हैदराबाद : पिछले 21 वर्षों से, 'वर्ल्ड कार-फ्री डे' परंपरागत रूप से प्रतिवर्ष 22 सितंबर को मनाया जाता है. हर साल आयोजक एक विशेष थीम को चुनते हैं, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से साइकिल चलाने, कारपूलिंग और पैदल चलने के कई लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करना होता है. इस एक दिन के लिए मोटर चालकों से अपनी कार न चलाएं जाने का अनुरोध भी किया जाता है.
दुनिया भर के शहर संगठित और अलग-अलग कार-फ्री डे की गतिविधियां आयोजित करते हैं. इनमें वे लोग शामिल होते हैं, जो अपनी कारों को घर पर छोड़ देते हैं और इसके बजाय अलग-अलग कामों को चलाने के लिए पैदल या साइकिल चलाने का विकल्प चुनते हैं.
वर्ल्ड कार-फ्री डे का उद्देश्य
वर्ल्ड कार-फ्री डे का प्राथमिक उद्देश्य शहरों में मोटर वाहनों से होता ध्वनि व वायु प्रदूषण को कम कर पर्यावरण का संरक्षण करना है. इसके अलावा उन्हें निजी कारों पर निर्भरता की जगह उन्हें यात्रा के वैकल्पिक साधनों को अपनाने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी है.
वर्ल्ड कार-फ्री डे का इतिहास
दरअसल, 1990 के दशक में अनौपचारिक रूप से वर्ल्ड कार-फ्री डे मनाया गया था, लेकिन पहला आधिकारिक वर्ल्ड कार-फ्री डे 2000 में शुरू किया गया. बता दें इस दिन बोगोटा और जकार्ता जैसे कई बड़े शहर इस दिन अपनी केंद्रीय सड़कों को बंद कर देते हैं. इसके अलावा दुनियाभर में इस तरह के कई छोटे-बड़ें कार्यक्रम होते हैं.
वर्ल्ड कार-फ्री डे मनाने की वजह
शोध से पता चला है कि मोटर वाहनों से वायुमंडल में गैस उत्सर्जन की मात्रा बढ़ती है. जब हम सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं और अपनी निजी कारों को घर पर छोड़ते हैं, तो सड़कों पर कारों की संख्या कम होने के चलते वातावरण में प्रदूषण भी कम हो जाता है. यह ट्रैफिक जाम और रोड पैक को भी कम करता है जिससे सभी के लिए आवागमन आसान और सुविधाजनक हो जाता है.
यही नहीं बल्कि जब हम साइकिल का उपयोग करते हैं या अपने गंतव्य तक पैदल जाते हैं, तो हमें प्रकृति का आनंद लेने का मौका मिलता है. निजी वाहन ध्वनि प्रदूषण में योगदान करते हैं जिससे हमें पक्षियों और अन्य जानवरों की आवाज़ सुनने से वंचित रह जाते हैं.
परिवहन के कारण वायु प्रदूषण
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2016 में अकेले परिवेशी वायु प्रदूषण (Ambient air pollution) के कारण लगभग 4.2 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई. परिवहन जीवाश्म-ईंधन CO2 उत्सर्जन ( fossil-fuel CO2 emissions) का सबसे तेजी से बढ़ता स्रोत भी है, जो जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है.
भारत में वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण, विशेष रूप से एक मुद्दे के रूप में, भारत के सामने एक गंभीर चुनौती है. देश की वायु गुणवत्ता की समस्याओं में परिवहन एक महत्वपूर्ण कारक है. 2017 ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (Global Burden of Disease) के अनुसार, भारत में लगभग 1.1 मिलियन लोग हर साल वायु प्रदूषण से सीधे तौर पर संबंधित बीमारियों से समय से पहले मर जाते हैं, जिससे यह देश में मौत का पांचवां प्रमुख कारण बन जाता है.
