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जंगल में चल रही हैं बच्चों के मंगल भविष्य की क्लास, जर्जर स्कूल में नहीं है बाउंड्री वॉल

इस स्कूल में कुल 8 कमरे हैं. इनमें से 7 कमरे 1962 के निर्मित हैं, जो लगभग जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं.

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Published : May 15, 2019, 12:02 AM IST

पूर्वी चंपारणः शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार भले ही तमाम दावे करती नजर आए, लेकिन जिले के बगहा स्थित माध्यमिक स्कूल खुद अपनी बदहाली की दास्तां बयां कर रहा है. इस स्कूल के जर्जर भवन की छत के नीचे बच्चे जमीन पर बोरा बिछाकर पढ़ने को विवश हैं.

इस स्कूल में कुल 8 कमरे हैं. इनमें से 7 कमरे 1962 के निर्मित हैं, जो लगभग जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं. जब तेज हवा चलती है, तो ऊपर लगे शेड उड़ने लगते हैं, जिससे बच्चों को डर भी लगता है. बताते चलें कि यहां प्रशासन ने सिर्फ एक ही क्लासरूम में बेंच-डेस्क की व्यवस्था की है.

जर्जर स्कूल में नहीं है बाउंड्री वॉल

जंगल के पास है स्कूल, लेकिन...
यह स्कूल वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल से बिल्कुल सटा हुआ है. लेकिन फिर भी इस स्कूल के चारों ओर बाउंड्री वॉल नहीं है. कब कौन जंगली जानवर घुस जाए. इसका भी खतरा यहां बना रहता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना में 27 बाघ सहित अन्य जंगली जानवर जैसे भालू, चीता, अजगर, किंग कोबरा पाए जाते हैं बावजूद यहां बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया गया है.

स्कूल में पेयजल तक की कमी
यहीं नही इस स्कूल में शिक्षकों का भी टोटा है. 8 वीं कक्षा तक पढ़ाने के लिए सिर्फ 5 शिक्षक-शिक्षिकाओं के भरोसे यह स्कूल संचालित हो रहा है. प्रधानाचार्य की माने तो दो वर्ग के एक ही कमरे में एडजस्ट कर एक शिक्षक पढ़ाते हैं. वहीं, स्कूल में पेयजल की भी कमी है.

पूर्वी चंपारणः शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार भले ही तमाम दावे करती नजर आए, लेकिन जिले के बगहा स्थित माध्यमिक स्कूल खुद अपनी बदहाली की दास्तां बयां कर रहा है. इस स्कूल के जर्जर भवन की छत के नीचे बच्चे जमीन पर बोरा बिछाकर पढ़ने को विवश हैं.

इस स्कूल में कुल 8 कमरे हैं. इनमें से 7 कमरे 1962 के निर्मित हैं, जो लगभग जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं. जब तेज हवा चलती है, तो ऊपर लगे शेड उड़ने लगते हैं, जिससे बच्चों को डर भी लगता है. बताते चलें कि यहां प्रशासन ने सिर्फ एक ही क्लासरूम में बेंच-डेस्क की व्यवस्था की है.

जर्जर स्कूल में नहीं है बाउंड्री वॉल

जंगल के पास है स्कूल, लेकिन...
यह स्कूल वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल से बिल्कुल सटा हुआ है. लेकिन फिर भी इस स्कूल के चारों ओर बाउंड्री वॉल नहीं है. कब कौन जंगली जानवर घुस जाए. इसका भी खतरा यहां बना रहता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना में 27 बाघ सहित अन्य जंगली जानवर जैसे भालू, चीता, अजगर, किंग कोबरा पाए जाते हैं बावजूद यहां बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया गया है.

स्कूल में पेयजल तक की कमी
यहीं नही इस स्कूल में शिक्षकों का भी टोटा है. 8 वीं कक्षा तक पढ़ाने के लिए सिर्फ 5 शिक्षक-शिक्षिकाओं के भरोसे यह स्कूल संचालित हो रहा है. प्रधानाचार्य की माने तो दो वर्ग के एक ही कमरे में एडजस्ट कर एक शिक्षक पढ़ाते हैं. वहीं, स्कूल में पेयजल की भी कमी है.

Intro:शिक्षा का अलख जगाने के लिए सरकार अनेक दावे करती है, लेकिन बुनियादी तौर पर इन दावों की हकीकत क्या है किसी से छुपा नही है? बगहा-2 प्रखंड के राजकीय मध्य विद्यालय, वाल्मीकिनगर की भी ऐसी ही दुर्दशा है जो सरकारी दावों की पोल खोल रही है।


Body:जर्जर भवन के नीचे जमीन पर बोरा बिछाकर बैठे बच्चे और शिक्षकों की कमी से जूझता यह मध्य विद्यालय खुद अपने बदहाली की कहानी बयां कर दे रहा है। विद्यालय में कुल 8 कमरे हैं , 3 पक्का भवन में चलते हैं और 7 कमरे 1962 के निर्मित हैं, जो लगभग जर्जर अवस्था में पहुँच चुके हैं। जब हवा चलती है तो ऊपर लगे शेड हवा में उड़ते हैं जिससे बच्चे डरने भी लगते हैं। बताते चलें कि सिर्फ एक कक्षा में ही सरकार ने बेंच डेस्क की व्यवस्था दी है।
यह विद्यालय वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल से बिल्कुल सटा हुआ है, यानी यह कहे कि चारों तरफ से जंगल और बीच मे स्कूल तो कोई अतिशयोक्ति नही होंगी। ऐसे में इस विद्यालय में चहारदीवारी भी नही है। कब कौन जानवर घुस जाए कहना मुश्किल है। जबकि इस वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 27 बाघ सहित अन्य जंगली जानवर जैसे भालू, चिता, अजगर, किंग कोबरा इत्यादि सभी पाए जाते हैं।
यहीं नही इस विद्यालय में शिक्षकों का भी टोटा है। 8 वी कक्षा तक पढ़ाने के लिए सिर्फ 5 शिक्षक- शिक्षिकाओं के भरोसे यह विद्यालय सन्चालित हो रहा। प्रधानाचार्य की माने तो दो वर्ग को एक ही कमरे में एडजस्ट कर एक शिक्षक पढ़ाते हैं। यानी क्लास भी बहुवर्गीय चलाने की मजबूरी है।
बात की जाए बच्चों के लिए पेयजलकी तो वह भी सूर्य देवता के भरोसे हीं है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जब धूप निकलता है तभी छात्रों को पानी नसीब हो पाता है, वरना प्यासा ही रहना पड़ता। और वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच सूर्य की रौशनी कब छुप जाए कहना मुश्किल है, ऐसे में इस चिलचिलाती गर्मी में भी बच्चों को कई बार पानी के लिए काफी जद्दोजहद करना पड़ता है।


Conclusion:जो 1962 में बने कमरे हैं वो गण्डक विभाग द्वारा शिक्षा विभाग को हस्तांतरित किये गए हैं। विद्यालय प्रशासन अपने बलबूते मरम्मती करवा जैसे तैसे सरकार के बेहतर शिक्षा व्यवस्था के दावों को मजबूती प्रदान करने में लगा है।
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