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कीटनाशकों पर बैन : फैसला अच्छा, लेकिन बढ़ जाएगी फसलों की लागत

सरकार ने 27 पेस्टिसाइड्स को प्रतिबंधित करने के लिए अधिसूचना जारी की है. इस अधिसूचना के बाद से ही किसान दो हिस्सों में विभाजित होते नजर आ रहे हैं. कुछ किसानों का कहना है कि सरकार को इन पेस्टिसाइड्स पर प्रतिबंध लगाना चाहिए तो कुछ का कहना है कि जिन दवाओं से नुकसान नहीं होता, उनपर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इनके स्थान पर हमें महंगी दवाओं का प्रयोग करना होगा. पढ़ें पूरी खबर...

ban 27 pesticides
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Published : Jun 11, 2020, 12:59 PM IST

चंडीगढ़ : पिछले एक दशक में भारत में पेस्टिसाइड (कीटनाशक) का इस्तेमाल जोरों पर हो रहा है. इस दौरान देश में खेती का व्यावसायीकरण भी शुरू हुआ, जिससे खेती में पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल करने की होड़ लग गई. हरियाणा और पंजाब जैसे कृषि प्रमुख राज्य पेस्टिसाइड के बड़े उपभोक्ता के रूप में सामने आए. लेकिन अब इन कीटनाशकों के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं, जिस पर केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है.

आसान भाषा में समझा जाए तो कीटनाशक वे जहर हैं, जो फल, सब्जियों और अनाज को कीड़े, रोग और खरपतवार से बचाने के लिए डाले जाते हैं. लेकिन इन कीटनाशकों का सिर्फ एक हिस्सा ही कीड़ों और रोगों को नष्ट करने का काम करता है, बाकि 99 फीसदी का बड़ा हिस्सा उस फल और अनाज में समा जाता है, जिससे खाने वालों को बीमार कर सकता है.

पेस्टिसाइड्स प्रतिबंध पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

कीटनाशकों से होती हैं कई घातक बीमारियां
कीटनाशकों के प्रभाव से अस्थमा, ऑटिज्म, डायबिटीज, अल्जाइमर, प्रजनन संबंधी अक्षमता और कई तरह का कैंसर होने का खतरा रहता है. शोध में यह भी सामने आया है कि जहां पेस्टिसाइड छिड़का जाता है, वहां की जमीन की उर्वरक क्षमता भी कमजोर होने लगती है.

केंद्र सरकार की 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध की योजना
इस गंभीर समस्या पर कृषि विशेषज्ञों की तरफ से जोर देने के बाद केंद्र विभाग ने बड़ा कदम उठाया. केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की अधिसूचना जारी की है.

केंद्र सरकार ने जिन 27 कीटनाशकों को बैन करने की योजना बनाई है, वे बाजार में ऐसफेट, अल्ट्राजाइन, बेनफराकारब, बुटाक्लोर, कैप्टन, कार्बेंडाजिम, कार्बोफ्यूरान, क्लोरप्यरिफॉस 2.4-डी, डेल्टामेथ्रीन, डिकोफॉल, डिमेथोट, डाइनोकैप, डियूरॉन, मालाथियॉन, मैनकोजेब, मिथोमिल, मोनोक्रोटोफॉस, ऑक्सीफ्लोरीन, पेंडिमेथलिन, क्यूनलफॉस, सलफोसूलफूरोन, थीओडीकर्ब, थायोफनेट मिथाइल, थीरम, जीनेब और जीरम नाम से बेचे जाते हैं.

प्रमुख फसलों में हो रहा पेस्टिसाइड का इस्तेमाल
हरियाणा में मुख्य रूप से धान और गेहूं की खेती होती है. इसके साथ ही मक्का, गन्ना, अरहर, गवार, तिल, ग्रीष्म मूंग, कपास, तिल आदि का बड़े स्तर पर पैदावार किया जाता है. आज हालात यह है कि यहां 75 प्रतिशत से ज्यादा इन फसलों में पेस्टिसाइड का इस्तेमाल हो रहा है.

हैरानी इस बात में भी होगी कि बागवानी में भी जमकर पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. केला, आम, अंगूर, बैंगन, भिड़ी तक में भारी मात्रा में क्लास वन (अत्यधिक हानिकारक) रसायनों को प्रयोग किया जाता है.

पंजाब और हरियाणा किसानों की प्रतिक्रिया
कीटनाशकों पर बैन लगाने के फैसले पर ईटीवी भारत हरियाणा और पंजाब के किसानों से बातचीत की. इस बारे में जींद में खेती करने वाले किसान रणधीर और सतबीर का कहना है कि सरकार का फैसला अच्छा है, लेकिन बिना कीटनाशकों के खेती करने में दिक्कत बहुत होगी, खेतों में अगर खरपतवार होंगे तो फसलों को बड़ा नुकसान होगा. दवाएं बंद करने से किसानों का काम बढ़ जाएगा, जिससे फसल की लागत बढ़ जाएगी.