क्योंकि इसका वाहन बेड़ा (Vehicle fleet) इसकी बड़ी आबादी की तुलना में छोटा है, भारत में प्रति व्यक्ति परिवहन उत्सर्जन बहुत कम है. लेकिन वह बेड़ा तेजी से बढ़ रहा है. कुल वाहन बिक्री (मोटरसाइकिल सहित) 2007 में लगभग 10 मिलियन से बढ़कर 2016 में 21 मिलियन से अधिक हो गई, और सड़क पर वाहनों की कुल संख्या 2030 तक लगभग दोगुनी होकर लगभग 200 मिलियन होने की उम्मीद है.
भारत में वाहनों से होने वाला प्रदूषण
वायु प्रदूषण शहरी शहरों की गंभीर पर्यावरणीय चिंताओं में से एक है, जहां अधिकांश आबादी खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में है. भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण मोटर वाहनों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है. जैसे-जैसे वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है और परिणामस्वरूप भीड़ बढ़ती जा रही है, वाहन अब शहरी भारत में वायु प्रदूषण का मुख्य स्रोत बनते जा रहे हैं.
हालांकि देश ने शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कई उपाय किए हैं. इनमें ईंधन की गुणवत्ता में सुधार, आवश्यक कानून बनाना और वाहन उत्सर्जन मानकों को लागू करना, बेहतर यातायात योजना और प्रबंधन आदि शामिल हैं.
वाहन प्रदूषक
वाहन/ईंधन उत्सर्जन के रूप में जारी प्रमुख प्रदूषक हैं, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), फोटोकैमिकल ऑक्सीडेंट, वायु विषाक्त पदार्थ, अर्थात् बेंजीन (C6H6), एल्डिहाइड, 1,3 ब्यूटाडीन (C4H6), सीसा (Pb), पार्टिकुलेट मैटर (PM), हाइड्रोकार्बन (HC), सल्फर के ऑक्साइड (SO2) और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH)। जहां पेट्रोल/गैसोलीन चालित वाहनों में प्रमुख प्रदूषक हाइड्रोकार्बन और कार्बन मोनोऑक्साइड होते हैं, वहीं डीजल आधारित वाहनों से निकलने वाले प्रमुख प्रदूषक नाइट्रोजन के ऑक्साइड और पार्टिकुलेट होते हैं.
वायु प्रदूषण के कारण भारत में मौतें
लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ (Lancet Planetary Health) में 22 दिसंबर, 2020 को प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में भारत में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली 50 प्रतिशत से अधिक मौतें होती हैं. अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण के कारण कम से कम 349,000 लोग मारे गए. इसके बाद महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और राजस्थान राज्य सबसे बुरी तरह प्रभावित है्ं.
दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत के हैं
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में NO2 प्रदूषण में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. NO2 एक खतरनाक वायु प्रदूषक है जो ईंधन के जलने पर निकलता है, जैसा कि अधिकांश मोटर वाहनों, बिजली उत्पादन और औद्योगिक प्रक्रियाओं में होता है. NO2 के संपर्क में आने से सभी उम्र के लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें श्वसन और संचार प्रणाली और मस्तिष्क शामिल हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर में वृद्धि होती है.
ग्रीनपीस इंडिया (Greenpeace India) द्वारा 7 जुलाई, 2021 को जारी "बिहाइंड द स्मोकस्क्रीन" (Behind the Smokescreen) शीर्षक से एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि कोविड -19 के कारण प्रारंभिक राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के एक साल बाद, भारत की आठ सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों की राजधानियों में NO2 (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड) प्रदूषण बढ़ गया है. मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, जयपुर और लखनऊ में, दिल्ली में अप्रैल 2020 और अप्रैल 2021 के बीच सबसे ज्यादा वृद्धि देखी गई है.
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सैटेलाइट ऑब्जर्वेशन के अनुसार, दिल्ली में अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 के बीच NO2 प्रदूषण बढ़कर 125% हो गया. हालांकि राजधानी की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर, अन्य भारतीय शहरों में NO2 के स्तर में समान रूप से चिंताजनक वृद्धि दर्ज की गई. पिछले साल के इसी महीने की तुलना में अप्रैल 2021 में मुंबई का NO2 वायु प्रदूषण 52% अधिक, बेंगलुरु 90%, हैदराबाद में 69%, चेन्नई में 94%, कोलकाता में 11%, जयपुर में 47% और लखनऊ में 32% अधिक था.