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नगा शांति समझौता खतरे में, पक्षकार ने कहा- अब युद्धविराम निरर्थक

असम राइफल्स, अर्धसैनिक बल और अरुणाचल प्रदेश पुलिस के जवानों की एक संयुक्त टीम ने छह एनएससीएन-आईएम विद्रोहियों को मार गिराया गया था . जिसके बाद से सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (इसाक-मुइवा) (NSCN-IM) के बीच चल रही शांति वार्ता पर खतरा मंडराने लगा है. एनएससीएन (आईएम) ने कहा है कि सरकार के साथ समझौते का अब कोई मतलब नहीं रह गया है. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट....

नगा शांति समझौता खतरे में
नगा शांति समझौता खतरे में
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Published : Jul 13, 2020, 1:39 AM IST

Updated : Jul 13, 2020, 6:22 AM IST

नई दिल्ली : सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (इसाक-मुइवा) (NSCN-IM) के बीच 23 वर्षों से चल रही नगा शांति प्रक्रिया खतरे में है और विघटित हो रही है. इतना ही नहीं एनएससीएन (आईएम) ने यहां तक कहा है कि सरकार के साथ समझौते का अब कोई मतलब नहीं रह गया है.

दरअसल, असम राइफल्स अर्धसैनिक बल और अरुणाचल प्रदेश पुलिस के जवानों की एक संयुक्त टीम ने छह एनएससीएन (आईएम) विद्रोहियों को मार गिराया गया था.

नगा समूहों के साथ बातचीत के समापन के लिए केंद्र सरकार द्वारा तय की गई 31 अक्टूबर, 2019 की समय सीमा बीत गई, लेकिन विवाद का कोई हल नहीं निकला.

नगालैंड-इसाक मुइवा ने अपने एक बयान में कहा है कि उसे बार-बार उकसाया जा रहा है. साथ ही कहा कि युद्धविराम का अब कोई मतलब नहीं रह गया है.

बता दें कि अरुणाचल प्रदेश के लोंगदिंग जिले के नीनू गांव के पास शनिवार सुबह सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में एनएससीएन (आईएम) के छह उग्रवादी मारे गए. इसके बाद एनएससीएन (आईएम) की तरफ से एक बयान जारी किया गया. बयान में कहा गया कि हाल के वर्षों में संगठन ने एक बार में सबसे अधिक लोगों को खोया.

सुरक्षाबलों और एनएससीएन (आईएम) विद्रोहियों के बीच मुठभेड़ लोंगदिंग जिले के नगीनु और नगीसा गांवों के बीच स्थित जंगल में हुई.

एससीएन-आईएम ने अपने एक बयान में यह भी कहा कि भारतीय सुरक्षाबलों ने सभी शालीनता को पार कर दिया, क्योंकि वे कटे हुए शवों को सबसे सामने लाए. युद्ध के मैदान में दुश्मन भी मारे गए सैनिकों के प्रति सम्मान दिखाता है.

गौरतलब है कि एनएससीएन (आईएम) कि ने भारत-चीन सीमा रेखा का उल्लेख किया है, जहां पर भारत-चीन के सैनिक के बड़े पैमाने पर तैनात हैं. एनएससीएन (आईएम) ने कि कहा कि लोंगदिंग जिले से भारत-चीन सीमा से बहुत दूर नहीं है.

एनएससीएन (आईएम) ने कहा कि भारत सरकार किसी भी मामूली बहाने के तहत एनएससीएन (आईएम) को निशाना बनना चाहती है. जब वह, भारत-पाकिस्तान सीमा में पाकिस्तान के साथ और लद्दाख, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश में चीन का सामना कर रहा है. एनएससीएन (आईएम) ने कहा कि भारत-नगा राजनीतिक वार्ता ने बहुत कुछ हासिल किया है, लेकिन बहुत कम सम्मान अर्जित कर पाई.

