्रमोशन मिला और उन्होंने क्रायोजेनिक डिवीजन में काम किया. उसके बाद, 1987 में उन्होंने इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स-इंडिया से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में AMIE पूरा किया. 1989 में उन्होंने IIT-खड़गपुर से क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में फर्स्ट रैंक के साथ M.Tech पूरा किया और इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC) में क्रायोजेनिक प्रोपल्शन डिपार्टमेंट में शामिल हो गए.

उन्होंने साल 2000 में आईआईटी खड़गपुर से ही एरोस्पेस इंजीनियरिंग (क्रायोजेनिक प्रोपल्शन) में पीएचडी की. इन डिग्रियों को हासिल करते हुए नारायणन इसरो में अपने शानदार ज्ञान और काम का योगदान देते रहे और एक प्रख्यात रॉकेट वैज्ञानिक बन गए. अब नारायणन के पास इसरो में काम करने का लगभग 40 साल का अनुभव है. इस दौरान उन्होंने इस संगठन में कोई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई.

इसरो चीफ बनने से पहले तक नारायणन एलपीएससी के डायरेक्टर थे, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रमुख केंद्रों में से एक है और उसका मुख्यालय तिरुवनंतपुरम के वलियामला में है, जबकि उसका एक यूनिट बेंगलुरु में है.

क्रायोजेनिक स्टेज की सफलता में निभाई मुख्य भूमिका

नारायणन ISRO में GSLV-D5 रॉकेट के लिए भारत के पहले क्रायोजेनिक स्टेज विकास और उसकी मदद से सफल उड़ान का परीक्षण करने वाले मिशन के मुख्य वैज्ञानिक थे. क्रायोजेनिक स्टेज टेक्नोलॉजी की मदद से रॉकेट ठंडे तापमान पर काम कर पाता है. नारायणन ने CE20 क्रायोजेनिक इंजन को डिज़ाइन किया और वह GSLV MkIII रॉकेट (जिसे अब LVM3 कहा जाता है) के C25 क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी थे.

इसके अलावा, उन्हें क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी का अध्ययन करने के लिए भारतीय सरकार द्वारा रूस भेजे गए वैज्ञानिकों की टीम में शामिल किया गया था. इस प्रकार, नारायणन ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी के विकास और सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इस दौरान उन्होंने साउंडिंग रॉकेट्स और ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV) और पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) में साढ़े चार साल तक सॉलिड प्रोपल्शन क्षेत्र में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) में काम किया. अब उन्होंने इसरो के अध्यक्ष का कार्यभार संभाल लिया है.

बचपन की टीचर ने क्या कहा?

जब नारायणन की ISRO के नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की खबर, उनके गांव मेलाकट्टुविलाई गांव पहुंची तो वहां खुशी की लहर दौड़ गई. उनके दोस्त और रिश्तेदार उनके साथ बिताए सभी पलों को याद कर रहे थे. नारायणन ने बचपन में जिस प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की थी, उस स्कूल की एक टीचर वाइस्लिन बिनोमिला से ईटीवी भारत ने बात की. वो अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाईं और बोलीं कि, "यह हमारे लिए गर्व की बात है कि नारायणन हमारे स्कूल में पढ़ें. ISRO के प्रमुख के रूप में उनकी उपलब्धि यह साबित करती है कि सरकारी स्कूलों के बच्चे भी अपने विषय में देश का नेतृत्व कर सकते हैं."

सेओनपुरम गवर्नमेंट एडेड हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रधानाध्यापिका, क्लारा पुराना ज्ञानसी, कहती हैं, "नारायणन सर ने हमारी स्कूल में कक्षा 10 तक पढ़ाई की. स्कूल को उनके माध्यम से नई पहचान मिली है. सच में, इस स्कूल को नारायणन के स्कूल के रूप में नई पहचान मिली है और यह हमें गर्व महसूस कराती है." अब देखना होगा कि इसरो के नए अध्यक्ष के रूप में नारायणन और किन-किन उपलब्धियों को अपने नाम करते हैं और देश के लिए स्पेस मिशन में क्या-क्या योगदान देते हैं.

यह भी पढ़ें: Huawei Band 9 से लेकर Samsung Galaxy S25 तक, पढ़ें आज की बड़ी टेक न्यूज़

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.