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मिसाल: जब सरकार ने नहीं की मदद तो ग्रामीणों ने चंदा कर खुद नई जमीन पर बनाया स्कूल

स्कूल की बदहाली देखकर गांव के ही देवनारायण प्रसाद ने अपनी डेढ़ एकड़ जमीन स्कूल के नाम कर दी. इसके बाद ग्रामीणों ने अनुदान और श्रमदान कर के स्कूल को नया जीवन दिया. ताकि बच्चों को पढ़ने में परेशानी नहीं हो सके.

स्कूल
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Published : Jul 21, 2019, 12:29 PM IST

Updated : Jul 21, 2019, 1:27 PM IST

बेतिया: जिले के बगहा 2 प्रखंड स्थित देवरिया तरुअनवा पंचायत के राजकीय प्राथमिक विद्यालय को नया जीवन मिला है. ये कमाल ग्रामीणों ने खुद ही अपनी मेहनत से कर दिखाया है. सभी ने मिलकर स्कूल को उस ऊंचाई तक पहुंचाया है, जहां से छात्रों को अपना उजव्वल भविष्य बनाने में काफी मदद मिलेगी.

परेशान अभिभावक
दरअसल, इस स्कूल की स्थापना 1959 में हुई थी. यहां दो कमरों में ही पहली से पांचवी वर्ग तक की पढ़ाई चलती है. इससे बच्चों को पढ़ने में दिक्कतें हो रही थी. वहीं, विद्यालय भी जर्जर हालत में पहुंच चुका था. इस डर से बच्चों ने स्कूल आना कम कर दिया. अभिभावक भी अपने बच्चों को इस स्कूल में पढ़ने के लिए भेजना नहीं चाहते थे. कारण स्कूल की मौजूदा हालत है.

vaishali
जर्जर स्थिति में स्कूल

छात्रा की परेशानी
छात्रा ने बताया कि इस स्कूल की छत से पानी टपकता है. जिससे पढ़ने में परेशानी होती है. वहीं, ज्यादा क्लास भी नहीं है. जब बच्चे ज्यादा हो जाते हैं तो एक क्लास में सभी बच्चों को बिठा दिया जाता है. ऐसे में किसी की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती है.

ग्रामीण ने दान की जमीन
स्कूल की बदहाली देखकर गांव के ही देवनारायण प्रसाद ने अपनी डेढ़ एकड़ जमीन स्कूल के नाम कर दी. इसके बाद ग्रामीणों ने अनुदान और श्रमदान कर के स्कूल को नया जीवन दिया. ताकि बच्चों को पढ़ने में परेशानी नहीं हो सके.

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छात्रा

अधिकारियों ने नहीं ली सुध- प्रधानाचार्य
इस संबंध में स्कूल के प्रधानाचार्य वेद प्रकाश शुक्ला ने कहा कि इस स्कूल की स्थिति बहुत खराब थी. लेकिन, यहां के लोगों ने इस संकट को दूर किया है. यहां सिर्फ दो कमरे हुआ करते थे. इससे बच्चों को पढ़ने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. उन्होंने कहा कि इसकी शिकायत कई बार विभाग को भी की गई. लेकिन, किसी ने अब तक सुध ली है. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कभी भी यहां आकर स्कूल का जायजा नहीं लिया.

भूमि दानकर्ता ने दी जानकारी
इस पूरे मामले में भूमि दानकर्ता देवनारायण प्रसाद ने कहा कि यहां गरीब बच्चों के पढ़ने लिए सिर्फ एक ही स्कूल है. स्कूल की खराब हालत के कारण बच्चों ने स्कूल जाना लगभग छोड़ दिया था. लेकिन, उनके भविष्य की चिंता के कारण उन्होंने कहा कि इस स्कूल को अच्छे से बनाने के लिए अपनी जमीन दे दी, ताकि बच्चों को पढ़ने में कोई परेशानी नहीं हो. पीढ़ी दर पीढ़ी इस विद्यालय से ज्ञान प्राप्त कर सकें.

पेश है रिपोर्ट

स्कूल में है 150 छात्र
बता दें कि इस विद्यालय में पहली से पांचवी क्लास तक के 150 छात्र हैं. इन छात्रों पर सिर्फ 4 शिक्षक हैं. इसी परेशानी को देखते हुए ग्रामीण ने इस स्कूल को नई दिशा दी है. साथ ही गांव के पढ़े-लिखे लोगों को ही शिक्षक के तौर पर नियुक्त कर दिया है.

बेतिया: जिले के बगहा 2 प्रखंड स्थित देवरिया तरुअनवा पंचायत के राजकीय प्राथमिक विद्यालय को नया जीवन मिला है. ये कमाल ग्रामीणों ने खुद ही अपनी मेहनत से कर दिखाया है. सभी ने मिलकर स्कूल को उस ऊंचाई तक पहुंचाया है, जहां से छात्रों को अपना उजव्वल भविष्य बनाने में काफी मदद मिलेगी.

परेशान अभिभावक
दरअसल, इस स्कूल की स्थापना 1959 में हुई थी. यहां दो कमरों में ही पहली से पांचवी वर्ग तक की पढ़ाई चलती है. इससे बच्चों को पढ़ने में दिक्कतें हो रही थी. वहीं, विद्यालय भी जर्जर हालत में पहुंच चुका था. इस डर से बच्चों ने स्कूल आना कम कर दिया. अभिभावक भी अपने बच्चों को इस स्कूल में पढ़ने के लिए भेजना नहीं चाहते थे. कारण स्कूल की मौजूदा हालत है.

