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Success Story : पिता बस ड्राइवर, खुद चलाते थे रिक्शा, आज करोड़ों का है कारोबार, वाकई दिलचस्प है बिहार के इस युवा की कहानी - दिलखुश कुमार रोडबेज कंपनी

Story of Saharsa Dilkhush: इंसान अपनी मेहनत और लगन से जो चाहे उसे हासिल कर सकता है. इसे साबित कर दिखाया है बिहार के लाल दिलखुश कुमार ने. रिक्शा चलाया, ड्राइविंग की यहां तक की सड़कों पर सब्जी तक बेची, उसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. आज दिलखुश करोड़ों की कंपनी के मालिक हैं. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर.

दिलखुश कुमार
दिलखुश कुमार
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 14, 2023, 6:05 AM IST

देखें विशेष रिपोर्ट.

पटना: बिहार के सहरसा के बनगांव के निवासी 30 वर्षीय दिलखुश कुमार प्रदेश के उद्यम जगत में इन दिनों जाना पहचाना नाम है. युवाओं में स्टार्टअप का प्रचलन जोरों पर है और जीवन में कुछ नया मुकाम हासिल करने के लिए युवा रिस्क लेने से हिचक नहीं रहे हैं. इसी का उदाहरण है दिलखुश कुमार जो 12वीं पास हैं और रोजगार के लिए कभी इन्हें दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाना पड़ा था. फिर वहां से बिहार लौटे और यहां सड़कों पर सब्जी बेचने की नौबत तक आ गई.

सहरसा के दिलखुश बने युवाओं के लिए प्रेरणा: आज दिलखुश RodBez कंपनी के मालिक हैं. करोड़ों का कारोबार है. कभी बचपन में इन्हें किसी पार्टी फंक्शन में जाने के लिए कपड़े नहीं होते थे और दोस्तों से उधार मांग कर कपड़े पहनते थे. लेकिन आज उनके पास ऑडी, होंडा सिटी जैसी कई लग्जरियस गाड़ियां हैं.

ड्राइवर पिता के बेटे हैं करोड़ों की कंपनी के मालिक: दिलखुश कुमार बताते हैं कि उनके पिताजी बस के ड्राइवर थे. पूरा बचपन गांव में बीता है और पढ़ाई लिखाई भी गांव में ही हुई है. पढ़ाई में अच्छे नहीं थे, किसी तरह इंटर पास किया. एक ड्राइवर के बेटे थे तो ड्राइविंग का हुनर जानते थे. ऐसे में 12वीं पास करने के बाद परिवार की गरीबी की वजह से कमाने के लिए दिल्ली जाना पड़ा.

सहरसा के दिलखुश कुमार दो-दो कंपनियों के मालिक
सहरसा के दिलखुश कुमार दो-दो कंपनियों के मालिक

"दिल्ली में नया होने की वजह से कोई मुझे अपनी कार/गाड़ी चलाने के लिए नहीं देता था. लोग कहते थे तुम्हें यहां का ट्रैफिक नियम नहीं पता. बिना काम के दिल्ली में रहना मुश्किल हो गया था. इसके बाद मैंने रिक्शा चलाना शुरू किया. रिक्शा चलाकर दिल्ली की गलियों को नापा. लेकिन 15-20 दिन ही मैंने रिक्शा चलाया था कि तबीयत खराब हो गयी और घर वापस लौटना पड़ा."- दिलखुश कुमार, उद्यमी

ड्राइविंग का काम करते हुए जनरेट हुआ आइडिया: दिलखुश ने बताया कि जब वह बिहार लौट तो यहां उन्होंने ड्राइविंग का काम शुरू किया और विभिन्न लोगों के यहां ड्राइविंग का काम किया. इसी दौरान कुछ रियल स्टेट में संपर्क हुआ तो रियल स्टेट में भी हाथ आजमाया. कई चीजें नया करने की कोशिश की रही, जिसमें काफी में असफलता भी हाथ लगी.

