पश्चिमी चंपारण: सरकारी अनदेखी और विभागीय लापरवाही के कारण वाल्मीकिनगर गंडक बराज आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. इसकी हालत जर्जर हो चुकी है. निर्माण के बाद से आज तक इसका सिल्टेशन नहीं कराया गया. नतीजन, इसकी क्षमता घटती जा रही है.
साल 1964 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और नेपाल के राजा महेंद्र वीर विक्रम शाह ने वाल्मीकिनगर गंडक बराज का शिलान्यास किया था. दोनों देशों ने 18-18 पिलर देकर इस बराज का निर्माण किया. लेकिन, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1964 से लेकर 2020 तक इस गंडक बराज का सिल्टेशन नहीं कराया गया है.
हर साल घटती जा रही क्षमता
पहले इस गंडक बराज की 8.50 लाख क्यूसेक पानी रोकने की क्षमता थी. लेकिन, सिल्टेशन के अभाव में मौजूदा समय में इसकी क्षमता घट कर 5.50 लाख क्यूसेक रह गई है. यही कारण है कि हर साल बिहार में बाढ़ से तबाही होती है.
नहीं हुई अभी तक बराज की सफाई
दरअसल, नेपाल अधिग्रहण क्षेत्र से नेपाल के कई नदियों और पहाड़ों से पानी गंडक बराज में तेज प्रवाह के साथ आती है. पानी के साथ-साथ पहाड़ों से पत्थर, बालू और अन्य चीजें भी आती हैं जो गंडक बराज की पेटी में जस की तस बैठ जाती हैं. 1964 से लेकर 2020 तक हर साल मॉनसून आता है. लेकिन अब तक बराज की पेटी की सफाई नहीं हुई है.
इन इलाकों को झेलनी पड़ती है बाढ़
बरसात के दिनों में जब गंडक बराज के फाटक खोले जाते हैं तो पश्चिमी चंपारण सहित उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में तबाही होती है. बिहार के गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, सोनपुर जलमग्न हो जाते हैं. बीते कई सालों से लगातार गंडक बराज के छोड़े गए पानी के कारण बिहार में कोहराम देखने को मिला है. बावजूर जल संसाधन विभाग उदासीन रवैया अपनाए हुए है.