रायपुर: भूपेश बघेल सरकार की तरफ से आंदोलन के लिए अनुमति के नियम को लेकर बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में हल्ला बोल किया. बीजेपी ने इस नियम के खिलाफ छत्तीसगढ़ में जेल भरो आंदोलन किया. रायपुर , बिलासपुर, बस्तर, सरगुजा और दुर्भ संभाग में बीजेपी कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे और आंदोलन को सफल बनाने की कोशिश की.
"छत्तीसगढ़ में बघेल सरकार ने लगाया मिनी आपातकाल": रायपुर में बीजेपी की जेल भरो आंदोलन की अगुवाई बीजेपी के वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने की. राजधानी के चार इलाकों में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने डेरा डाल रखा था. सीएम हाउस का घेराव करने की तैयारी थी. प्रदर्शन के दौरान वरिष्ठ बीजेपी विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने बघेल सरकार पर छत्तीसगढ़ में मिनी आपातकाल लागू करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बीजेपी इस काले कानून का विरोध करती रहेगी.
"विरोध प्रदर्शन और आंदोलन से बघेल सरकार डरी, पूरे छत्तीसगढ़ को बनाया जेल": वरिष्ठ बीजेपी विधायक बृजमोहन अग्रवाल यहीं नहीं रुके. उन्होंने बघेल सरकार पर आंदोलन से डरने और घबराने का आरोप लगाया है. बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि "भूपेश बघेल की सरकार छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था को ध्वस्त करने में जुटी हुई है. यही वजह है कि बीजेपी को जेल भरो आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. राज्य सरकार ने पूरे छत्तीसगढ़ को जेल बना दिया है".
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बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को किया गया गिरफ्तार: रायपुर में आंदोलन कर रहे बीजेपी कार्यकर्ताओं को रायपुर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. एसआरपी चौक पर ( BJP leader Brijmohan Agarwal arrested) आंदोलन कर रहे भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय, नवीन मार्कंडेय, दीपक महस्के, श्रीचंंद सुंदरानी, बृजमोहन अग्रवाल समेत कई बड़े बीजेपी नेताओं और सैकड़ों कार्यकर्ताओं को पुलिस ने (BJP worker arrested) गिरफ्तार किया. यह सभी कार्यकर्ता बैरिकेड्स तोड़कर सीएम हाउस का घेराव करने जा रहे थे तभी सबको गिरफ्तार किया गया. इस दौरान बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं की पुलिस से धक्कामुक्की भी हुई. गिरफ्तारी के एक घंटे बाद सभी बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया गया. दूसरे जिलों में भी बीजेपी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था. लेकिन कुछ देर बाद सब शांत होने पर कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया गया.
"बीजेपी का आंदोलन राजनीतिक नौटंकी": बीजेपी के इस आंदोलन पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. छत्तीसगढ़ कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि बीजेपी का आंदोलन राजनीतिक नौटंकी है. उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि जो नियम बीजेपी के शासनकाल में थे वही नियम है. बीजेपी के शासनकाल में जिन नियमों के तहत धरना प्रदर्शन की अनुमति दी जाती थी वही नियम आज लागू है. बीजेपी अब इसे गैर लोकतांत्रिक बता रही है.
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"बीजेपी के शासनकाल में शिक्षकों पर लाठियां बरसाई गई थी": सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि बीजेपी के शासनकाल में शिक्षाकर्मियों पर बीजेपी की सरकार ने लाठियां बरसाई थी. बीजेपी को खुद अवलोकन करना चाहिए. शिक्षाकर्मियों को आंदोलन की वजह से जेल में ठूंसा गया था. चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों पर लाठियां चार्ज करवाई गई थी. महिला शिक्षाकर्मियों के टॉयलेट तक में बीजेपी ने ताला लगवा दिाय था.
"भाजपा शासनकाल में बारात और अखंड रामायण के लिए भी लेनी पड़ती थी अनुमति": सुशील आनंद शुक्ला यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि "आज भारतीय जनता पार्टी अपने आप को बहुत बड़ा लोकतांत्रिक दल बताती है. लेकिन बीजेपी के मूल में ही तानाशाही है. इस बात का बीजेपी को छत्तीसगढ़ की जनता को जवाब देना चाहिए. बीजेपी की सरकार में आम जनता को बारात निकालने और अखंड रामायण पाठ के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती थी. उन्होंने कहा कि आज भी वही नियम है. लेकिन आज यह नियम गैर प्रजातांत्रिक कैसे हो गई. उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी का चरित्र अलोकतांत्रिक है"
आंदोलन के लिए अनुमति पर छत्तीसगढ़ में मचा राजनीतिक घमासान: छत्तीसगढ़ में आंदोलन और धरना प्रदर्शन के लिए सरकारी अनुमति को बघेल सरकार ने अनिवार्य किया है. इस संबंध में गृह विभाग ने सभी कलेक्टरों को निर्देश जारी किया था. इसमें कुल 19 शर्तें लगाई गई हैं. जारी आदेश में यह कहा गया है कि "आयोजन में शामिल सभी व्यक्तियों को अनुमति पत्र की सभी शर्तों का पालन करना होगा.
आयोजन में शामिल होने वाला व्यक्ति जिला प्रशासन और पुलिस बल का पूरा सहयोग करेगा. आयोजन के मार्ग और स्थल पर कानून, व्यवस्था और शांति पूरी तरह से बनाए रखी जाएगी. निर्धारित स्थल पर ही वाहनों की पार्किंग की जाएगी. कोई भी व्यक्ति, जिसमें आयोजक भी शामिल है, जुलूस और सभा में कोई हथियार, नशीला पदार्थ या कोई अन्य खतरनाक पदार्थ नहीं ले जाएगा. आयोजन में नफरत फैलाने वाला भड़काऊ भाषण नहीं दिया जाएगा". शर्तों में आयोजन की वीडियोग्राफी को भी शामिल किया गया है. इस रिकॉर्डिंग को जिला प्रशासन को आंदोलन के दो दिन के अंदर सौंपना अनिवार्य किया गया है. बीजेपी इन शर्तों का विरोध कर रही है. जबकि कांग्रेस का कहना है कि यह सारी प्रक्रिया बीजेपी के शासनकाल में भी थी.