कई असफलताओं के बाद मिली मंजिल: दिलखुश ने बताया कि असफलताओं के बाद रिश्तेदार भी बोलते थे कि ड्राइवर का बेटा ड्राइवर ही बनेगा, ड्राइवरी ही करो. लेकिन बचपन से ही मेरा सपना कुछ नया और अपना करने की थी. इसी दौरान मुझे ट्रांसपोर्ट के सेक्टर में सर्विस प्रोवाइडर के तौर पर काम करने का एक ख्याल आया और इस दिशा में काम शुरू किया.

करोड़ों के कारोबार से मिला युवाओं को रोजगार
करोड़ों के कारोबार से मिला युवाओं को रोजगार

दो कंपनी के CEO हैं दिलखुश : दिलखुश शुरुआत में 2016 में आर्या-गो नाम से कंपनी कुछ लोगों के साथ मिलकर खड़ी की. यहां उन्हें काफी सफलता मिली और बाद में उन्होंने अपना शेयर निकालकर जुलाई 2022 में रोडबेज कंपनी की शुरुआत की. वह देखते थे कि पटना जैसे शहरों में तो अलग-अलग कंपनियों है जो लोगों को टैक्सी उपलब्ध करा रही है.

बिहार की बड़ी कंपनी है दिलखुश की रोडबेज: लेकिन इंटरसिटी ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा नहीं थी. किसी को पटना से दरभंगा जाना है अथवा किसी को चंपारण से पटना आना है तो इसके लिए कोई सर्विस प्रोवाइडर नहीं था. यहीं से उन्होंने रोडबेज कंपनी बनाई और हजारों लोगों को अपने से जोड़कर इंटरसिटी ट्रांसपोर्टेशन के लिए लोगों को नई सुविधा उपलब्ध कराई.

जानें क्या है वन वे सर्विस: पटना में कई टैक्सी सर्विसेज चल रही है, ऐसे में रोडबेज कैसे अलग है इस सवाल पर दिलखुश ने बताया कि उनका सर्विस वन-वे टैक्सी है. किसी को पटना से पूर्णिया के लिए बुकिंग करनी है तो उसे फ्यूल चार्ज सिर्फ पटना से पूर्णिया तक का ही देना होगा. बाकी कंपनियां जाने और आने दोनों का भाड़ा कस्टमर से ले लेती हैं.

1 लाख से अधिक हैं यूजर्स: बाकी कंपनियों में पटना से पूर्णिया का भाड़ा ₹9500 आएगा तो उनके यहां ₹5200 आएगा. राइड बुकिंग उनके एप्लीकेशन से होती है और उनकी सर्विस बिहार में ही है. 1 लाख से अधिक लोगों ने उनके एप्लीकेशन को डाउनलोड करके रखा है और बीते 4 महीने में 50000 से अधिक लोगों ने इसे डाउनलोड किया है. रेटिंग भी बेहतरीन मिला हुआ है.

सस्ते दरों में टैक्सी सुविधा से लोगों को बड़ी राहत
सस्ते दरों में टैक्सी सुविधा से लोगों को बड़ी राहत

कंपनी की वैल्यू 10 करोड़: लगभग 60 से 70 लाख रुपए की लागत से यह कंपनी खड़ी की गई है और 2 महीने में ही मार्केट से 4 करोड़ के करीब इन्वेस्ट कराया. आज 10 करोड़ से अधिक का वैल्यूएशन है. रुकनपुरा में एक वर्क स्पेस में उनका काम चलता है जहां लगभग 19 लोग जुड़े हुए हैं जो एप्लीकेशन पर कस्टमर के ट्रैफिक को हैंडल करते हैं. उनकी कंपनी की खासियत यही है कि कोई कस्टमर उनका राइड बुक करता है तो बुकिंग के समय जो भाड़ा तय हो जाता है, वही भाड़ा रहता है.

टैक्सी पूल की भी सुविधा: दूसरी कंपनियां ट्रैफिक में यदि टाइम लगता है तो उसका चार्ज अलग से जोड़ती है. लेकिन उनके यहां ट्रैफिक में फंसे होने का कोई एडिशनल चार्ज नहीं ऐड किया जाता है. दिलखुश ने बताया कि वह अपने कस्टमर को टैक्सी पूल सर्विसेज भी देते हैं.

