नई दिल्ली : इस साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव की तैयारी बीजेपी ने साल की शुरुआत से ही शुरू कर दी थी. वहीं कांग्रेस अभी तक अपनी पार्टी के नेताओं को ही सहेजने में लगी हुई है, जिसका पूरा फायदा आम आदमी पार्टी उठाना चाह रही है. 'आप' पंजाब के पैटर्न पर गुजरात में भी चुनाव प्रचार और मुफ्त योजनाओं की घोषणाओं में व्यस्त है, जबकि आंकड़ों के साथ इतिहास देखा जाए तो वास्तविकता ये है की गुजराती वोटबैंक हमेशा से परंपरागत वोट बैंक रहा है. प्रलोभन और मुफ्त की राजनीतिक परंपरा अभी तक गुजरात में बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाई है. इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि पिछले चुनाव में मुफ्त वायदों की कांग्रेस ने झड़ी लगा दी थी बावजूद सरकार बीजेपी की ही बनी थी. यही वजह है कि बीजेपी गुजरातियों का मूड भांपते हुए रणनीति बना रही है.
भाजपा को मिली थीं 99 सीट : पिछले चुनाव के वोट शेयर को देखा जाए तो गुजरात में भाजपा को कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी थी. भाजपा का वोट शेयर 49.05 प्रतिशत रहा था. उसे 99 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. वहीं, कांग्रेस वोट शेयर 41.44 प्रतिशत रहा था और उसके हाथ 77 सीटें आई थीं. यही वजह है कि पार्टी के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भाजपा इस बार भी चुनाव में आम आदमी पार्टी को नही बल्कि कांग्रेस को ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान रही है.
मगर पिछली बार की स्थिति अलग थी, पिछली बार गुजरात का चुनाव पहला चुनाव था जो नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद लड़ा गया था, जिसका असर भी कांग्रेस के वोट शेयर की बढ़त में शामिल था. बावजूद जनता ने भरोसा भाजपा पर ही दिखाया था.
वहीं, जानकारों की मानें तो कांग्रेस इस बार बाकी राज्यों की तरह गुजरात में भी बहुत कंफर्टेबल स्थिति में नजर नहीं आ रही है. बावजूद इसके जानकारों का मानना है कि कांग्रेस का वोट शेयर 32 से 35 प्रतिशत तक इस चुनाव में रह सकता है. आम आदमी पार्टी के तमाम मुफ्त दावों के बावजूद अनुमान के तौर पर इन वायदों का कुछ खास फायदा नही उठा पाएगी. जिसकी बड़ी वजह गुजरात के वोटरों का मूड और ट्रेंड को माना जा रहा है.
वहीं सूत्रों की मानें तो अगले 27 तारीख को चुनाव आयोग की एक टीम गुजरात के दौरे पर जा रही हैं जहां वो सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात कर सकती है. जिसके बाद ये संभावना है कि राज्य का चुनाव नवंबर से दिसंबर के बीच संपन्न कराने की घोषणा कर दी जाए.
दिल्ली के एमसीडी चुनाव की हो सकती है घोषणा : सूत्रों की मानें तो चुनाव आयोग गुजरात के साथ ही दिल्ली के नगर निगम चुनाव की भी घोषणा कर सकता है. इसी को ध्यान रखते हुए भाजपा दो फ्रंट पर आम आदमी पार्टी को घेरने की रणनीति भी बना रही है, जिससे आम आदमी पार्टी निश्चित तौर पर अपना ज्यादा ध्यान दिल्ली के एमसीडी चुनाव पर केंद्रित कर देगी.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न लेने की शर्त पर बताया कि पिछला चुनाव मोदीजी के मुख्यमंत्री से हटने के बाद पहला चुनाव था इस वजह से कांग्रेस को कुछ सीटें मिल गईं थीं, मगर अब गुजरात की जनता जानती है कि राज्य में भले मोदीजी नहीं हैं लेकिन केंद्र की सरकार और राज्य की सरकार मिलकर डबल इंजन की सरकार का गुजरात को फायदा मिल रहा है और वह दोबारा कांग्रेस को वोट देकर अपने वोट बर्बाद नही करेगी. जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है वो इस तरह हैं कि गुजरात की जनता उनकी पार्टी नई होने की वजह से देखने आ रही मगर वोट वो भाजपा को ही करेगी.
बहरहाल यदि आंकड़े देखें जाएं तो गुजरात में आयुष्मान योजना और मनरेगा समेत अन्य योजनाओं में भी अन्य जातियों के अलावा मुस्लिमों की संख्या भी लाभान्वितों की लिस्ट में बड़ी संख्या में शामिल है और बीजेपी को उम्मीद है कि वो गुजरात में बीजेपी का साथ दे सकती है. वहीं, लगातार कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हो रहे नेता भी बीजेपी के लिए संकेत दे रहे हैं. आंकड़े देखे जाएं तो आम आदमी की बजाए बीजेपी में शामिल होनेवाले नेताओं की संख्या कहीं ज्यादा है, जिससे जनता में एक संदेश जा रहा और इतने सालों की एंटी इनकंबेंसी के बावजूद बीजेपी बड़े दावे करने से नही चूक रही.
सूत्रों की मानें तो अगले महीने के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री के 4 से 5 दिन के कार्यक्रम गुजरात के बनाए जा रहे हैं, जिसका बीजेपी पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेगी. साथ ही जिस तरह कांग्रेस ने अभी तक गुजरात में कोई बड़ी रैली के कार्यक्रम आयोजित नहीं किए हैं उसे देखकर ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव की रणनीति अपनाते हुए आम आदमी पार्टी को वॉकओवर देने का मन बना लिया है. लेकिन गुजरात के वोटिंग पैटर्न विपक्ष को बहुत ज्यादा फायदा देते नजर नहीं आ रहे.
कांग्रेस फिलहाल विपक्ष से लड़ने की बजाय अपनी पार्टी के नेताओं की नाराजगी में ही उलझी हुई है. कुछ नेता अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे हैं तो कोई कांग्रेस के सभी विधायकों को टिकट देने की मांग उठा रहा है. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इसमें क्या रणनीति अपनाती है, क्योंकि पार्टी के सूत्रों की मानें तो बीजेपी मुख्यमंत्री का चेहरा दिए बगैर गुजरात में नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ेगी. लेकिन एंटी इनकंबेंसी को देखते हुए क्या पुराने सारे चेहरे बदल दिए जाएंगे या उन्ही चेहरों पर एकबार फिर दांव खेला जाएगा. इसपर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच मंथन जारी है. कुल मिलाकर गुजरात का चुनाव बहुत कुछ 2024 की दिशा और दशा तय कर सकता है.
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