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जर्जर स्थिति में स्कूल

छात्रा की परेशानी
छात्रा ने बताया कि इस स्कूल की छत से पानी टपकता है. जिससे पढ़ने में परेशानी होती है. वहीं, ज्यादा क्लास भी नहीं है. जब बच्चे ज्यादा हो जाते हैं तो एक क्लास में सभी बच्चों को बिठा दिया जाता है. ऐसे में किसी की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती है.

ग्रामीण ने दान की जमीन
स्कूल की बदहाली देखकर गांव के ही देवनारायण प्रसाद ने अपनी डेढ़ एकड़ जमीन स्कूल के नाम कर दी. इसके बाद ग्रामीणों ने अनुदान और श्रमदान कर के स्कूल को नया जीवन दिया. ताकि बच्चों को पढ़ने में परेशानी नहीं हो सके.

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छात्रा

अधिकारियों ने नहीं ली सुध- प्रधानाचार्य
इस संबंध में स्कूल के प्रधानाचार्य वेद प्रकाश शुक्ला ने कहा कि इस स्कूल की स्थिति बहुत खराब थी. लेकिन, यहां के लोगों ने इस संकट को दूर किया है. यहां सिर्फ दो कमरे हुआ करते थे. इससे बच्चों को पढ़ने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. उन्होंने कहा कि इसकी शिकायत कई बार विभाग को भी की गई. लेकिन, किसी ने अब तक सुध ली है. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कभी भी यहां आकर स्कूल का जायजा नहीं लिया.

भूमि दानकर्ता ने दी जानकारी
इस पूरे मामले में भूमि दानकर्ता देवनारायण प्रसाद ने कहा कि यहां गरीब बच्चों के पढ़ने लिए सिर्फ एक ही स्कूल है. स्कूल की खराब हालत के कारण बच्चों ने स्कूल जाना लगभग छोड़ दिया था. लेकिन, उनके भविष्य की चिंता के कारण उन्होंने कहा कि इस स्कूल को अच्छे से बनाने के लिए अपनी जमीन दे दी, ताकि बच्चों को पढ़ने में कोई परेशानी नहीं हो. पीढ़ी दर पीढ़ी इस विद्यालय से ज्ञान प्राप्त कर सकें.

पेश है रिपोर्ट

स्कूल में है 150 छात्र
बता दें कि इस विद्यालय में पहली से पांचवी क्लास तक के 150 छात्र हैं. इन छात्रों पर सिर्फ 4 शिक्षक हैं. इसी परेशानी को देखते हुए ग्रामीण ने इस स्कूल को नई दिशा दी है. साथ ही गांव के पढ़े-लिखे लोगों को ही शिक्षक के तौर पर नियुक्त कर दिया है.

Intro:बगहा प्रखंड 2 के देवरिया तरुअनवा पंचायत अंतर्गत राजकीय प्राथमिक विद्यालय, कुनई लक्ष्मीपुर की स्थापना सन 1959 में हुई थी। पहली कक्षा से पाचवी वर्ग तक की पढ़ाई के लिए सिर्फ दो कमरे बनवाये गए थे। अब यह विद्यालय जर्जर हो चुका है और बच्चे इसमें पढ़ना नही चाहते और न ही अभिभावक यहां अपने बच्चों को भेजना चाहते हैं। विभाग को ग्रामीणों व विद्यालय प्रशासन द्वारा कई मर्तबा सूचना दी गई लेकिन जब सरकार ने सुध नही ली तो अब ग्रामीणों ने श्रमदान व अर्थदान से नया विद्यालय बना एक मिसाल पेश किया है।


Body:राजकीय प्राथमिक विद्यालय कुनई में एक से पाचवी कक्षा तक के 150 छात्र छात्रा हैं और इन बच्चों को पढ़ाने के लिए महज 4 शिक्षक। यही वजह है कि शिक्षकों की कमी को देखते हुए ग्रामीणों ने नया विद्यालय बनवाने के साथ साथ इसका भी निदान निकाल लिया है और गांव के ही एक व्यक्ति को शिक्षक के तौर पर विद्यालय में पद स्थापित कर दिया है। उक्त प्राइवेट शिक्षक का तनख्वाह बच्चे फ़ी जमा कर करते हैं।
बता दें कि विद्यालय की बदहाली पर तरस खा गांव के ही देवनारायण प्रसाद ने अपनी डेढ़ एकड़ जमीन विद्यालय को दान दे दी ताकि उनकी अगली पीढ़ी बेहतर शिक्षा ग्रहण कर कामयाब हो सके।
दान दिए गए जमीन पर विद्यालय निर्माण के लिए गांव वालों ने एक बैठक की और निर्णय लिया कि श्रमदान व चंदा जमा कर विद्यालय बनवाया जाए। फिलहाल विद्यालय का भवन लाखों रुपये के चंदे व ग्रामीणों के श्रम से बनकर तैयार है और बच्चे उसमे पढ़ने भी जाने लगे हैं।


Conclusion:सरकार शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की लाख दावे कर ले लेकिन इस अतिपिछड़े गांव के लोगों ने सरकार के खोखले दावों की पोल खोल कर रख दी है साथ ही एक बहुत बड़ी मिशाल भी कायम किया है।
Last Updated : Jul 21, 2019, 1:27 PM IST
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