क्या है टैक्सी पूल सर्विसेज: इसमें होता या है कि कोई गाड़ी बुकिंग के बाद किसी एक शहर से दूसरे शहर जैसे, मुजफ्फरपुर से पटना आ रही है. इसी समय कोई व्यक्ति पटना से मुजफ्फरपुर के लिए बुकिंग ढूंढ रहा है तो उसे उसे गाड़ी का राइड बुक कर दिया जाता है जो मुजफ्फरपुर से पटना पहुंच रही है और उसे फिर वापस मुजफ्फरपुर लौटना है. इसमें जो ट्रैवल फेयर है वह और कम हो जाता है. क्योंकि गाड़ी तो पटना से खाली ही मुजफ्फरपुर लौट रही थी और उसमें यदि कोई पैसेंजर आ गया तो ड्राइवर के लिए तो वह एडिशनल है. कस्टमर का भी काफी पैसा बचता है.

इस कारण से बंद करना पड़ा कार पूल सर्विस : दिलखुश कुमार ने बताया कि वह पहले कार पूल सर्विसेज की भी शुरुआत किए थे लेकिन कुछ कारणों से यहां इसे बंद करना पड़ा. कारपूल सर्विस का मतलब था कि यदि कोई व्यक्ति अपनी कार से अकेले कहीं ट्रेवल कर रहा है तो इस दौरान रास्ते में वह उनके सर्विस से जुड़कर किसी को लिफ्ट दे सकता है और इसके बदले कुछ उसे पैसे भी मिल जाते थे.

जल्द शुरू होगी टैक्सी शेयर सर्विसेज: यह गाड़ियां सफेद नंबर प्लेट की होती थी और देखने को मिला कि कई लोग लीकर बैन होने के बावजूद लीकर लेकर या कोई अवांछित वस्तु लेकर कार में बैठ जाते थे. यह सर्विसेज अभी उन्होंने अगले 5 साल के लिए रोक दिया है. वह जल्द ही टैक्सी शेयर सर्विसेज शुरू करने जा रहे हैं.

टैक्सी इंडस्ट्री में बड़ा नाम बन चुके हैं दिलखुश: दिलखुश कुमार ने बताया कि वह 60 गाड़ियां अभी लीज पर रखे हुए हैं जिससे सर्विसेस प्रोवाइड कर रहे हैं. इसके अलावा कई टैक्सी सर्विसेज एसोसिएट के रूप में उनसे जुड़ी हुई है. जब उन्हें मन करता है तो वह भाड़े के लिए आती है. त्योहार के सीजन में इन दोनों उनकी गाड़ियों की डिमांड काफी अधिक है क्योंकि उनके यहां फिक्स फेर है जबकि बाकी कंपनियां डायनेमिक फेयर रखी हुई है. कोई भी समय हो किसी भी क्षेत्र में जाना हो किलोमीटर के हिसाब से जो भाड़ा तय है, वह बिल्कुल ऊपर नीचे नहीं होता.

यात्रियों के मिलती हैं कई सुविधाएं: दिलखुश ने बताया कि लोग उनके यहां ऐप पर एक दिन पहले भी गाड़ियां बुक करते हैं. किसी को रेलवे स्टेशन पहुंचकर स्पेशल ट्रेन पकड़ना होता है, किसी को एयरपोर्ट पहुंचकर फ्लाइट पकड़ना होता है. यह लोग यदि उनकी सर्विसेज को बुक किए हैं और किसी भी कारणवश पैसेंजर का फ्लाइट और ट्रेन मिस होता है तो पैसेंजर को गंतव्य तक पहुंचाने का पूरा खर्च कंपनी वहन करता है. इसके लिए कंपनी यह नुकसान भी सहता है और यह कंपनी की उन्होंने पॉलिसी बनाई है.

दिलखुश के परिवार में कौन-कौन है?: दिलखुश ने बताया कि परिवार में अभी उनके दादा-दादी हैं, माता-पिता हैं. वह दो भाई हैं. पत्नी और दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी है. आज के समय वह अपने पापा की ड्राइवरी की नौकरी छुड़ा चुके हैं. पिता को इंगेज रखने के लिए गांव में ही कुछ गाय खरीद कर रख दिए हैं.