नगा विद्रोहियों का चीन के साथ पुराना संबंध रहा है. आपकों बता दें कि 1967 में 133 नगा विद्रोही युद्धकला का प्रशिक्षण लेने चीन गए थे. नगा विद्रोहियों का यह पहला बैच था. इसके बाद नगा विद्रोहियों के बैच यहां प्रशिक्षण लेने गए.

नगा शांति समझौता काफी लंबे समय से चल रहा है. जिसके चलते एनएससीएन (आईएम) ने अपनी कई मांगें त्याग दी हैं.

सरकार और NSCN (IM) के बीच पिछले 23 वर्षों से बातचीत चल रही है. उल्लेखनीय है कि संघर्ष विराम नियम केवल नगालैंड राज्य में लागू होते हैं, जबकि यह संघर्ष विराम नियम अरुणाचल प्रदेश या मणिपुर में लागू नहीं होते, जो मणिपुर में तंगखाल व माओ और अरुणाचल में नोक्टे व वानचो जैसी प्रमुख जनजातियों के घर हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि लोंगडिंग एनकाउंटर इस समय ही क्यों हुआ इससे पहले क्यों नहीं. दोनों राज्यों में एनएससीएन (आईएम) कैडर नगा बहुल क्षेत्रों में खुलेआम अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं.

जबकि NSCN (IM) पूर्ण संप्रभुता की अपनी मांग से एक कदम पीछे साझा संप्रभुता की मांग पर आने के बाद से लगातार बैकफुट पर रहा है. वहीं, नई दिल्ली ने 'ग्रेटर नगालिम' की मांग कर रहे संगठन को एक अलग झंडा और एक अलग संविधान देने से भी इनकार कर दिया.

इतना ही नहीं हाल ही में राज्य के राज्यपाल आर.एन. रवि ने 6 जून, 2020 को जोरदार शब्दों में मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर विद्रोही संगठनों की तुलना 'सशस्त्र गिरोहों' से की, जो बड़े पैमाने पर जबरन वसूली और गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे. यह गिरोह राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति को ध्वस्त कर चुके थे.

एनएससीएन (आईएम) द्वारा उठाए गए नवीनतम रुख के साथ, यह देखा जाना बाकी है कि क्या स्थिति उस हद तक बिगड़ जाती है, जहां भूमिगत संगठन औपचारिक रूप से युद्ध विराम संधि को बंद कर देता है.

नई दिल्ली : सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (इसाक-मुइवा) (NSCN-IM) के बीच 23 वर्षों से चल रही नगा शांति प्रक्रिया खतरे में है और विघटित हो रही है. इतना ही नहीं एनएससीएन (आईएम) ने यहां तक कहा है कि सरकार के साथ समझौते का अब कोई मतलब नहीं रह गया है.

दरअसल, असम राइफल्स अर्धसैनिक बल और अरुणाचल प्रदेश पुलिस के जवानों की एक संयुक्त टीम ने छह एनएससीएन (आईएम) विद्रोहियों को मार गिराया गया था.

नगा समूहों के साथ बातचीत के समापन के लिए केंद्र सरकार द्वारा तय की गई 31 अक्टूबर, 2019 की समय सीमा बीत गई, लेकिन विवाद का कोई हल नहीं निकला.

नगालैंड-इसाक मुइवा ने अपने एक बयान में कहा है कि उसे बार-बार उकसाया जा रहा है. साथ ही कहा कि युद्धविराम का अब कोई मतलब नहीं रह गया है.

बता दें कि अरुणाचल प्रदेश के लोंगदिंग जिले के नीनू गांव के पास शनिवार सुबह सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में एनएससीएन (आईएम) के छह उग्रवादी मारे गए. इसके बाद एनएससीएन (आईएम) की तरफ से एक बयान जारी किया गया. बयान में कहा गया कि हाल के वर्षों में संगठन ने एक बार में सबसे अधिक लोगों को खोया.

