बेतिया: बिहार में बेरोजगारी चरम सीमा पर है. इसको लेकर, जब-जब आवाज उठती है, तो उद्योग धंधे को बढ़ाने की बात होती है. कोरोना महामारी के पहले दौर, यानी लॉकडाउन में लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर वापस प्रदेश लौटे. उस दौरान उद्योग धंधों को शुरू करने के लिए सरकार ने ऐसी बयानबाजी की, जैसे बिहार में एक महीने के अंदर ही फैक्ट्रियां और बंद पड़ी मिल खुल जाएंगी. लेकिन जो 15 साल में ना हुआ, वो बाढ़ और कोरोना की दहलीज पर खड़े बिहार में अब कहां होने वाला था.
चुनावी साल हैं, तो जिक्र सरकारी उपेक्षा का शिकार रहीं चीनी मिल का होगा ही. क्योंकि यही तो चुनावी मुद्दा बनती रहीं हैं. बेतिया के चनपटिया शुगर मिल 15 सालों से इसी मुद्दे की आग में जलती रही लेकिन दोबारा खुल ना सकी. श्री सूर्या शुगर मिल चनपटिया की स्थापना 1932 हुई थी. यह बिहार की सबसे पुरानी चीनी मिलों में शामिल थी.
1990 से इस चीनी मिल की दुर्गति शुरू हुई और 1994 के आते-आते इसमें पूरी तरह ताला लग गया. 1998 में एक बार फिर को-ऑपरेटिव के माध्यम से इस चीनी मिल को चालू किया. लेकिन यह प्रयोग मिल प्रबंधन एवं किसानों के बीच सामंजस्य नहीं होने से बुरी तरह विफल हो गया. 1998 में फिर से एक बार यह चीनी मिल हमेशा के लिए बंद हो गई.
कोई लौटा दो वो 25 साल
चनपटिया के किसान लगभग 25 वर्ष पूर्व तक खुश रहे. इनकी खुशहाली का राज इनके गन्ने की खेती थी. यह इनकी नकदी फसल थी, जो इन्हें संपन्न बनाये हुए थी. चनपटिया चीनी मिल बंद होने के बाद ये संपन्न किसान परिवार फिलहाल कंगाली के दौर से गुजर रहे हैं. चीनी मिल में ताला लगा, तो इन किसानों की गन्ने की खेती भी बंद हो गयी.
20 हजार किसान प्रभावित
चनपटिया में श्री सूर्या सुगर मिल वर्क्स के बंद होने के साथ ही चनपटिया प्रखंड के कई गांवों में गन्ना की खेती भी बंद हो गयी. इन सैकडों गांवों के लगभग 20 हजार किसान परिवारों की नकदी फसल छिन गई. साथ ही करीब हजार मजदूरों की नौकरी और दिहाड़ी भी हाथ से छिन गई. ऐसे में ये पलायन ना करते, तो क्या करते.
लौटा दो आय का स्रोत- किसान
मिल के ऊपर किसानों और मजदूरों का करोड़ों रुपये बकाया है. इनका कहना है कि यहां के किसानों को केवल चीनी मिल चाहिए. यहां के किसान परिवारों के लिए केन्द्र सरकार की आय दुगनी करने की घोषणा से मतलब नहीं. हमें दुगनी आय नहीं चाहिए. बस केन्द्र सरकार उनकी पुरानी आय का स्त्रोत लौटा दें. यहां के किसानों को अपने पुराने दिनों को याद करते हीं उनकी आखों से आंसू छलक पड़ते हैं. उनकी बकाया मजदूरी भी अबतक नहीं मिल पाई है.
व्यवसायी ने खरीदी मिल, लेकिन नहीं खुला ताला
1998 में तत्कालीन विधायक बीरबल शर्मा के प्रयास से को-ऑपरेटिव के माध्यम से इसे चालू दोबारा कराया. लेकिन यह प्रयोग मिल प्रबंधन एवं किसानों के बीच सामंजस्य नहीं होने से बुरी तरह विफल हो गया. इसके बाद इसे चालू कराने का प्रयास किसी ने नहीं किया. इससे लोगों में मिल को लेकर जगी उम्मीद भी टूट गई.
लोगों की उम्मीद एक बार फिर, तब परवान चढ़ी, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माध्यम से मोतिहारी के एक व्यवसायी ने चीनी मिल को खरीदा. किसानों एवं कामगारों को लगा कि अब मिल का दिन बहुरेगा. लेकिन इस बार भी उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया. उसके बाद से अब तक यह मिल अपने अपने खुलने का बाट जोह रहा है।
वादों का क्या हुआ? वो तो टूटने ही थे
लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वक्त यह चीनी मिल चालू करने का हमेशा वादा किया जाता है. लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता है. चीनी मिल का मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. विधानसभा चुनाव के दौरान एफसीआई मैदान में सूबे के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी चनपटिया चीनी मिल चालू कराने का वादा किया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में नेताओं ने अपनी चुनावी सभा में इस फैक्ट्री की चिमनी से धुआं उगलवाने का वादा किया था. यहां के बीस हजार से अधिक किसान परिवारों में एक आस जगी थी लेकिन वह वादा भी छलावा साबित हुआ.
हाई कोर्ट में लंबित पड़ा मामला
चनपटिया के बीजेपी विधायक प्रकाश राय ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभी भी चीनी मिल का मामला लंबित पड़ा हुआ है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेशानुसार फिर से इस चीनी मिल का नीलामी किया जाएगा. इस नीलामी में जो भी इस चीनी मिल को खरीदेगा. वो इस चीनी मिल को फिर से दोबारा चालू करेगा.
वहीं, चनपटिया चीनी मिल के इस मामले पर सीपीआई के जिला मंत्री ओमप्रकाश क्रांति का कहना है कि नेताओं को सिर्फ चुनाव के वक्त ही इस चीनी मिल की याद आती है. यहां के किसान बेहाल व परेशान है. इस चीनी मिल के बंद हो जाने से यहां पर किसानों को ठगने के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में चीनी मिल चालू करने का आश्वासन दिया जाता है.
जर्जर हो चुकी मिल
चनपटिया चीनी मिल जर्जर हो चुकी है. इसमें लगे उपकरण भी बेकार हो चुके हैं. खंडहर में तब्दील इस मिल पर अगर सरकार और प्रशासन शुरू से ध्यान देते, तो शायद आज बेतिया के 20 हजार किसान खुशहाल होते. यहां काफी हद तक पलायन थमता. मिल अपने गौरवशाली अतीत की छाया मात्र लिए खड़ी है. चीनी मिल के पास लगभग 200 एकड़ बेशकीमती जमीन है. देश मे नए उद्योग की स्थापना के लिए जहां जमीन का घोर संकट है. वही यहां उपलब्ध जमीन यूं ही बेकार पड़ा हुआ है.