वहीं किसान मनोज ने कहा कि सरकार ने कीटनाशकों पर फैसला बड़ी देरी से लिया है. दूसरे देशों में 20-30 साल पहले से ही मोनोक्रोटोफस दवा बैन है, लेकिन हमारे यहां अब यह फैसला लिया गया है.

पढ़ें : आम के पेड़ पर कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल पर बैन को लेकर बंटे किसान

वहीं पंजाब के किसान राजविंदर और रामजीत का कहना है, 'कीटनाशकों का प्रयोग करना हमारी मजबूरी है. इनके इस्तेमाल के बिना फसल कम होगी, उपज कम होने से हमारे खर्चे पूरे नहीं होंगे, तो घाटे की खेती कैसे करें. हमारे पास विकल्प नहीं है, वरना हम पेस्टिसाइड का इस्तेमाल कर क्यों जहर की खेती करते.'

क्या है विशेषज्ञ की राय?
जींद (हरियाणा) के कृषि विशेषज्ञ रामफल कंडेला ने सरकार के फैसले पर सहमति जताई, लेकिन इन कीटनाशक का कोई विकल्प नहीं मिलने पर उन्होंने चिंता जताई. उनका कहना है कि क्विनालफॉस कीटनाशक को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीव्र खतरे की रैंगिंग में मध्य रूप से खतरनाक माना है.

इसका इस्तेमाल मिर्च और कपास की फसल पर छिड़काव के लिए किया जाता है. हरियाणा में कपास की फसल पर लगातार कीटों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. साल 2000 से अमेरिकी सुंडी से फसल को बचाने के लिए किसान एक-एक फसल में 30-30 (दवा) छिड़काव कर रहा है. ऐसे में यह फसल अब घातक साबित हो रही हैं. किसानों को विकल्प मिलना चाहिए और यह जिम्मेदारी सरकार की है.

लुधियाना (पंजाब) के मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. नरिंदर सिंह बेनीपाल के मुताबिक सरकार ने जिन पेस्टिसाइड स्प्रे पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. उनसे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. यह फैसला बिल्कुल सही है. उन्होंने कहा कि वह किसानों को जैविक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए सेमिनार आयोजित कर रहे हैं और विभिन्न कृषि कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे हैं.

फैसले पर पेस्टिसाइड निर्माताओं से मांगी है राय
ये कीटनाशक इंसानों और जानवरों को लिए खतरनाक माने गए हैं. इनपर 30 देशों ने प्रतिबंध लगाया है. हालांकि कृषि मंत्रालय ने उद्योग और निर्माताओं को प्रतिबंध पर आपत्ति जताने के लिए 45 दिन का वक्त दिया. अब देखना होगा कि सरकार इन पेस्टिसाइड को लेकर क्या फैसला करती है.

चंडीगढ़ : पिछले एक दशक में भारत में पेस्टिसाइड (कीटनाशक) का इस्तेमाल जोरों पर हो रहा है. इस दौरान देश में खेती का व्यावसायीकरण भी शुरू हुआ, जिससे खेती में पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल करने की होड़ लग गई. हरियाणा और पंजाब जैसे कृषि प्रमुख राज्य पेस्टिसाइड के बड़े उपभोक्ता के रूप में सामने आए. लेकिन अब इन कीटनाशकों के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं, जिस पर केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है.

आसान भाषा में समझा जाए तो कीटनाशक वे जहर हैं, जो फल, सब्जियों और अनाज को कीड़े, रोग और खरपतवार से बचाने के लिए डाले जाते हैं. लेकिन इन कीटनाशकों का सिर्फ एक हिस्सा ही कीड़ों और रोगों को नष्ट करने का काम करता है, बाकि 99 फीसदी का बड़ा हिस्सा उस फल और अनाज में समा जाता है, जिससे खाने वालों को बीमार कर सकता है.

पेस्टिसाइड्स प्रतिबंध पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

कीटनाशकों से होती हैं कई घातक बीमारियां
कीटनाशकों के प्रभाव से अस्थमा, ऑटिज्म, डायबिटीज, अल्जाइमर, प्रजनन संबंधी अक्षमता और कई तरह का कैंसर होने का खतरा रहता है. शोध में यह भी सामने आया है कि जहां पेस्टिसाइड छिड़का जाता है, वहां की जमीन की उर्वरक क्षमता भी कमजोर होने लगती है.

केंद्र सरकार की 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध की योजना
इस गंभीर समस्या पर कृषि विशेषज्ञों की तरफ से जोर देने के बाद केंद्र विभाग ने बड़ा कदम उठाया. केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की अधिसूचना जारी की है.

