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जानिए शानदार पपीते के जानदार गुण, खेती भी है लाभ का सौदा

Cultivation of Papaya : विटामिन-मिनरल से भरपूर पपीते की खेती वैज्ञानिक ढंग से कर किसान मालमाल हो रहे हैं. पपीते की मांग सालभर रहती है. एक एकड़ की खेती की लागत करीब एक लाख रुपए होती है. इसी के मद्देनजर कुछ किसान कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) की मदद से पपीते की खेती कर रहें हैं.पढ़ें पूरी खबर...

Papaya vitamins Mineral medicinal properties and method of papaya cultivation
पपीते की खेती
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By IANS

Published : Nov 29, 2023, 1:03 PM IST

Updated : Nov 30, 2023, 7:08 AM IST

गोरखपुर : औषधीय गुणों से भरपूर पपीता एक ऐसा फल है जिसकी उपलब्धता लगभग 12 माह रहती है. यदि वैज्ञानिक ढंग से इसकी खेती को बड़े स्तर से किया जाए तो यहां की गरीबी से निजात मिल सकती है. जानकार बताते हैं कि पर हम बाजार से जो पपीता लेते हैं उसकी आवक अमूमन दक्षिण भारत व देश के अन्य राज्यों से होती है. किसान अब Papaya की खेती कर मालमाल हो रहे हैं. बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र- KVK की पहल ने कृषकों को इसकी खेती के लिए प्रेरित किया है. औषधीय गुणों से भरपूर होने के नाते इसकी मांग भी ठीक ठाक है. इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर गोरखपुर के कुछ किसान बेलीपार स्थित KVK के वरिष्ठ वैज्ञानिक Dr S P Singh , Belipar KVK की मदद से पपीते की खेती कर रहें हैं.

Papaya vitamins Mineral medicinal properties and method of papaya cultivation
पपीते की खेती

गोरखपुर के पिराइच स्थित उनौला गांव के धर्मेंद्र सिंह और बांसगांव तहसील के माहोपार निवासी दुर्गेश मौर्य भी ऐसे ही किसानों में से हैं. बकौल धर्मेंद्र एक एकड़ की खेती में लागत करीब लाख रुपए आई थी.1.5 लाख रुपए की शुद्ध बचत हुई थी. उनके मुताबिक ठंड में फसल की बढ़वार रुक जाती है और अधिक गर्मी में फूल गिरने की समस्या आती है. बाकी समय में पपीते की खेती संभव है. केवीके के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस. पी. सिंह के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहां जमीन ऊंची है, जल निकासी का बेहतर प्रबंध है, वहां पपीते की खेती संभव है. साल भर इसकी मांग को देखते हुए आर्थिक रूप से भी यह उपयोगी है.

Papaya vitamins Mineral medicinal properties and method of papaya cultivation
औषधीय गुणों से भरपूर पपीता

पपीते की उन्नत खेती
Dr S P Singh के मुताबिक Papaya की उन्नत खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है. पूर्वांचल के बांगर इलाके में ऐसी जमीन उपलब्ध है. पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए 22 से 26 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है. उन्होंने बताया कि पंत पपीता- 1, 2, पूसा नन्हा, पूसा ड्वॉर्फ, को-1,2,3 व 4 -- इन प्रजातियों में नर व मादा पौधे अलग-अलग होते हैं. रेडलेडी-786, रेडसन ड्वार्फ, पूसा डेलीसियस, पूसा मैजेस्टी, कुर्ग हनीडयू, सूर्या - प्रजातियों के पौधे मादा एवं उभयलिंगी होते हैं जिससे हर पौधे में फलत होती है. पपीता के पौधों का रोपण वर्ष में दो बार अक्टूबर व मार्च में किया जाता है. रोपण के दौरान लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी दो-दो मीटर रखनी चाहिए. इस तरह से रोपण में प्रति एकड़ करीब 1000 पौधों की जरूरत होगी.

