ETV Bharat / bharat

भारत में घुसपैठ के लिए चीन की नजर पूर्वोत्तर के विद्रोही संगठनों पर

चीन, अरुणाचल प्रदेश के साथ 1,126 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. यहां राज्य के पूर्वी हिस्से से होकर जाने वाले मार्ग हैं, जिनका उपयोग म्यांमार और चीन के युन्नान प्रांत में प्रवेश करने के लिए अधिकांश विद्रोहियों द्वारा किया जाता है. पूर्वोत्तर राज्यों में कई विद्रोही संगठन सक्रिय रहे हैं. पिछले कुछ सालों से यह संगठन निष्क्रिय हो गए थे, लेकिन अब जबकि चीन ने अपना रूख बदल लिया है, आशंका है कि इन संगठनों को फिर से बल मिल सकता है. चीन इनका इस्तेमाल भारत में अशांति फैलाने और सीमा पर से ध्यान भटकाने के लिए कर सकता है. लिहाजा, सरकार को इसका ख्याल रखना होगा. पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

डिजाइन फोटो
डिजाइन फोटो
author img

By

Published : Jul 9, 2020, 10:40 PM IST

Updated : Jul 11, 2020, 11:16 AM IST

हैदराबाद : पूर्वोत्तर भारत के कई राज्य हिंसक आंदोलनों से लंबे समय तक त्रस्त रहे हैं. अब जबकि चीन ने आक्रामक तेवर दिखाना शुरू किया है, पूर्वोत्तर के इन राज्यों में एक बार फिर युद्ध का उन्माद पनपने की आशंका है. ऐसी आशंका है कि चीन, पूर्वोत्तर राज्यों के विद्रोही संगठनों को उकसाकर देश में अशांति का माहौल पैदा कर सकता है. सरकार का अधिकतर ध्यान नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास पाकिस्तान पर होता है, लेकिन अब सरकार को रणनीति बदलनी होगी. पाकिस्तान के साथ चीन पर भी उतनी ही मुस्तैदी से नजर बनाए रखने की जरूरत है.

दरअसल, पूर्वोत्तर में सक्रिय विद्रोही संगठनों के माध्यम से चीन के पास पूर्वोत्तर फ्रंटियर में हस्तक्षेप करने की क्षमता है. परमाणु-हथियार से लैस पड़ोसियों द्वारा एक पूर्ण युद्ध को गैर-विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.

हालांकि, एक हल्के फुल्के संघर्ष के लिए भारत को हमेशा तैयार रहना होगा और इसे कभी भी लड़ा जा सकता है. इस बात की भी संभावना बढ़ गई है कि चीन, भारत को परेशान करने के लिए हल्की फुल्की झड़पों को अंजाम देता रहे.

चीन, अरुणाचल प्रदेश के साथ 1,126 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. यहां राज्य के पूर्वी हिस्से से होकर जाने वाले मार्ग हैं, जिनका उपयोग म्यांमार और चीन के युन्नान प्रांत में प्रवेश करने के लिए अधिकांश विद्रोहियों द्वारा किया जाता है.

पहले भी असम, मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम के विद्रोहियों ने आश्रय और रसद सहायता लेने के लिए चीनी नेताओं के साथ संपर्क स्थापित किया था, हालांकि चीन ने तब सीधे उनकी मदद करने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब भारत के साथ बढ़ते सैन्य तनाव ने चीन को स्थिति का लाभ उठाने का एक आदर्श अवसर प्रदान किया है.

असम

पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच जारी गतिरोध के बीच परेश बरुआ के नेतृत्व वाली यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (स्वतंत्र) (उल्फा-आई) ने इस हफ्ते 17 मिनट का एक वीडियो जारी कर चीन को खुला समर्थन देने की घोषणा की है.

उल्लेखनीय है कि 1962 के संघर्ष के बाद उल्फा (आई) ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि पीएलए ने कभी भी, किसी भी स्वदेशी असमी को नुकसान नहीं पहुंचाया और इसके विपरीत स्थानीय किसानों को कृषि कार्यों में मदद की.

उल्फा का चीन के साथ जुड़ाव कई दशकों पुराना है. एक समय असम के प्रमुख विद्रोही समूह ने युन्नान के प्रांतीय प्रतिनिधियों के साथ मिलकर सैन्य और सैन्य समर्थन की मांग की थी.

सूचना है कि बरुआ स्वंय चीन के देहोंग प्रान्त के एक काउंटी शहर रूली के सीमावर्ती इलाके में रह रहा है.