हजारों लोगों को दे रहे रोजगार: पिताजी गाय की सेवा करते हैं. इसी से उनका समय व्यतीत होता है. पिता का नाम पवन खां है और माता सोनी देवी हैं. आज उनकी कंपनी में आईआईटी पास आउट इंजीनियर भी हैं और आईआईएम से पास किया मैनेजमेंट के लड़के भी हैं. डायरेक्टर और इनडायरेक्ट रूप से हजारों लोग जुड़े हुए हैं.

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देखें विशेष रिपोर्ट.

पटना: बिहार के सहरसा के बनगांव के निवासी 30 वर्षीय दिलखुश कुमार प्रदेश के उद्यम जगत में इन दिनों जाना पहचाना नाम है. युवाओं में स्टार्टअप का प्रचलन जोरों पर है और जीवन में कुछ नया मुकाम हासिल करने के लिए युवा रिस्क लेने से हिचक नहीं रहे हैं. इसी का उदाहरण है दिलखुश कुमार जो 12वीं पास हैं और रोजगार के लिए कभी इन्हें दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाना पड़ा था. फिर वहां से बिहार लौटे और यहां सड़कों पर सब्जी बेचने की नौबत तक आ गई.

सहरसा के दिलखुश बने युवाओं के लिए प्रेरणा: आज दिलखुश RodBez कंपनी के मालिक हैं. करोड़ों का कारोबार है. कभी बचपन में इन्हें किसी पार्टी फंक्शन में जाने के लिए कपड़े नहीं होते थे और दोस्तों से उधार मांग कर कपड़े पहनते थे. लेकिन आज उनके पास ऑडी, होंडा सिटी जैसी कई लग्जरियस गाड़ियां हैं.

ड्राइवर पिता के बेटे हैं करोड़ों की कंपनी के मालिक: दिलखुश कुमार बताते हैं कि उनके पिताजी बस के ड्राइवर थे. पूरा बचपन गांव में बीता है और पढ़ाई लिखाई भी गांव में ही हुई है. पढ़ाई में अच्छे नहीं थे, किसी तरह इंटर पास किया. एक ड्राइवर के बेटे थे तो ड्राइविंग का हुनर जानते थे. ऐसे में 12वीं पास करने के बाद परिवार की गरीबी की वजह से कमाने के लिए दिल्ली जाना पड़ा.

सहरसा के दिलखुश कुमार दो-दो कंपनियों के मालिक
सहरसा के दिलखुश कुमार दो-दो कंपनियों के मालिक

"दिल्ली में नया होने की वजह से कोई मुझे अपनी कार/गाड़ी चलाने के लिए नहीं देता था. लोग कहते थे तुम्हें यहां का ट्रैफिक नियम नहीं पता. बिना काम के दिल्ली में रहना मुश्किल हो गया था. इसके बाद मैंने रिक्शा चलाना शुरू किया. रिक्शा चलाकर दिल्ली की गलियों को नापा. लेकिन 15-20 दिन ही मैंने रिक्शा चलाया था कि तबीयत खराब हो गयी और घर वापस लौटना पड़ा."- दिलखुश कुमार, उद्यमी

ड्राइविंग का काम करते हुए जनरेट हुआ आइडिया: दिलखुश ने बताया कि जब वह बिहार लौट तो यहां उन्होंने ड्राइविंग का काम शुरू किया और विभिन्न लोगों के यहां ड्राइविंग का काम किया. इसी दौरान कुछ रियल स्टेट में संपर्क हुआ तो रियल स्टेट में भी हाथ आजमाया. कई चीजें नया करने की कोशिश की रही, जिसमें काफी में असफलता भी हाथ लगी.

कई असफलताओं के बाद मिली मंजिल: दिलखुश ने बताया कि असफलताओं के बाद रिश्तेदार भी बोलते थे कि ड्राइवर का बेटा ड्राइवर ही बनेगा, ड्राइवरी ही करो. लेकिन बचपन से ही मेरा सपना कुछ नया और अपना करने की थी. इसी दौरान मुझे ट्रांसपोर्ट के सेक्टर में सर्विस प्रोवाइडर के तौर पर काम करने का एक ख्याल आया और इस दिशा में काम शुरू किया.