केंद्र सरकार ने जिन 27 कीटनाशकों को बैन करने की योजना बनाई है, वे बाजार में ऐसफेट, अल्ट्राजाइन, बेनफराकारब, बुटाक्लोर, कैप्टन, कार्बेंडाजिम, कार्बोफ्यूरान, क्लोरप्यरिफॉस 2.4-डी, डेल्टामेथ्रीन, डिकोफॉल, डिमेथोट, डाइनोकैप, डियूरॉन, मालाथियॉन, मैनकोजेब, मिथोमिल, मोनोक्रोटोफॉस, ऑक्सीफ्लोरीन, पेंडिमेथलिन, क्यूनलफॉस, सलफोसूलफूरोन, थीओडीकर्ब, थायोफनेट मिथाइल, थीरम, जीनेब और जीरम नाम से बेचे जाते हैं.

प्रमुख फसलों में हो रहा पेस्टिसाइड का इस्तेमाल
हरियाणा में मुख्य रूप से धान और गेहूं की खेती होती है. इसके साथ ही मक्का, गन्ना, अरहर, गवार, तिल, ग्रीष्म मूंग, कपास, तिल आदि का बड़े स्तर पर पैदावार किया जाता है. आज हालात यह है कि यहां 75 प्रतिशत से ज्यादा इन फसलों में पेस्टिसाइड का इस्तेमाल हो रहा है.

हैरानी इस बात में भी होगी कि बागवानी में भी जमकर पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. केला, आम, अंगूर, बैंगन, भिड़ी तक में भारी मात्रा में क्लास वन (अत्यधिक हानिकारक) रसायनों को प्रयोग किया जाता है.

पंजाब और हरियाणा किसानों की प्रतिक्रिया
कीटनाशकों पर बैन लगाने के फैसले पर ईटीवी भारत हरियाणा और पंजाब के किसानों से बातचीत की. इस बारे में जींद में खेती करने वाले किसान रणधीर और सतबीर का कहना है कि सरकार का फैसला अच्छा है, लेकिन बिना कीटनाशकों के खेती करने में दिक्कत बहुत होगी, खेतों में अगर खरपतवार होंगे तो फसलों को बड़ा नुकसान होगा. दवाएं बंद करने से किसानों का काम बढ़ जाएगा, जिससे फसल की लागत बढ़ जाएगी.

वहीं किसान मनोज ने कहा कि सरकार ने कीटनाशकों पर फैसला बड़ी देरी से लिया है. दूसरे देशों में 20-30 साल पहले से ही मोनोक्रोटोफस दवा बैन है, लेकिन हमारे यहां अब यह फैसला लिया गया है.

पढ़ें : आम के पेड़ पर कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल पर बैन को लेकर बंटे किसान

वहीं पंजाब के किसान राजविंदर और रामजीत का कहना है, 'कीटनाशकों का प्रयोग करना हमारी मजबूरी है. इनके इस्तेमाल के बिना फसल कम होगी, उपज कम होने से हमारे खर्चे पूरे नहीं होंगे, तो घाटे की खेती कैसे करें. हमारे पास विकल्प नहीं है, वरना हम पेस्टिसाइड का इस्तेमाल कर क्यों जहर की खेती करते.'

क्या है विशेषज्ञ की राय?
जींद (हरियाणा) के कृषि विशेषज्ञ रामफल कंडेला ने सरकार के फैसले पर सहमति जताई, लेकिन इन कीटनाशक का कोई विकल्प नहीं मिलने पर उन्होंने चिंता जताई. उनका कहना है कि क्विनालफॉस कीटनाशक को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीव्र खतरे की रैंगिंग में मध्य रूप से खतरनाक माना है.

इसका इस्तेमाल मिर्च और कपास की फसल पर छिड़काव के लिए किया जाता है. हरियाणा में कपास की फसल पर लगातार कीटों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. साल 2000 से अमेरिकी सुंडी से फसल को बचाने के लिए किसान एक-एक फसल में 30-30 (दवा) छिड़काव कर रहा है. ऐसे में यह फसल अब घातक साबित हो रही हैं. किसानों को विकल्प मिलना चाहिए और यह जिम्मेदारी सरकार की है.

लुधियाना (पंजाब) के मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. नरिंदर सिंह बेनीपाल के मुताबिक सरकार ने जिन पेस्टिसाइड स्प्रे पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. उनसे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. यह फैसला बिल्कुल सही है. उन्होंने कहा कि वह किसानों को जैविक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए सेमिनार आयोजित कर रहे हैं और विभिन्न कृषि कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे हैं.

फैसले पर पेस्टिसाइड निर्माताओं से मांगी है राय
ये कीटनाशक इंसानों और जानवरों को लिए खतरनाक माने गए हैं. इनपर 30 देशों ने प्रतिबंध लगाया है. हालांकि कृषि मंत्रालय ने उद्योग और निर्माताओं को प्रतिबंध पर आपत्ति जताने के लिए 45 दिन का वक्त दिया. अब देखना होगा कि सरकार इन पेस्टिसाइड को लेकर क्या फैसला करती है.

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