यह दूसरी बार है कि उल्फा (आई) ने चीन का खुलकर समर्थन किया है. उल्फा ने पिछली बार मार्च 2012 में चीन का समर्थन किया था, तब प्रतिबंधित संगठन ने असम में तिब्बती कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों द्वारा किए गए चीनी विरोध की आलोचना की थी. इस दौरान संगठन ने कहा था कि निर्वासित तिब्बतियों ने पिछले तीन दशकों में असम में अत्याचारों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए कभी कोई चिंता नहीं जताई.

माना जाता है कि उल्फा (आई) के भारत-म्यांमार सीमा के पास जंगलों में मौजूद शिविरों में सौ से अधिक सशस्त्र लड़ाके हैं. यहां से चीन की सीमा तक पहुंचने के लिए केवल एक दिन का समय लगता है. यह संगठन शांति वार्ता का हमेशा से विरोध करता आया है और स्वतंत्र असम की अपनी मांग पर अड़ा हुआ है.

दूसरी ओर, 15 वर्षों से सरकार और उल्फा के एक गुट के बीच चल रही वार्ता प्रक्रिया से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है, जिससे राज्य के कई लोगों में बेचैनी है.

नगा समुदाय

नगा, जो पूर्वोत्तर के चारों राज्यों में फैले हुए हैं, ने वहां विद्रोह आंदोलन चलाया. चीन भी इस आंदोलन के लाभार्थियों में से एक था. गौरतलब है कि चीन वह पहला देश था जिसने नगा आंदोलन को अपना समर्थन दिया. इतना ही नहीं, चीन ने नगा आंदोलन से जुड़े 133 विद्रोहियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया था.

बता दें कि नगा आंदोलन दुनिया का दूसरा सबसे पुराना उग्रवाद है, इस क्षेत्र में नगा आंदोलन को 'सभी उग्रवादियों की मां' कहा जाता है.

नगा मुद्दे को लेकर सरकार के साथ चली लंबी बातचीत के 23 साल बाद भी अब तक निर्णायक समाधान नहीं निकला है और निकट भविष्य में भी कोई उम्मीद नहीं है. इससे नगा समुदाय के बीच काफी निराशा है.

2015 में भारत सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद एक बार फिर उम्मीदें जागी थीं, लेकिन उसके बाद कोई वास्तविक प्रगति नहीं हुई है.

इसके बाद इस साल 14 फरवरी को, मणिपुर के उखरुल में, एनएससीएन (आईएम) के एक हॉटबेड में लगभग 2,000 नगा विद्रोहियों ने वुहान में कोरोना वायरस के संकट के खिलाफ चीन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए एक संगीत समारोह का आयोजन किया.

पढ़ें- जम्मू-कश्मीर : आतंकियों ने भाजपा नेता को पिता और भाई सहित मौत के घाट उतारा

मिजोरम

पिछले साल मिजोरम की राजधानी आइजोल में नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) के खिलाफ प्रदर्शनकारियों के एक समूह का नेतृत्व करने वाले मिजोरम के पूर्व मुख्यमंत्री ने हैलो चाइना कहते हुए एक बैनर दिखाया, जो खतरे की घंटी है.

याद रहे मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) ने साठ के दशक में पहाड़ियों के बीच एक विद्रोह आंदोलन का नेतृत्व किया था.

मणिपुर

मणिपुर में विद्रोही संगठनों की संख्या सबसे अधिक है. यहां लगभग 50 विद्रोही संगठन हैं. रोजगार की भारी कमी वाले राज्य में उग्रवाद युवाओं के लिए जीवन का एक हिस्सा बन गया है.

यहां साम्यवादी मान्यताओं का पालन करने वाले कई शक्तिशाली मेइती संगठनों का चीन के साथ गठबंधन करना एक स्वाभाविक बात है. इन विद्रोही संगठनों में से कई को चीन से समर्थन मिलता है. यहां मौजूद मजबूत विद्रोहीं सगठनों से भी चीन फायदा उठा सकता है.

युवाओं की वापसी

फिलहाल पूर्वोत्तर राज्यों को लाखों युवाओं पर ध्यान देने की आवश्यक्ता है, जो कोरोना वायरस महामारी के कारण अपने मूल राज्यों में लौट आए हैं, उनके पास न नौकरी है, न पैसा है और न ही कोई सुनिश्चित भविष्य है. ऐसे में वह उग्रवादी संगठनों में शामिल हो सकते हैं.

नागरिकता संशोधन कानून

राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (NRC) के मुद्दे और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के पारित होने के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों में इसका काफी विरोध हुआ.