सुरक्षाबलों और एनएससीएन (आईएम) विद्रोहियों के बीच मुठभेड़ लोंगदिंग जिले के नगीनु और नगीसा गांवों के बीच स्थित जंगल में हुई.

एससीएन-आईएम ने अपने एक बयान में यह भी कहा कि भारतीय सुरक्षाबलों ने सभी शालीनता को पार कर दिया, क्योंकि वे कटे हुए शवों को सबसे सामने लाए. युद्ध के मैदान में दुश्मन भी मारे गए सैनिकों के प्रति सम्मान दिखाता है.

गौरतलब है कि एनएससीएन (आईएम) कि ने भारत-चीन सीमा रेखा का उल्लेख किया है, जहां पर भारत-चीन के सैनिक के बड़े पैमाने पर तैनात हैं. एनएससीएन (आईएम) ने कि कहा कि लोंगदिंग जिले से भारत-चीन सीमा से बहुत दूर नहीं है.

एनएससीएन (आईएम) ने कहा कि भारत सरकार किसी भी मामूली बहाने के तहत एनएससीएन (आईएम) को निशाना बनना चाहती है. जब वह, भारत-पाकिस्तान सीमा में पाकिस्तान के साथ और लद्दाख, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश में चीन का सामना कर रहा है. एनएससीएन (आईएम) ने कहा कि भारत-नगा राजनीतिक वार्ता ने बहुत कुछ हासिल किया है, लेकिन बहुत कम सम्मान अर्जित कर पाई.

नगा विद्रोहियों का चीन के साथ पुराना संबंध रहा है. आपकों बता दें कि 1967 में 133 नगा विद्रोही युद्धकला का प्रशिक्षण लेने चीन गए थे. नगा विद्रोहियों का यह पहला बैच था. इसके बाद नगा विद्रोहियों के बैच यहां प्रशिक्षण लेने गए.

नगा शांति समझौता काफी लंबे समय से चल रहा है. जिसके चलते एनएससीएन (आईएम) ने अपनी कई मांगें त्याग दी हैं.

सरकार और NSCN (IM) के बीच पिछले 23 वर्षों से बातचीत चल रही है. उल्लेखनीय है कि संघर्ष विराम नियम केवल नगालैंड राज्य में लागू होते हैं, जबकि यह संघर्ष विराम नियम अरुणाचल प्रदेश या मणिपुर में लागू नहीं होते, जो मणिपुर में तंगखाल व माओ और अरुणाचल में नोक्टे व वानचो जैसी प्रमुख जनजातियों के घर हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि लोंगडिंग एनकाउंटर इस समय ही क्यों हुआ इससे पहले क्यों नहीं. दोनों राज्यों में एनएससीएन (आईएम) कैडर नगा बहुल क्षेत्रों में खुलेआम अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं.

जबकि NSCN (IM) पूर्ण संप्रभुता की अपनी मांग से एक कदम पीछे साझा संप्रभुता की मांग पर आने के बाद से लगातार बैकफुट पर रहा है. वहीं, नई दिल्ली ने 'ग्रेटर नगालिम' की मांग कर रहे संगठन को एक अलग झंडा और एक अलग संविधान देने से भी इनकार कर दिया.

इतना ही नहीं हाल ही में राज्य के राज्यपाल आर.एन. रवि ने 6 जून, 2020 को जोरदार शब्दों में मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर विद्रोही संगठनों की तुलना 'सशस्त्र गिरोहों' से की, जो बड़े पैमाने पर जबरन वसूली और गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे. यह गिरोह राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति को ध्वस्त कर चुके थे.

एनएससीएन (आईएम) द्वारा उठाए गए नवीनतम रुख के साथ, यह देखा जाना बाकी है कि क्या स्थिति उस हद तक बिगड़ जाती है, जहां भूमिगत संगठन औपचारिक रूप से युद्ध विराम संधि को बंद कर देता है.

Last Updated : Jul 13, 2020, 6:22 AM IST
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