बेतिया: 21वीं सदी में जब लोग चांद और मंगल पर पहुंच रहे हैं. हर तरफ विकास की गंगा बहाई जा रही है, नदी से लेकर समुंद्र तक पर पुल बनकर तैयार है. लेकिन बिहार के बेतिया की तस्वीर इससे इतर है. यहां के लोग इस दौर में भी चचरी पुल के सहारे जिंदगी जीने को मजबूर है. लोग एक स्थाई पुल की आस में पलकें बिछाएं हैं.
बेतिया में चचरी पुल के सहारे जिंदगी: यहां इलाके के लोग रोजाना जान की बाजी लगाकर अपना दैनिक कार्य करने को मजबूर है. यह तस्वीर पश्चिमी चंपारण जिले के मझौलिया प्रखंड के रतनमाला पंचायत और सिकटा प्रखंड के पुरैना पंचायत के बीचो-बीच की है. जिसने सरकार और प्रशासन के सभी विकास के दावों की पोल खोल कर रख दी है.
गांव वालों को पुल की जगह मिला आश्वासन: बता दें कि यह चचरी पुल बेतिया विधानसभा और सिकटा विधानसभा क्षेत्र को जोड़ती है. चुनाव के वक्त नेता क्षेत्र में आकर ग्रामीणों से बड़े-बड़े वादे करते हैं, आश्वासन देते हैं. कहते हैं कि इस बार चुनाव जीत कर आऊंगा तो आपकी जिंदगी चचरी से हटकर पुल पर कर दूंगा. लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है. चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि, ग्रामीण वोटरों को वादों का पुलिंदा थमा देते हैं.
हर साल बाढ़ में ढ़ह जाता है चचरी पुल: लगभग दर्जनों गांवों को जोड़ने वाली यह चचरी पुल हर साल बाढ़ में बह जाती है. बाढ़ खत्म होने के बाद फिर से इसका निर्माण कराया जाता है. लगभग 20 वर्षों से लोग इस पार से उस पार जाने के लिए चचरी पुल के ही भरोसे अपनी जिंदगी काट रहे हैं. प्रतिदिन लगभग 2 हजार लोगों का आना-जाना होता है.
बच्चों की जिंदगी की अनदेखी: बच्चों का स्कूल भी मझौलिया में पड़ता है. जिस कारण उन्हें चचरी पुल के सहारे ही स्कूल जाना पड़ता है. इन दोनों प्रखंडों के बीच महेशरा, कदमवा, सोनबरसा, खाप टोला, सतगरहीं, बहुअरी, सिसवनिया, अधकपरिया समेत लगभग एक दर्जन गांव इस चचरी के भरोसे आने-जाने को मजबूर हैं. लेकिन अब तक इस चचरी के पुल को हटाकर पक्के पुल का निर्माण नहीं हो पाया है.
"जब जनप्रतिनिधि एक बार जीत जाते हैं, तो फिर ध्यान तक नहीं देते हैं. हमारी जिंदगी फिर से चचरी पुल के सहारे ही कटती है. जब बाढ़ आती है तो हमारी दुर्दशा हो जाती है. फिर गांव में एक नाव है, उसी के सहारे इस पार से उस पार जाना पड़ता है. नाव से जाते हैं तो नाव पलटने का डर रहता है. छोटे-छोटे बच्चों की जान जोखिम में डालकर उन्हें स्कूल भेजना पड़ता है."- सिराज अहमद, स्थानीय निवासी
खुद के पैसे से चचरी पुल का निर्माण: इसको लेकर सिकटा प्रखंड के सिराज अहमद ने कहा कि 'हर साल मैं खुद इस चचरी पुल का निर्माण कराता हूं. कई बार कई जगह आवेदन भी दिया है'. बताया कि 'जनप्रतिनिधियों से मिलकर पक्के पुल के निर्माण की बात भी की है, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिलता है. बच्चों की स्थिति देखकर मैं हर साल अपने पैसे से चचरी पुल का निर्माण करता हूं.'
लोगों ने की स्थाई पुल बनाने की मांग: एक बार फिर अपने ग्रामीणों ने अपने जनप्रतिनिधियों से इस चचरी पुल से मुक्ति दिलाने की मांग की है. लेकिन अब देखना है कि इस बार उन्हें पुल मिलता है या फिर वादों का पुलिंदा.
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