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि मानक दूरी पर 60-60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदकर उनको 15 दिन खुला छोड़ दें. इसके बाद हर गड्ढे में 20 किग्रा सड़ी गोबर खाद, एक किग्रा नीम की खली, एक किग्रा हडडी का चूरा, 5 से 10 ग्राम फ्यूराडान अच्छी तरह मिलाकर गड्ढे को भर दें. जब पौधे नर्सरी में 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंचाई के हो जाएं तब रोपाई करें. उर्वरक के रूप में 250 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस एवं 500 ग्राम पोटाश की मात्रा को चार भागों में बांटकर रोपाई के बाद पहले, तीसरे, पांचवे एवं सातवें महीने में प्रयोग करें. इसके अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व बोरान एक ग्राम/लीटर एवं जिंक सल्फेट 5 ग्राम/ली की दर से पौधा रोपण के चौथे व आठवें महीने में छिड़काव करें. आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें.

एक बार में 3 वर्षों तक अच्छी फसल
कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि Papaya के एक पौधे से साल में औसतन 40 से 50 किलोग्राम फल मिलता है. इस प्रकार प्रति एकड़ लगभग 400 से 500 कुंटल फल पैदावार एक वर्ष में होती है, जिससे 1 वर्ष में 4 से 5 लाख रुपए शुद्ध आय प्राप्त कर सकते हैं. एक बार रोपण किए गए पौधे से 3 वर्षों तक अच्छी फसल ले सकते हैं. पपीता विषाणु जनित मोजैक रोग के प्रति खासा संवेदनशील होता है. रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां गुच्छे जैसी हो जाती हैं. इसके रोकथाम के लिए डाइमेंथोएट 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से प्रति माह छिड़काव करना चाहिए.

इसी तरह पदगलन रोग से भी फसल को खासी क्षति संभव है. रोगग्रस्त पौधों की जड़ और तना सड़ने से पेड़ सूख जाता है. इसके नियंत्रण के लिए Papaya के बगीचे में जल निकास का उचित प्रबंध करें एवं कार्बनडाजिम व मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौधों के तने के पास जड़ में प्रयोग करना चाहिए. Papaya की उन्नत प्रजाति के पौधे कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर पर उपलब्ध हैं.

Vitamins Mineral से भरपूर व रेसिपी
आयुर्वेद के जानकार बताते हैं कि पपीता के फलों में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि आम के बाद दूसरे स्थान पर है इसके अलावा विटामिन सी एवं खनिज लवण भी पाए जाते हैं. ताजा फलों का तुरंत खाने के उपयोग के अतिरिक्त प्रसंस्करण से जेम, जेली, नेक्टर, कैंदीव और जूस बनाया जा सकता है. कच्चे फलों से पेठा, बर्फी, खीर, रायता आदि भी बनाकर इनका लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता.

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गोरखपुर : औषधीय गुणों से भरपूर पपीता एक ऐसा फल है जिसकी उपलब्धता लगभग 12 माह रहती है. यदि वैज्ञानिक ढंग से इसकी खेती को बड़े स्तर से किया जाए तो यहां की गरीबी से निजात मिल सकती है. जानकार बताते हैं कि पर हम बाजार से जो पपीता लेते हैं उसकी आवक अमूमन दक्षिण भारत व देश के अन्य राज्यों से होती है. किसान अब Papaya की खेती कर मालमाल हो रहे हैं. बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र- KVK की पहल ने कृषकों को इसकी खेती के लिए प्रेरित किया है. औषधीय गुणों से भरपूर होने के नाते इसकी मांग भी ठीक ठाक है. इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर गोरखपुर के कुछ किसान बेलीपार स्थित KVK के वरिष्ठ वैज्ञानिक Dr S P Singh , Belipar KVK की मदद से पपीते की खेती कर रहें हैं.

Papaya vitamins Mineral medicinal properties and method of papaya cultivation
पपीते की खेती

गोरखपुर के पिराइच स्थित उनौला गांव के धर्मेंद्र सिंह और बांसगांव तहसील के माहोपार निवासी दुर्गेश मौर्य भी ऐसे ही किसानों में से हैं. बकौल धर्मेंद्र एक एकड़ की खेती में लागत करीब लाख रुपए आई थी.1.5 लाख रुपए की शुद्ध बचत हुई थी. उनके मुताबिक ठंड में फसल की बढ़वार रुक जाती है और अधिक गर्मी में फूल गिरने की समस्या आती है. बाकी समय में पपीते की खेती संभव है. केवीके के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस. पी. सिंह के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहां जमीन ऊंची है, जल निकासी का बेहतर प्रबंध है, वहां पपीते की खेती संभव है. साल भर इसकी मांग को देखते हुए आर्थिक रूप से भी यह उपयोगी है.