करोड़ों के कारोबार से मिला युवाओं को रोजगार
करोड़ों के कारोबार से मिला युवाओं को रोजगार

दो कंपनी के CEO हैं दिलखुश : दिलखुश शुरुआत में 2016 में आर्या-गो नाम से कंपनी कुछ लोगों के साथ मिलकर खड़ी की. यहां उन्हें काफी सफलता मिली और बाद में उन्होंने अपना शेयर निकालकर जुलाई 2022 में रोडबेज कंपनी की शुरुआत की. वह देखते थे कि पटना जैसे शहरों में तो अलग-अलग कंपनियों है जो लोगों को टैक्सी उपलब्ध करा रही है.

बिहार की बड़ी कंपनी है दिलखुश की रोडबेज: लेकिन इंटरसिटी ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा नहीं थी. किसी को पटना से दरभंगा जाना है अथवा किसी को चंपारण से पटना आना है तो इसके लिए कोई सर्विस प्रोवाइडर नहीं था. यहीं से उन्होंने रोडबेज कंपनी बनाई और हजारों लोगों को अपने से जोड़कर इंटरसिटी ट्रांसपोर्टेशन के लिए लोगों को नई सुविधा उपलब्ध कराई.

जानें क्या है वन वे सर्विस: पटना में कई टैक्सी सर्विसेज चल रही है, ऐसे में रोडबेज कैसे अलग है इस सवाल पर दिलखुश ने बताया कि उनका सर्विस वन-वे टैक्सी है. किसी को पटना से पूर्णिया के लिए बुकिंग करनी है तो उसे फ्यूल चार्ज सिर्फ पटना से पूर्णिया तक का ही देना होगा. बाकी कंपनियां जाने और आने दोनों का भाड़ा कस्टमर से ले लेती हैं.

1 लाख से अधिक हैं यूजर्स: बाकी कंपनियों में पटना से पूर्णिया का भाड़ा ₹9500 आएगा तो उनके यहां ₹5200 आएगा. राइड बुकिंग उनके एप्लीकेशन से होती है और उनकी सर्विस बिहार में ही है. 1 लाख से अधिक लोगों ने उनके एप्लीकेशन को डाउनलोड करके रखा है और बीते 4 महीने में 50000 से अधिक लोगों ने इसे डाउनलोड किया है. रेटिंग भी बेहतरीन मिला हुआ है.

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कंपनी की वैल्यू 10 करोड़: लगभग 60 से 70 लाख रुपए की लागत से यह कंपनी खड़ी की गई है और 2 महीने में ही मार्केट से 4 करोड़ के करीब इन्वेस्ट कराया. आज 10 करोड़ से अधिक का वैल्यूएशन है. रुकनपुरा में एक वर्क स्पेस में उनका काम चलता है जहां लगभग 19 लोग जुड़े हुए हैं जो एप्लीकेशन पर कस्टमर के ट्रैफिक को हैंडल करते हैं. उनकी कंपनी की खासियत यही है कि कोई कस्टमर उनका राइड बुक करता है तो बुकिंग के समय जो भाड़ा तय हो जाता है, वही भाड़ा रहता है.

टैक्सी पूल की भी सुविधा: दूसरी कंपनियां ट्रैफिक में यदि टाइम लगता है तो उसका चार्ज अलग से जोड़ती है. लेकिन उनके यहां ट्रैफिक में फंसे होने का कोई एडिशनल चार्ज नहीं ऐड किया जाता है. दिलखुश ने बताया कि वह अपने कस्टमर को टैक्सी पूल सर्विसेज भी देते हैं.

क्या है टैक्सी पूल सर्विसेज: इसमें होता या है कि कोई गाड़ी बुकिंग के बाद किसी एक शहर से दूसरे शहर जैसे, मुजफ्फरपुर से पटना आ रही है. इसी समय कोई व्यक्ति पटना से मुजफ्फरपुर के लिए बुकिंग ढूंढ रहा है तो उसे उसे गाड़ी का राइड बुक कर दिया जाता है जो मुजफ्फरपुर से पटना पहुंच रही है और उसे फिर वापस मुजफ्फरपुर लौटना है. इसमें जो ट्रैवल फेयर है वह और कम हो जाता है. क्योंकि गाड़ी तो पटना से खाली ही मुजफ्फरपुर लौट रही थी और उसमें यदि कोई पैसेंजर आ गया तो ड्राइवर के लिए तो वह एडिशनल है. कस्टमर का भी काफी पैसा बचता है.