यहां के लोगों का मानना है कि सीएए को पूर्वोत्तर के लोगों की भावनाओं की अवहेलना के लिए पारित किया गया है. इसने पूरे क्षेत्र को एकजुट कर दिया. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.

संक्षेप में कहा जाए तो पूर्वोत्तर में सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य एक ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे चीन इसका फायदा उठा सकता है. इसलिए, सरकार के लिए यह उचित होगा कि वह पूर्वोत्तर में वह म्योपिक नीति को आगे बढ़ाने सहित पर्याप्त कदम उठाए और लोगों के दिल और दिमाग जीतने की कोशिश करे.

हैदराबाद : पूर्वोत्तर भारत के कई राज्य हिंसक आंदोलनों से लंबे समय तक त्रस्त रहे हैं. अब जबकि चीन ने आक्रामक तेवर दिखाना शुरू किया है, पूर्वोत्तर के इन राज्यों में एक बार फिर युद्ध का उन्माद पनपने की आशंका है. ऐसी आशंका है कि चीन, पूर्वोत्तर राज्यों के विद्रोही संगठनों को उकसाकर देश में अशांति का माहौल पैदा कर सकता है. सरकार का अधिकतर ध्यान नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास पाकिस्तान पर होता है, लेकिन अब सरकार को रणनीति बदलनी होगी. पाकिस्तान के साथ चीन पर भी उतनी ही मुस्तैदी से नजर बनाए रखने की जरूरत है.

दरअसल, पूर्वोत्तर में सक्रिय विद्रोही संगठनों के माध्यम से चीन के पास पूर्वोत्तर फ्रंटियर में हस्तक्षेप करने की क्षमता है. परमाणु-हथियार से लैस पड़ोसियों द्वारा एक पूर्ण युद्ध को गैर-विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.

हालांकि, एक हल्के फुल्के संघर्ष के लिए भारत को हमेशा तैयार रहना होगा और इसे कभी भी लड़ा जा सकता है. इस बात की भी संभावना बढ़ गई है कि चीन, भारत को परेशान करने के लिए हल्की फुल्की झड़पों को अंजाम देता रहे.

चीन, अरुणाचल प्रदेश के साथ 1,126 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. यहां राज्य के पूर्वी हिस्से से होकर जाने वाले मार्ग हैं, जिनका उपयोग म्यांमार और चीन के युन्नान प्रांत में प्रवेश करने के लिए अधिकांश विद्रोहियों द्वारा किया जाता है.

पहले भी असम, मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम के विद्रोहियों ने आश्रय और रसद सहायता लेने के लिए चीनी नेताओं के साथ संपर्क स्थापित किया था, हालांकि चीन ने तब सीधे उनकी मदद करने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब भारत के साथ बढ़ते सैन्य तनाव ने चीन को स्थिति का लाभ उठाने का एक आदर्श अवसर प्रदान किया है.

असम

पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच जारी गतिरोध के बीच परेश बरुआ के नेतृत्व वाली यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (स्वतंत्र) (उल्फा-आई) ने इस हफ्ते 17 मिनट का एक वीडियो जारी कर चीन को खुला समर्थन देने की घोषणा की है.

उल्लेखनीय है कि 1962 के संघर्ष के बाद उल्फा (आई) ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि पीएलए ने कभी भी, किसी भी स्वदेशी असमी को नुकसान नहीं पहुंचाया और इसके विपरीत स्थानीय किसानों को कृषि कार्यों में मदद की.

उल्फा का चीन के साथ जुड़ाव कई दशकों पुराना है. एक समय असम के प्रमुख विद्रोही समूह ने युन्नान के प्रांतीय प्रतिनिधियों के साथ मिलकर सैन्य और सैन्य समर्थन की मांग की थी.

सूचना है कि बरुआ स्वंय चीन के देहोंग प्रान्त के एक काउंटी शहर रूली के सीमावर्ती इलाके में रह रहा है.

यह दूसरी बार है कि उल्फा (आई) ने चीन का खुलकर समर्थन किया है. उल्फा ने पिछली बार मार्च 2012 में चीन का समर्थन किया था, तब प्रतिबंधित संगठन ने असम में तिब्बती कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों द्वारा किए गए चीनी विरोध की आलोचना की थी. इस दौरान संगठन ने कहा था कि निर्वासित तिब्बतियों ने पिछले तीन दशकों में असम में अत्याचारों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए कभी कोई चिंता नहीं जताई.