Papaya vitamins Mineral medicinal properties and method of papaya cultivation
औषधीय गुणों से भरपूर पपीता

पपीते की उन्नत खेती
Dr S P Singh के मुताबिक Papaya की उन्नत खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है. पूर्वांचल के बांगर इलाके में ऐसी जमीन उपलब्ध है. पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए 22 से 26 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है. उन्होंने बताया कि पंत पपीता- 1, 2, पूसा नन्हा, पूसा ड्वॉर्फ, को-1,2,3 व 4 -- इन प्रजातियों में नर व मादा पौधे अलग-अलग होते हैं. रेडलेडी-786, रेडसन ड्वार्फ, पूसा डेलीसियस, पूसा मैजेस्टी, कुर्ग हनीडयू, सूर्या - प्रजातियों के पौधे मादा एवं उभयलिंगी होते हैं जिससे हर पौधे में फलत होती है. पपीता के पौधों का रोपण वर्ष में दो बार अक्टूबर व मार्च में किया जाता है. रोपण के दौरान लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी दो-दो मीटर रखनी चाहिए. इस तरह से रोपण में प्रति एकड़ करीब 1000 पौधों की जरूरत होगी.

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि मानक दूरी पर 60-60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदकर उनको 15 दिन खुला छोड़ दें. इसके बाद हर गड्ढे में 20 किग्रा सड़ी गोबर खाद, एक किग्रा नीम की खली, एक किग्रा हडडी का चूरा, 5 से 10 ग्राम फ्यूराडान अच्छी तरह मिलाकर गड्ढे को भर दें. जब पौधे नर्सरी में 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंचाई के हो जाएं तब रोपाई करें. उर्वरक के रूप में 250 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस एवं 500 ग्राम पोटाश की मात्रा को चार भागों में बांटकर रोपाई के बाद पहले, तीसरे, पांचवे एवं सातवें महीने में प्रयोग करें. इसके अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व बोरान एक ग्राम/लीटर एवं जिंक सल्फेट 5 ग्राम/ली की दर से पौधा रोपण के चौथे व आठवें महीने में छिड़काव करें. आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें.

एक बार में 3 वर्षों तक अच्छी फसल
कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि Papaya के एक पौधे से साल में औसतन 40 से 50 किलोग्राम फल मिलता है. इस प्रकार प्रति एकड़ लगभग 400 से 500 कुंटल फल पैदावार एक वर्ष में होती है, जिससे 1 वर्ष में 4 से 5 लाख रुपए शुद्ध आय प्राप्त कर सकते हैं. एक बार रोपण किए गए पौधे से 3 वर्षों तक अच्छी फसल ले सकते हैं. पपीता विषाणु जनित मोजैक रोग के प्रति खासा संवेदनशील होता है. रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां गुच्छे जैसी हो जाती हैं. इसके रोकथाम के लिए डाइमेंथोएट 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से प्रति माह छिड़काव करना चाहिए.

इसी तरह पदगलन रोग से भी फसल को खासी क्षति संभव है. रोगग्रस्त पौधों की जड़ और तना सड़ने से पेड़ सूख जाता है. इसके नियंत्रण के लिए Papaya के बगीचे में जल निकास का उचित प्रबंध करें एवं कार्बनडाजिम व मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौधों के तने के पास जड़ में प्रयोग करना चाहिए. Papaya की उन्नत प्रजाति के पौधे कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर पर उपलब्ध हैं.

Vitamins Mineral से भरपूर व रेसिपी
आयुर्वेद के जानकार बताते हैं कि पपीता के फलों में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि आम के बाद दूसरे स्थान पर है इसके अलावा विटामिन सी एवं खनिज लवण भी पाए जाते हैं. ताजा फलों का तुरंत खाने के उपयोग के अतिरिक्त प्रसंस्करण से जेम, जेली, नेक्टर, कैंदीव और जूस बनाया जा सकता है. कच्चे फलों से पेठा, बर्फी, खीर, रायता आदि भी बनाकर इनका लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता.

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Last Updated : Nov 30, 2023, 7:08 AM IST
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