इस कारण से बंद करना पड़ा कार पूल सर्विस : दिलखुश कुमार ने बताया कि वह पहले कार पूल सर्विसेज की भी शुरुआत किए थे लेकिन कुछ कारणों से यहां इसे बंद करना पड़ा. कारपूल सर्विस का मतलब था कि यदि कोई व्यक्ति अपनी कार से अकेले कहीं ट्रेवल कर रहा है तो इस दौरान रास्ते में वह उनके सर्विस से जुड़कर किसी को लिफ्ट दे सकता है और इसके बदले कुछ उसे पैसे भी मिल जाते थे.

जल्द शुरू होगी टैक्सी शेयर सर्विसेज: यह गाड़ियां सफेद नंबर प्लेट की होती थी और देखने को मिला कि कई लोग लीकर बैन होने के बावजूद लीकर लेकर या कोई अवांछित वस्तु लेकर कार में बैठ जाते थे. यह सर्विसेज अभी उन्होंने अगले 5 साल के लिए रोक दिया है. वह जल्द ही टैक्सी शेयर सर्विसेज शुरू करने जा रहे हैं.

टैक्सी इंडस्ट्री में बड़ा नाम बन चुके हैं दिलखुश: दिलखुश कुमार ने बताया कि वह 60 गाड़ियां अभी लीज पर रखे हुए हैं जिससे सर्विसेस प्रोवाइड कर रहे हैं. इसके अलावा कई टैक्सी सर्विसेज एसोसिएट के रूप में उनसे जुड़ी हुई है. जब उन्हें मन करता है तो वह भाड़े के लिए आती है. त्योहार के सीजन में इन दोनों उनकी गाड़ियों की डिमांड काफी अधिक है क्योंकि उनके यहां फिक्स फेर है जबकि बाकी कंपनियां डायनेमिक फेयर रखी हुई है. कोई भी समय हो किसी भी क्षेत्र में जाना हो किलोमीटर के हिसाब से जो भाड़ा तय है, वह बिल्कुल ऊपर नीचे नहीं होता.

यात्रियों के मिलती हैं कई सुविधाएं: दिलखुश ने बताया कि लोग उनके यहां ऐप पर एक दिन पहले भी गाड़ियां बुक करते हैं. किसी को रेलवे स्टेशन पहुंचकर स्पेशल ट्रेन पकड़ना होता है, किसी को एयरपोर्ट पहुंचकर फ्लाइट पकड़ना होता है. यह लोग यदि उनकी सर्विसेज को बुक किए हैं और किसी भी कारणवश पैसेंजर का फ्लाइट और ट्रेन मिस होता है तो पैसेंजर को गंतव्य तक पहुंचाने का पूरा खर्च कंपनी वहन करता है. इसके लिए कंपनी यह नुकसान भी सहता है और यह कंपनी की उन्होंने पॉलिसी बनाई है.

दिलखुश के परिवार में कौन-कौन है?: दिलखुश ने बताया कि परिवार में अभी उनके दादा-दादी हैं, माता-पिता हैं. वह दो भाई हैं. पत्नी और दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी है. आज के समय वह अपने पापा की ड्राइवरी की नौकरी छुड़ा चुके हैं. पिता को इंगेज रखने के लिए गांव में ही कुछ गाय खरीद कर रख दिए हैं.

हजारों लोगों को दे रहे रोजगार: पिताजी गाय की सेवा करते हैं. इसी से उनका समय व्यतीत होता है. पिता का नाम पवन खां है और माता सोनी देवी हैं. आज उनकी कंपनी में आईआईटी पास आउट इंजीनियर भी हैं और आईआईएम से पास किया मैनेजमेंट के लड़के भी हैं. डायरेक्टर और इनडायरेक्ट रूप से हजारों लोग जुड़े हुए हैं.

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