माना जाता है कि उल्फा (आई) के भारत-म्यांमार सीमा के पास जंगलों में मौजूद शिविरों में सौ से अधिक सशस्त्र लड़ाके हैं. यहां से चीन की सीमा तक पहुंचने के लिए केवल एक दिन का समय लगता है. यह संगठन शांति वार्ता का हमेशा से विरोध करता आया है और स्वतंत्र असम की अपनी मांग पर अड़ा हुआ है.

दूसरी ओर, 15 वर्षों से सरकार और उल्फा के एक गुट के बीच चल रही वार्ता प्रक्रिया से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है, जिससे राज्य के कई लोगों में बेचैनी है.

नगा समुदाय

नगा, जो पूर्वोत्तर के चारों राज्यों में फैले हुए हैं, ने वहां विद्रोह आंदोलन चलाया. चीन भी इस आंदोलन के लाभार्थियों में से एक था. गौरतलब है कि चीन वह पहला देश था जिसने नगा आंदोलन को अपना समर्थन दिया. इतना ही नहीं, चीन ने नगा आंदोलन से जुड़े 133 विद्रोहियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया था.

बता दें कि नगा आंदोलन दुनिया का दूसरा सबसे पुराना उग्रवाद है, इस क्षेत्र में नगा आंदोलन को 'सभी उग्रवादियों की मां' कहा जाता है.

नगा मुद्दे को लेकर सरकार के साथ चली लंबी बातचीत के 23 साल बाद भी अब तक निर्णायक समाधान नहीं निकला है और निकट भविष्य में भी कोई उम्मीद नहीं है. इससे नगा समुदाय के बीच काफी निराशा है.

2015 में भारत सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद एक बार फिर उम्मीदें जागी थीं, लेकिन उसके बाद कोई वास्तविक प्रगति नहीं हुई है.

इसके बाद इस साल 14 फरवरी को, मणिपुर के उखरुल में, एनएससीएन (आईएम) के एक हॉटबेड में लगभग 2,000 नगा विद्रोहियों ने वुहान में कोरोना वायरस के संकट के खिलाफ चीन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए एक संगीत समारोह का आयोजन किया.

पढ़ें- जम्मू-कश्मीर : आतंकियों ने भाजपा नेता को पिता और भाई सहित मौत के घाट उतारा

मिजोरम

पिछले साल मिजोरम की राजधानी आइजोल में नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) के खिलाफ प्रदर्शनकारियों के एक समूह का नेतृत्व करने वाले मिजोरम के पूर्व मुख्यमंत्री ने हैलो चाइना कहते हुए एक बैनर दिखाया, जो खतरे की घंटी है.

याद रहे मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) ने साठ के दशक में पहाड़ियों के बीच एक विद्रोह आंदोलन का नेतृत्व किया था.

मणिपुर

मणिपुर में विद्रोही संगठनों की संख्या सबसे अधिक है. यहां लगभग 50 विद्रोही संगठन हैं. रोजगार की भारी कमी वाले राज्य में उग्रवाद युवाओं के लिए जीवन का एक हिस्सा बन गया है.

यहां साम्यवादी मान्यताओं का पालन करने वाले कई शक्तिशाली मेइती संगठनों का चीन के साथ गठबंधन करना एक स्वाभाविक बात है. इन विद्रोही संगठनों में से कई को चीन से समर्थन मिलता है. यहां मौजूद मजबूत विद्रोहीं सगठनों से भी चीन फायदा उठा सकता है.

युवाओं की वापसी

फिलहाल पूर्वोत्तर राज्यों को लाखों युवाओं पर ध्यान देने की आवश्यक्ता है, जो कोरोना वायरस महामारी के कारण अपने मूल राज्यों में लौट आए हैं, उनके पास न नौकरी है, न पैसा है और न ही कोई सुनिश्चित भविष्य है. ऐसे में वह उग्रवादी संगठनों में शामिल हो सकते हैं.

नागरिकता संशोधन कानून

राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (NRC) के मुद्दे और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के पारित होने के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों में इसका काफी विरोध हुआ.

यहां के लोगों का मानना है कि सीएए को पूर्वोत्तर के लोगों की भावनाओं की अवहेलना के लिए पारित किया गया है. इसने पूरे क्षेत्र को एकजुट कर दिया. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.

संक्षेप में कहा जाए तो पूर्वोत्तर में सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य एक ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे चीन इसका फायदा उठा सकता है. इसलिए, सरकार के लिए यह उचित होगा कि वह पूर्वोत्तर में वह म्योपिक नीति को आगे बढ़ाने सहित पर्याप्त कदम उठाए और लोगों के दिल और दिमाग जीतने की कोशिश करे.

Last Updated : Jul 11, 2020, 11:16 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.