पूर्वी चंपारणः शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार भले ही तमाम दावे करती नजर आए, लेकिन जिले के बगहा स्थित माध्यमिक स्कूल खुद अपनी बदहाली की दास्तां बयां कर रहा है. इस स्कूल के जर्जर भवन की छत के नीचे बच्चे जमीन पर बोरा बिछाकर पढ़ने को विवश हैं.
इस स्कूल में कुल 8 कमरे हैं. इनमें से 7 कमरे 1962 के निर्मित हैं, जो लगभग जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं. जब तेज हवा चलती है, तो ऊपर लगे शेड उड़ने लगते हैं, जिससे बच्चों को डर भी लगता है. बताते चलें कि यहां प्रशासन ने सिर्फ एक ही क्लासरूम में बेंच-डेस्क की व्यवस्था की है.
जंगल के पास है स्कूल, लेकिन...
यह स्कूल वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल से बिल्कुल सटा हुआ है. लेकिन फिर भी इस स्कूल के चारों ओर बाउंड्री वॉल नहीं है. कब कौन जंगली जानवर घुस जाए. इसका भी खतरा यहां बना रहता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना में 27 बाघ सहित अन्य जंगली जानवर जैसे भालू, चीता, अजगर, किंग कोबरा पाए जाते हैं बावजूद यहां बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया गया है.
स्कूल में पेयजल तक की कमी
यहीं नही इस स्कूल में शिक्षकों का भी टोटा है. 8 वीं कक्षा तक पढ़ाने के लिए सिर्फ 5 शिक्षक-शिक्षिकाओं के भरोसे यह स्कूल संचालित हो रहा है. प्रधानाचार्य की माने तो दो वर्ग के एक ही कमरे में एडजस्ट कर एक शिक्षक पढ़ाते हैं. वहीं, स्कूल में पेयजल की भी कमी है.